सरल रुद्राष्टाध्यायी – रुद्री पाठ संस्कृत

सरल रुद्राष्टाध्यायी – रुद्री पाठ संस्कृत : 8 Rudri

सरल रुद्राष्टाध्यायी – रुद्री पाठ संस्कृत : यहां संपूर्ण रुद्राष्टाध्यायी सरल करके प्रस्तुत किया गया है। लेकिन प्रायः ऐसा देखा गया है कि सरल करने के क्रम में विसंगतियां या असंगतियां उत्पन्न हो जाती है। यहां सरल पाठ के साथ-साथ त्रुटियों को दूर करके सर्वाधिक शुद्ध पाठ देने का प्रयास किया गया है, जिस कारण रुद्राभिषेक में यह विशेष उपयोगी हो जाता है।
इसके साथ ही एक और महत्वपूर्ण समस्या को दूर करने का भी प्रयास किया गया है। प्रायः मंत्रों के बीच में भी विज्ञापन आते हैं यहां इसका भी निवारण किया गया है।

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सर्प सूक्त स्तोत्र

सर्प सूक्त स्तोत्र

इस लेख में हम सर्प सूक्त के बारे में जानेंगे साथ ही शुद्ध सर्पसूक्त भी देखेंगे। सर्पों के लिये जो स्तुति हो उसे सर्प सूक्त कहते हैं। सर्प सूक्त पाठ करने के कई लाभ भी होते हैं।

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श्री सूक्त संस्कृत पाठ – सस्वर संपूर्ण

श्री सूक्त संस्कृत पाठ – सस्वर संपूर्ण

ऋग्वेद के पांचवें मंडल के अंत में माता लक्ष्मी का श्री सूक्त के १६ मंत्रों से होम किया जाता है। यहाँ सस्वर और स्वररहित दोनों प्रकार से श्री सूक्त दिया गया है। इससे धन, संपत्ति, ऐश्वर्य की वृद्धि होती है और दुःख-दरिद्रता का नाश होता है।

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रुद्र सूक्त – Rudra Suktam pdf, रुद्र सूक्त के लाभ

रुद्र सूक्त – Rudra Suktam pdf, रुद्र सूक्त के लाभ

यह आलेख शुक्ल यजुर्वेद के रुद्रसूक्त का महत्वपूर्ण वर्णन करता है। यह पूजा और हवन के लिए उपयुक्त है और दुःख, पाप, ताप का नाश करता है। इसमें रुद्र की स्तुति की गई है और इससे विशेष लाभ होता है। “शुक्ल यजुर्वेद अध्याय १६” के पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए भी लिंक दिया गया है।

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मैत्र सूक्त अर्थात सूर्य सूक्त

मैत्र सूक्त अर्थात सूर्य सूक्त

-मित्र भगवान सूर्य का नाम है, और भगवान सूर्य के सूक्त का नाम ही मैत्रसूक्त है।
-भगवान सूर्य की स्तुतियों वाली वैदिक ऋचाओं का समूह मैत्र सूक्त कहलाता है।
-रुद्राष्टाध्यायी का चतुर्थ अध्याय ही मैत्र सूक्त है।
-मैत्रसूक्त भी विशेष महत्वपूर्ण सूक्त है और इसलिए इसे भी रुद्राष्टाध्यायी में संग्रहित किया गया है।

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अप्रतिरथ सूक्त – Apratirath Suktam

अप्रतिरथ सूक्त – Apratirath Suktam

यजुर्वेद के सत्रहवें अध्याय में ऋचा ३३ से लेकर ४९ तक जो १७ ऋचायें हैं वो इंद्र की विशेष स्तुति है।
इंद्र की स्तुति वाली इस ऋचा का नाम अप्रतिरथ सूक्त है।

अर्थात वेद में मिलने वाला इंद्र स्तोत्र अप्रतिरथ सूक्त ही है।
रुद्राष्टाध्यायी में तीसरा अध्याय अप्रतिरथ सूक्त ही है।

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यजुर्वेदीय पुरुषसूक्त – Purush Shuktam

पुरुषसूक्त – Purush Shuktam – 1

वेदों में वर्णित पुरुषसूक्त विशेष महत्वपूर्ण सूक्त है। पुरुषसूक्त के मंत्रों से सभी देवताओं की षोडशोपचार पूजा की जाती है। विष्णु यज्ञ, महा विष्णु यज्ञ, अतिविष्णु यज्ञों में पुरुष सूक्त के मंत्रों द्वारा ही आहुति दी जाती है।

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पवमान सूक्त – यजुर्वेदोक्त, विभिन्न यज्ञ, पूजा, पाठ आदि कर्मकांड के लिये विशेष महत्वपूर्ण सूक्त

पवमान सूक्त – यजुर्वेदोक्त, विभिन्न यज्ञ, पूजा, पाठ आदि कर्मकांड के लिये विशेष महत्वपूर्ण सूक्त

पवमान सूक्त यज्ञ में महत्वपूर्ण है। यह सामग्री को पवित्र करता है और जल प्रोक्षण में उपयोग होता है। ऋग्वेद में इसका वर्णन है। इसमें देवों की पूजा और अनुष्ठान का विवरण है।

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रक्षोघ्न सूक्त – ऋग्वेदोक्त, यजुर्वेदोक्त – रक्षोघ्न मंत्र

रक्षोघ्न सूक्त – ऋग्वेदोक्त, यजुर्वेदोक्त – रक्षोघ्न मंत्र

रक्षोघ्न सूक्त यजुर्वेद, ऋग्वेद, और अथर्ववेद में पाया जाता है और यज्ञ-पूजा में इसका प्रमुख उपयोग होता है। श्राद्ध में भी इसका पाठ किया जाता है, लेकिन यह पूजा-यज्ञ-अनुष्ठानों में भी होता है। इसे पितरों का मंत्र मानना एक भ्रम है।

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