महामृत्युंजय जप करने-कराने की आवश्यकता कई बार होती है। इसमें कितने दिन तक करना या कराना चाहिये ये एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। महामृत्युंजय जप में कितना दिन लगेगा इसके लिये तो सर्वप्रथम यह तथ्य महत्वपूर्ण होता है कि जप की संख्या कितनी है। सामान्यतः प्रश्न का तात्पर्य सवा लाख महामृत्युंजय जप से ही संबंधित होता है। इस आलेख में महामृत्युंजय जप कितने दिन तक करना-कराना चाहिये इसको स्पष्ट किया गया है जो जनोपयोगी है। महामृत्युंजय मंत्र की संख्या सवा लाख मानकर जिस प्रकार विचार किया गया है लगभग उसी प्रकार से उससे कम संख्या होने पर भी विचार किया जा सकता है।
महामृत्युंजय जाप कितने दिन का होता है
महामृत्युंजय जप को पहले दो भागों में बांटेंगे तब यह सही-सही समझा जा सकता है। स्वयं करना और ब्राह्मणों द्वारा कराना; इन दोनों को विभक्त रूप से समझने पर ही दिन संख्या निर्धारित की जा सकती है।
स्वयं जाप करना :
1 – स्वयं जप करने का अर्थ हुआ कि जप की सामान्य विधियों को जानकर प्रतिदिन 108/1008 आदि निर्धारित संख्या में जप करना। इसमें कितने दिन का प्रश्न विचारणीय नहीं है, या प्रतिदिन का नियम बन जाता है।
2 – स्वयं जप करने का भी दूसरा प्रकार है निर्धारित संख्या में अथवा किसी के द्वारा निर्द्दिष्ट संख्या में जप करना; यथा 11000, 44000, 125000 आदि। यहां पर दिन का निर्धारण करना आवश्यक होता है।
- जब एक निर्द्दिष्ट संख्या में जप करने की बात आती है तो उसके लिये सर्वप्रथम तथ्य यह है की विशेष-नियमों का पालन करना भी आवश्यक हो जाता है।
- प्रतिदिन एक माला आदि जपने के लिये सामान्य नियमों कोई विशेष नियम पालनीय नहीं होता। किन्तु निर्द्दिष्ट संख्या में जप करने के लिये आरम्भ करने से पूर्ण करने तक ब्रह्मचर्य, आहार, व्यवहार आदि सम्बन्धी विशेष शास्त्रोक्त नियमों का भी पालन करना अनिवार्य होता है। अतः उपरोक्त स्थिति में दिन की संख्या निर्धारित करना भी आवश्यक होता है।
- इसमें एक बिंदु यह भी होता है कि निर्द्दिष्ट संख्या में जप का संकल्प लेने के बाद पूर्णाहुति (या विंशांश जप) तक अन्य कार्य बाधित रहता है जैसे जीविकोपार्जन सम्बन्धी कार्य, किसी का निमंत्रण स्वीकार करना, किसी अन्य के यहां भोजन आदि करना, शय्या का उपयोग न करना, जप के बाद ही भोजन करना (फलाहार आरम्भ में भी किया जा सकता है), सैंधव नमक का प्रयोग करना, ब्रह्मचर्य नियम पालन करना, प्रतिग्रह न करना इत्यादि।
- चूंकि जीविकोपार्जन आदि कार्य भी बाधित हो जाता है और विशेष नियमों का पालन भी अधिक दिनों तक नहीं किया जा सकता इसलिये यथाशीघ्र निर्द्दिष्ट संख्या को पूर्ण करना अपेक्षित होता है।
