एकादशी व्रत कथा – संक्षेप में 26 एकादशी की व्रत कथा

एकादशी व्रत कथा

2. मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम मोक्षदा एकादशी है।

कथा के अनुसार वैष्णवों से सुशोभित चम्पक नामक नगर का महान राजा वैखानस हुआ जो राजर्षि भी माना गया। एक दिन उसने स्वप्न में अपने पिता को नरक में दुखी देखा तो ब्राह्मणों को बुलाकर परामर्श करने लगा। ब्राह्मणों में निकट में ही पर्वत मुनि के पास जाने का विचार दिया तो राजा ने उनके पास जाकर अपनी व्यथा सुनाया।

पर्वत मुनि ने ध्यान करके बताया की उसके पिता की दो पत्नी थी लेकिन एक पत्नी से द्वेषवश ऋतुकाल में भी उसका तिरस्कार करते रहे इसी कारण नरक में यातना पा रहे हैं। उनके नरकमुक्ति के लिये मोक्षदा नाम की एकादशी करने का उपदेश दिया। राजा नगर में आकर सपरिवार और प्रजा सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया और सारा पुण्य संकल्प करके अपने पिता को प्रदान किया जिसके फलस्वरूप उसके पिता को नरक से मुक्ति मिली। स्वर्ग से पुष्पों की वर्षा हुई और आशीर्वाद देकर पिता स्वर्ग चले गये।

  • मोक्षदा एकादशी मारशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष में होती है।
  • मोक्षदा एकादशी मोक्ष प्रदान करने वाली है।
  • इस एकादशी से पितरों को भी नरक से मुक्ति मिलती है।
  • पितृदोष निवारण हेतु भी मोक्षदा एकादशी का व्रत करना चाहिये।
  • इसके अधिदेवता दामोदर हैं।

3. सफला एकादशी व्रत कथा

पौष मास के कृष्ण पक्षकी एकादशी का नाम सफला एकादशी है। कथा के अनुसार चंपावती पूरी का राजा माहिष्मत था जिसके चार पुत्र थे उनमें से बड़े का नाम लुम्पक था जो अत्याचारी था। जब लुम्पक के अत्याचार के कारण उसके पिता ने देशनिकाला कर दिया तो वह पास के वन में रहने लगा। रात में नगर जाकर चोरी, हिंसा आदि करता और दिन में जंगल के एक पीपल वृक्ष पर निवास करता था।

संयोग से वह आश्रम और वृक्ष भगवान को प्रिय था। एक बार पौष मास में दशमी तिथि की रात में ठंड के कारण वह बेहोश हो गया और एकादशी के दिन दोपहर बाद होश आने पर कुछ फल-मूल लेकर आया परन्तु तब तक सूर्यास्त हो गयी। वह इस डर से की हो न हो आज मृत्यु हो सकती है वृक्ष के मूल में भगवान विष्णु को फल अर्पित करते हुए बोला की भगवान विष्णु इन फलों से प्रसन्न हों। और वहीं बैठ गया। रात भर उसे नींद भी नहीं आयी और अनायास ही एकादशी का उपवास, रात्रिजागरण, भगवान विष्णु की पूजा हो गयी जिससे भगवान विष्णु प्रसन्न हो गये।

सफला एकादशी व्रत कथा
सफला एकादशी व्रत कथा

सुबह उसके पास एक दिव्य घोड़ा आया और आकाशवाणी हुई की सफला एकादशी के पुण्य से तुम्हारे पाप नष्ट हो गए और भगवान वासुदेव प्रसन्न हो गये हैं अब नगर में जाकर निष्कंटक राज्य भोगो। लुम्पक भी दिव्यस्वरूप वाला हो गया और नगर वापस आ गया जहाँ पिता ने उसे राजा बना दिया।

  • सफला एकादशी पौष मास के कृष्ण पक्ष में होती है।
  • इसके अधिदेवता नारायण हैं।
  • इस एकादशी को करने से सफलता की प्राप्ति होती है।

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