विवाह पद्धति | विवाह विधि और मंत्र | जयमाला विधि सहित – वाजसनेयी – vivah vidhi

विवाह पद्धति | विवाह विधि और मंत्र | जयमाला विधि सहित – वाजसनेयी – vivah vidhi

सूर्य/ध्रुव देखना

वधू यदि दिन हो अर्थात दिवा विवाह हो तो सूर्य और रात हो तो ध्रुव दर्शन करे। दिन में वर कहे : “ॐ सूर्यमुदीक्षस्व” यदि रात हो तो कहे : “ॐ ध्रुवमुदीक्षस्व” वर के उपरोक्त सम्बोधन के बाद वधू सूर्य अथवा ध्रुव का दर्शन करके पश्यामि कहे, फिर अगली ऋचा पढ़े :

  • सूर्य दर्शन (दिन हो तो) : ॐ तच्चक्षुर्द्देवहितं पुरस्ता च्छुक्रमुच्चरत्। पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शत ᳪ शृणुयाम शरदः शत प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् ॥
  • ध्रुव दर्शन (रात हो तो) : ॐ ध्रुवमसि ध्रुवं त्वा पश्यामि ध्रुवैधिपोष्ये मयि । मह्यम् त्वादाद् बृहस्पतिर्मया पत्या प्रजावती सञ्जीव शरदः शतम् ॥

पुनः इस मंत्र से वधू को अभिमंत्रित करे : ॐ सुमङ्गलीरियं वधूरिमा ᳪ समेत पश्यत । सौभाग्यमस्यै दत्त्वा याथास्तं विपरेत न ॥

(यहां पर एक विधि “ॐ इह गावो” मंत्र से गुप्तगृह में वधू को अणियाँ बड़द के लाल चर्म पर बैठाने की विधि भी देखी जाती है)

  • स्विष्टकृद्धोम : ब्रह्मणान्वारब्ध पूर्वक स्रुवा में आज्य लेकर स्विष्टकृद्धोम करे : ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदं अग्नयेस्विष्टकृते ॥
  • संसव प्राशन : प्रोक्षणी में प्रक्षिप्त आहुति अवशेष आज्याहुति का अनामिका और अंगुष्ठ से प्राशन करे ।
  • आचमन : फिर २ आचमन करे ।
  • ब्रह्म दक्षिणा (पूर्णपात्र) : ॐ अद्य कृतैतत् विवाहाङ्गभूत होमकर्मणि कृताकृतावेक्षणरूप ब्रह्मकर्मप्रतिष्ठार्थमिदं पूर्णपात्रं प्रजापति दैवतम् …..गोत्राय ……शर्मणे ब्राह्मणाय ब्रह्मणे दक्षिणां तुभ्यमहं सम्प्रददे । ब्रह्मा को पूर्णपात्र प्रदान करे, ब्रह्मा ॐ स्वस्ति कहकर ग्रहण करे । फिर दाहिना हाथ पकरकर ब्रह्मा को प्रदक्षिणक्रम से उठाए । यदि कुशात्मक ब्रह्मा हों तो यह मंत्र पढे – ॐ अद्य कृतैतत् विवाहाङ्गभूत होमकर्मणि कृताऽकृताऽवेक्षणरूप ब्रह्मकर्मप्रतिष्ठार्थमिदं पूर्णपात्रं प्रजापतिदैवतं ब्रह्मणे दक्षिणा नमः ॥ पूर्णपात्र दक्षिणा देकर कुशात्मक ब्रह्मा की ग्रंथि खोल दे ।
  • प्रणीताविमोक : प्रणीता को अपने आगे अग्नि के पश्चिमभाग में रखकर पवित्री-उपयमन कुशादि धारणपूर्वक इस मंत्र द्वारा सिर को सिक्त करे – ॐ सुमित्रिया न आप ओषधयः सन्तु ॐ आपः शिवाः शिवतमा: शान्ताः शान्ततमास्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम् ॥ फिर इस मंत्र से प्रणीता को ईशानकोण में न्युब्ज कर केवल जल गिराए, प्रणीता को पृथ्वी पर उल्टा न रखे केवल जल गिराकर सीधा ही रखे ।
  • बर्हिहोम : परिस्तरण वाले कुशाओं को उठाकर मोड़ते हुए छोटा गट्ठर (पुल्ली) बनाकर घृताक्त करके इस मंत्र से अग्नि में त्याग करे – ॐ देवा गातु विदो गातु वित्वा गातुमित मनसस्पत इमं देव यज्ञ स्वाहा वातेधाः स्वाहा ॥
  • भस्म धारण : स्रुव के पृष्ठभाग में ईशान कोण से भस्म ग्रहण कर पवित्री द्वारा प्रणीतोदक से सिक्त करके क्रमशः ललाट, कण्ठ, दक्षिणबाहु और हृदय पर लगाए – ॐ त्र्यायुषम्जमदग्नेः (ललाट पर) । ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषं (कंठ में) । ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषं (दक्षिण बाहु पर) । ॐ तन्नोऽअस्तु त्र्यायुषं (हृदय में) । पुनः वधू को भी भस्म लगाये : ॐ त्र्यायुषम्जमदग्नेः (ललाट पर) । ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषं (कंठ में) । ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषं (दक्षिण बाहु पर) । तत्तेऽअस्तु त्र्यायुषं (हृदय में) ।