- जब प्रथम बार जप का आरम्भ किया जाता है तो 12 – 15 मिनट तक एक माला अर्थात 108 (सौ) जप में लगता है और 5 – 6 घंटा से अधिक जप भी नहीं किया जा सकता। लेकिन धीरे-धीरे 1 माला जप करने में लगने वाला समय 9 – 10 मिनट हो जाता है। यहां हम 12 मिनट का औसत ग्रहण करेंगे।
- 12 मिनट का औसत लेने पर 1000 जप करने में 2 घंटा लगेगा, इस प्रकार कुल 6 घंटा जप करने पर एक दिन में कुल 3000 जप होगा।
- इस आधार से यदि 11000 जप करना हो तो 4 दिन जप और पांचवें दिन हवन अथवा विंशांश (2200) जप, ब्राह्मण भोजन आदि करके पूर्ण होगा अतः 5 दिन लगेगा।
- यदि 44000 महामृत्युंजय जप करना हो तो 44000/3 = 15 दिन लगेंगे।
- यदि 125000 अर्थात सवा लाख महामृत्युंजय जप करना हो तो 125000/3 = 42 दिन आते हैं किन्तु इस स्थिति में 40 दिन का विधान मिलता है अतः जप संख्या में 200 अधिक वृद्धि करने पर जो स्वतः होने लगेगा 39 दिन में जप पूर्ण करके चालीसवें दिन हवन और पूर्णाहुति किया जायेगा। किन्तु यदि विंशांश जप ही करना हो तो 40 दिन में जप पूर्ण करके तदुपरांत विंशांश जप 3 दिन में होगा।
ब्राह्मणों द्वारा जाप कराना :
ऊपर स्वयं जप करने की जानकारी दी गयी जिससे यह भी स्पष्ट होता है कि निर्द्दिष्ट संख्या निर्धारित होने पर स्वयं जप करने में सबसे बड़ी बाधा जीविकोपार्जन का बाधित हो जाना संभव नहीं होता और शास्त्रों में यह विधान बताया गया है कि ब्राह्मण जिसके धन से कोई पूजा-हवन-जप-यज्ञादि करते हैं उसका फल धनदाता को ही प्राप्त होता है।
एक अन्य उदहारण से इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि घर की आवश्यकता होने पर स्वयं गृहनिर्माण नहीं करते शिल्पी से कराते हैं परन्तु शिल्पी द्वारा निर्मित घर पर अधिकार शिल्पी का नहीं होता। उसी प्रकार कर्मकांड में भी यही विधान है कि कर्मकांड हेतु ब्राह्मणों को प्रतिनिधि बनाकर संपन्न किया जा सकता है।
एक अन्य उदहारण से भी समझा जा सकता है कि न्यायालय में कोई वाद-विवाद हो तो वहां प्रतिनिधि रूप से अधिवक्ता ही कार्य करता है किन्तु निर्णय से वादी-प्रतिवादी पर प्रभावी होता है।
- उपरोक्त उदहारण मात्र फल पर अधिकार हेतु ही उपर्युक्त है अन्य किसी प्रकार से नहीं। जैसे यदि आप शिल्पी/अधिवक्ता के कार्य से संतुष्ट न हों तो आपके परिवर्तन करने का अधिकार रहता है किन्तु ब्राह्मण को एक बार वरण कर लेने पर परिवर्तन करने का अधिकार नहीं रहता।
- शिल्पी/अधिवक्ता के पास फल में अधिकार किसी प्रकार सिद्ध नहीं होता वो सतुष्ट हो या न हो। लेकिन ब्राह्मण जब तक संतुष्ट न हो तब तक फल का अधिकार ब्राह्मण के पास सुरक्षित रहता है। सेवा-दक्षिणादि से संतुष्ट ब्राह्मण के द्वारा श्रेयोदान (कर्म का श्रेय देने पर) ही यजमान का फल में अधिकार होता है।
- शिल्पी/अधिवक्ता के पास सेवाशुल्क मात्र प्राप्ति का अधिकार होता है अर्थात वह सेवक की श्रेणी में ही आते हैं, ब्राह्मण की दक्षिणा होती है, सेवा भी ब्राह्मण की ही करनी चाहिये अर्थात कर्मकांड में ब्राह्मण प्रतिनिधि तो होते हैं किन्तु सेवक यजमान ही होता है और जितनी सेवा करने में सक्षम हो करना चाहिये।
