अकालमृत्यु का वास्तविक तात्पर्य है सहज मृत्यु न होकर वृद्धावस्था से पूर्व रोग, दुर्घटना आदि कारणों से मृत्यु होना । जिस किसी घर में अकालमृत्यु होती है वह घर विपत्ति में आ जाता है, शोकाकुल रहता है। अकालमृत्यु निवारण हेतु महामृत्युंजय जप विधान तो शास्त्रों में वर्णित ही है, अन्य भी कई प्रकार के यज्ञानुष्ठानों की विधि है। किन्तु इन सभी उपायों में व्यय बहुत होता है। बहुत परिवार तो ऐसे भी होते हैं जो व्यय कर ही नहीं सकते । यहां अकालमृत्यु नाशक एक ऐसे उपाय का वर्णन किया गया है जो बहुत उपयोगी है।
अकाल मृत्यु से बचने के लिए क्या करना चाहिए : yam deep daan
अकालमृत्यु नाशक उपाय की चर्चा करने से पूर्व कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य भी हैं जो हमें जानना आवश्यक है जैसे : अकाल मृत्यु के लक्षण क्या हैं, क्या जन्म से पहले ही मृत्यु निश्चित हो जाती है, क्या अकाल मृत्यु को रोका जा सकता है, इत्यादि। यद्यपि ये सभी गंभीर विषय हैं तथापि इसे सरल भाषा में समझने का प्रयास करते हैं।
अकाल मृत्यु के लक्षण क्या हैं ?
गरुड़ पुराण के अनुसार यदि कोई व्यक्ति , जहर पीकर, फांसी लगाकर, भूख से पीड़ित होकर (काशी जाकर अनशन करके मरना अकालमृत्यु की श्रेणी में नहीं आती है), आग से जलकर, हिंसक प्राणी द्वारा, जल में डूबने से, किसी दुर्घटना के कारण ,सांप के काटने से, या फिर आत्महत्या करने से होती है तो वह अकाल मृत्यु कहलाती है।
क्या जन्म से पहले ही मृत्यु निश्चित हो जाती है ?
‘जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च’ – जिसका जन्म हो गया है, वह जरूर मरेगा और जो मर गया है, वह जरूर जन्मेगा। पूर्वकर्मानुसार मृत्यु जन्म के साथ ही सुनिश्चित हो जाती है; किन्तु वर्त्तमान जन्म के कर्मों से भी उनमें ह्रासवृद्धि होती है। अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः । चत्वारि तस्य वर्द्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलं॥ जो सदा नम्र सुशील विद्वान और वृद्धों की सेवा करता है उसका आयु, विद्या, यश और बल ये चारों बढ़ते हैं ।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार “क्षौर कर्म विहित वारों में करने से उसके अधिपति ग्रह भी आयु वृद्धि करते हैं, और निषिद्ध दिनों में क्षौर करने से उसके अधिपति ग्रह आयु हरण भी करते हैं”।
क्या अकाल मृत्यु को रोका जा सकता है?
- इस प्रश्न का उत्तर थोड़ा जटिल है। गोस्वामी तुलसीदास का रामचरित मानस में एक दोहा है – सुनहुं भरत भावी प्रबल विलखि कहे मुनिनाथ। हानि लाभ जीवन मरण जस अपजस विधि हाथ॥
- अर्थात मृत्यु पर विधि का नियंत्रण होता है, इसे मनुष्य अपनी इच्छा से न्यूनाधिक नहीं कर सकता।
- लेकिन पुनः “भाविहुँ मेटि सकहिं त्रिपुरारि”
- मनुष्य भले ही परिवर्तन नहीं कर सके लेकिन ईश्वर तो कर ही सकते हैं; और इसके कई उदहारण भी हैं जिसमें सबसे बड़ा मार्कण्डेय ऋषि का है।
- इस प्रकार मनुष्य ईश्वर से अकाल मृत्यु निवारण के लिये प्रार्थना तो कर ही सकता है उसे स्वीकार करना या नहीं करना ईश्वर की इच्छा पर निर्भर होता है।
- सती सावित्री का प्रसङ्ग भी ध्यातव्य है।
यदि ज्योतिष/वास्तु आदि के कारण अकाल मृत्यु दोष उत्पन्न हो रहा हो तो उसके निस्तारण का उपाय शास्त्रों में वर्णित है। महामृत्युञ्जय मंत्र का जप, दुर्गा कवच या सम्पूर्ण सप्तशती का पाठ, महामृत्युञ्जय स्तोत्र पाठ, नारायण कवच पाठ इत्यादि अनेक उपाय शास्त्र-पुराणों में वर्णित हैं जिससे आयु वृद्धि होती है और अकाल मृत्यु का निवारण होता है। एक अन्य विशेष उपाय यमदीप दान करने का है, जिसकी सप्रमाण और समन्त्र चर्चा नीचे है साथ ही यूट्यूब वीडियो में भी उक्त विषय पर और जानकारी उपलब्ध है।
शास्त्रों में अकालमृत्यु निवारण हेतु कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को यमदीप दान करने की विधि बताई गई है। लगभग इसी दिन धन्वन्तरि जयंती या धनतेरस भी होता है; लेकिन ये अनिवार्य नहीं है, कई बार पहले दिन धनतेरस और दूसरे दिन यमदीप दान होता है।
निर्णयामृत, स्कंद पुराण से – कार्तिकस्यासितेपक्षे त्रयोदश्यांनिशामुखे ॥ यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति ॥ कार्तिक कृष्ण (असित) पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष काल में घर के बाहर यमदीप दान करना चाहिए, यह अपमृत्यु निवारक होता है।

