विश्वकर्मा पूजा विधि – विश्वकर्मार्चा : Vishwakrma puja 2024

विश्वकर्मा पूजा विधि – विश्वकर्मार्चा : Vishwakrma puja 2024

भगवान विश्वकर्मा को निर्माण-विकास आदि का देवता कहा गया है। किसी भी प्रकार का निर्माण हो, यंत्र-संयंत्र हो, उपकरण हो उसके देवता विश्वकर्मा ही होते हैं। वाहन मुख्य रूप से सभी घरों में होता है चाहे साईकिल ही क्यों न हो, किसानों के घर में भी अनेकानेक यंत्र व उपकरण होते हैं। बड़े-बड़े कारखानों में तो बड़े-बड़े यंत्र उपकरण होते ही हैं व निर्माण कार्य ही मुख्य होता है। अतः विश्वकर्मा पूजा किसी न किसी प्रकार से सभी घरों में किया जाता है भले ही वह साइकल की ही क्यों न करे। यहां विश्वकर्मा पूजा की विस्तृत विधि और मंत्र दिया गया है साथ ही साथ डाउनलोड करने के लिये PDF लिंक भी दिया गया है।

विश्वकर्मा पूजा विधि – विश्वकर्मार्चा : Vishwakrma puja 2024

विश्वकर्मा पूजा को तीन प्रकारों में समझा जा सकता है :

  1. प्रथम तो वो प्रकार है जो अधिकांश लोग स्वयं ही करते हैं क्योंकि साईकिल-मोटरसाइकिल हो तो विश्वकर्मा पूजा करने के लिये ब्राह्मणों को आमंत्रित नहीं किया जाता है स्वयं ही पुष्प-चंदन, धूप-दीप-नैवेद्य, जल माला आदि अर्पित करके पूजा कर ली जाती है।
  2. द्वितीय वह जहां सामान्य निर्माण कार्य होता है अथवा दो-चार व्यावसायिक वाहन होते हैं, अथवा यंत्रों के छोटे दुकान या कार्यालय होते हैं।
  3. तृतीय वह जहां बड़े स्तर पर निर्माण कार्य होते हैं, अनेकों व्यावसायिक वाहन होते हैं आदि-आदि।

यहां विस्तृत रूप से विश्वकर्मा पूजा करने की विधि बताई गयी है जिसे विश्वकर्मार्चा भी कहा जाता है। विस्तृत रूप से पूजा करने के लिये बहुत लोग भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा भी स्थापित करते हैं। यहां दी गयी विधि के अनुसार प्रतिमा स्थापित हो अथवा न भी हो तो भी विस्तृत पूजा की जा सकती है।

पूजा की तैयारी

सर्वप्रथम पूजा की तैयारी करनी होती है जिसके लिये गोमय से मण्डलादि पूजन सामग्रियां व्यवस्थित कर ली जाती है। नवग्रह वेदी निर्माण करना हो तो पहले कर लें यदि न करनी हो तो नवग्रहादि का कलश पर ही पूजन करें। विश्वकर्मा पूजन से पहले अष्टवसु की पूजा की जाती है जिसके लिये किसी पात्र में चंदनादि से अष्टदल का निर्माण किया जाता है और प्रत्येक दल में एक-एक वसु की पूजा की जाती है। यदि विश्वकर्मा की प्रतिमा हो तो प्रतिमा में अन्यथा अष्टदल के मध्य में ही पूजा करें।

  • सभी पूजन सामग्री (जल-पुष्प-चंदन-अक्षत आदि) व्यवस्थित कर लें।
  • पंचामृत आदि का निर्माण कर लें।
  • धूप-दीप जला लें, देवता के दांये दीप और बांये भाग में धूप रखें।
  • नाना-प्रकार के नैवेद्य थाली आदि में देवता के सामने रख लें।

