दीपावली से संबंधित अन्य व्रत-पूजा
दीपावली के दिन पितृकर्म भी होता है, कार्तिक अमावस्या को ही पितर पृथ्वीलोक से प्रस्थान करते हैं। पितृगण भूलोक पर आते कब हैं इसकी चर्चा पितृपक्ष संबंधी आलेख में की गयी है। इसी प्रकार पितृगण प्रस्थान कब करते हैं और पितरों का विसर्जन कब व कैसे किया जाता है इसकी चर्चा उल्का भ्रमण वाले आलेख में की गयी है। दोनों आलेख यहां दिये गये हैं, पढ़ने के लिये तत्तत् छवियों पर क्लिक करें।
पितृपक्ष व पितृकर्म संबंधी दीपावली प्रसंग के उपरांत आगे जो विषय है वह है चंचला लक्ष्मी का निवास स्थान के लिये विचरण करना। प्रसंग जब लक्ष्मी के निवास स्थान ढूंढने का है तो यह कोजागरा से सम्बंधित हो जाता है क्योंकि कोजागरा को ही लक्ष्मी अपने निवास स्थान को ढूंढना आरंभ कर देती है।
कोजागरा वास्तव में लक्ष्मी की ही उक्ति है कि कौन जगा हुआ है जिसे हम धन-वैभव प्रदान करें – “कोजागर्ति” लक्ष्मी कहती है। कोजागरा वास्तव में “कोजागर्ति” का ही बोलचाल का शब्द है। कोजगरा से संबधित चर्चा और पूजा विधि इस आलेख में दिया गया है : कोजागरा व्रत : कोजागरा कब है – Kojagara kab hai 2024
कोजागरा शरद पूर्णिमा को होता है और तत्पश्चात कार्तिक माह आरंभ होता है। दीपावली में दीप का कर्म है और दीप का कर्म सम्पूर्ण कार्तिक माह से सम्बद्ध है। कार्तिक मास में आकाशदीप दान का विशेष विधान है। कार्तिक मास व्रती पूरे माह किसी ओट (बांस आदि का खम्बा) के सहारे प्रति दिन आकाश में दीप जलाती है। इस प्रकार दीपावली पूरे कार्तिक माह से संबद्ध है।
तत्पश्चात दीपावली के साथ-साथ देव दीपावली, लघु दीपावली की चर्चा तो सब करते ही हैं, किन्तु अकालमृत्यु का निवारण करने वाला एक विधान भी दीपावली से जुड़ा है जिसे यमचतुर्दशी भी कहा जाता है। यद्यपि धनतेरस के दिन भी यह दीप जलाने का विषय देखा जाता है। यम चतुर्दशी और अकाल मृत्यु निवारक दीप दान विधि से संबंधित जानकारी के लिये आप इस आलेख को पढ़ सकते हैं :
तत्पश्चात लक्ष्मी से तो दीपावली संबध है ही और दरिद्रता के निवारण का भी विधान है ही। संक्षित्प चर्चा आगे भी की गयी है किन्तु विस्तृत चर्चा जिन आलेखों में की गयी है वो आलेख यहां दिया जा रहा है यदि पढ़ना चाहें तो उन आलेखों को भी पढ़ सकते हैं : घर में लक्ष्मी कब आती है ?
इसके पश्चात् दीपावली की रात्रि सामान्य रात्रि नहीं होती है। श्रीदुर्गा सप्तशती में ही तीन रात्रियों को विशेष रात्रि कहा गया है : कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि। दीपावली की रात्रि कालरात्रि कही जाती है। इस रात्रि निशीथ काल में भगवती की विशेष उपासना होती है और मुख्य रूप से काली-तारा आदि की प्रतिमा बनाकर अराधना की जाती है। मुख्य रूप से श्यामा पूजा अर्थात काली पूजा की जाती है। यद्यपि यह अनिवार्य नहीं है कि दीपावली और श्यामा पूजा एक दिन ही हो क्योंकि दीपावली के लिये प्रदोषव्यापिनी अमावास्या अनिवार्य है तो श्यामा पूजा के लिये निशीथ व्यापिनी। काली पूजा विधि, श्यामा पूजा कब है
दीपावली को क्या-क्या करना चाहिए?