सिंदूरदान : तत्पश्चात देशाचार विधि से सिंदूरदान करे व सौभाग्यवती स्त्रियां सुहाग दे।

दक्षिणा : विवाह की दक्षिणा वर ही दे और इसी कारण मड़वा खर्च आदि रूप से पूर्व में ही वर पक्ष से द्रव्य लेने का व्यवहार भी प्राप्त होता है। त्रिकुशहस्त वर तिल, जल, दक्षिणा द्रव्य लेकर पढ़े : ॐ अद्य कृतैतत् विवाहकर्म प्रतिष्ठार्थं एतावद्द्रव्यमूल्यकहिरण्यं अग्निदैवतं यथानामगोत्रायब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे ॥

  • छायापात्र दान विधि – तिलपुञ्ज पर छायापात्र (कांस्यपात्र) स्थापित करके गोघृत (द्रवित) भरे फिर उसमें मुखावलोकन करे – ॐ आज्यं सुराणामाहारमाज्यं पापहरं परम् । आज्यमध्ये मुखं दृष्ट्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ घृतं नाशयते व्याधि घृतञ्च हरते रुजम् । घृतं तेजोऽधिकरणं घृतमायुः प्रवर्द्धते ॥ इस प्रकार मुखावलोकन करके स्वर्ण या पञ्चरत्न प्रक्षेप करे । छायापात्र पर ३ बार पुष्पाक्षत छिड़के – ॐ छायापात्राय नमः ॥३॥ फिर ३ बार उत्तराग्र कुशा (त्रिकुशा) पर छिड़के – ॐ ब्राह्मणाय नमः ।।३।। जल से सिक्त करे।
  • छायापात्र उत्सर्ग – ॐ अद्य …….. गोत्रोत्पन्नः ……… शर्माऽहं आयुरारोग्यप्राप्त्यर्थं श्री …….. देवताप्रीत्यर्थं च इदं स्वछायावलोकितंघृतपूरितंकांस्यपात्रं चन्द्रप्रजापतिबृहस्पति दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय अहं ददे॥ पूर्वपूजित त्रिकुशा पर छोड़ दे ।
  • छायापात्र दान दक्षिणा – ॐ अद्य कृतैतच्छायापात्र दान प्रतिष्ठार्थं एतावद्द्रव्यमूल्यकहिरण्यं अग्निदैवतं यथानामगोत्रायब्राह्मणाय दक्षिणां दातुमहमुत्सृजे ॥

॥ इति पं० दिगम्बर झा सुसम्पादितं “करुणामयीटीकाऽलंकृतं” जयमालाविधिसमाहितं वाजसनेयिनां विवाहविधिः ॥

दूर्वाक्षत मंत्र : ॐ आब्रह्मन ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यौऽतिव्याधि महारथो जायताम दोघ्री धेनुर्वोढा नड्वानाशुः सप्ति पुरन्ध्रिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवाऽस्य यजमानस्य वीरोजायाताम। निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न औषधयः पच्यन्ताम योगक्षेमोनः कल्पताम् ॥ मंत्रार्था: सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रुणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव ॥

विवाह में दान-दक्षिणा विशेष : यदि अतिरिक्त कर्मकाण्डी (विद्वान ब्राह्मण) उपस्थित न हों तो कोई विचार ही नहीं सभी सामग्री – गोदान, छाया पात्र, पूर्णपात्र, दक्षिणा आदि पुरोहित का ही होता है, किन्तु यदि विशेष विद्वान आचार्य (कर्मकाण्डी) आमंत्रित हों तो भी पुरोहित का ही अधिकार होता है। विशेष विद्वान आचार्य के लिये अतिरिक्त वरण और दक्षिणा का उत्तरदायित्व आमंत्रित करने वाले कन्या पक्ष का होता है।

धूआ-पानी, जयमाला विधि आदि कई महत्वपूर्ण विधियों को समाहित करने से उपरोक्त विवाह विधि विशेष उपयोगी सिद्ध होती है। तथापि विभिन्न कारणों से त्रुटियां सदा संभावित रहती है। किसी भी प्रकार का त्रुटि मिलने पर अथवा सुझाव देने के लिये व्हाटसप पर सन्देश भेजें : 7992328206.

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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