जलाधिवास विधि
सर्वप्रथम जलाधिवास जाकर पूजा की समुचित व्यवस्था करे ।अग्न्युत्तारण की हुई प्रतिमा को सम्मुख रखे । संक्षिप्त पवित्रीकरण स्वस्तिवाचन आदि करके जलाधिवास का संकल्प करे। रक्षोघ्न सूक्तादि का पाठ करके पीली सरसों छिड़के । भूमि पर बांये पैर से तीन बार आघात करे। फिर जलस्पर्श करे। पंचगव्य निर्माण करके आपोहिष्ठादि मंत्रों से सर्वत्र प्रोक्षन करे।
जलाधिवास मंत्र
फिर तिल-जलादि लेकर संकल्प करे :
- संकल्प मंत्र : ॐ अद्यादि ……………………… प्रतिष्ठाङ्गगत्वेन प्रतिमासंशुद्ध्यर्थं देवतायोग्यताधिष्ठानसिध्यर्थं जलाधिवासाख्यं कर्म करिष्ये ॥
- प्रार्थना : ॐ त्वयि संपूजयामीशं नारायणमनामयम् । रहितः सर्वदोषैस्त्वं ऋद्धियुक्तः सदा भव ॥
- प्रार्थना करके कुशों से प्रतिमा का मार्जन करे। वस्त्र (गीले व सूखे) से भी प्रतिमा का मार्जन कर ले ।
- तदूत्तर यदि प्रतिमा में किसी प्रकार का विशेष व्रण दिखे तो व्रणभंगद्रव्य का भी प्रयोग करे अन्यथा केवल मधु-घृत आदि का प्रयोग करके व्रणभंग करे : ॐ प्रत्युष्ट रक्ष: प्रत्युष्टाऽअरातयो निष्टप्त रक्षो निष्टप्ताऽअरातय: । अनिशितोसि सपत्नक्षिद वाजिनं त्वा वाजेध्यायै सम्मार्ज्मि । प्रत्युष्ट रक्ष प्रत्युष्टाऽ अरातयो तिष्टप्त रक्षो निष्टप्ताऽ अरातय: । अनिशितासि सपत्नक्षिद् वाजिनं त्वा वाजेध्यायै सम्मार्ज्मि ॥
- तत्पश्चात् क्रमशः मृदा (सप्तमृत्तिका), गोमय, गोमूत्र, भस्म, दूध, दही, गंधोदक आदि से प्रतिमा को स्नान कराये ।
- फिर गंधादि से पूजा करे ।
- एक सुवर्ण पात्र में मधु-घृत लेकर सुवर्ण शलाका से नेत्रों में लगाये : ॐ चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्ने: ॥पुनः कलश में जल लेकर प्रतिमा को स्नान कराये। कलशोदकेन देवं संस्त्राप्य यजमानाय दापयेत् ।
- फिर यजमान आचार्य को संबोधित करके कहे : भो गुरो, प्रतिमां सावयवां निरीक्षस्व ॥
- आचार्य प्रतिमा का अवलोकन करे : ॐ मित्रस्यत्वाचक्षुषा प्रतीक्षे ॥
- फिर पंचोपचार/षोडशोपचार (समयानुसार) पूजन करके प्रतिमा के दाहिने हाथ में कौतुकसूत्र (कंगन) बांधे ।
कौतुकसूत्र बंधन विधि
- कौतुकसूत्र बंधन कर्म आचार्य करे।
- कौतुकसूत्र बंधन संकल्प मंत्र : ॐ अद्यादि …… सूर्याचंद्रमसौयावद् देवरक्षार्थं कौतुकबन्धनं करिष्ये।
- अष्टदल पर कलश स्थापन करे।
- एक पात्र में अष्टदल बनाये।
- ऊर्णादिसूत्रों का बनाया हुआ द्वादशाङ्गुल (पञ्चाङ्गुल, अष्टाङ्गुल प्रतिमा के अनुसार) हरिद्राकुंकुमादि लगाकर सर्वौषधि सहित कौतुकसूत्र; पात्र में रखे।
- रक्षोघ्नसूक्त, पुरुषसूक्त, श्रीसूक्त, शांतिसूक्त आदि समयानुसार पाठ करते हुये कलश जल से कौतुकसूत्र को अभिषिञ्चित करे।
- फिर कौतुकसूत्र में चंदनादि लगाये।
- फिर प्रतिमा के दाहिने हाथ में कौतुकसूत्र बांधे : ॐ यदा बध्नन् दाक्षायणा हिरण्य ᳪ शतानीकाय सुमनस्यमाना: तन्मऽआबघ्नामि शत शारदायायुष्माञ्जरदृष्टिर्यथासम् ॥
जलाधिवास
- कौतुकसूत्र बांधने के बाद धान्यराशि पर जलाधिवास पात्र रखे।
- जलाधिवास पात्र में गंधोदक भरे।
- २८ कुशाओं का कूर्च (गठरी) बनाकर उसमें पवित्रेष्थो मंत्र से रखे।
- पीली सरसों छिड़ककर (मंत्र पढ़ते हुये) भूतोत्सारण करे।
- जिस देवता का स्थापन करना हो कुशाओं के कूर्च में ध्यान करके चक्रमुद्रा प्रदर्शित करे।