घर में लक्ष्मी निवास करे इसके लिए दीपावली को किस विधि से पूजा करें? लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?
स्पष्ट प्रश्न यह है कि दीपावली या सुखरात्रि को क्या-क्या करना चाहिए ? लेकिन इस प्रश्न का ये अर्थ कदापि नहीं होगा कि कार्तिक अमावस्या को क्या-क्या करना चाहिए? अर्थात् प्रश्न दीपावली के संदर्भ में है तो उत्तर भी मात्र दीपावली परक ही मानना चाहिए, अमावास्या परक नहीं। दीपावली के अवसर पर यद्यपि प्रमाणों की पुनरावृत्ति होगी तदपि आवश्यक है ।
- भविष्य पुराण :- दिवातत्रनभोक्तव्यमृतेबा लातुराज्जनात् । प्रदोषसमयेलक्ष्मीं पूजयित्वाततः क्रमात् । दीपवृक्षाश्चदातव्याः शक्त्या देवगृहेषु च ॥
- पुनः दीपान्दत्वा प्रदोषे तु लक्ष्मीं पूज्य यथाविधि । स्वलङ्कृतेन भोक्तव्यं सितवस्त्रोपशोभिना ॥
- पुनः ब्रह्मपुराण से :- प्रदोषसमयेराजन् कर्तव्यादीपमालिका॥
इन प्रमाणों की पुनरावृत्ति न करनी पड़े इस लिए आगे के लिए भी इसे ध्यान में रखें । प्रमाणानुसार दिन में भोजन का निषेध है, बालक-वृद्ध-आतुरों के अतिरिक्त। प्रदोष काल में ही उल्काभ्रमण करके लक्ष्मी पूजन करे । पूजनोपरांत भोजन करे । भोजनोपरान्त सुंदर-स्वच्छ-श्वेत वस्त्रादि धारण करके अर्थात् सजना-संवरना अनिवार्य है (जैसे :- वर-बारात के स्वागत हेतु सजते-संवरते हैं) । अर्द्धरात्रि तक यानि जब तक लक्ष्मी भ्रमण वेला है उत्सव मनाये । तत्पश्चात् नगर-गांव-घर की स्त्रियां शूर्प-डिंडिम आदि वाद्ययंत्रों को बजाते हुए सहर्ष मन से दरिद्रा को घर से निकाले ।
मदनरत्न-भविष्यपुराण :- एवंगते निशीथे तु जने निद्रार्धलोचने । तावन्नगरनारीभिः शूर्प डिंडिम वादनैः । निष्काश्यते प्रहृष्टाभिरलक्ष्मीः स्वगृहांगणात ॥
लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त कब होता है?
ये बहुत लोगों का प्रश्न होता है कि लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त कब है? इसका शास्त्रों में स्पष्ट उत्तर है प्रदोषकाल । इस संदर्भ में प्रमाण भी पहले वर्णित किया जा चुका है। सूर्यास्त के बाद एक प्रहर तक प्रदोषकाल कहलाता है। लेकिन प्रहर का तात्पर्य 3 घंटा नहीं समझना चाहिए; रात्रिमान के चतुर्थांश को प्रहर समझा जाना चाहिए । दिन का प्रहर दिनमान का चतुर्थांश और रात्रि प्रहर में रात्रिमान का चतुर्थांश ग्रहण करना चाहिए।
अर्थात् लक्ष्मी पूजा के लिए प्रदोषकाल ही ग्राह्य है, निशीथकाल (मध्यरात्रि) में श्यामापूजा कर्त्तव्य है ।
ऊपर प्रमाण उपलब्ध हैं कि लक्ष्मी पूजन प्रदोषकाल में कर्त्तव्य है और लक्ष्मी पूजन किये बिना परिवार का कोई सदस्य (बालवृद्धातुरातिरिक्त) भोजन न करे । और साथ ही पूजनोपरांत भोजन करना भी आवश्यक बताया गया है और भोजनोपरान्त उत्सव मनाते हुए अर्द्धरात्रि तक जगे, किन्तु अर्द्धरात्रि में लक्ष्मी-पूजन करे ऐसी आज्ञा नहीं है। अर्द्धरात्रि में काली-तारा आदि स्वरूपा भगवती की पूजा होती है ।
कामाख्यातन्त्रे – शरत्काले च देवेशि ! दीपयात्रादिने तथा । अमावास्यां समासाद्य मध्यरात्रौ विचक्षणः ॥ मृन्मयीं पुत्तलीं कृत्वा दीपादिभिरलङ्कृताम् । बलिं नानाविधं दद्याद्वाद्यभाण्डसमन्वितम् ॥ नृत्यं गीतं कौतुकानि यावत्सूर्योदयं चरेत् । प्रातःकाले शुद्धतोये स्थापयेदविनाशिनीम् ॥
फिर बहुत लोग जो मध्यरात्रि में लक्ष्मीपूजा का शुभमुहूर्त कहते हैं उसका क्या तात्पर्य है?
