वर्ष श्राद्ध – छन्दोग

वार्षिक श्राद्ध विधि pdf सहित – वार्षिक श्राद्ध विधि मंत्र – वाजसनेयी

इस आलेख में वार्षिक श्राद्ध जिसे वर्षी (बरखी) भी बोला जाता है के बारे में विस्तृत जानकारी के साथ वार्षिक अर्थात सांवत्सरिक श्राद्ध अर्थात एकोद्दिष्ट की विधि और मंत्र भी दिया गया है साथ ही जो pdf फाइल डाउनलोड करना चाहते हैं उनके लिये पीडीऍफ़ फाइल भी दिया गया है। इस आलेख में छन्दोगी वार्षिक या सांवत्सरिक श्राद्ध करने की विधि बताई गयी है।

वर्ष श्राद्ध – छन्दोग

प्रति संवत्सर अर्थात प्रति वर्ष मृतक की तिथि पर जो श्राद्ध किया जाता है उसे वार्षिक श्राद्ध या सांवत्सरिक श्राद्ध कहते हैं और बोल-चाल में वर्षी या बरखी भी कहा जाता है। इसे क्षयाह श्राद्ध भी कहा जाता है और एकोद्दिष्ट विधि का पालन करना चाहिए।

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वार्षिक श्राद्ध विधि pdf सहित – वार्षिक श्राद्ध विधि मंत्र – वाजसनेयी

कालक्रम से इसे कुछ लोगों ने ११ वर्ष तक तो कुछ लोगों ने ५ वर्षों तक और कुछ लोगों ने तो मात्र १ वर्ष तक भी सीमित कर लिया है और बहुत सारे लोग तो ऐसे भी हैं जो एक वर्ष भी नहीं करना चाहते प्रेत श्राद्ध करने के बाद तेरहवीं को ही कर के निपट जाते हैं और पितरों को भी निपटा देते हैं जो कि अनुचित है।

वार्षिक श्राद्ध कब करना चाहिए

वार्षिक श्राद्ध प्रतिवर्ष मृत्यु तिथि पर करने का नियम बताया गया है अर्थात जिस महीने पक्ष और तिथि को मृत्यु हुई हो प्रतिवर्ष उसी माह और पक्ष के उसी तिथि पर वार्षिक श्राद्ध करना चाहिये।

पुनः चान्द्र मास या सौर मास किसे ग्रहण करे? इसके संबंध में गर्ग जी का वचन इस प्रकार है : आब्दिके पितृकार्ये च चान्द्रोमासः प्रशस्यते ॥ वार्षिक क्रिया (वर्षगांठ निर्धारण) और पितृकार्यों में चान्द्रमास ग्रहण करना चाहिये।

वार्षिक श्राद्ध विधि
वार्षिक श्राद्ध विधि

वार्षिक श्राद्ध के लिये औदयिक तिथि को आवश्यक नहीं माना गया है, वार्षिक श्राद्ध के लिये मध्याह्न व्यापिनी तिथि को ग्रहण करने के शास्त्रों में निर्णय मिलता है।

  • सम्पूर्ण मध्याह्न काल में यदि दो दिन क्षयतिथि मिले तो पहले दिन करना चाहिये।
  • यदि दोनों दिन मध्याह्न काल में क्षयतिथि मिले किन्तु एक भी दिन सम्पूर्ण मध्याह्न काल व्यापिनी न हो तो जिस दिन मध्याह्न काल में अधिक समय तक क्षय तिथि मिले उस दिन वार्षिक श्राद्ध करे।
  • यदि दोनों दिन में से किसी भी दिन मध्याह्न काल में क्षय तिथि प्राप्त न हो तो पहले दिन ही करे। किन्तु कुछ लोग औदयिक तिथि को भी स्वीकारते हैं।

वार्षिक श्राद्ध में कितने पिंडदान होते हैं

वार्षिक या सांवत्सरिक श्राद्ध में मृत्यु तिथि पर एक मात्र मृत पितर का ही श्राद्ध किया जाता है और एकोद्दिष्ट विधि से किया जाता है। एकोद्दिष्ट श्राद्ध में एक पिंड ही दिया जाता है। अर्थात वार्षिक श्राद्ध में मात्र एक पिंड दिया जाता है और जिसका श्राद्ध होता है उसी के निमित्त दिया जाता है।

छन्दोगी

विषय के कारण हमें सामवेदी कौन होते हैं यह भी समझना आवश्यक हो जाता है। सामवेदियों के संबंध में जो श्लोक प्राप्त होता है वह इस प्रकार है :

