
फलाधिवास विधि – प्राण प्रतिष्ठा विधि
संकल्प मंत्र : ॐ अद्यादि ……………………… प्रतिष्ठाङ्गगत्वेन प्रतिमासंशुद्ध्यर्थं ममगृहे प्रचुरधान्यपुत्र-पौत्रादिसुखसम्पत्यादि अभिवृद्धयर्थं फलाधिवासं करिष्ये ॥
सम्पूर्ण सृष्टि देवताओं द्वारा संचालित होती है। जीवन में शांति और आत्मकल्याण हेतु हमें देवताओं के अनुकूलता की आवश्यकता होती है जिसके लिये हम विभिन्न प्रकारों से देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं। इस श्रेणी में विभिन्न अवसरों पर भिन्न-भिन्न देवताओं की पूजा विधि (Puja Vidhi) बताई गयी है।
संकल्प मंत्र : ॐ अद्यादि ……………………… प्रतिष्ठाङ्गगत्वेन प्रतिमासंशुद्ध्यर्थं ममगृहे प्रचुरधान्यपुत्र-पौत्रादिसुखसम्पत्यादि अभिवृद्धयर्थं फलाधिवासं करिष्ये ॥
यज्ञ-प्राणप्रतिष्ठा आदि में मंडप पूजन की विशेष विधि बताई गयी है। यहाँ आपकी सुविधा के लिये सम्पूर्ण मंडप पूजन विधि उपलब्ध किया गया है।
संकल्प मंत्र : ॐ अद्यादि ……………………… प्रतिष्ठाङ्गगत्वेन प्रतिमासंशुद्ध्यर्थं ममगृहे प्रचुरधान्यपुत्र-पौत्रादिसुखसम्पत्यादि अभिवृद्धयर्थं पुष्पाधिवासं करिष्ये ॥
धान्याधिवास के उपरांत क्रमशः जो भी अन्य अधिवास करना हो करके स्नपन करे।
स्नपन के बाद पुरुष सुक्तादि से स्तुति करे।
सजाया हुआ रथ तैयार करे इन मंत्रों से प्रतिमाओं को उठाये :
सरल रुद्राष्टाध्यायी – रुद्री पाठ संस्कृत : यहां संपूर्ण रुद्राष्टाध्यायी सरल करके प्रस्तुत किया गया है। लेकिन प्रायः ऐसा देखा गया है कि सरल करने के क्रम में विसंगतियां या असंगतियां उत्पन्न हो जाती है। यहां सरल पाठ के साथ-साथ त्रुटियों को दूर करके सर्वाधिक शुद्ध पाठ देने का प्रयास किया गया है, जिस कारण रुद्राभिषेक में यह विशेष उपयोगी हो जाता है।
इसके साथ ही एक और महत्वपूर्ण समस्या को दूर करने का भी प्रयास किया गया है। प्रायः मंत्रों के बीच में भी विज्ञापन आते हैं यहां इसका भी निवारण किया गया है।
किसी भी प्रतिमा में देवता की प्राण प्रतिष्ठा करने से प्रतिमा को कई प्रकार की वस्तुओं में अधिवास कराया जाता है जिनमें से तीन प्रमुख अधिवास माने गये हैं :
१. जलाधिवास, २. धान्याधिवास और ३. शय्याधिवास
“जलाधिवास” आलेख में प्राण-प्रतिष्ठा का महत्वपूर्ण अंग जलाधिवास के विषय में चर्चा करते हुए विधि और मंत्र बताया गया है। जलाधिवास का तात्पर्य शास्त्रीय विधि से एक निर्धारित समय तक जल में वास करना है। इससे प्राण प्रतिष्ठा करने की क्षमता बढ़ती है और दाहत्व का निवारण होता है। जलाधिवास करने की विधि में पूजा, मंत्र और संस्कारों का वर्णन किया गया है।
प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा से पहले अग्न्युत्तारण संस्कार किया जाता है। इस लेख में अग्न्युत्तारण मंत्र दिया गया है जो प्राण प्रतिष्ठा के लिए उपयोगी हैं। अग्न्युत्तारण के महत्वपूर्ण बिंदु और विधि तत्व बताए गए हैं। मंत्र पाठ और आहुति द्वारा इसे पूर्ण करने के लिए विस्तृत जानकारी दी गई है।
वास्तु शांति पूजा विधि – गृह वास्तु, मंडपांग वास्तु ~ यदि नया घर बनाया गया हो तो वास्तु शांति की विधि सर्वविदित है।
यदि पुराना घर हो तो भी वास्तु शांति अपेक्षित होती है।
यदि पुराने घर के ऊपर या बगल में नया घर बनाया जाता है तो उसमें भी मुख्य रूप से वास्तु शांति ही कर्तव्य होता है।
जल यात्रा, धार्मिक आयोजन के रूप में सूचीत की जाती है। इसमें कुमारी कन्याओं और सौभाग्यवती स्त्रियों के साथ नदी या जलाशय से जल ग्रहण करके यात्रा करते हुए देवी-देवताओं के पूजन का कार्य होता है। इसके लिए शास्त्रों की विधि का पालन किया जाता है। यह एक पवित्र तीर्थ यात्रा के रूप में मानी जाती है।