ज्योतिष में गणित तो एक स्कन्ध है ही उसके साथ ही होरा अर्थात जातक भी एक स्कन्ध है। जातक ज्योतिष को मुख्य रूप से फलादेश ही समझना चाहिये किन्तु इसमें जन्म कुंडली निर्माण से संबंधित विषय भी कुछ अंशो तक जो होते हैं वो गणित ही कहलाते हैं। सामान्यतः होरा अथवा जातक ज्योतिष के लिये ही फलित ज्योतिष शब्द का प्रयोग किया जाता है। फलित ज्योतिष के लिये अर्थात फलादेश के लिये शास्त्रों के अनुसार फलित ज्योतिष के नियम (falit jyotish sutra) जानना भी आवश्यक होता है।
शास्त्रों के अनुसार फलित ज्योतिष के नियम – falit jyotish sutra
होरा अथवा जातक ज्योतिष की बात करें तो इसका मुख्य तात्पर्य ही फलादेश है जिसे फलित ज्योतिष कहा जाता है। यद्यपि फलित ज्योतिष कहना उचित नहीं है क्योंकि होरा में गणित तो नाम मात्र का है तथापि प्रयोग पाया जाता है और यदि हम फलित ज्योतिष की बात करें तो उसका तात्पर्य होगा होरा स्कन्ध। ज्योतिषीय फलादेश के लिये कुछ विशेष नियम अथवा सूत्र हैं जिनको पहले समझना आवश्यक होता है तदनंदर फलादेश किया जाता है।
इस प्रकार यदि फलित ज्योतिष को भी बांटना चाहें तो फलित ज्योतिष के नियम अथवा सूत्र, योग विचार, राशि-ग्रह-भाव वश प्रभाव आदि भागों में बांटा जा सकता है। यहां फलित ज्योतिष की नियम से संबंधित जो आलेख हैं वो प्रस्तुत किये गए हैं।
फलित ज्योतिष के नियम
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- ग्रहों की अवस्थाएं (graho ki avastha) : बाल, कुमार, युवा, वृद्ध और मृत
- ग्रहों की जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति अवस्था और उनके फल – jagrat swapna sushupti
- ग्रहों की उच्च और नीच राशि, त्रिकोण, स्वगृह एवं उनके फल विचार – uccha nich grah
- कुंडली में पंचधा मैत्री क्या है, कैसे विचार करते हैं – panchadha maitri
- ज्योतिष में ग्रहों की दृष्टि का विचार कैसे करते हैं – grah drishti
- Shadbala – कुंडली में बली ग्रह की पहचान करने के लिये षड्बल कैसे निकालते हैं ?
आज का पंचांग शुभ मुहूर्त
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