कश्यप और काश्यप दोनों अलग माना गया है, वत्स, शांडिल्य, कौशिक और धनञ्जय ये छः गोत्र के ब्राह्मण सामवेदी कहे गये हैं। यजमान के लिये उनके पुरोहित का वेद/शाखा आदि ग्राह्य होता है।

जलस्पर्श : छन्दोगी श्राद्ध में 4 बार आचमन के उद्देश्य से जलस्पर्श की विधि पायी जाती है – अवनेजन, पिण्ड, प्रत्यवनेजन और वस्त्र के उपरांत।

क्षयाह श्राद्ध के विशेष नियम

क्षयाह में एक विशेष नियम यह है कि अगले तीन क्षयाह को पुत्र भोजन न करे। चार वर्ष का तात्पर्य तीन क्षयाह (वर्षी) होता है। यह दिवोदास के ग्रन्थ में लिखा गया है और हमें निर्णयसिन्धु से प्राप्त होता है :-

अर्थात चतुर्थ क्षयाह नगर के भीतर भी किया जा सकता है और भोजन भी किया जा सकता है।

बहुत लोग मासिक श्राद्ध की भांति ही क्षयाह का भी अपकर्षण करके तेरहवीं को करने लगे हैं यह अनुचित और शास्त्र प्रमाण के विरुद्ध है। क्षयाह श्राद्ध का अपकर्षण नहीं हो सकता और क्षयाह श्राद्ध अनिवार्य है। क्योंकि क्षयाह श्राद्ध में भोजन तक का निषेध किया गया है। भोजन निषेध का तात्पर्य फलाहार का निषेध और पूर्ण उपवास नहीं समझना चाहिये। चार वर्ष पर्यन्त क्षयाह के दिन भोजन करने के दोष का भी वर्णन भी श्राद्ध कारिका में किया गया है :

प्रथम क्षयाह में किये गये भोजन को अस्थि और मज्जा, द्वितीय क्षयाह में मांस और तृतीय क्षयाह में रुधिर का भक्षण कहा गया है।

जब विघ्न सामने आते हैं – क्षयाह के दिन विघ्न उपस्थित हो तो :

  • यदि विघ्न के कारण दिन में क्षयाह न किया जा सका हो तो रात में भी अवश्य करना चाहिये।
  • यदि विघ्न के कारण दिन और रात में भी क्षयाह न किया जा सका हो तो तीन विकल्प प्राप्त होते हैं :- कृष्ण पक्ष की एकादशी, अमावस्या और शुक्ल पक्ष की एकादशी।
  • ये तीन विकल्प अज्ञात मरण में के लिये भी बताये गये हैं।
  • तीन विकल्प का तात्पर्य यह है कि जो निकटतम प्राप्त हो उस तिथि को करे। किन्तु लोप कदापि न करे।

इसी तरह वार्षिक श्राद्ध सम्बन्धी अन्य विशेष नियम भी अद्यतित किये जायेंगे व त्रुटियों का निस्तारण किया जायेगा। लेकिन यह संशोधन pdf में संभव नहीं होगा।

वार्षिक श्राद्ध पद्धति – छन्दोग

निर्देश :

  1. जिस क्रिया में स.द.त्रि. अंकित किया गया है उसका तात्पर्य है – सव्य, दक्षिणाभिमुख, त्रिकुशहस्त।
  2. जिस क्रिया में अ.द.मो. अंकित किया गया है उसका तात्पर्य है – अपसव्य, दक्षिणाभिमुख, मोटकहस्त।
  3. जिस क्रिया में स.पू.त्रि. अंकित किया गया है उसका तात्पर्य है – सव्य, पूर्वाभिमुख, त्रिकुशहस्त।

श्राद्ध स्थला आकर सर्वप्रथम शुद्धिकरण करे, तीन बार आचमन कर कुशादि धारण करते हुए आत्मशुद्धि करे :

पवित्रीकरण मंत्र : ॐ अपवित्रः पवित्रोऽ वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याऽभ्यन्तरः शुचिः पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॥
दिग्रक्षण मंत्र : ॐ नमो नमस्ते गोविन्द पुराण पुरूषोत्तम । इदं श्राद्धं हृषीकेश रक्ष त्वं सर्वतो दिशः ॥

पञ्चगव्य निर्माण, प्राशन, प्रोक्षण आदि भी करे। अंगारभ्रमण, गौरमृत्तिका आच्छादनादि भी विधि के अनुसार करे।

