मूल शांति पूजन विधि - mool shanti puja vidhi

मूल शांति पूजन विधि – mool shanti puja vidhi

मूल शांति पूजन विधि – mool shanti puja vidhi : मूल सत्ताईस नक्षत्रों में से एक नक्षत्र का नाम है और सम्पूर्ण मूल को ही दोषद कहा गया है। गण्डान्त नक्षत्रों में से सर्वाधिक दोषद होने के कारण मूल में जन्म होने पर दोष की विधि पूर्वक शांति की जाती है जिसे मूल शांति कहा जाता है। किन्तु मूल शांति का तात्पर्य मात्र मूल नक्षत्र की शांति नहीं होती है, क्योंकि अन्य दोषद नक्षत्रों में जन्म होने पर भी एक ही विधि से शांति होती है मात्र नक्षत्र जप-पूजा-हवन-मंत्र में परिवर्तन होता है।

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एकादशी उद्यापन की दान विधि और मंत्र

एकादशी उद्यापन की दान विधि – Dan ki vidhi aur mantra

एकादशी उद्यापन की दान विधि – एकादशी व्रत की भी पूर्णता हेतु उद्यापन करने की एक विस्तृत विधि है और पूर्व आलेख में एकादशी उद्यापन की शास्त्र-सम्मत विधि दी गयी है एवं उसे सरल रूप से समझाया भी गया है। उद्यापन में पूजा-कथा-हवन आदि के साथ मुख्य विषय दान होता है। इस आलेख में एकादशी उद्यापन में दान करने की विधि और मंत्र दिया गया है।

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एकादशी उद्यापन विधि - एकादशी व्रत उद्यापन करने की संपूर्ण विधि और मंत्र

एकादशी उद्यापन विधि – Ekadashi Udyapan Vidhi

यद्यपि पद्धतियों में नवग्रह-दिक्पाल आदि का पूजन करके प्रधानपूजन देखने को मिलता है तथापि कर्मकांड अनुक्रमणिका के अनुसार प्रथम प्रधानवेदी पूजन व प्रधान पूजा करने के एकादशी उद्यापन विधि – Ekadashi Udyapan Vidhi : पश्चात् नवग्रह मंडल पूजन की सिद्धि होती है। यदि क्रम का विशेष निर्वहन करना हो तो प्रथम अग्निस्थापन करके तब प्रधानपूजन व नवग्रह मंडल पूजन करे।

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केतु शांति विधि

केतु शांति के उपाय | केतु शांति पूजा : ketu shanti ke upay 11th

केतु शांति के उपाय | केतु शांति पूजा : ketu shanti ke upay : केतु को क्रूर, पाप ग्रह कहा जाता है और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसे भी अशुभ कर देता है। केतु को छायाग्रह भी कहा जाता है क्योंकि इसका कोई पिंड नहीं है यह वास्तव में एक बिंदु है, जिस प्रकार सूर्य और चंद्र मार्ग का एक संक्रमण बिंदु राहु है उसी प्रकार दूसरा संक्रमण बिंदु केतु है। इस आलेख में केतु शांति विधि दी गयी है।

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राहु शांति विधि

राहु शांति के उपाय | राहु शांति पूजा : Rahu shanti ke upay 10th

राहु शांति के उपाय | राहु शांति पूजा : Rahu shanti ke upay : राहु को क्रूर, पाप ग्रह कहा जाता है और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसे भी अशुभ कर देता है। राहु को छायाग्रह भी कहा जाता है क्योंकि इसका कोई पिंड नहीं है यह वास्तव में एक बिंदु है जो सूर्य और चंद्र मार्ग का संक्रमण स्थल है।

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शनि शांति के उपाय | शनि शांति मंत्र : Shani shanti ke upay

शनि शांति के उपाय | शनि शांति मंत्र : Shani shanti ke upay – 9th

शनि शांति के उपाय | शनि शांति मंत्र : Shani shanti ke upay : शनि को क्रूर, पाप ग्रह कहा जाता है और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसे भी अशुभ कर देता है। तथापि शनि की जिस भाव में स्थिति होती है उस भाव संबंधी फल के लिये शुभद माना जाता है। शनि की दृष्टि में ही वास्तविक अशुभ फल का प्रभाव बताया गया है।

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शुक्र शांति विधि

शुक्र शांति के उपाय | शुक्र शांति मंत्र : Shukra shanti ke upay 8th

शुक्र शांति के उपाय | शुक्र शांति मंत्र : Shukra shanti ke upay – शुक्र को सौम्य, शुभ ग्रह कहा जाता है और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसे भी शुभद कर देता है। तथापि असुर गुरु होने के कारण शुक्र विलासिता के कारक होते है, सर्वाधिक पाप विलासिता हेतु ही किये जाते हैं। इस आलेख में शुक्र शांति विधि दी गयी है। शुक्र शांति विधि का तात्पर्य शास्त्रोक्त विधान से शुक्र के अशुभ फलों की शांति करना है।

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गुरु शांति विधि

गुरु शांति के उपाय | गुरु शांति मंत्र : Guru Shanti Mantra – 7th

गुरु शांति के उपाय (Guru Shanti) : गुरु को सौम्य, शुभ ग्रह कहा जाता और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसे भी शुभद कर देता है। गुरु की दृष्टि शुभद है किन्तु उपस्थिति अशुभ है, जिस भाव में गुरु स्थित होता है उस भाव संबंधी फलों का ह्रास करता है। इस आलेख में गुरु शांति विधि दी गयी है।

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बुध शांति विधि, बुध शांति के उपाय

बुध शांति के उपाय | बुध शांति मंत्र – Budh shanti 6th

बुध शांति के उपाय | बुध शांति मंत्र – Budh shanti : नवग्रहों में बुध का चौथा क्रम आता है। जैसे सूर्य, चंद्र और बुध की शांति विधि मिलती है उसी प्रकार बुध के लिये भी शांति विधि प्राप्त होती है। बुध को सौम्य, सम ग्रह कहा जाता और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसके अनुसार फलदायी होता है। इस आलेख में मंगल शांति विधि दी गयी है। बुध शांति विधि का तात्पर्य शास्त्रोक्त विधान से बुध के अशुभ फलों की शांति करना है।

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विजयादशमी : दुर्गा विसर्जन, अपराजिता पूजा

विजयादशमी : दुर्गा विसर्जन, अपराजिता पूजा

विजयादशमी : दुर्गा विसर्जन, अपराजिता पूजा : आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होने वाली शारदीय नवरात्रि आश्विन शुक्ल दशमी को संपन्न होती है। आश्विन शुक्ल दशमी को विजयादशमी भी कहा जाता है, दशहरा भी कहा जाता है और यात्रा भी। विजयादशमी के दिन भगवती दुर्गा, कलश आदि का विसर्जन किया जाता है, अपराजिता पूजा की जाती है, जयंती धारण किया जाता है।

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