माता लक्ष्मी वर्ष में दो बार भ्रमण करती है और कहां वास करना चाहिये घरों का चयन करती है। एक बार दो दीपावली की रात्रि में भ्रमण करती है यह सभी जानते हैं किन्तु उससे पहले भी शरद पूर्णिमा की रात्रि को भ्रमण करती है और कौन जाग रहा है “कोजागर्ति” यह देखती है। “कोजागर्ति” के कारण ही इसका एक नाम कोजागरा भी है। इस आलेख में यह बताया गया है कि 2024 में कोजागरा कब है। Kojagra kab hai के साथ ही कोजागरा पूजा विधि और मंत्र भी दिया गया है।
कोजागरा व्रत : कोजागरा कब है – Kojagara kab hai 2024
“जो जागे सो पावे जो सोवे सो खोवे” वाली कहावत अन्य जगहों पर मात्र उदाहरण देने के लिये, समझाने हेतु; इत्यादि भाव से किया जाता है किन्तु दो दिन चरितार्थ होती है वो दो दिन है कोजागरा और दीपावली। दीपावली चरितार्थ होने से संबंधित चर्चा तो दीपावली वाले आलेखों में की गयी है जिसे यदि पढ़ना चाहें तो आगे उसका भी लिंक दिया गया है और क्लिक करके पढ़ सकते हैं। :- “घर में लक्ष्मी कब आती है ?“ यहां कोजागरा संबंधी चर्चा की जा रही है और कोजागरा में भी लगभग उसी प्रकार का प्रमाण प्राप्त होता है।
कोजागरा का तात्पर्य
- तिथितत्व – निशीथे वरदा लक्ष्मीः को जागर्तीति भाषिणी । तस्मै वित्तं प्रदास्यामि अक्षैः क्रीडां करोति यः॥
- प्राणतोषिणी तन्त्र – नारिकेलोदकं पीत्वा अक्षैर्जागरणं निशि । तद्विभूतिं प्रयच्छामि को जागर्ति महीतले ॥
प्रथम प्रमाण का भाव है : निशीथ काल (शरद पूर्णिमा की मध्य रात्रि) में वरदायिनी लक्ष्मी जो “कोजागर्ति भाषिणी” है अर्थात कौन जगा हुआ है यह बोलने वाली, उसी को वित्त (धन) प्रदान करूंगी जो जगा हो अक्षक्रीड़ा कर रहा हो; ऐसे भाव के साथ विचरण करती है।
द्वितीय प्रमाण का भाव है : पृथ्वी पर नारिकेलोदक (नारियल का पानी) पीकर अक्षक्रीड़ा करते हुये जो रात्रिजागरण करता है; उसे ही विभूति प्रदान करूंगी।
- कोजागरा निर्णय
- कोजागरा कब है
- कोजागरा के विशेष नियम
- भविष्य पुराण : दिवा तत्र न भोक्तव्यं मनुष्यैश्च विवेकिभिः । प्रदोषसमये लक्ष्मीं पूजयित्वा ततः क्रमात् ॥
- लिङ्गपुराण : कौमुद्यां पूजयेल्लक्ष्मीमक्षैर्जागरणं चरेत् । निशीथे वरदा लक्ष्मीः को जागर्तीति भाषिणी ॥ तस्मै वित्तं प्रयच्छामि ह्यक्षैः क्रीडां करोति यः ॥
कोजागरा व्रत के लिये प्रदोष और निशीथकाल दोनों में जिस दिन पूर्णिमा व्याप्त हो उसी दिन कोजगरा होता है। यदि दोनों में से किसी भी दिन प्रदोष व्यापिनी न हो तो प्रथम दिन का निशीथ व्यापिनी ग्राह्य होता है।
- 2024 में 16 अक्टूबर, बुधवार को रात्रि 8:40 बजे पूर्णिमा आरंभ
- 17 अक्टूबर, गुरुवार सायाह्न 4:55 बजे पूर्णिमा समाप्त।
इस प्रकार 2024 में में 16 अक्टूबर, बुधवार को ही प्रदोष व निशीथ उभयव्यापिनी पूर्णिमा प्राप्त होती है और प्रमाणों के अनुसार 2024 में इसी दिन कोजागरा है।
उपरोक्त प्रमाणों से कोजागरा के संबंध में तीन विशेष तथ्य प्राप्त होते हैं :
- उपवास पूर्वक नारिकेलोदक पीना।
- निशाजागरण करना अर्थात रात में जगना।
- अक्षक्रीडा करना, चौसर आदि का खेल।
कोजागरा पूजा विधि