दीप जलाकर यदि पाककर्त्ता द्वारा पाककर्म हुआ हो तो श्राद्धकर्त्ता पाककर्त्ता से पूछे “सिद्धम्” और पाककर्त्ता कहे “ॐ सिद्धम्” ॥ यदि पाककर्ता न हो तो पूछने की आवश्यकता नहीं है।

पूर्वाभिमुख सव्य त्रिकुशा, तिल, जल आदि द्रव्य लेकर संकल्प करे, संकल्प में संवत्सर (वर्ष) संख्या की आवश्यकता नहीं है, किन्तु कुछ विद्वान प्रथम, द्वितीय आदि संवत्सर संख्या का भी प्रयोग करते हैं। :-

संकल्प कर तिल जलादि भूमि पर गिराये त्रिकुशा सहित।

पुनः त्रिकुशा लेकर तीन बार गायत्री मंत्र जप करे। तीन बार देवताभ्यः मंत्र पढ़े :

वार्षिक श्राद्ध विधि मंत्र
वार्षिक श्राद्ध विधि मंत्र

तिल विकिरण : ॐ अपहता ऽअसुरा रक्षां सि वेदिषदः ॥ भोजन पात्र पर तिल बिखेरे।

अर्घ्य स्थापन – शन्नो देवी मंत्र से अर्घपात्र में जल दे, तिलोऽसि मंत्र से तिल दे, फिर बिना मंत्र के पुष्प-चंदन-कुशा भी दे :

  • जल : ॐ शन्नो देवीरभिष्टये शन्नो भवन्तु पीतये शंय्योरभि स्रवन्तुनः॥ अर्घ्य पात्र में जल दे। स.द.त्रि.
  • तिल : ॐ तिलोऽसि पितृ देवत्यो गोसवो देवनिर्मितः। प्रत्नद्भिः पृक्त: स्वधया पितृन् लोकान् प्रीणाहि नः स्वधा ॥ स.द.त्रि.

अर्घ्य पात्र में तिल देकर पुष्प चन्दन भी दे दे। अर्घ्य पात्र को बांये हाथ में लेकर कुशा निकाल कर भोजन पात्र पर रख कर जल से सिक्त करे। दांये हाथ से अर्घ्य पात्र को ढंककर अगले मंत्र से अभिमंत्रित करे : –

  • अर्घ्याभिमंत्रन : ॐ या दिव्या आपः पयसा सम्बभूबुर्या आंतरिक्षा उत पार्थिवीर्या:। हिरण्यवर्णा याज्ञियास्ता न आपः शिवा: शं स्योना: सुहवा भवन्तु ॥ स.द.त्रि.; फिर दाहिने हाथ में मोटक, तिल, जल लेकर अर्घ्योत्सर्ग करे :
  • अर्घ्योत्सर्ग : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः …… शर्मन् इदमर्घ्यं ये चात्र त्वानुयाँश्च त्वमनु तस्मै ते स्वधा ॥ अ.द.मो.; फिर अर्घपात्र दाहिने हाथ में लेकर पूर्वसिक्त कुशा पर पितृतीर्थ से दे ।
  • न्युब्जीकरन : ॐ पित्रे स्थानमसि ॥ (ॐ मात्रे स्थानमसि) अ.मो. भोजन पात्रस्थित कुशा को पुनः अर्घ्य पात्र में रखकर आसन के पश्चिम भाग में अधोमुख कर दे।

अ.द.मो. भोजन पात्र और आसन को अपसव्य क्रम से जल से घेरे। पिंडवेदी के पूर्व में भूस्वामि का अन्न देकर अगले मंत्र से उत्सर्ग करे :-

भूस्वामी अन्नोत्सर्ग : ॐ इदमन्नं एतद् भूस्वामि पितृभ्यो नमः ॥ अ.द.मो.; अपने बांये भाग में अर्थात पिंड वेदी के पूर्वभाग में भूस्वामि के अन्न का उत्सर्ग करे।

अन्नादि परोसकर अधोमुखी दाहिने हाथ से पितरान्न का स्पर्श कर (अथवा मधु दे) मधुव्वाता मंत्र पढ़े , दाहिने हाथ के नीचे अधोमुखी बांया हाथ लगाते हुए पृथिवी ते …… आदि मन्त्र पढ़े।

  • ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखे अमृते ऽअमृतं जुहोमि स्वाहा ॥
  • ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् समूढ़मस्य पां सुले ॥
  • ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्षमदियं ॥ स.द.त्रि.

