रघुवंशी होने के कारण भगवान श्री राम का एक नाम राघव है और इसी नाम से पुनः राघवेन्द्र भी कहा गया क्योंकि रघुवंशी होने के कारण यदि श्रीराम राघव हैं तो अन्य सभी रघुवंशी भी राघव हैं। किन्तु यदि राघवेन्द्र कहा जाता है तो अन्य सभी रघुवंशी नहीं हो सकते वो श्री राम ही हो सकते हैं। यहां भगवान श्रीराम के राघवेंद्र नाम से अष्टक स्तोत्र अर्थात श्री राघवेन्द्र अष्टकम् (shri raghavendra ashtakam) संस्कृत में दिया गया है।
श्री राघवेन्द्र अष्टकम् – shri raghavendra ashtakam
अच्युतं राघवं जानकी वल्लभं
कोशलाधीश्वरं रामचन्द्रं हरिम् ।
नित्यधामाधिपं सद्गुणाम्भोनिधिं
सर्वलोकेश्वरं राघवेन्द्रं भजे ॥१॥
सर्वसङ्कारकं सर्वसन्धारकं
सर्वसंहारकं सर्वसन्तारकम् ।
सर्वपं सर्वदं सर्वपूज्यं प्रभुं
सर्वलोकेश्वरं राघवेन्द्रं भजे ॥२॥
देहिनं शेषिणं गामिनं रामिणं
ह्यस्य सर्वप्रपञ्चस्य चान्तःस्थितम् ।
विश्वपारस्थितं विश्वरूपं तथा
सर्वलोकेश्वरं राघवेन्द्रं भजे ॥३॥
सिन्धुना संस्तुतं सिन्धुसेतोः करं
रावणघ्नं परं रक्षसामन्तकम् ।
पह्नजादिस्तुतं सीतया चान्वितं
सर्वलोकेश्वरं राघवेन्द्रं भजे ॥४॥
योगिसिद्धाग्र-गण्यर्षि-सम्पूजितं
पह्नजोन्पादकं वेददं वेदपम् ।
वेदवेद्यं च सर्वज्ञहेतुं श्रुतेः
सर्वलोकेश्वरं राघवेन्द्रं भजे ॥५॥
दिव्यदेहं तथा दिव्यभूषान्वितं
नित्यमुक्तैकसेव्यं परेशं किलम् ।
कारणं कार्यरूपं विशिष्टं विभुं
सर्वलोकेश्वरं राघवेन्द्रं भजे ॥६॥
कुझ्तिऐः कुन्तलैःशोभमानं परं
दिव्यभव्जेक्षणं पूर्णचन्द्राननम् ।
नीलमेघद्युतिं दिव्यपीताम्बरं
सर्वलोकेश्वरं राघवेन्द्रं भजे ॥७॥
चापबाणान्वितं भुक्तिउक्तिप्रदं
धर्मसंरक्षकं पापविध्वंसकम् ।
दीनबन्धुं परेशं दयाम्भोनिधिं
सर्वलोकेश्वरं राघवेन्द्रं भजे ॥८॥
॥ इति श्रीराघवेन्द्राष्टकम् ॥
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