चतुर्थी चंद्र व्रत को ही चौठचन्द्र या चौरचन या चौथचंद्र भी कहा जाता है। भाद्र शुक्ल चतुर्थी (प्रदोषकालिक) में चतुर्थी चंद्र की पूजा की जाती है। चतुर्थी चंद्र पूजा की विशेष विधि भी है जिसकी चर्चा भी यहां की गयी है। 2024 में चतुर्थी चंद्र या चौरचन व्रत कब है यह बताया गया है।
चौरचन पूजा कब है 2024 : चतुर्थी (चौथ) चंद्र निर्णय
चतुर्थी का चंद्र देखना निषिद्ध है क्योंकि चतुर्थी चंद्रदर्शन करने से कलंक लगता है। ऐसी ही कथा भगवान श्रीकृष्ण की भी है जब उनके ऊपर कलंक लगा था। भगवान श्रीकृष्ण को स्यमंतक मणि चोरी करने का कलंक लगा था। चन्द्रमा को यह श्राप गणपति ने दिया था क्योंकि चन्द्रमा ने गणपति का उपहास किया था।
मार्कण्डेय पुराण के वचन से वर्जित चंद्र दर्शन के संबंध में यह बताया गया है कि जब सिंहस्थ सूर्य हों तब भाद्रशुक्ल चतुर्थी का दर्शन नहीं करना चाहिये। सिंहादित्य का तात्पर्य सौर भाद्र मास का होना है अर्थात सौर भाद्र होने पर शुक्ल चतुर्थी तिथि के चंद्रमा को देखने से मिथ्यापवाद (कलंक) का भाजन बनना पड़ता है : “सिंहादित्ये शुक्लपक्षे चतुर्थ्यां चंद्रदर्शनं। मिथ्याभिशापङ्कुरुते तस्मात्पश्येन्न तं तदा॥” मार्कण्डेय पुराण
कब होता है चौरचन व्रत
चौरचन (चतुर्थी चंद्र) का निर्णय निम्नलिखित विधि से किया जाता है :
- भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चतुर्थी चंद्र व्रत होता है।
- चतुर्थी चंद्र व्रत में प्रदोष कालीन चतुर्थी को ग्रहण किया जाता है।
- यदि दो दिन प्रदोषकालीन चतुर्थी हो तो दूसरे दिन किया जाता है।
आगे चतुर्थी चंद्र व्रत संबंधी उपरोक्त नियमों के आधार पर अब 2024 में दृश्य व अदृश्य पंचांगों के आधार पर तिथि को समझते हुये चतुर्थी चंद्र व्रत कब होना चाहिये इसे समझेंगे।
दृश्य पंचांग
- चतुर्थी आरंभ : 6 सितम्बर 2024 शुक्रवार
- चतुर्थी आरंभ समय : अपराह्न 3:01 बजे
- चतुर्थी समाप्त : 7 सितम्बर 2024 शनिवार
- चतुर्थी समाप्ति समय : सायाह्न 5:37 बजे
- प्रदोषकालिक चतुर्थी : 6 सितम्बर 2024 शुक्रवार
अदृश्य पंचांग
- चतुर्थी आरंभ : 6 सितम्बर 2024 शुक्रवार
- चतुर्थी आरंभ समय : मध्याह्न 12:03 बजे
- चतुर्थी समाप्त : 7 सितम्बर 2024 शनिवार
- चतुर्थी समाप्ति समय : अपराह्न 1:59 बजे
- प्रदोषकालिक चतुर्थी : 6 सितम्बर 2024 शुक्रवार
इस प्रकार दृश्य व अदृश्य दोनों पंचांगों के आधार पर प्रदोषकालीन चतुर्थी 6 सितम्बर 2024 शुक्रवार को उपलब्ध है और चतुर्थी चंद्र या चौरचन व्रत होना सिद्ध होता है। पंचांगों में भी इसी दिन चौरचन व्रत पूजा बताया गया है।
चतुर्थी चंद्र पूजा विधि
अब हम चतुर्थी चंद्र पूजा विधि को समझेंगे मंत्र सहित पूजा विधि व कथा भी आगे दी जायेगी।
- सर्वप्रथम तो चतुर्थी चंद्र व्रत के दिन पूजा के लिये नाना प्रकार के पक्वान्नादि पकाये जाते हैं।
- अन्य पूजा सामग्रियां एकत्रित करके प्रदोषकाल में गृहप्रांगण में पूजा की तैयारी की जाती है।
- पूजा हेतु चौरठ-सिन्दूरादि से अष्टदलादि चौका पूरा जाता है।
- एक कलश में जल-पल्लवादि देकर कलश के ऊपर दीप जलाना चाहिये।
- पूजा हेतु धूप-दीप-नैवेद्यादि लगा लेनी चाहिये।
- पवित्रीकरणादि करके पूजा आरम्भ करनी चाहिये।
पूजा का आरंभ नित्यकर्म से होता है, अधिकांशतः स्त्रियां ही चतुर्थी चंद्र व्रत करती है तथापि पुरुष भी कर सकते हैं। स्त्रियों के लिये नित्यकर्म का तात्पर्य पंचदेवता व गौरी पूजन होता है, यदि स्त्री विधवा हो तो गौरी के स्थान पर विष्णु पूजन करे। पूजा चूंकि प्रदोषकाल में होती है अतः गणपत्यादि पंचदेवता की पूजा करके गौरी पूजन करे फिर रोहिणी सहित चंद्रमा का पूजन करे। चंद्रमा का पूजन भी आवाहन करके ही किया जाता है न कि आकाशस्थ चन्द्रमा का।
चंद्रमा का आवाहन रोहिणी सहित करके रोहिणी सहित चन्द्राय नमः मंत्र से पूजा करनी चाहिये। पूजा के मंत्रादि आगे दिये गए हैं। चंद्रमा का आवाहन किसी पुंगीफल, अक्षतपुञ्जादि पर किया जा सकता है। चंद्रमा को विशेषार्घ्य शंख से दिया जाता है। चंद्रमा को नैवेद्य में दधि भी प्रदान किया जाता है। पूजा के बाद विभिन्न पक्वान्नों युक्त डालियां अर्पित की जाती है और परिवार के सभी सदस्य भी अर्घ्य प्रदान करते हैं। अर्घ्य प्रदान करने में विशेष ध्यान देने की बात यह है की शंख से दुग्ध का अर्घ्य प्रदान करना चाहिये। पूजा के उपरांत चतुर्थी चंद्र व्रत कथा श्रवण करके फिर विसर्जन करना चाहिये।
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