- सेवा से ब्राह्मण को संतुष्ट कर देने पर किसी अन्य किसी काम्य-कर्म की आवश्यकता ही नहीं रहती सेवा से संतुष्ट ब्राह्मण के आशीर्वाद मात्र से सब-कुछ सुलभ हो जाता है। धनाढ्य यजमान कई बार यह त्रुटि करते हैं कि ब्राह्मण को भी सेवक की श्रेणी का ही समझ लेते हैं और सेवा भी ग्रहण करते हैं जैसे ब्राह्मण द्वारा आसन लगवाकर उस पर बैठते हैं।
- ब्राह्मण को भगवान का मुख कहा गया है अर्थात ब्राह्मण का भोजन करने का तात्पर्य भगवान का भोजन करना होता है और ब्राह्मण के द्वारा प्राप्त आज्ञा भगवान से प्राप्त आज्ञा समझना चाहिये। ब्राह्मण के वचन मात्र से पापों का शमन होता है और आशीर्वाद से शुभ प्राप्ति।
- वचन (आज्ञा) या आशीर्वाद प्राप्ति में एक शर्त्त यह है कि संतुष्ट ब्राह्मण से प्राप्त हो अर्थात ब्राह्मण को विविध प्रकार से सेवा/दान/दक्षिणा आदि द्वारा संतुष्ट करके प्राप्त करे। कई यजमान इस शर्त्त को नहीं समझते शर्त्त रहित आर्शीवाद प्राप्त करते हैं अर्थात सेवा/दान/दक्षिणा आदि से संतुष्ट न करके प्राप्त करते हैं जो फल की सिद्धि का बाधक होता है।
अब हम आलेख के मूल विषय को समझने का प्रयास करेंगे कि यदि ब्राह्मणों द्वारा जप कराया जाय तो सवा लाख महामृत्युंजय जप में कितना दिन लगेगा ?
- यदि एक ब्राह्मण जप करें तो सवा लाख महामृत्युंजय जप करने में 40 दिन लगता है।
- यदि 5 ब्राह्मण जप करें तो सवा लाख महामृत्युंजय जप करने में 11 दिन लगता है।
- यदि 7 ब्राह्मण जप करें तो सवा लाख महामृत्युंजय जप करने में 9 दिन लगता है।
- यदि 9 ब्राह्मण जप करें तो सवा लाख महामृत्युंजय जप करने में 7 दिन लगता है।
- यदि 11 ब्राह्मण जप करें तो सवा लाख महामृत्युंजय जप करने में 5 दिन लगता है।
- यदि 15 ब्राह्मण जप करें तो सवा लाख महामृत्युंजय जप करने में 3 दिन लगता है।
- यदि 25 ब्राह्मण जप करें तो सवा लाख महामृत्युंजय जप करने में 2 दिन लगता है।
- यदि 61 ब्राह्मण जप करें तो सवा लाख महामृत्युंजय जप करने में 1 दिन लगता है।
कुछ ब्राह्मण स्वयं सेवक भाव ग्रस्त भी होते हैं और जप आदि कर्म को वृत्ति/आजीविका मात्र समझते हैं। ऐसे ब्राह्मण ही यजमान से सेवा प्राप्त नहीं करते अपितु इसके विपरीत यजमान की ही आसन आदि लगाकर सेवा भी करते हैं।
यजमान का कार्य धन मात्र उपलब्ध करना होता है बाकि सामग्री संग्रह भी ये स्वयं ही कर लेते हैं। यजमान का कार्य मात्र अपेक्षित काल में उपलब्ध होकर ब्राह्मण द्वारा लगाये हुए आसन पर बैठना और जो मंत्रादि पढ़ाया जाय जो क्रिया बताई जाय वो करना होता है।