पूजा विधि

वर्त्तमान युग में सामान्य लोगों को नित्यकर्म संबंधी जानकारी का भी अभाव हो गया है। कुछ कर्मकाण्डी ब्राह्मण मात्र ही नित्यकर्म करते हैं अतः नित्यकर्म की अपेक्षा भी नहीं की जाती है। तथापि पूजा आरंभ करने से पूर्व संक्षिप्त रूप से ही सही, दस बार गायत्री जप करके सूर्यादि पंचदेवता और विष्णु पूजन कर ले। फिर आगे की पूजा करे।

सर्वप्रथम पवित्रीकरण अपसारण स्वस्तिवाचन आदि करके फिर संकल्प करे। तिल-जल-त्रिकुशा-द्रव्यादि लेकर संकल्प करे :

संकल्प : ॐ अद्य ……… मासे ……… पक्षे ……… तिथौ ……… वासरे ……… गोत्रोत्पन्नः  ……… शर्माऽहं (वर्मादि यथायोग्य) सपरिवारस्य (यंत्रागार कर्मचारिणां/वाहन परिचालन कर्मचारिणां) शरीराविरोधेन सर्वापच्छान्ति धन-धान्य-समृद्धि सकलारिष्ट-झटिति प्रशमनपूर्वक दीर्घायुष्ट्वबल पुष्टि नैरुज्य विशिष्टापत्यलाभार्थं कलश स्थापन पूजन पूर्वक साङ्ग सायुध सपरिवार श्री विश्वकर्म पूजनमहं करिष्यामि ॥

तत्पश्चात कलश स्थापन पूजन करके दशदिक्पाल नवग्रह आदि का पंचोपचार पूजन करे। यदि वेदी बनाई गई हो तो वेदी पर अन्यथा कलश पर ही करे ।

दशदिक्पाल पूजन

  • अक्षत : ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालाः इहागच्छत इह तिष्ठत ॥
  • जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
  • गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
  • पुष्प : इदं पुष्पं ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
  • अक्षत : इदं अक्षतं ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
  • धूप : एष धूपः ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
  • दीप : एष दीपः ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
  • नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
  • जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥
  • पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः ॥

नवग्रह पूजन

  • अक्षत : ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहाः इहागच्छत इह तिष्ठत॥
  • जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
  • गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
  • पुष्प : इदं पुष्पं ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
  • अक्षत : इदं अक्षतं ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
  • धूप : एष धूपः ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
  • दीप : एष दीपः ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
  • नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
  • जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥
  • पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ साधिदैवत सप्रत्यधिदैवत विनायकादि पंचकसहित सूर्यादि नवग्रहेभ्यो नमः ॥

अष्टवसु पूजन

किसी पात्र में गंधादि से अष्टदल बनाकर उसपर अष्टवसुओं का आवाहन करे  : ॐ द्रोणमावा‌हयामि ॥ ॐ प्राणमावा‌हयामि ॥ ॐ ध्रुवमावाहयामि ॥ ॐ अर्कमावाहयामि ॥ ॐ अग्निमावाहयामि ॥ ॐ दोषमावाहयामि ॥ ॐ वास्तुमावा‌हयामि ॥ ॐ विभावसुमावा‌हयामि ॥

फिर अष्टवसुओं का पृथक् पृथक् पंचोपचार पूजन करे :

द्रोण पूजा – पुष्पाक्षत : ॐ द्रोण इहागच्छ इह तिष्ठ ॥

  • जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ द्रोणाय नमः ॥
  • गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ द्रोणाय नमः ॥
  • पुष्प : इदं पुष्पं ॐ द्रोणाय नमः ॥
  • अक्षत : इदं अक्षतं ॐ द्रोणाय नमः ॥
  • धूप : एष धूपः ॐ द्रोणाय नमः ॥
  • दीप : एष दीपः ॐ द्रोणाय नमः ॥
  • नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ द्रोणाय नमः ॥
  • जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ द्रोणाय नमः ॥
  • पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ द्रोणाय नमः ॥

