अगस्त्य अर्घ्य (अगस्त्यार्घ्य) दान विधि – agastya arghya

अगस्त्य अर्घ्य (अगस्त्यार्घ्य) दान विधि – agastya arghya अगस्त्य अर्घ्य (अगस्त्यार्घ्य) दान विधि – agastya arghya

शास्त्रों में सिंह संक्रांति के इक्कीसवें दिन अगस्त्य का उदय होना बताया गया है और वृष संक्रांति के सातवें दिन अस्त होना कहा गया है। अगस्त्य जब उदय हों तो उन्हें अर्घ्य देने का वचन प्राप्त होता है। इस आलेख में अगस्त्य को अर्घ्य देने की चर्चा की गयी है और साथ ही अगस्त्य अर्घ्य देने की विधि भी बताई गयी है।

अगस्त्य अर्घ्य (अगस्त्यार्घ्य) दान विधि – agastya arghya

पद्मपुराणादि ग्रंथों में अगस्त्योदय से 7 रात्रिपर्यन्त अर्घ्य देने के लिये कहा गया है। साथ अनेकों ग्रंथों में कन्या संक्रांति से 3 दिन पूर्व आरम्भ करने के लिये भी कहा गया है। कुल मिलाकर सौर भाद्र मास के अंतिम 3 दिन हों या 7 दिन होने अगस्त्य को अर्घ्य देने की आज्ञा दी गयी है। “अप्राप्ते भास्करे कन्यां शेषभूतैस्त्रिभिर्दिनैः। अर्घंदद्युरगस्ताय गौडदेशनिवासिनः ॥” सूर्य के कन्या राशि अप्राप्ति में ही शेष 3 दिन पूर्व गौडदेशनिवासियों को अगस्त्य के लिये अर्घ्य प्रदान करना चाहिये।

व्यवहार में यह विधि चान्द्र भाद्र के अंतिम दिन अर्थात् भाद्र पूर्णिमा के दिन प्रचलित है चाहे कन्या संक्रान्ति में 7 से अधिक दिन भी शेष हों या कन्या संक्रान्ति हो गई हो । इस प्रकार अगस्त्यार्घ के लिये जो प्रमाण हैं और जो प्रचलित व्यवहार है वो संगत नहीं है तथापि हम इस विषय में अधिक चर्चा का सामर्थ्य नहीं रखते अतः इस विषय में अधिक चर्चा नहीं करेंगे।

विष्णु रहस्य, मत्स्य पुराण, भविष्य पुराण आदि ग्रंथों में अगस्त्य अर्घ्य देने की भी विस्तृत विधि बताई गई है। तथापि यहां हम अगस्त्यार्घ देने की संक्षिप्त विधि और में की ही चर्चा करेंगे क्योंकि संक्षिप्त विधि से भी अत्यल्प जन ही अगस्त्यार्घ प्रदान करते हैं।

तर्पण नित्यकर्म है तथापि संध्या-तर्पणादि नित्यकर्म कुछ कर्मकाण्डी ब्राह्मणों तक ही सीमित रह गया है। अगस्त्य अर्घ्य देने के विषय में विधि यह है कि भाद्र पूर्णिमा को ऋषि तर्पण करने के पश्चात् अर्थात् पितृतर्पण से पूर्व अगस्त्य को अर्घ्य देना चाहिये।

  • अगस्त्य को दक्षिणाभिमुख होकर अर्घ्य देना चाहिये।
  • अगस्त्य को सव्य रहते हुये ही अर्घ्य देना चाहिये।
  • अगस्त्य को शंख से अर्घ्य देना चाहिये।
  • अगस्त्य को तीन बार अर्घ्य देना चाहिये।
  • अगस्त्य को अर्घ्य देने के बाद उनकी पत्नी लोपामुद्रा को भी एक बार अर्घ्य देना चाहिये।

अगस्त्य ऋषि मंत्र

ऋषि तर्पण करने के पश्चात् दक्षिणाभिमुख सव्य होकर शंख में जल, अक्षत, श्वेत पुष्प (काश), फल, द्रव्यादि लेकर अर्घ्य प्रदान करे – शंखे तोयं विनिःक्षिप्य सितपुष्पाक्षतैर्युतम् । मन्त्रेणानेन वै दद्याद् दक्षिणाशामुखः स्थितः ॥ अर्घ्यदान के तीन मंत्र आगे दिये गये हैं तीनों मंत्रों से एक-एक अर्घ्य प्रदान करे :

  1. कुम्भयोनिसमुत्पन्न मुनीनां मुनिसत्तम। उदयन्ते लङ्काद्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥१॥
  2. शङ्खं पुष्पं फलं तोयं रत्नानि विविधानि च। उदयन्ते लङ्काद्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥२॥
  3. काशपुष्पप्रतीकाश वह्निमारुतसम्भव। उदयन्ते लङ्काद्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥३॥

उपरोक्त तीनों मंत्रों से अर्घ्य प्रदान करने के पश्चात् प्रार्थना करें :

प्रार्थना : आतापी भक्षितो येन वातापी च महाबलः । समुद्रः शोषितो येन स मेऽगस्त्यः प्रसीदतु ॥

अगस्त्य की प्रार्थना करने के बाद एक बार लोपामुद्रा (अगस्त्य ऋषि की पत्नी) को अगले मंत्र से अर्घ्य दे :

लोपामुद्रा अर्घ्य मंत्र : लोपामुद्रे महाभागे राजपुत्रि पतिव्रते । गृहाणार्घं मया दत्तं मैत्रावरुणिवल्लभे ॥

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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