बांये हाथ को अन्न में लगाकर रखते हुए दाहिने हाथ के अंगूठे से क्रमशः अन्न, जल, घी और अन्न का स्पर्श अगले मन्त्र से करे; जल, आज्य के लिये किसी पात्र में जल और घी दे, बहुत जगह व्यवहार में यह नहीं देखा जाता अपितु दीप वाले घी का ही स्पर्श किया जाता है जो अनुचित है। :-

त्रि गायत्री जप , मधुव्वाता पाठ।

ॐ अन्नहीनं क्रियाहीनं विधिहीनं च यद्भवेत्। तत्सर्वमच्छिद्रमस्तु ॥

गायत्री मंत्र से संकल्प वाले कुश को थोड़ा तोड़ कर आसन के नीचे रखे। पुनः “मधुव्वाता” पाठ करे ।

  • ॐ आशुः शिषाणो वृषभो न भीमो घनाघनः क्षोभनश्चर्षनिनां । संक्रदनो निमिष एकवीरः शतं सेना अजयत्साकमिन्द्रः ॥
  • ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शङ्कराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ॥
  • ॐ नमस्तुभ्यं विरूपाक्ष नमस्तेनेक चक्षुषे । नमः पिनाकहस्ताय वज्रहस्ताय वै नमः ॥
  • ॐ सप्तव्याधा दशार्णेषु मृगाः कालञ्जरे गिरौ । चक्रवाकाः शरद्वीपे हन्साः सरसि मानसे ॥
  • तेऽपि जाताः कुरुक्षेत्रे ब्राह्मणा वेदपारगाः । प्रस्थिता दूरमध्यानौ यूयं तेभ्योवसीदथ ॥
  • ॐ नमस्येहं पितृन् स्वर्गे ये वसन्त्यधिदेवता। देवैरपि हि तृप्यन्तु ये च श्राद्ध स्वधोत्तरैः ॥
  • ॐ रुची रुची रुचिः ॥ पाठ करे।

विकिरदान : पिंडवेदी के पश्चिम भाग में एक त्रिकुशा रख कर जल से सिक्त कर दे, एक पुरे में जलाप्लावित अन्नादि लेकर बांये हाथ के पितृतीर्थ से मोड़ा द्वारा त्रिकुशा पर अगले मन्त्र से दे :-

उल्लेखन : बालुका से एक हाथ लंबा-चौड़ा और 4 अंगुल ऊँचा दक्षिणप्लव वेदी निर्माण करे, बालुकामयी पिंडवेदी को जल से सिक्त कर प्रादेश प्रमाण रेखा दर्भ पिञ्जलि से खींचे :- ॐ अपहता ऽअसुरा रक्षां सि वेदिषदः ॥ अ.द.मो. ॥ दर्भपिंजली का ईशानकोण में त्याग करे।

अत्रावन का उत्सर्ग करते हुए पुरे का आधा जल पिंडवेदी के कुशाओं पर गिरावे, जलस्पर्श करे । बांये हाथ में पिण्ड लेकर उत्सर्ग करे :-

वार्षिक श्राद्ध पिंडदान

पिण्ड दाहिने हाथ में लेकर पितृतीर्थ से वेदी के कुशाओं पर रखे। जलस्पर्श करे । पिंडतलस्थ कुशाओं में हाथ पोछ ले।

स.पू.त्रि. – दो बार आचमन करके हरिस्मरण करे। फिर दक्षिणाभिमुख हो जाये

वार्षिक श्राद्ध पिंडदान
वार्षिक श्राद्ध पिंडदान
  1. ॐ अत्र पितर्मादयस्व यथाभाग मा वृषायस्व ॥ सूर्य स्वरूप पिता का ध्यान करते हुए वामावर्त मुख घुमाते हुये ईशानकोण से दीर्घश्वास ले।
  2. ॐ अमीमदत पिता यथाभाग मा वृषायिष्ट॥ श्वास का त्याग करते हुये दक्षिणाभिमुख हो जाये।

नीवीं विसर्जन या डाँरकडोर ससारे। स.पू.त्रि. – दो बार आचमन करके हरिस्मरण करे।

पिण्डपूजन : ॐ एतत्ते पितर्वासः ॥ (ॐ एतत्ते मातर्वासः) दोनों हाथों से (बांया हाथ आगे, दाहिना पीछे) पकड़ कर सूता पिण्ड पर दे। अ.द.मो.; फिर तिल, जल लेकर वस्त्रोत्सर्ग करे :