प्राण पूजा – पुष्पाक्षत : ॐ प्राण इहागच्छ इह तिष्ठ ।

  • जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ प्राणाय नमः ॥
  • गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ प्राणाय नमः ॥
  • पुष्प : इदं पुष्पं ॐ प्राणाय नमः ॥
  • अक्षत : इदं अक्षतं ॐ प्राणाय नमः ॥
  • धूप : एष धूपः ॐ प्राणाय नमः ॥
  • दीप : एष दीपः ॐ प्राणाय नमः ॥
  • नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ प्राणाय नमः ॥
  • जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ प्राणाय नमः ॥
  • पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ प्राणाय नमः ॥

ध्रुव पूजा – पुष्पाक्षत : ॐ ध्रुव इहागच्छ इहतिष्ठ ॥

  • जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ ध्रुवाय नमः ॥
  • गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ ध्रुवाय नमः ॥
  • पुष्प : इदं पुष्पं ॐ ध्रुवाय नमः ॥
  • अक्षत : इदं अक्षतं ॐ ध्रुवाय नमः ॥
  • धूप : एष धूपः ॐ ध्रुवाय नमः ॥
  • दीप : एष दीपः ॐ ध्रुवाय नमः ॥
  • नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ ध्रुवाय नमः ॥
  • जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ ध्रुवाय नमः ॥
  • पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ ध्रुवाय नमः ॥

अर्क पूजा – पुष्पाक्षत : ॐ अर्क इहागच्छ इह तिष्ठ ॥

  • जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ अर्काय नमः ॥
  • गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ अर्काय नमः ॥
  • पुष्प : इदं पुष्पं ॐ अर्काय नमः ॥
  • अक्षत : इदं अक्षतं ॐ अर्काय नमः ॥
  • धूप : एष धूपः ॐ अर्काय नमः ॥
  • दीप : एष दीपः ॐ अर्काय नमः ॥
  • नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ अर्काय नमः ॥
  • जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ अर्काय नमः ॥
  • पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ अर्काय नमः ॥

अग्नि पूजा – पुष्पाक्षत : ॐ अग्ने इहागच्छ इह तिष्ठ नमः ॥

  • जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ अग्नये नमः ॥
  • गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ अग्नये नमः ॥
  • पुष्प : इदं पुष्पं ॐ अग्नये नमः ॥
  • अक्षत : इदं अक्षतं ॐ अग्नये नमः ॥
  • धूप : एष धूपः ॐ अग्नये नमः ॥
  • दीप : एष दीपः ॐ अग्नये नमः ॥
  • नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ अग्नये नमः ॥
  • जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ अग्नये नमः ॥
  • पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ अग्नये नमः ॥

दोष पूजा – पुष्पाक्षत : ॐ दोष इहागच्छ इह तिष्ठ ॥

  • जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ दोषाय नमः ॥
  • गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ दोषाय नमः ॥
  • पुष्प : इदं पुष्पं ॐ दोषाय नमः ॥
  • अक्षत : इदं अक्षतं ॐ दोषाय नमः ॥
  • धूप : एष धूपः ॐ दोषाय नमः ॥
  • दीप : एष दीपः ॐ दोषाय नमः ॥
  • नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ दोषाय नमः ॥
  • जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ दोषाय नमः ॥
  • पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ दोषाय नमः ॥

वास्तु पूजा – पुष्पाक्षत : ॐ वास्तो इहागच्छ इह तिष्ठ । एतानि पाद्यादीनि एषोऽर्घः ॐ वास्तवे नमः। इति पञ्चोपचारैः पूजयेत् ।

  • जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ वास्तवे नमः ॥
  • गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ वास्तवे नमः ॥
  • पुष्प : इदं पुष्पं ॐ वास्तवे नमः ॥
  • अक्षत : इदं अक्षतं ॐ वास्तवे नमः ॥
  • धूप : एष धूपः ॐ वास्तवे नमः ॥
  • दीप : एष दीपः ॐ वास्तवे नमः ॥
  • नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ वास्तवे नमः ॥
  • जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ वास्तवे नमः ॥
  • पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ वास्तवे नमः ॥

