रजस्वला स्त्री का अर्थ | काल, नियम इत्यादि सम्पूर्ण जानकारी

रजस्वला स्त्री का अर्थ | काल, नियम इत्यादि सम्पूर्ण जानकारी रजस्वला स्त्री का अर्थ | काल, नियम इत्यादि सम्पूर्ण जानकारी

क्योंकि एक मत आरम्भ किये हुये काम्य कर्मों में भी प्रतिनिधि को सिद्ध करता है अतः इसका भी विशेष विचार किया जा सकता है किन्तु विषय विस्तार भय से अधिक विस्तार करना उचित नहीं लगता। किसी अन्य आलेख में इसके लिये विस्तृत चर्चा करेंगे।

बहुत सारे वचनों में जो विरोधाभास दिखते हैं, यहां उसका एक उदाहरण दिया गया है। विरोधाभास सही तात्पर्य ग्रहण का हेतु है और विद्वानों का ही अधिकार हो यह प्रयोजन है। कुछ मूर्खों (यहां किसी का नाम लेना उचित नहीं होगा क्योंकि उन मूर्खों के भी लाखों अनुयायी बन गये) ने 100 – 200 वर्ष पूर्व “कर्म प्रधान” का जप करके कर्मणा वर्ण सिद्ध करने का प्रयास किया। स्वयं तो विदा हो गए परन्तु अनुयायियों को गली का ….. बना दिया। अब उनके अनुयायी ये सिद्ध नहीं कर पा रहे हैं कि वर्णशंकर का क्या होगा?

उन मूर्खों का सही तात्पर्य ग्रहण में अधिकार न हो इसलिये अधिकांशतः परस्पर विरोधी वचन ही प्राप्त होते हैं और इसका एक विस्तृत उदाहरण ऊपर दिया गया है।

प्रश्न तो ढेरों हैं और परन्तु कम-से-कम एक प्रश्न का भी शास्त्रोक्त प्रमाण सहित उत्तर प्रस्तुत करें तब तो। जब दो वर्णों (दो वर्ण की सिद्धि इस प्रकार होगी कि पति और पत्नी के कर्म अलग-अलग वर्णों के हैं तो वर्ण भी भिन्न ही होगा) वाले जोड़े से किसी बच्चे उसके बच्चे तो वर्णशंकर ही होंगे। इसकी सिद्धि उन्हीं (कुतर्कियों) के (कर्मणा-वर्ण-सिद्धि सूत्र) से होती है कि पति-पत्नी का भी एक वर्ण नहीं होगा कर्म के आधार पर अलग-अलग वर्ण होंगे और उससे उत्पन्न संतान वर्णशंकर ही होगा।

वो कुतर्की अन्य शास्त्र-पुराणों के प्रमाण नहीं स्वीकारते किन्तु श्रीमद्भगवगीता को प्रामाणिक मानते हैं। “वर्णशंकर भी श्रीमद्भगवद्गीता से सिद्ध होता है” इसका क्या करोगे ! ये तो बताओ ? यदि तुम्हारे महानतममहापुरुष ने जिसके लिये सभी शास्त्र-पुराण-सूत्र-स्मृति आदि असत्य थे यदि वर्णशंकरता को भी स्वीकार नहीं करते तो श्रीमद्भगवद्गीता भी क्यों असत्य नहीं है ? श्रीमद्भगवद्गीता मात्र भी यदि सत्य मानो तो भी कर्म से वर्ण की सिद्धि करने पर वर्ण का ही विलोप हो जायेगा और सभी वर्णशंकर ही जन्म लेंगे, पूरी सृष्टि ही वर्णशंकर हो जाएगी। इस वर्णशंकर का क्या करोगे ?

शास्त्रोक्त प्रमाणयुक्त उत्तर देने वाले ही इस विषय में कोई टीका-टिप्पणि प्रस्तुत करें। यहां उन कुतर्कियों को घसीटने का प्रयोजन क्या था ? इस आलेख में उन कुतर्कियों को लाने का प्रयोजन यह है कि रजस्वला दोष को भी ये कुतर्की अस्वीकार करने लगे हैं। इनकी दृष्टि में सभी स्मृति-पुराण आदि असत्य है। मात्र 2-4 ही महानतममहापुरुष 100 – 200 वर्ष उत्पन्न हुआ जिसकी कुतर्क सत्य हैं।

निषेध

संस्कार का निषेध : यदि माता रजस्वला हो जाये तो बच्चों के मुंडन, उपनयन, विवाहादि करने के लिये भी शास्त्रों में निषेध किया गया है।

रतिक्रिया का निषेध : रजस्वला होने पर 3 दिन विशेष रूप से रतिक्रिया का निषेध किया गया है। गर्भधारण की योग्यता होने से यदि रजस्वला स्त्री रतिक्रिया करे तो प्रथम तीन दिनों में भी गर्भधारण हो सकता है। किन्तु इन प्रथम तीन दिनों में नरकभोगी पापी जीव का ही गर्भ में स्थापन होता है : प्रथमेऽहनि चण्डाली द्वितीये ब्रह्मघातिनी। तृतीये रजकी ह्येता नरकागतमातरः॥ – गरुडपुराण, पुनः गरुडपुराण का ही वचन है : ऋतुमध्ये हि पापानां देहोत्पत्तिः प्रजायते।

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