यद्यपि ऐसा भी पाया जाता है कि कोजागरा को मात्र नवदम्पति से जोड़कर देखा जाता है और सर्वत्र किया भी नहीं जाता है। किन्तु जहां किया जाता है वहां इस प्रकार की भ्रांतियां नहीं रहनी चाहिये। ये मात्र नवदम्पत्ति के लिये नहीं अपितु सभी सक्षम व्यक्तियों के लिये कर्तव्य है, मात्र बालक, वृद्ध, रोगी व मूर्खों को छोड़कर।
- जिस प्रकार दीपावली को घर व आस-पास के मार्गों को भी स्वच्छ किया जाता है उसी प्रकार कोजगरा में भी स्वच्छ करना चाहिये क्योंकि लक्ष्मी को स्वछता प्रिय है।
- लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिये शारीरिक स्वछता, गन्धादि द्रव्यों का प्रयोग करना, सुंदर वस्त्राभूषण धारण करना यह भी आवश्यक होता है।
- कोजागरा के दिन भोजन न करे, किन्तु जैसा कि प्रमाण में प्राप्त होता है नारिकेलोदक पीने का अतः नारिकेलोदक पीये।
- पूजा प्रदोष काल में करे।
- पूजा स्थान पर पूजा की सभी व्यवस्था करके प्रथमतः गृह द्वार के ऊपरी भाग में हव्यवाहनादि की पूजा करे।
- तत्पश्चात जिसे गज हो वह विनायक की, जिसे अश्व हो वह रेमन्त की और जिसे गो हो वह सुरभि की पूजा करे।
संकल्प
सर्वप्रथम पवित्रीकरणादि कर ले, तत्पश्चात जिसे गज हो वह विनायक की, जिसे अश्व हो वह रेमन्त की और जिसे गो हो वह सुरभि की पूजा करके पूजा स्थान पर जाये और त्रिकुशा, तिल, जल, संकल्प द्रव्यादि लेकर संकल्प करे :
ॐ अस्यां रात्रौ आश्विने मासि शुक्ले पक्षे पश्चदश्यां तिथौ ……… गोत्रस्य ……… शर्मणो मम सकल- दुःख दारिद्र्यनिरासपूर्वक दीर्घायुरारोग्य पुत्रपौत्रमहैश्वर्य सुखसम्पदभिवृद्धि कुलाभ्युदयाद्यभीष्ट सिद्धिपूर्वक लक्ष्मीन्द्र प्रीतिकामनयाऽङ्गदेवता पूजा पूर्वक लक्ष्मीन्द्रकुबेर पूजनमहं करिष्ये ॥
द्वारोर्ध्व भित्ति पूजन
संकल्प करने के पश्चात् द्वार के पास जाकर जल से द्वार का अभिसिंचन करे फिर द्वारभित्ति और द्वारदेवता का पूजन करे। पूजा के नाम मंत्र :
- ॐ द्वारोर्ध्वभित्तिभ्यो नमः ॥
- ॐ द्वारदेवताभ्यो नमः ॥
तत्पश्चात पूजा स्थान पर आकर वास्तु आदि का आवाहन-पूजन करे :
- वास्तु – ॐ वास्तुपुरुषाय नमः ॥
- हव्यवाहन – ॐ हव्यवाहनाय नमः ॥
- पूर्णेन्दु – ॐ पूर्णेन्दवे नमः ॥
- सभार्यरुद्र – ॐ सभार्यरुद्राय ॥
- स्कन्द – ॐ स्कन्दाय नमः ॥
- नन्दीश्वरमुनि – ॐ नन्दीश्वरमुनये नमः ॥
- सुरभि – ॐ सुरभ्यै नमः ॥
- निकुम्भ – ॐ निकुम्भाय नमः ॥
लक्ष्मीपूजा
सर्वप्रथम पुष्पादि लेकर लक्ष्मी का ध्यान करे :
ॐ या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी
गम्भीरावर्त्तनाभिः स्तनभरनमिता शुभ्रवक्षोत्तरीया ।
लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रेर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः
नित्यं सा पद्महस्ता वसतु मम गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥
आवाहन : ॐ भूर्भुवः स्वर्लक्ष्मि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
आवाहन करने के पश्चात् विवध उपचारों द्वारा लक्ष्मी की पूजा करे :