विभावसु पूजा – पुष्पाक्षत : ॐ विभावसो इहागच्छ इह तिष्ठ ॥

  • जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ विभावसवे नमः ॥
  • गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ विभावसवे नमः ॥
  • पुष्प : इदं पुष्पं ॐ विभावसवे नमः ॥
  • अक्षत : इदं अक्षतं ॐ विभावसवे नमः ॥
  • धूप : एष धूपः ॐ विभावसवे नमः ॥
  • दीप : एष दीपः ॐ विभावसवे नमः ॥
  • नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ विभावसवे नमः ॥
  • जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ विभावसवे नमः ॥
  • पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ विभावसवे नमः ॥

विश्वकर्मा पूजा मंत्र

आवाहन : ॐ मनो जूतिर्ज्जुषतामाज्ज्यस्य बृहस्पतिर्य्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञᳪ समिमं दधातु। विश्वे देवासऽइह मादयन्तामों३ प्रतिष्ठ ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः भगवन् श्रीविश्वकर्मन् । इहागच्छ इह सुप्रतिष्ठितो भव ॥

अर्घपात्र में जल भरकर “ॐ गूँ नमः” 8 बार जपे और पुरुषसूक्त पाठ कर आसादित-पूजोपकरणों पर जल छिड़के।

भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा हो तो हृदय का स्पर्श करके प्राण-प्रतिष्ठा करे : “ॐ आँ ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हौं हं सः” विश्वकर्मणः जीव इह स्थितः “ॐ आँ ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हौं हं सः” विश्वकर्मणः वाङ्‌मनश्चक्षु श्रोत्र घ्राण-प्राणाः इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा” ॥

ध्यान : ॐ ध्यायेच्छ्रीविश्वकर्माणं शिल्पकर्मविशारदम् । सुतप्तकनकप्रेक्षं कर्तारं सुप्रभातकम् ॥ इदं ध्यानपुष्पं श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

आवाहन : ॐ देवेश भक्ति सुलभ सर्वावरणसंयुत । यावत् त्वं पूजयामि तावत् त्वं सुस्थिरो भव ॥

आसन : ॐ कार्तस्वरमयं दिव्यं नानागुणसमन्वितम् । अनेकशक्तिसंयुक्तमासनं प्रतिगृह्यत्तास् ॥ इदं पुष्पासनं विश्वकर्मणे नमः ॥

पाद्य : ॐ विश्वकर्मन् महाबाहो ब्रह्मपुत्र महेश्वर । पाद्यं गृहाण भो देव शिल्पशास्त्रविशारद ॥ इदं पाद्यं श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

अर्घ्य : ॐ तापत्रयहरं दिव्यं परमानन्दलक्षणम् । तापत्रयविनिर्मुक्त्यै तवार्घ्यं कल्पयाम्यहम् ॥ इदमर्घ्यं श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

आचमन : ॐ देव देव नमस्तुभ्यं पुराणपुरुषोत्तम । मयानोतमिदं तोयं गृहीत्वाऽचमनं कुरु ॥ इदमाचमनीयम् श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

चन्दन : ॐ श्रीखण्ड चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् । विलेपनं सुरश्रेष्ठ प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं श्रीखण्डचन्दनं श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

यज्ञोपवीत : ॐ यस्य शक्तित्रयेणेदं सम्प्रोक्तं सचराचरम् । यज्ञरूपाय तस्यै ते यज्ञसूत्रं प्रकल्पये ॥ इमे यज्ञोपवीते बृहस्पतिदैवते श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