ॐ अद्य ………… गोत्र पितः ………… शर्मन् एतद्वासो ये चात्र त्वानुयाँश्च त्वमनु तस्मै ते स्वधा ॥ अ.द.मो. ॥ फिर जलस्पर्श करे ।

पान, पुष्प, चन्दन, द्रव्यादि भी चुपचाप पिण्ड पर चढ़ा दे। पिंडशेषान्न पिंड के चारों और अपसव्य क्रम से बिखेड़ दे । पुष्प लेकर अगला मंत्र पढ़े –

ॐ वसंताय नमस्तुभ्यं ग्रीष्माय च नमो नमः। वर्षाभ्यश्च शरत्संज्ञ ऋतवे च नमः सदा॥
हेमंताय नमस्तुभ्यं नमस्ते शिशिराय च। मास संवत्सरेभ्यश्च दिवसेभ्यो नमः सदा॥
पुष्प पिण्ड पर चढ़ा दे – ॐ वसन्तादि षडऋतुभ्यो नमः॥

  • ॐ शिवा: आपः सन्तु ॥ भोजनपात्र पर जल दे।
  • ॐ सौमनस्यमस्तु ॥ भोजनपात्र पर फूल दे।
  • ॐ अक्षतंचारिष्टमस्तु ॥ भोजनपात्र पर अक्षत दे।

तिल, मधु, घृत मिश्रित जल (अक्षय्योदक) पिण्ड पर पूरे से दे।

पवित्रीहस्त पिण्डस्थ सूत्रादि हटा दे। पिण्ड पर त्रिकुशा रख कर, दांये हाथ में बांयां हाथ लगाते हुये, दक्षिणाग्र, सघृत जल या दुग्धधारा दे । अ.द.मो. :-

वारिधारा : ॐ ऊर्जं वहन्तीरमृतं घृतं पयः कीलालं परिश्रुतम् । स्वधास्थ तर्पयत् मे पितरम् ॥

थोड़ा नम्र होकर पिण्ड को सूँघ ले और उठाकर फिर रख दे। पिण्ड के नीचे वाले कुशों को निकाल कर आग में जला दे। अर्घ्यपात्र को उत्तान कर दे। मोड़ा, तिल, जल, द्रव्यादि लेकर दक्षिणा करे :-

दक्षिणा लेकर ब्राह्मण ॐ स्वस्ति कहे ।

तीन बार देवताभ्यः मन्त्र पढ़े :-

ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्तु ते ॥३॥ स.पू.त्रि.

वामदेव गान : कयान इति महावामदेव ऋषिर्गायत्रीच्छन्दोऽग्निर्देवता ऽअग्निष्टोमादौ द्वितीय पृष्ठे शान्तिकर्मणि च जपे विनियोगः ।

  • ॐ कयानश्चित्र आ भुव दूती सदा वृधः सखा । कया शचिष्ठया वृता ॥कस्त्वा सत्यो मदानां मंहिष्ठो मत्सदन्धसः । दृढाचिदारु ये वसु ॥ अभीषुणः सखीनामविता जरितॄणां शतं भवास्यूतये ॥
  • स्वस्ति न ऽइन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो ऽअरिष्टनेमिः ॥ स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु । ॐ स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
  • ॐ प्राजापत्यं वै वामदेव्यं प्रजापतावेव प्रतिष्ठायोतिष्ठन्ति । ॐ पशवो वै वामदेव्यं पशुष्वेव प्रतिष्ठायोत्तिष्ठन्ति । ॐ शान्तिर्वै वामदेव्यं शान्तावेव प्रतिष्ठायोत्तिष्ठन्ति । ॐ अत एतत्कर्माच्छिद्रमस्तु ॥ 

द.अप. दीप का किसी पत्रादि से आच्छादन कर दे। हाथ-पैर धोकर, पू.स. आचमन कर अगला मन्त्र पढे :-

ॐ प्रमादात् कुर्वतां कर्म प्रच्यवेत्ताध्वरेषुयत् । स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णं स्यादिति श्रुतिः ॥ ॐ विष्णुर्विष्णुर्हरिर्हरिः ॥

पिण्डवेदि को कनिष्ठिका अङ्गुलि से थोडा तोड़ दे। सूर्य भगवान को प्रणाम कर ले। श्राद्ध की सभी उपयोगी वस्तुयें ब्राह्मण को दे, पत्र-पुष्पादि जल में प्रवाहित करे।

वार्षिक श्राद्ध विधि pdf सहित – वार्षिक श्राद्ध विधि मंत्र – वाजसनेयी

वार्षिक श्राद्ध विधि pdf – छन्दोग

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कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


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