- जल : एतानि पाद्यार्घ्याचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- गंध : इदमनुलेपनम् ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- सिन्दूर : इदं सिन्दूरम् ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- अक्षत : इदमक्षतं ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- पुष्प : ॐ मन्दारपारिजाताद्यैरनेकैः कुसुमैः शुभैः । पूजयामि शिवे भक्त्या कमलायै नमो नमः ॥ एतानि पुष्पाणि ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥ तीन बार पुष्पांजलि अर्पित करे।
- रक्तवस्त्र : इदं रक्तवस्त्रं ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- बिल्वपत्र : इदं बिल्वपत्रम् ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- माला : इदं माल्यम् ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- धूप : एष धूपः ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- दीप : एष दीपः ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- नैवेद्य : एतानि नानाविधनैवेद्यानि ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- जल : इदमाचमनीयम् ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- फल : एतानि नानाविधपकान्नसहितनारिकेलोदकसहितनानाफलानि ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- ताम्बूल : एतानि ताम्बूलादीनि ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- जल : इदमाचमनीयम् ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
पुष्पाञ्जलि – अगले मंत्र से तीन बार पुष्पांजलि प्रदान करे :
नमस्ते सर्वभूतानां वरदासि हरिप्रिये । या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्वदर्चनात् ॥ एष पुष्पाञ्जलिः ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
- प्रार्थना : ॐ रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे। धर्मान् देहि धनन्देहि सर्वान् कामान् प्रदेहि मे ॥
- प्रणाम : ॐ विश्वरूपस्य भार्यासि पद्मे पद्मालये शुभे । सर्वतः पाहि मां देवि महालक्ष्मि नमोस्तु ते ॥
तत्पश्चात इंद्र और कुबेर का आवाहन करके गंधादि से पूजन करे, नीचे आवाहन और पूजा का नाममंत्र दिये गये हैं :
- इन्द्र पूजन
- कुबेर पूजन
- आवाहन मंत्र : ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्र इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पूजन नाममंत्र : ॐ इन्द्राय नमः ॥
- आवाहन : ॐ भूर्भुवः स्वः कुबेर इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पूजन नाममंत्र : ॐ कुबेराय नमः ॥
विसर्जन : ॐ यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् । इष्टकामप्रसिद्धयर्थं पुनरागमनाय च ॥
- ॐ पूजितदेवताः पूजिताःस्थ क्षमध्वं स्वस्थानं गच्छत ॥
- ॐ श्रीर्मयि रमस्व॥
दक्षिणा : विसर्जन करने के पश्चात् त्रिकुशा, तिल, जल, दक्षिणाद्रव्य लेकर दक्षिणा करे :
ॐ अद्य कृतैतदङ्गदेवता पूजाप्पूर्वकश्रीमहालक्ष्मी पूजन कर्मप्रतिष्ठार्थमेतावद्रव्यमूल्यक हिरण्यमग्निदैवतं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे ॥ ॐ स्वस्तीति प्रतिवचनम् ॥
तत्पश्चात नारिकेलजल, प्रसाद आदि ग्रहण करे। बांधवादि सहित भोजन करे। अक्षक्रीडा करे। निशाजागरण करे।
॥ इति कोजागरालक्ष्मीपूजा समाप्ता ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।