इसके अतिरिक्त जो मुख्य विषय ब्राहण का सेव्य होना वह नहीं होता इसका विपरीत होता है ब्राह्मण सेवक बन जाते हैं और धनाढ्य यजमान जिसे सेवक होना चाहिये वह सेव्य अर्थात स्वामी हो जाता है और दोनों की बुद्धि/व्यवहार भी उसी प्रकार का होता है। ब्राह्मण के समक्ष यजमान सावधान नहीं होता अपितु यजमान के समक्ष ब्राह्मण सावधान रहते हैं। ऐसे ब्राह्मणों द्वारा जप कराया जाय तो दिन संख्या में भी अंतर हो सकता है।
- यदि 1 सेवक भाव से ग्रस्त ब्राह्मण द्वारा सवालाख महामृत्युंजय जप कराया जाय तो अधिकतम 25 दिन लगते हैं।
- यदि 3 सेवक भाव से ग्रस्त ब्राह्मण द्वारा सवालाख महामृत्युंजय जप कराया जाय तो अधिकतम 9 दिन लगते हैं।
- यदि 5 सेवक भाव से ग्रस्त ब्राह्मण द्वारा सवालाख महामृत्युंजय जप कराया जाय तो अधिकतम 7 दिन लगते हैं।
- यदि 7 सेवक भाव से ग्रस्त ब्राह्मण द्वारा सवालाख महामृत्युंजय जप कराया जाय तो अधिकतम 5 दिन लगते हैं।
- यदि 9 सेवक भाव से ग्रस्त ब्राह्मण द्वारा सवालाख महामृत्युंजय जप कराया जाय तो अधिकतम 3 दिन लगते हैं।
- यदि 15 सेवक भाव से ग्रस्त ब्राह्मण द्वारा सवालाख महामृत्युंजय जप कराया जाय तो अधिकतम 2 दिन लगते हैं।
- यदि 31 सेवक भाव से ग्रस्त ब्राह्मण द्वारा सवालाख महामृत्युंजय जप कराया जाय तो अधिकतम 1 दिन लगता है।
इसमें सेवा शुल्क द्वारा संतुष्ट ब्राह्मण की सिद्धि तो होती है किन्तु मुख्य अभाव सेवा/दान/दक्षिणा आदि द्वारा संतुष्ट ब्राह्मण का अभाव स्पष्ट होता है। इस कारण सेवा/दान/दक्षिणा द्वारा संतुष्ट ब्राह्मण का आशीर्वाद भी प्राप्त नहीं होता क्योंकि मुख्य पात्र का ही अभाव हो जाता है।
यह विषय इस प्रकार के ब्राह्मणों को थोड़ा ठेंस पहुंचाने वाला भी है किन्तु क्षमायाचना पूर्वक यह निवेदन अवश्य किया जा सकता है कि जो भी ऐसे ब्राह्मण हैं उन्हें अपने सेवकत्व भाव का त्याग करना चाहिये। आजीविका/जीवन निर्वहन हेतु यदि आपका ही ईश्वर पर विश्वास नहीं है और दासत्व ग्रहण कर लेते तो फिर विश्वास रहित होने पर आपके द्वारा किस प्रकार का कर्मकांड सिद्ध हो सकता है।
एक बच्चे के जन्म होने पर ईश्वर द्वारा तत्काल उसके आहार की व्यवस्था की जाती है तो फिर जीवन निर्वहन का भार सदा ईश्वर के पास ही रहने दें।
अथवा यदि ईश्वर के प्रति विश्वास नहीं है और ईश्वर से अवांछित रूप से जीवन निर्वहन का भार यदि स्वयं के अधीन करना चाहते हैं तो अन्य सेवावृत्ति ही करें ब्राह्मणकर्म को सेवावृत्ति बनाना शास्त्रोचित नहीं सिद्ध हो सकता, साथ ही यजमान को भी पुण्य कम पाप अधिक प्राप्त होता है, इसलिये यजमान भी इस विषय के प्रति सावधान होकर कर्मकांड में संग्लन होना चाहिये, शुभ कर्म करके भी पाप संग्रह करना बुद्धिमत्ता तो नहीं हो सकती।
