मन की बात मोदी जी के साथ

मोदी जी तो लगातार कई वर्षों से मन की बात करते आ रहे हैं; आज इस आलेख में हम अपने मन की बात मोदी जी के साथ करेंगे। इसमें मुख्य रूप से वो सुझाव हैं जिसके पूर्ति की अपेक्षा मोदी सरकार से ही की जा सकती है। मन की बात स्पष्टतः निर्भयता पूर्वक कहने का यह भी तात्पर्य है कि आप निरंकुश व निर्दयी शासक नहीं हैं ।

मन की बात मोदी जी के साथ

मोदी सरकार की उपलब्धियों पर हमें गर्व है और प्रत्येक देशवासी को गर्व होना चाहिये। अपनी सभी उपलब्धियां मोदी सरकार स्वयं भी जनता को नहीं बता सकती। मुख्य उपलब्धियों में धारा 370 का हटना, राम मंदिर बनाना, आर्थिक विकास, भ्रष्टाचार पर प्रहार, आतंकवाद पर नियंत्रण, सामान्य जन जीवन में परिवर्तन आदि कहे जा सकते हैं।

इसके साथ कुछ विशेष असफलतायें भी हैं जिसे नकारा नहीं जा सकता जैसे कुछ उपद्रवी तत्वों के समक्ष आत्मसमर्पण, जिस राज्य में भाजपा सरकार न हो वहां पीड़ित हिन्दू को न्याय का अभाव, कुछ प्रमुख भ्रष्टाचारियों का अभी भी खुले में घूमना, षड्यंत्रकारियों के समक्ष घुटने टेकना, तीर्थाटन और टूरिज्म का एकीकरण करना आदि-आदि। यद्यपि असफलताओं के पीछे राजनीतिक कारण ही हैं और मोदी सरकार की नीयत पर संदेह भी नहीं है, तथापि असफलता तो असफलता ही है।

यहाँ अब हम अपने मन की बात करेंगे जो मोदी जी के साथ है और कोई संदेह नहीं है कि ये बात मोदी नहीं सुनेंगे। इससे उन लोगों को भी पता चल जायेगा जो 10 वर्षों से चिल्ला रहे हैं हमारे मन की बात क्यों नहीं सुनते; मोदी सुनते हैं आप सही बात, देश, धर्म, संस्कृति हेतु उचित बात कहें तो उस दिशा में प्रयास भी करते हैं।

सांस्कृतिक संरक्षण

यद्यपि इस दिशा में मोदी सरकार ने कार्य करने का प्रयास तो किया है किन्तु जो परामर्श देने वाले हैं वो एकांगी विचारधारा के अधीन हैं, भारतीय संस्कृति के मूल प्रामाणिक शास्त्रों में उन परामर्श देने वालों की भी आस्था नहीं है। उन परामर्श देने वालों के लिये दो-चार सौ वर्ष पूर्व उत्पन्न होने वाले स्वघोषित ऋषि मान्य हैं जिसने सर्वदा शास्त्र का उल्लंघन किया है। चूँकि परामर्शदाता ही भ्रमित हैं अतः धर्म, कर्म, विधि-विधान, तीर्थ, तीर्थाटन इत्यादि विषयों पर शास्त्रमर्यादा का उल्लंघन करने वाला परमर्श देते हैं और तदनुसार ही मोदी सरकार ने 10 वर्षों तक काम किया।

मन की बात मोदी जी के साथ
मन की बात मोदी जी के साथ

यहां एक बात स्पष्टरूप से बता दूँ कि यदि किसी व्यक्ति या संस्था को ये भ्रम हो गया हो कि धर्म/सनातन का रक्षक वो है तो इस भ्रम को अपने मन से निकाल दे। धर्म के रक्षक स्वयं ईश्वर हैं, और जब कभी भी धर्मरक्षा करने के अवतरित हुये तो शास्त्रों की मर्यादा में रहकर धर्म की रक्षा और स्थापना करते रहे; शास्त्रों का उल्लंघन, निंदा, त्याग करके नहीं।

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