- जलाधिवास पात्र के दक्षिण दिशा में कलश और कमण्डलु स्थापित करे।
- कलश में ब्रह्मा (ॐ ब्रह्मणे नमः) और कमण्डलु में सुदर्शन (ॐ सुदर्शनाय नमः) का आवाहन पूजन करे।
- फिर जल में सप्त जलमातृ की पूजा करे :
- ॐ भूर्भुवः स्वः मत्स्ये इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः मत्स्यै नमः॥
- ॐ भूर्भुवः स्वः कूर्मे इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः कूर्म्यै नमः॥
- ॐ भूर्भुवः स्वः वाराहे इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः वाराह्यै नमः॥
- ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्दरे इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्दयै नमः॥
- ॐ भूर्भुवः स्वः मकरे इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः मकर्यै नमः॥
- ॐ भूर्भुवः स्वः जलूके इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः जलूक्यै नमः॥
- ॐ भूर्भुवः स्वः तन्तुके इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः तन्तूक्यै नमः॥
पात्र की भित्ति में सप्त जीवमातृ की पूजा करे :
- ॐ भूर्भुवः स्वः कुमारी इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः कुमार्यै नमः॥
- ॐ भूर्भुवः स्वः धनदे इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः धनदायै नमः॥
- ॐ भूर्भुवः स्वः नन्दे इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः नन्दायै नमः॥
- ॐ भूर्भुवः स्वः विमले इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः विमलायै नमः॥
- ॐ भूर्भुवः स्वः मङ्गले इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः मङ्गलायै नमः॥
- ॐ भूर्भुवः स्वः अचले इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः अचलायै नमः॥
- ॐ भूर्भुवः स्वः पद्मे इहागच्छ इहतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः पद्मायै नमः॥
तत्पश्चात आगे बताई गयी विधि के अनुसार अन्य पूजा करे। पूजा पंचोपचार की जा सकती है।
- पुनः जल में ६४ योगिनी की पूजा ॐ चतुःषष्टियोगिनिभ्यो नमः मन्त्र से करे।
- वायव्यकोण में कुंकुमादि से क्षेत्रपाल लिखकर क्षेत्रपाल की पूजा ॐ क्षेत्रपालाय नमः मंत्र से करके बलि दे।
- पुनः जल में अप् की : ॐ अद्भ्यो नमः मंत्र से पूजा करे।
- फिर सप्तसागर की : ॐ सप्तसागरेभ्यो नमः मंत्र से पूजा करे।
- फिर मानसादि सरोवर की : ॐ मानसादिसरोभ्यो नमः मंत्र से पूजा करे।
- फिर पुष्करादि तीर्थ की : ॐ पुष्करादि तीर्थेभ्यो नमः मंत्र से पूजा करे।
- फिर गंगादि नदी की : ॐ गंगादि नदीभ्यो नमः मंत्र से पूजा करे।
- तत्पश्चात वरुण की : ॐ वरुणाय नमः मंत्र से पूजा करके जल में पंचामृत दे।
- जल के ऊपर पीली सरसों छिड़क दे।
- जलाधिवासपात्र के चारों ओर कलश स्थापित करके दशदिक्पाल की पूजा करे।
- जल में शमी की लकड़ी का पीठ (प्रतिमा रखने के लिये) रखकर वस्त्र रखे।
- प्रतिमा में वस्त्र-कुशा सहित लपेटे।
- फिर वैदिक सूक्तों का पाठ, मंगलगान, वाद्य आदि बजाते हुये जल में प्रतिमा को पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख रखे।
- फिर देवता का सूक्त-स्तोत्रादि पाठ करके दक्षिणा दे।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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