बिंदु जी का एक प्रसिद्ध भजन है – “जीवन का मैंने सौंप दिया सब भार तुम्हारे हाथों में। उद्धार पतन अब मेरा है सरकार तुम्हारे हाथों में।” यद्यपि यह भाव भी तभी सिद्ध होता है जब जीवन निर्वहन का भार स्वयं के पास हो ये भार सदा ईश्वर के पास ही रहता है और इसी का प्रमाण है कि मनुष्य धन तो अर्जित कर लेता है किन्तु उसका उपभोग नहीं कर पाता अर्थात अर्जित धन से भी धर्म/सुख प्राप्त नहीं कर पाता अस्पतालों, विवादों आदि में ही व्यय करते हुये अशांत जीवन ही जीता है।
वातानुकूलित घर में मुलायम बिछावन, कई प्रकार की सुविधा युक्त पलंग उपलब्ध होने पर भी कभी चैन की नींद ले पाता। इसका कारण मात्र यही है कि जीवन-निर्वहन का भार यद्यपि ईश्वर के पास ही है तथापि भ्रमित मन यह आभास कराता है कि व्यक्ति के हाथों में है। ब्राह्मण को इस भ्रम से सर्वथा मुक्त रहना शास्त्रों में अनिवार्य कहा गया है।
इस विषय में कुछ ऐसा प्रश्न भी कर सकते हैं कि क्या आप व्यक्तिगत रूप से ऐसा करते हैं कर इसका उत्तर है हां, हमारे संपर्क में रहने वाले यजमान हमसे सेवकभाव की अपेक्षा नहीं रखते स्वयं में सेवकभाव रखते हैं और जब सार्वजनिक रूप से यह तथ्य प्रस्तुत कर सकता हूँ तो व्यक्तिगत रूप से यजमान को कैसे नहीं समझा सकता। होता तो ये है कि बहुत बातें व्यक्तिगत रूप से तो की जा सकती है किन्तु सार्वजनिक रूप से नहीं बोला जा सकता।
दूसरा तर्क ये भी दिया जा सकता है कि धनाभाव के कारण ब्राह्मण सेवक भाव से ग्रसित हो जाता है उसका उत्तर यह है कि यदि ब्राह्मण यदि सेवक भाव से ग्रस्त हो तो सेवावृत्ति ही करे ब्राह्मण कर्म सेवाग्रस्त होकर न करे। वर्त्तमान में मैं भी धनाभाव से ही पीड़ित हूँ तथापि सार्वजनिक रूप से शास्त्रोक्त तथ्य प्रस्तुत कर रहा हूँ। धनाभाव होने का तात्पर्य यह नहीं होता कि ब्राह्मणकर्म भी करें और शास्त्रउल्लंघन भी करें।
उपरोक्त तथ्य शास्त्रसम्मत हैं तथापि कुछ लोगों की भावना बहन आहत हो सकती हैं अतः उन ब्राह्मणों से सार्वजानिक रूप से क्षमायाचना भी करता हूँ और कुछ यजमान भी ऐसे होते हैं, होंगे तथापि उनको और दोष का भागी नहीं बनाना चाहता इसलिये उनसे क्षमायाचना नहीं कर सकता फिर भी यदि कोई ऐसे यजमान हों जिनको क्षमायाचना की ही अपेक्षा हो तो वो जिस प्रकार चाहें व्यक्तिगत या सार्वजनिक उस प्रकार क्षमायाचना के लिए प्रस्तुत रहूंगा। नास्तिकों या अधर्मियों के लिये इस आलेख में कोई विषय नहीं है।
फिर भी यदि किसी प्रकार की त्रुटि या अशास्त्रीय तथ्य हो तो उसके बारे में अवश्य अवगत करें उसमें पुनर्विचार पूर्वक सुधार किया जायेगा। त्रुटियों अथवा सुझाव देने के लिये हमारे व्हाटसप पर सन्देश प्रेषित करें : 7992328206
महामृत्युंजय जप करने की सम्पूर्ण विधि और जानकारी – mahamrityunjay jaap
महामृत्युंजय मंत्र का जाप कब करना चाहिए
महामृत्युंजय मंत्र का जाप कब करना चाहिए ? इस प्रश्न में दो प्रकार के भाव सन्निहित हैं प्रथम यह कि किस स्थिति में महामृत्युंजय जप कराना चाहिये और दूसरा यह कि महामृत्युंजय जप का समय/मुहूर्त क्या हो ?
