शिव पूजा के माध्यम से समृद्धि आकर्षित करें – Attract Prosperity Through Shiv Puja

शिव पूजा के माध्यम से समृद्धि आकर्षित करें - Attract Prosperity Through Shiv Puja

आपको शिव पूजा में प्रयुक्त शक्तिशाली मंत्रों के माध्यम से मार्गदर्शन मिलेगा जो आपके जीवन में समृद्धि और प्रचुरता लाएँगे। जीवन व जीवनशैली में सकारात्मक परिवर्तन के लिए इन विधियों/प्रयोगों/मंत्रों/स्तोत्रों को अपने दैनिक अभ्यास में सम्मिलित करना सीखें। शिव पूजा से कल्याण की प्राप्ति कैसे करें और अपने जीवन में अप्रत्याशित लाभ का भाजन कैसे बने ? यह आलेख प्रचुरता और समृद्धि के लिए शिवपूजा में विशेष प्रयोगों को समझाने का सकारात्मक प्रयास करता है।

शिव पूजा के माध्यम से समृद्धि आकर्षित करें – Attract Prosperity Through Shiv Puja

भगवान शिव की महिमा का वर्णन कर पाना संभव ही नहीं है तथापि गुणगान करते रहना कल्याणकारी होता है और करते रहना चाहिये। भगवान शिव का एक नाम आशुतोष है और आशुतोष का तात्पर्य शीघ्रप्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव प्रारब्ध को भी बदल देते हैं – “भाविहुँ मेंट सकहिं त्रिपुरारि” और सबसे बड़े उदाहरण मार्कण्डेय हैं।

परिचय: समृद्धि के लिए शिव पूजा की शक्ति का अनावरण

शिव अर्थात कल्याणकारी, जो कल्याण करता है वही शिव है। जहां ज्ञान के लिये भगवान शिव से उपासना की बात कही गयी है वही भगवान शंकर के बारे में “दानी कहूं शंकर सम नाहीं” भी गाते हैं। यदि शिव सबसे बड़े दानी हैं तो समृद्धि, धन-धान्यादि की प्रचुरता आदि के लिये भी शिव की उपासना अधिक लाभकारी है।

इस मुख्य भाव को कदापि नहीं भूलना चाहिये कि मानव योनि की हमें इसीलिये प्राप्ति हुई है कि हम आत्मकल्याण करें न की इन्द्रियों के अधीन रहकर पशुओं की भांति ही जीवन व्यतीत करें। अतः उपासना में सांसारिक कामनाओं का भी स्थान है और उसकी पूर्ति का भी माध्यम होता है किन्तु इसका भी उद्देश्य यही होता है कि हम प्रारंभिक चरणों में यदि सांसारिक भाव रखकर उपासना करते भी हैं तो शनैः शनैः आत्मकल्याण की दिशा में भी अग्रसर रहें।

हम भगवान शिव की उपासना में सांसारिक कामना रखें भी तो हमें यह अवश्य ही समझना होगा कि “दानी कहूं शंकर सम नाहीं” का तात्पर्य स्वीकारते हुये हमें स्वयं भी तो दानी-त्यागी बनना चाहिये। जगत पर उपकार करने के लिये शिव ने हलाहल विष को भी ग्रहण किया हम भी तो विश्वकल्याण के लिये व्यक्तिगत स्वार्थों का त्याग करें। जीवन में सकारात्मक परिवर्तन का ज्ञान शिव जी से प्राप्त करते हुये ही आत्मकल्याण के भाजन बन सकते हैं।

यह चर्चा मुख्य रूप से धन-धान्यादि की प्रचुरता, समृद्धि आदि के लिये शिव की उपासना से सम्बंधित है अतः आगे हम सांसारिक कामनाओं के सन्दर्भ में ही चर्चा करेंगे कि शिव जी की किस प्रकार से उपासना करें, किस मंत्र का जप करें, किस स्तोत्र का पाठ करें, किस द्रव्य से रुद्राभिषेक करें आदि।

