पञ्चद्वयद्रिकृताष्टरामरसभूयामादिघट्यः शराः ।
विष्टेरास्यमसद्गजेन्दुरसारामाद्र्यश्विबाणाब्धिषु ॥
यामेष्वन्त्यघटीत्रयं शुभकरं पुच्छं तथा वासरे ।
विष्टिस्तिथ्यपरार्धजा शुभकरी रात्रौ च पूर्वार्धजा ॥
भद्रा वास विचार
भद्रा विचार करने के लिये एक और विशेष महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भद्रा हमेशा पृथ्वी पर वास नहीं करती है और जब पृथ्वी पर भद्रा का वास होता है तभी पृथ्वीवासियों के लिये फल कारक होती है अन्यथा नहीं। भद्रा का वास कहां है इसका विचार उस दिन की चन्द्र राशि के आधार पर किया जाता है :-
कुम्भकर्कद्वये मर्त्य स्वर्गेऽब्जेऽजात्त्रयेऽलिगे । स्त्रीधनुर्जूकनक्रेऽधो भद्रा तत्रैव तत्फलम् ॥
- कुम्भ, मीन, कर्क और सिंह राशि में चन्द्रमा हों तो भद्रा मनुष्य-लोक (मर्त्यलोक) में स्थित रहती है ।
- मेष, वृष, मिथुन और वृश्चिक में चन्द्रमा विद्यमान रहे तो स्वर्ग में एवं
- कन्या, धनु, तुला व मकर राशि के चन्द्रमा हो तो भद्रा पाताल-लोक में वास करती है ।
- भद्रा का जिस लोक में वास हो उसका फल भी उसी लोक में प्रभावी होता है।
कल्याणकारी भद्रा
ज्योतिष शास्त्र प्रमाण : दिवा भद्रा यदा रात्रौ-रात्रि भद्रा यदा दिवा। न तत्र भद्रा दोषः स्यात्सा भद्रा भद्रदायिनी ॥ बृहददैवज्ञ रंजन ॥ –“चण्डेश्वर” के इस प्रमाण से यह स्पष्ट होता है कि दिवा और रात्रि भेद से यदि भद्रा विपरीत क्रम में विद्यमान हो तो वह कल्याण कारिणी हो जाती है।
इस प्रकार भद्रा के तीन परिहार बताये गये हैं :
- भद्रा की प्रारंभ 5 घटियां मुख, पुनः 1 घटी ग्रीवा या गला, 11 घटी वक्ष, 4 घटियां नाभि, 6 घटियां कटि (कमर) तथा अंतिम 3 घटियां पुच्छ की हैं। पुच्छ की तीन घटियों में कार्य की सिद्धि होती है अर्थात भद्रा का दोष नहीं होता है।
- दूसरे परिहार में भद्रा वास का विचार किया जाता है। कुम्भ, मीन, कर्क और सिंह राशि में चन्द्रमा हों तो भद्रा मनुष्य-लोक (मर्त्यलोक) में स्थित रहती है । अन्य राशियों की भद्रा का वास स्वर्ग या पाताल में होता है और जो भद्रा का शुभाशुभ फल भी वहीं घटित होता है।
- तीसरे परिहार में ऐसा प्रमाण है कि यदि दिवा भद्रा रात्रि में हो और रात्रि भद्रा दिन में हो तो यह विपरीत क्रम होता है और विपरीत फल भी होता है अर्थात अशुभ होने पर भी शुभद होता है।
भद्रा में वर्जित कार्य
भद्रा के तीनों परिहार दो कार्यों का त्याग करके ही किया जाता है। परिहार का विचार रक्षाबंधन और होलिका दहन में नहीं किया जा सकता। होलिका दहन रात्रि में ही किया जाना होता है अतः यदि भद्रारहित काल न मिले तो होलिका में भी पुच्छ भाग वाला परिहार ग्राह्य होता है।
जितने भी शुभ कार्य होते हैं भद्रा विचार सबमें करना चाहिए किन्तु दो विशेष कार्य हैं जिसमें भद्रा विचार न करके सम्पूर्ण भद्रा त्याज्य कहा गया है :-
भद्रायां द्वे न कर्तव्ये, श्रावणी फाल्गुनी तथा । श्रावणी नृपतिं हन्ति, ग्रामं दहति फाल्गुनी ॥
भद्रा में श्रावणी (रक्षाबन्धन आदि) और फाल्गुनी (होलिका दाहादि) नहीं करे। क्योंकि भद्रा में श्रावणी करने से राजाओं का नाश और फाल्गुनी करने ग्राम में अग्निभय होता है ।
भद्रा में वर्जित वर्णन करते हुए दो कार्यों का ही निषेध किया गया है – श्रावणी व फाल्गुनी, इस कारण भद्रा व्याख्या करते समय अल्पज्ञ मात्र इन्हीं दोनों में त्याज्य कहते हैं अन्य किसी कार्य में नहीं। किन्तु इन दोनों का ही पृथक उल्लेख करने का अलग तात्पर्य (अर्थ) है।
अन्य सभी कार्यों में भद्रा विचार के जो-जो नियम बताये गये हैं उसके अनुसार विचार करे; जैसे :
- भद्रा का वास कहां है, यदि पृथ्वी पर है तभी प्रभावी होना संभव है । स्वर्ग या पाताल में वास हो तो पृथ्वी के लिए निष्प्रभावी।
- दिवा भद्रा यदि दिन में हो और रात्रि भद्रा रात में हो तभी अशुभ है। इसका विपरीत होने पर शुभ ही है।
- यदि अशुभ फल सिद्ध हो रहा हो तो भी मुख्य रूप से मुख ही त्याज्य है, पुच्छ फिर भी शुभद है।
ये सभी भद्रा विचार है और सभी प्रकार के शुभ कार्यों में विचारणीय है। फिर प्रश्न यह है कि केवल श्रावणी और फाल्गुनी को भद्रा में क्यों निषिद्ध बताया गया है?
इसका उत्तर यह है कि श्रावणी और फाल्गुनी में भद्रा विचार का उपरोक्त कोई नियम प्रभावी/मान्य नहीं है। ये दोनों कार्य भद्रा में पूर्णतः निषिद्ध हैं। भले ही भद्रा वास स्वर्ग में या पाताल में क्यों न हो….. ।
भद्रा कैसे देखते हैं
भद्रा देखने के लिये पंचांग की आवश्यकता होती है। पंचांग के तिथि, दिन, नक्षत्र, योग और करण ये पांच अंग हैं जो सभी पंचांगों में दिये जाते हैं और जिसमें ये पांचों अंग न हो उसे पंचांग नहीं कहा जा सकता।
- पंचांग में करण को ढूंढें।
- जिस दिन विष्टि करण मिले उसी दिन भद्रा समझें।
- विष्टि करण ही भद्रा कहलाती है।
भद्रा काल क्या होता है
विष्टि करण के आरम्भ से समाप्त होने तक का पूरा समय भद्रा काल होता है। इसमें मुख, गला आदि अन्य विभाग किये जाते हैं जिसकी चर्चा पहले की जा चुकी है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।