बहुत सारे व्यवहार प्रक्षेपित होते हैं। ज्योतिषियों द्वारा चंचला लक्ष्मी में स्थिरता सिद्ध्यर्थ स्थिल लग्नों में पूजा प्रशस्त बताया गया। प्रदोष काल में भी स्थिर लग्न वृष को पूजा हेतु श्रेष्ठ मुहूर्त कहा गया। पुनः दूसरा स्थिर लग्न सिंह जो कि मध्य रात्रि में प्राप्त होता है उसे भी प्रशस्त बताया जाने लगा और इस प्रमाण की उपेक्षा कर दी गई कि प्रदोषकाल ही पूजन हेतु ग्राह है निशीथकाल नहीं। इसी कारण से मध्य रात्रि में लक्ष्मी पूजा होते दिखती है लेकिन यह प्रमाणविरुद्ध है। दीपावली के अतिरिक्त अन्य दिनों में लक्ष्मीपूजन हेतु स्थिर लग्न शोधन कर्त्तव्य है, दीपावली में प्रदोष काल प्रामाणिक है स्थिर लग्न शोधन नहीं ।
दरिद्रा को घर से बाहर निकालने की शास्त्रीय विधि क्या है ?
अर्द्धरात्रि के बाद जब लोगों की आँखें मिचलाने लगे अर्थात नींद आने लगे उस समय दरिद्रा को घर से बाहर करना चाहिए। दरिद्रा को घर से निकालने के लिए घर-गांव की सभी महिलायें किसी लोहे की छड़ी से सुप/पंखा आदि को पीट-पीट कर बजाते हुये और डुगडुग्गी बजाते हुये घर के सभी कोने में घूमे। यह ध्वनि सुनकर दरिद्रा भाग जाती है।
इसलिये सभी घरों में बजाते हुये घर के द्वार तक बजाना चाहिए। ये कोई परम्परा मात्र नहीं है; शास्त्रों में वर्णित विधि है, हाँ समाचार पत्रों में परम्परा मात्र अवश्य कहा जाता है।
मदनरत्न/भविष्यपुराण :- एवंगते निशीथे तु जने निद्रार्धलोचने । तावन्नगरनारीभिः शूर्प डिंडिम वादनैः । निष्काश्यते प्रहृष्टाभिरलक्ष्मीः स्वगृहांगणात ।।
ऐसा देखा जाता है की बहुत सारे लोग दरिद्रा से परेशान रहते हैं। दरिद्रता नाशक उपाय जानना चाहते हैं, दरिद्रता नाशक मंत्र क्या होता है ये जानना चाहते हैं किन्तु शास्त्रीय विधि ज्ञात नहीं होने के कारण टोना-टोटका करते रहते हैं। दरिद्रता नाशक लक्ष्मी मंत्र, दरिद्रता नाशक अंगूठी आदि भाग्योदय करने के उपाय तो करते हैं परन्तु दरिद्रता के कारण का सही ज्ञान नहीं होने के कारण परेशानी दूर करने के उपाय करके भी परेशान ही रहते हैं।
यहां पर हम अच्छे दिन लाने के लिए क्या करना चाहिएइसके लिये शास्त्रीय विधि क्या है इसकी चर्चा कर रहे हैं कि दरिद्रता कैसे दूर करें? दरिद्रता का मतलब क्या होता है केवल धन की कमी ? लोग तो धन की कमी को ही दरिद्रता समझते हैं। लेकिन धन के साथ-साथ प्रेम-भक्ति आदि की कमी भी दरिद्रता ही होती है। यहाँ पर हमने गरीबी से छुटकारा कैसे पा सकते हैं इसके शास्त्रीय उपाय की चर्चा की है। दरिद्रता कहाँ निवास करती है? जहां लक्ष्मी न रहे। और लक्ष्मी का निवास कैसे होता है, जहां दरिद्रता न रहे।
इसका शास्त्रीय उपाय यही है की दीपावली की अर्द्धरात्रि के बाद दरिद्रता भगाने के आसान उपाय को अपनायें। दीपावली के बाद सूप क्यों बजाया जाता है? इसका मूल कारण यही है की लक्ष्मी घर में रहें।
F&Q
अब हम कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के सही उत्तर को जानेंगे जिसका उत्तर गूगल पर भी भ्रामक जोड़ दिया गया है :
प्रश्न : दिवाली या दीवाली कौन सा सही है?