यम दीप दान कैसे करें
बहिर्दद्यात् का तात्पर्य घर से बाहर यमदीप दान करना है और घर में निषिद्ध है । थोड़ा जल भी अवश्य प्रदान करना चाहिये और उसके बाद उस दीप को देखे बिना घर वापस आ जाना चाहिए, हाथ पैर बाहर में ही धो लेना चाहिये। चूँकि वह दीप यम के निमित्त होता है अतः उसे बाद में नहीं देखना चाहिये और इसलिए एकांत स्थान पर देना चाहिये जहां दुबारा जाना न परे और दृष्टिगत न हो। लेकिन दीपदान की मुख्य वेला सायंकाल ही होती है।
यमदीप दान में कुछ अन्य विधि भी है :-

- यह तिल तेल का दीप हो; अथवा सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए ।
- दीप दक्षिणाभिमुख रखें; और दक्षिणाभिमुख तभी हो सकता है जब चौमुख न हो, यदि चौमुख होगा तो दक्षिणाभिमुख नहीं हो सकता है।
- यह दीप स्वयं ही मिट्टी, गोबर या आटे की बनानी चाहिये ।
- साथ परिवार के सभी सदस्यों के निमित्त १-१ दीप देनी चाहिए; न कि १३ या १४ ।
- यह कार्य वृद्धतम स्त्री अर्थात् घर की सबसे बड़ी स्त्री करती है।
यम दीप दान मंत्र
मृत्युनापाशदंडाभ्यां कालेनकालेन भार्ययासह । त्रयोदश्यांदीपदानात्सूर्यजः प्रीयतांमम ॥
क्या सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए ? यह तिल तेल का दीप हो; अथवा सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए ।
धनतेरस कब है

- धनतेरस कब है 2024
- धनतेरस कब है 2025
- धनतेरस कब है 2026
- कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी आरंभ : 29 अक्टूबर, मंगलवार, पूर्वाह्न 10:31 बजे।
- कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी समाप्त : 30 अक्टूबर, बुधवार, मध्याह्न 1:15 बजे।
- 2024 में 29 अक्टूबर, मंगलवार को प्रदोषव्यापिनी त्रयोदशी है अतः इसी दिन धनतेरस है।
- कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी आरंभ : 18 अक्टूबर, शनिवार, मध्याह्न 12:18 बजे।
- कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी समाप्त : 19 अक्टूबर, रविवार, मध्याह्न 1:51 बजे।
- 2025 में 18 अक्टूबर, शनिवार को प्रदोषव्यापिनी त्रयोदशी है अतः इसी दिन धनतेरस है।
- कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी आरंभ : 6 नवंबर, शुक्रवार, पूर्वाह्न 10:30 बजे।
- कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी समाप्त : 7 नवंबर, शनिवार, मध्याह्न 10:47 बजे।
- 2026 में 6 नवंबर, शुक्रवार को प्रदोषव्यापिनी त्रयोदशी है अतः इसी दिन धनतेरस है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।