जहां तक स्थिति संबंधी प्रश्न है तो ये आवश्यक नहीं की कोई विपरीत स्थिति उपस्थित हो तभी सवालाख महामृत्युंजय जप कराना चाहिये। स्थिति यदि अनुकूल हो और उसका अर्थ यही होता है कि आगे विपरीत स्थिति भी आने वाली है।
अतः अनुकूल स्थिति में भी आने वाली प्रतिकूलता के लिए अवश्य ही सवा लाख महामृत्युंजय जप का अनुष्ठान सतत करते रहना चाहिये। स्थिति प्रतिकूल होने पर तो करना ही चाहिये।
अनुकूल स्थिति में भी सवा लाख महामृत्युंजय जप करने का तात्पर्य यह होता है कि भविष्य की प्रतिकूलता उपस्थित होने पर स्वतः प्रयुक्त होगा और वर्तमान अनुकूलता की वृद्धि करेगा।
दूसरा भाव आरम्भ करने के मुहूर्त को लेकर है। अनुष्ठान आरम्भ मुहूर्त का विचार करके शुभ मुहूर्त में जप का आरम्भ करना चाहिये। भद्रा, अर्द्धप्रहरा आदि नहीं होना चाहिये। इसके साथ ही यदि किसी शिवालय में जप कर रहे हों अथवा घर में भी यदि शिव का आवाहन न करना हो तो शिववास की आवश्यकता नहीं होती। किन्तु यदि घर में जप करना हो और पार्थिव लिंगों में अथवा नर्मदेश्वर या अन्य शिव लिंग में यदि शिव का आवाहन भी करना हो तो शिववास का भी विचार करना चाहिये।
शिववास के संदर्भ में महत्वपूर्ण भाव यह है कि भगवान शिव का आवाहन किया जा रहा है या नहीं। यदि आवाहन नहीं किया जा रहा है तो शिववास देखने की आवश्यकता नहीं होती। इसी तरह सोमवार, त्रयोदशी, चतुर्दशी, श्रावण, आर्द्रागत सूर्य आदि में भी शिववास विचार करने की आवश्यकता नहीं होती।
- शुभ तिथि : द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, पूर्णिमा। यदि शिववास विचार करना आवश्यक हो तो तदनुसार तिथि ग्रहण किया जा सकता है।
- शुभ नक्षत्र : अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उत्तरा, हस्त, चित्रा, स्वाती, अनुराधा, मूल, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा और रेवती। शिववास विचार करने पर भी नक्षत्र का विचार करना आवश्यक।
- शान्त्यर्थ शुभवार : रविवार, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार।
महामृत्युंजय जप हेतु उपरोक्त शुभमुहूर्त विचार तब करना चाहिये जब तत्काल आवश्यकता न हो। यदि अस्वथ व्यक्ति के लिये महामृत्युंजय जप कराना हो तो उस समय मुहूर्त का विशेष विचार अपेक्षित नहीं होता।
F & Q ?
प्रश्न : महामृत्युंजय मंत्र कहाँ से लिया गया है?
उत्तर : महामृत्युंजय मंत्र वेद से लिया गया है। महामृत्युंजय मंत्र चारों वेदों में पाया जाता है।
प्रश्न : सवा लाख जाप के लिए कितनी माला करनी होती है?
उत्तर : सवा लाख जाप के लिए 1250 माला जप करना होता है। कुछ लोग माला के अतिरिक्त 8 मनके की भी गिनती करते हैं किन्तु एक माला में 108 मनके होने पर भी एक सौ ही गिनती करनी चाहिये न कि 108 .
प्रश्न : घर में महामृत्युंजय जाप करने से क्या होता है?
उत्तर : घर में महामृत्युंजय जाप करने से अनिष्टकारी तत्वों, दृष्टिदोषों, वास्तुदोष जनित अनिष्ट आदि का निवारण होता है। सुख, शांति, आरोग्य आदि की वृद्धि होती है। आरोग्य वृद्धि होने से स्वतः धन व्यय कम हो जाता है।
प्रश्न : महामृत्युंजय मंत्र कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर : मूल महामृत्युंजय मंत्र एक ही है किन्तु विभिन्न संख्या में प्रणव प्रयुक्त होने पर कई प्रकार देखे जाते हैं। इसके साथ ही जिसका वेद मंत्र में अधिकार न हो उसके लिये पुराणोक्त महामृत्युंजय मंत्र भी एक प्रकार होता है।
प्रश्न : कौन सा मंत्र जल्दी सिद्ध होता है?
उत्तर : जो मंत्र गुरु से प्राप्त होता है वह मंत्र शीघ्र ही गुरुकृपा से सिद्ध होता है। अन्य मंत्र भी पुस्तकों में देखकर विधि जानकर जप करने से सिद्ध नहीं होता। मंत्र सिद्धि के लिये मंत्र की प्राप्ति आवश्यक है और मंत्र प्राप्ति की विधि पुस्तकों में पढ़ना नहीं गुरुमुखी होना है।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।