उत्तर : दोनों ही गलत है। दीपावली शुद्ध है जिसका तात्पर्य है दीपों की आवली या पंक्ति अर्थात अर्थात जी त्यौहार में दीपों की पंक्तियाँ लगायी जाती है वह दीपावली है।
प्रश्न : दीपावली के पिता का नाम क्या था?
उत्तर : यह प्रश्न गलत है। दीपावली कोई देवी या देवता नहीं हैं की उनके पिता के बारे में पूछा जाय यह त्यौहार है जिसमें पितरों की विदाई की जाती है ? घर में लक्ष्मी निवास कामना से पूजा की जाती है और दरिद्रा को घर से निष्काषित किया जाता है ताकि लक्ष्मी घर से वापस न जाये।
प्रश्न : धनतेरस के दिन कितने दीपक जलाए जाते हैं?
उत्तर : परिवार के सभी सदस्यों की अकाल मृत्यु निवारण के लिए त्रयोदशी को सदस्य संख्या के बराबर यमदीप दान किया जाता है; क्योंकि शास्त्रों के अनुसार इस दिन यमदीप दान करने से अकालमृत्यु का निवारण होता है। और यह हमेशा धनतेरस को ही हो ये भी आवश्यक नहीं है, कई बार धनतेरस के अगले दिन भी होता है।
प्रश्न : लक्ष्मी पूजा कितने बजे कर सकते हैं?
उत्तर : लक्ष्मी पूजा करने के लिए शास्त्रों ने प्रदोषकाल का उल्लेख किया गया है। सूर्यास्त होने के बाद एक प्रहर तक प्रदोषकाल कहलाता है। प्रदोषकाल लगभग 3 घंटे का होता है। अतः सूर्यास्त होने के बाद 3 घंटे तक लक्ष्मी की पूजा के लिये सही समय होता है।
प्रश्न : दीपावली से 1 दिन पहले कौन सा त्यौहार आता है?
उत्तर : दीपावली से 1 दिन पहले नरक चतुर्दशी और लघु दीपावली का त्यौहार होता है।
प्रश्न : दिवाली से पहले की रात को हम दीया क्यों जलाते हैं?
उत्तर : दीपावली से पहले की रात को लघुदीपावली होती है इसलिए देवस्थानादि में दिया जलाते हैं।
प्रश्न : मृत्यु का देवता कौन है?
उत्तर : यमराज मृत्यु के देवता हैं।
प्रश्न : यमराज कहां रहता है?
उत्तर : यमराज जहाँ रहते हैं उसे यमलोक, यमपुरी आदि कहा जाता है।
इसी तरह प्रत्येक सनातनी पर्व-त्यौहार से सम्बंधित अनगिनत प्रश्न ऐसे हैं जिसका गूगल पर गलत उत्तर अंकित है। इन प्रश्नों के उत्तर में सुधार हेतु गूगल को संप्रेषित कर दिया गया है। आप भी अपने अधिकतम मित्रों के साथ साझा करें ताकि भ्रामक जानकारी से बच सकें।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।