शिव और प्रचुरता का सार

किसी भी प्रकार से सुख-समृद्धि आदि की कामना हो तो यह आवश्यक होता है कि श्रद्धा-विश्वास के साथ ही उपासना करें और शास्त्रों में वर्णित विधियों के अनुसार करें। वर्त्तमान युग में ऐसा देखा जा रहा है कि अधिकांशतः स्वेच्छाचारी बनते जा रहे हैं और शास्त्र विधि के विरुद्ध भी करते देखे जाते हैं। जिसे सुख-समृद्धि-शांति आदि की कामना हो उसे सर्वप्रथम अपने जीवन में यहाँ परिवर्तन करना आवश्यक है कि हम शास्त्रों के का आश्रय ग्रहण करें। यही वास्तविक सकारात्मक परिवर्तन है।

शिव की उपासना से धन-धान्य-सुख-समृद्धि व अन्यान्य सांसारिक कामनाओं की पूर्ति शीघ्र होती है और यही कारण है कि अधिकांश असुरादि जो सांसारिक कामना ही रखने वाले होते थे वो भी शिव की ही उपासना करते थे और सुख-समृद्धि प्राप्त करते थे। इसमें एक पहलू यह भी है की भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न भी हो जाते हैं और इसीलिये उनका एक नाम आशुतोष भी है। इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं कि यदि हमारी भी सांसारिक कामनायें हैं तो हम असुर की श्रेणी में गण्य होंगे।

सांसारिक कामनाओं की शीघ्र पूर्ति, समृद्धि और प्रचुरता के संबंध में शिव उपासना का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि भगवान शिव को भोला भी कहा जाता है। ये देने में जैसे अधिक विलम्ब नहीं करते उसी प्रकार अधिक विचार भी नहीं करते हैं और इसका सबसे बड़ा उदाहरण भस्मासुर है जो वरदान प्राप्त करके भगवान शिव के ही पीछे पड़ गया। तात्पर्य यह कि हमारी तो बहुत छोटी-छोटी कामनायें होती हैं और इसके संबंध में शिव जी आशातीत सुख-समृद्धि आदि प्रदान कर देते हैं।

मंत्रों को समझना

  • मंत्रों का जीवन और विश्व से लेकर ब्रह्माण्ड तक असीम प्रभाव होता है। सभी प्रकार की शक्तियां ब्रह्मण्ड में अपना-अपना कार्य कर रही हैं एवं मंत्रों के माध्यम से हम किसी विशेष शक्ति से संबंध स्थापित कर लेते हैं। मंत्रों के प्रभाव से हमारे भीतर और बाहर विद्यमान शक्ति जाग्रत होकर अनुकूलता का निर्माण करते हैं, जिससे हमें सफलता की प्राप्ति होती है और जो मनोरथ हो उसका पूर्ण होना ही सफलता है।
  • भगवान शिव के मंत्र की बात करें तो पंचाक्षर मंत्र सर्वोपरि है एवं इस मंत्र के अनुष्ठान से शिव की कृपा प्राप्त की जा सकती है। द्विजों के लिये सप्रणव और शूद्र, स्त्री, अनुपनीत द्विज, पतित आदि के लिये प्रणव रहित मंत्र के अनुष्ठान की शास्त्रज्ञा है।

यदि स्तोत्र की बात करें तो शिव तांडव स्तोत्र का विशेष महत्व है एवं फलश्रुति में कहा गया है

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥

पूजनोपरांत प्रदोष काल में जब पूजा का अवसान हो रहा हो उस समय शिव तांडव स्तोत्र का जो पाठ करता है उसे भगवान शिव स्थिर रथ, गज, अश्व युक्त सदैव सुमुखी रहने लक्ष्मी प्रदान करते हैं।

