हनुमान जी को पवनपुत्र भी कहा गया है और इस कारण पवनात्मज नाम से भी जाने जाते हैं और यदि पवनज कहें तो वह भी पवनपुत्र हनुमान का ही नाम है। हनुमान जी का एक अष्टक स्तोत्र पवनज नाम से भी है जिसे पवनजाष्टकं नाम से जाना जाता है। यहां पवनजाष्टकं (shri pavanajastakam) स्तोत्र संस्कृत में दिया गया है।
श्री पवनजाष्टकं – shri pavanajastakam
भवभयापहं भारतीपतिं भजकसौख्यदं भानुदीधितिम् ।
भुवनसुन्दरं भूतिदं हरिं भजत सज्जना मारुतात्मजम् ॥१॥
अमितविक्रमं ह्यञ्जनासुतं भयविनाशनं त्वब्जलोचनम् ।
असुरघातिनं ह्यब्धिलङ्घिनं भजत सज्जना मारुतात्मजम् ॥२॥
परभयङ्करं पाण्डुनन्दनं पतितपावनं पापहारिणम् ।
परमसुन्दरं पङ्कजाननं भजत सज्जना मारुतात्मजम् ॥३॥
कलिविनाशकं कौरवान्तकं कलुषसंहरं कामितप्रदम् ।
कुरुकुलोद्भवं कुम्भिणीपतिं भजत सज्जना मारुतात्मजम् ॥४॥
मतविवर्धनं मायिमर्दनं मणिविभञ्जनं मध्वनामकम् ।
महितसन्मतिं मानदायकं भजत सज्जना मारुतात्मजम् ॥५॥
द्विजकुलोद्भवं दिव्यविग्रहं दितिजहारिणं दीनरक्षकम् ।
दिनकरप्रभं दिव्यमानसं भजत सज्जना मारुतात्मजम् ॥६॥
कपिकुलोद्भवं केसरीसुतं भरतपङ्कजं भीमनामकम् ।
विबुधवन्दितं विप्रवंशजं भजत सज्जना मारुतात्मजम् ॥७॥
पठति यः पुमान् पापनाशकं पवनजाष्टकं पुण्यवर्धनम् ।
परमसौख्यदं ज्ञानमुत्तमं भुवि सुनिर्मलं याति सम्पदम् ॥८॥
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