“आदि देवं जगत कारणम्” से आरंभ होने वाले स्तोत्र में, जो कि भगवान सत्यनारायण का स्तोत्र है जिसमें ८ श्लोक हैं जिस कारण इसका नाम सत्यनारायणाष्टकं है जिसे सत्यनारायण अष्टकं (satyanarayan ashtakam) स्तोत्र के नाम से जाना जाता है। नवां श्लोक फलश्रुति है। यहां भगवान सत्यनारायण की पूजा में उपयोगी सिद्ध होने वाली सत्यनारायण अष्टकम स्तोत्र संस्कृत में दिया गया है।
यहां पढ़ें भगवान सत्यनाराण का अष्टक स्तोत्र सत्यनारायणाष्टक – satyanarayan ashtakam
आदिदेवं जगत्कारणं श्रीधरं
लोकनाथं विभुं व्यापकं शङ्करम् ।
सर्वभक्तेष्टदं मुक्तिदं माधवं
सत्यनारायणं विष्णुमीशं भजे ॥१॥
सर्वदा लोक-कल्याण-पारायणं
देव-गो-विप्र-रक्षार्थ-सद्विग्रहम् ।
दीन-हीनात्म-भक्ताश्रयं सुन्दरं
सत्यनारायणं विष्णुमीशं भजे ॥२॥
दक्षिणे यस्य गङ्गा शुभा शोभते राजते सा रमा यस्य वामे सदा ।
यः प्रसन्नाननो भाति भव्यश्च तं सत्यनारायणं विष्णुमीशं भजे ॥३॥
सङ्कटे सङ्गरे यं जनः सर्वदा स्वात्मभीनाशनाय स्मरेत् पीडितः ।
पूर्णकृत्यो भवेद् यत्प्रसादाच्च तं सत्यनारायणं विष्णुमीशं भजे ॥४॥
वाञ्छितं दुर्लभं यो ददाति प्रभुः साधवे स्वात्मभक्ताय भक्तिप्रियः ।
सर्वभूताश्रयं तं हि विश्वम्भरं सत्यनारायणं विष्णुमीशं भजे ॥५॥
ब्राह्मणः साधु-वैश्यश्च तुङ्गध्वजो येऽभवन् विश्रुता यस्य भक्त्याऽमरा ।
लीलया यस्य विश्वं ततं तं विभुं सत्यनारायणं विष्णुमीशं भजे ॥६॥
येन चाब्रह्मबालतृणं धार्यते सृज्यते पाल्यते सर्वमेतज्जगत् ।
भक्तभावप्रियं श्रीदयासागरं सत्यनारायणं विष्णुमीशं भजे ॥७॥
सर्वकामप्रदं सर्वदा सत्प्रियं वन्दितं देववृन्दैर्मुनीन्द्रार्चितम् ।
पुत्र-पौत्रादि-सर्वेष्टदं शाश्वतं सत्यनारायणं विष्णुमीशं भजे ॥८॥अष्टकं सत्यदेवस्य भक्त्या नरः भावयुक्तो मुदा यस्त्रिसन्ध्यं पठेत् ।
तस्य नश्यन्ति पापानि तेनाऽग्निना इन्धनानीव शुष्काणि सर्वाणि वै ॥९॥
॥ इति सत्यनारायणाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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