  • दरिद्रः पञ्चसाहस्रमयुतं सर्वकामदं : पार्थिव पूजन में विपन्नता/दरिद्रता निवारण हेतु पांच सहस्र और सभी कामनाओं की पूर्ति के लिये अयुत (दस सहस्र) पार्थिव पूजा करने की आज्ञा है।
  • द्विलिंगं चार्थसिद्धिदं त्रिलिंगं सर्वकामानां : इसी प्रकार नित्य पूजन में प्रतिदिन दो शिवलिंग का पूजन करना अर्थ की सिद्धि करने वाला कहा गया है और तीन शिवलिंग की पूजा सर्वकामना पूरन करने वाला। यह पार्थिव शिवलिंग पूजा के विषय में है।
  • श्रीकामीक्षु रसेन : रुद्राभिषेक प्रकरण में श्रीकामना से इक्षुरस द्वारा रुद्राभिषेक करने का विधान मिलता है।

जप के व्यावहारिक चरण

  • मंत्र जाप के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करे।
  • पूर्व-उत्तर-या ईशान कोने की और अपना मुँह रखे।
  • दर्भासन (कुशाशन)/ कम्बल के आसन का प्रयोग करे।
  • अनुष्ठान घर के मंदिर (पूजागृह) में भी कर सकते है।
  • शिवमंदिर या विष्णु मंदिर में भी कर सकते है।
  • पीपल वृक्ष के नीचे भी कर सकते है।
  • बिल्व वृक्ष के नीचे भी कर सकते है।
  • तीर्थ, गंगा तट या पवित्र नदियों के तट पर भी कर सकते हैं।
  • सिद्ध पीठ, ज्योतिर्लिङ्ग आदि क्षेत्रों में भी कर सकते हैं।

अनुष्ठान और अभ्यास

  • अनुष्ठान काल में ब्रह्मचर्य का पालन करे, स्त्री सम्भोग से बचे।
  • फलाहार करें या एक समय अन्न का हविष्याहार या एक समय केवल फलाहार करे।
  • भूमि शयन करे।
  • जितना हो सके मौन का पालन करे।
  • घर में कलह आदि ना करे।
  • क्रोध गुस्सा ना करे।
  • असत्य न बोले।
  • पतित आदि से संसर्ग न करे।
  • जप संकल्प पूर्वक करें और प्रतिदिन निश्चित संख्या में करें।
  • जप प्रतिदिन निर्धारित काल में ही करें।
  • अन्य विधान गुरु/विद्वान ब्राह्मण से प्राप्त करें, किन्तु किसी पुस्तक में पढ़कर अथवा ऑनलाइन जानकर न करें।

समापन: ईश्वर से जुड़ना

इस प्रकार भगवान शिव के भक्त विभिन्न प्रकार के जप-स्तोत्र-पूजा आदि के द्वारा अपने इष्ट शिव की कृपा प्राप्त करके सांसारिक सुख भी प्राप्त कर सकता है, समृद्धि, धन-संपत्ति आदि की प्रचुरता प्राप्त कर सकता है। भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों को अभीष्ट प्रदान करते हैं।

सांसारिक जीवों का एक विशेष लक्षण होता है दुःख में भगवान को स्मरण करता है किन्तु सुख प्राप्त होते ही भुला देता है। ध्यान रखें समृद्धि-सुख प्राप्ति होने के पश्चात् भी भगवान शिव के चरणों में प्रीति बनी रहे ऐसा दृढ संकल्प रखकर आगे बढ़ना ही कल्याणकारी हो सकता है, अन्यथा समृद्धि प्राप्ति के पश्चात् भटकना सरल होता है। हम एक बच्चे की भांति होते हैं और जैसे माता-पिता अपने बच्चों को खिलौना देकर गोद से उतार देते हैं उसी प्रकार से सांसारिक सुख है जो हमें भगवान के गोद से उतारने वाली होती है।

  • उपरोक्त विषयों में आपके कुछ अनुभव हों और हमसे साझा करना चाहें तो कर सकते हैं।
  • प्रामाणिक तथ्य हों तो वो भी प्रस्तुत कर सकते हैं।
  • अथवा आपके जो भी विचार उत्पन्न हों, प्रश्न हों वो भी टिप्पणी करके बता सकते हैं।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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