कब-कब शिववास का विचार नहीं होता ?
श्रावणेऽधिकमासे च आर्द्रायाञ्च गते रवौ। शिवभेन्दुगते योगे, शुक्ले च व्यतिपातके ॥
हरानङ्ग हरीणाञ्च तिथिषु करणे चतुष्पदे। सोमवार शुभे ब्राह्मे प्रदोषाख्येऽभिजित्क्षणे ॥
शिवरात्र्यादि पर्वेषु उत्सवेषु निमित्तके । नित्याराधनकाले च शिववासं न चिन्तयेत् ॥
- अर्थात् श्रावण मास और अधिकमास में,
- जब सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में हो (लगभग १४ दिन) ,
- शिव, शुक्ल और व्यतिपात योग में;
- द्वादशी, त्रयोदशी और चतुर्दशी तिथियों में,
- चतुष्पद करण में,
- सोमवार दिन में,
- ब्रह्ममुहूर्त, प्रदोष (गोधूलि काल) तथा अभिजित् मुहूर्त (मध्याह्न में १ मुहूर्त)
- शिवरात्रि इत्यादि शिव जी के पर्वो में,
- जन्मतिथि, शांति इत्यादि नैमित्तिक दिवस में,
- नित्य आराधना में
शिववास का विचार नहीं करना चाहिए । साथ ही स्वयंभू या प्रतिष्ठित शिवलिङ्ग की अर्चना के लिये शिववास विचार की आवश्यकता नहीं होती।
उपरोक्त विवरण से यह भी ज्ञात होता है की शिववास का रुद्राभिषेक मात्र तात्पर्य नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि शिववास का विचार मुख्यतया भगवान शिव के आवाहन हेतु कर्तव्य होता है। जैसे पार्थिव शिवलिंग बनाकर जब उसमें भगवान शिव का आवाहन करना हो तो उस समय शिववास विचार करने की आवश्यकता होती है।
शिववास चक्र
शिववास ज्ञात करने के लिये शिववास चक्र नामक कुछ भी नहीं होता है। प्रत्येक महीने के दोनों पक्षों के निर्धारित तिथियां (शिववास तिथि) अवश्य होती है जो इस प्रकार है :
- शुक्ल पक्ष की शिववास तिथि : द्वितीया, पञ्चमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी और त्रयोदशी।
- कृष्ण पक्ष की शिववास तिथि : प्रतिपदा, चतुर्थी, पञ्चमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी और अमावास्या।
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Shiv kalp ka samay hota hai
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