पीतवस्त्र : ॐ तन्तुसन्तानसंयुक्तं कलाकौशलकल्पितम् । पीतवस्त्रमिदं देव कृपया प्रत्तिगृह्यताम् ॥ इदं पीतवस्त्रं बृहस्पतिदेवतं श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

कुंकुमाक्षत : ॐ अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ताः सुशोभनाः। मया निवेदितो भक्त्या तान् गृहाण सुरेश्वर ॥ इदमक्षतं श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

पुष्प : ॐ सुगन्धीनि सुपुष्पाणि देशकालोद्भवानि च । मयानीतानि पूजार्थं प्रीत्या स्वीकुरु तानि मे ॥ एतानि पुष्पाणि श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

बिल्वपत्र : ॐ अमृतोद्भव श्रीवृक्ष शङ्करस्य सदा प्रियम् । पवित्रं ते प्रयच्छामि भक्त्या तत् स्वीकुरु प्रभो ॥ इदं बिल्वपत्रं श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

तुलसीपत्र : ॐ तुलसीं हेमरूपां च रत्नरूपां च मञ्जरीम् । भवमोक्षप्रदां तुभ्यमर्पयामि हरिप्रियाम् ॥ इद तुलसीपत्रं श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

पुष्पमाला : ॐ नानापुष्पविचित्राढ्यां पुष्पमालां सुशोभनाम् । प्रयच्छामि च देवेश गुहाण सुरसत्तम् ॥ इद पुष्पमाल्यं श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

घूप : ॐ वनस्पतिरसो दिव्यो गन्धाढयः सुमनोहरः । आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥ एष धूपः श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

दीप : ॐ आज्यं सद्वर्ति संयुक्तं वह्निना योजितं मया । दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहं ॥ एष दीपः श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

नैवेद्य : ॐ अन्नं चतुर्विधं स्वादु रसैः षड्भिः समन्वितम् । मया निवेदितं देव नेवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥ एतानि नानाविधफरल-शष्कुली-मिष्टान्नादीनि श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

ताम्बूल : ॐ फलपत्रसमायुक्त कर्पूरेण सुवासितम् । मया निवेदितो भक्त्या गृहाण परमेश्वर ॥ इदं ताम्बूलं श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

आचमन : कर्पूरवासितं तोयं मन्दाकिन्याः समाहृतम्। आचम्यतां महाभाग मया दत्तं हि भक्तितः ॥ इदमाचमनीयं श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

पुष्पाञ्जलि : ॐ विश्वकर्मन् महाभाग सर्वविघ्नविनाशन। भक्त्या गृहाण देवेश वाञ्छितार्थं प्रदेहि मे ॥ एष पुष्पाञ्जलिः श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

प्रणाम : ॐ नमामि विश्वकर्माणं शिल्पकर्मविशारदम् । पद्मासनं महाभागं सर्वविघ्नविनाशनम् ॥ ॐ रूपं देहि जयं देहि भाग्यं भगवन् देहि मे। ज्ञानं देहि धनं देहि सर्वान् कामान् प्रदेहि मे ॥

मानसपूजन : ॐ लं पृथिव्यात्मकं पुष्पं समर्पयामि, ॐ यं वाय्वात्मकं धूपं समर्पयामि, ॐ रं वह्वयात्मकं दीपं समर्पयामि, ॐ वं अमृतात्मकं नैवेद्यं समर्पयामि ॥

नीराजन : ॐ कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं च प्रदीपितम् । आरार्तिक्यमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव ॥ इदमारार्तिक्यं साङ्गाय सपरिवाराय श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

प्रणाम : ॐ नमस्ते पुण्डरीकाक्ष त्राहि मां भवसागरात् । धनधान्यादिसौख्यं च देहि देव नमोऽस्तु ते ॥

प्रदक्षिणा : ॐ यानि कानि च पापानि ब्रह्महत्या समानि च । तानि तानि प्रणश्यन्तु प्रदक्षिण ! पदे पदे ॥

नृत्य-गायन आदि करते हुये रात्रि व्यतीत करे। प्रातः काल पुनः पंचोपचार पूजन करे :

  • जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ साङ्गसायुध-सवाहनसपरिवाराय श्रीविश्वकर्मणे नमः॥
  • गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ साङ्गसायुध-सवाहनसपरिवाराय श्रीविश्वकर्मणे नमः॥
  • पुष्प : इदं पुष्पं ॐ साङ्गसायुध-सवाहनसपरिवाराय श्रीविश्वकर्मणे नमः॥
  • अक्षत : इदं अक्षतं ॐ साङ्गसायुध-सवाहनसपरिवाराय श्रीविश्वकर्मणे नमः॥
  • धूप : एष धूपः ॐ साङ्गसायुध-सवाहनसपरिवाराय श्रीविश्वकर्मणे नमः॥
  • दीप : एष दीपः ॐ साङ्गसायुध-सवाहनसपरिवाराय श्रीविश्वकर्मणे नमः॥
  • नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ साङ्गसायुध-सवाहनसपरिवाराय श्रीविश्वकर्मणे नमः॥
  • जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ साङ्गसायुध-सवाहनसपरिवाराय श्रीविश्वकर्मणे नमः॥
  • पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः ॐ साङ्गसायुध-सवाहनसपरिवाराय श्रीविश्वकर्मणे नमः॥

प्रणाम : ॐ विश्वकर्मन् महाभाग मम विघ्नान् निवारय । यन्मया चरितं देव व्रतमेतत् सुदुर्लभम् ॥ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् । पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ॥

हवन : यदि विधिपूर्वक हवन कर सके तो करे अन्यथा न करे। अष्टोत्तरसहस्राहुति, अष्टोत्तराहुति जो भी हवन करना हो करे। तथापि अत्यल्प हवन के लिये भी विधि समान ही होती है।

विसर्जन : ॐ यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् । इष्टकाम प्रसिद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च ॥ ॐ पूजितदेवताः पूजितास्थ क्षमध्वं स्व-स्व स्थानं गच्छत ॥ पृथक-पृथक विसर्जन करना हो तो पृथक-पृथक करे।

दक्षिणा – त्रिकुशा-तिल-जल-दक्षिणा लेकर दक्षिणा करे – ॐ अद्य कृतैतत् साङ्गसायुधसपरिवार श्रीविश्वकर्म पूजनकर्म प्रतिष्ठार्थमेत्तावद् द्रव्यमूल्यकहिरण्यमग्निदैवतं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे ॥ ‘ॐ स्वस्ति’ इति प्रतिवचनम् ।

भूयसी दक्षिणा : त्रिकुशा-तिल-जल-अधिक द्रव्य लेकर भूयसी दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् विश्वकर्मपूजनकर्मणि न्यूनाधिकदोषपरिहारार्थमेतावद्रव्यमूल्यक हिरण्यग्निदैवतं नाना नाम गोत्रेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो भूयसीं दक्षिणां दातुमहमुमृज्ये ॥

विश्वकर्मा पूजा कब है

मुख्य रूप से कन्या संक्रांति के दिन ही विश्वकर्मा पूजा की जाती है तथापि स्थापनादिवस आदि के आधार पर भी विश्वकर्मा पूजा की जा सकती है। विश्वकर्मा पूजा प्रतिमा स्थापित करके भी की जा सकती है और प्रतिमारहित विधि से भी।

विश्वकर्मा पूजा 2024

2024 में 17 सितंबर मंगलवार को विश्वकर्मा पूजा है।

विश्वकर्मा पूजा 2025

2025 में 17 सितंबर मंगलवार को विश्वकर्मा पूजा है।

विश्वकर्मा पूजा विधि मंत्र सहित PDF

विश्वकर्मा पूजा विधि मंत्र सहित PDF डाउनलोड करने के लिये यहां क्लिक करें : विश्वकर्मा पूजा विधि मंत्र सहित PDF डाउनलोड करें

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


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