कृष्ण जन्माष्टमी कब है ? जन्माष्टमी 2024

कृष्ण जन्माष्टमी कब है ? जन्माष्टमी 2024

द्वापर युग के अंत में भगवान श्री हरि ने कृष्णावतार ग्रहण किया था। भगवान कृष्ण का अवतरण भाद्र मास, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, बुधवार के दिन मध्य रात्रि में हुआ था। कलयुग का 5125 वर्ष हो रहा है अर्थात 5200 वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण का अवतरण हुआ था। भारत का जनमानस भगवान कृष्ण का प्राकट्य तिथि को व्रत करता है व जन्मोत्सव भी मनाता है जिसे जन्माष्टमी व्रत, कृष्णाष्टमी व्रत कहा जाता है। इस आलेख में हम जन्माष्टमी 2024 के बारे में चर्चा करते हुये जानेंगे कि 2024 में जन्माष्टमी कब है ?

कृष्ण जन्माष्टमी कब है ? जन्माष्टमी 2024

आगे की चर्चा पर जाने से पूर्व इतिहासकारों द्वारा प्रचारित भ्रम को भी समझना अपेक्षित है। इतिहासकारों ने न जाने आंखों पर कौन सी पट्टी लगा रखी है कि सनातन से जुड़े सभी विषयों पर जहां सामान्य जनमानस कदापि भ्रमित नहीं है फिर भी भ्रम उत्पन्न करने का प्रयास करते ही रहे हैं। सारे ग्रंथ, पुराण व पंचांग ये बताते हैं कि महाभारत ईसा से 3100 वर्ष पूर्व हुआ था और महाभारत में ही भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान प्रदान किया था; तथापि पुरातत्वविद यानि इतिहासकार अपनी नशे की पट्टी के कारण ईसा से 1000 वर्ष पूर्व ही सिद्ध करने का प्रयास करते रहे हैं।

इतिहासकारों के भ्रम से जनमानस न तो भ्रमित हुयी न ही होने वाली है तथापि वो अपना कुचक्र रचने में कोई प्रयास नहीं छोड़ते। जनमानस न सही कुछ स्वघोषित बुद्धिजीवी वर्ग तो भ्रमित हो ही जाते हैं। यद्यपि यह दुष्प्रयास सामान्य जनमानस को भ्रमित करने के लिये ही किया जाता है किन्तु इससे उन वर्गों को भी बहार रहने की आवश्यकता है जो इस भ्रम में फंस जाते हैं।

पुराणों की कथायें व ज्योतिष से यही सिद्ध होता है कि द्वापर के अंत में भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ था और कलयुग के आगमन होने के साथ ही भगवान श्रीकृष्ण परधाम गमन कर गये। कलयुग के 5125 वर्ष हो रहे हैं अर्थात भगवान श्री कृष्ण की लीलायें 5200 वर्ष पूर्व यानि ईसा से 3200 वर्ष पूर्व हुयी थी। यह तथ्य कलयुग के प्रमाण से ही सत्यापित होता रहता है।

जन्माष्टमी कब होता है

भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य भाद्र मास, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र की मध्य रात्रि में हुआ था। व्रत में मुख्य रूप से तिथि को ही ग्रहण करने का विधान है अतः भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का ग्रहण किया जाता है। प्राकट्य चूँकि मध्यरात्रि को हुआ था अतः निशीथ काल में व्यापिनी तिथि का ग्रहण किया जाता है। कुछ लोग रोहिणी नक्षत्र को भी प्रधान मान लेते हैं। रोहिणी नक्षत्र भी मिले तो उत्तम होता है किन्तु जन्माष्टमी व्रत में अष्टमी तिथि ही मुख्य रूप से ग्राह्य होता है। जन्माष्टमी में भी अष्टमी शब्द उपस्थित है, व्रत का नाम जन्मरोहिणी नहीं जन्माष्टमी या कृष्णाष्टमी ही है।

लेकिन इस विषय में पुनः एक अन्य विषय समाहित हो जाता है जन्माष्टमी और जयंती। निशीथव्यापिनी तिथि को ग्रहण किया जाय तो वह जयंती होता है; जयंती हेतु एक और मुख्य सूत्र है वो है रोहिणी की युति, और उदयव्यापिनी तिथि को ग्रहण करने पर जन्माष्टमी या कृष्णाष्टमी व्रत होता है अर्थात जन्माष्टमी व्रत में निशीथव्यापिनी अष्टमी नहीं उदयव्यापिनी अष्टमी का ही ग्रहण होता है। उदयव्यापिनी का तात्पर्य सूर्योदय व्यापिनी है, चंद्रोदय व्यापिनी का तात्पर्य भी निशीथ व्यापिनी ही सिद्ध हो जाता है।

अनेकानेक ग्रंथों में नाना प्रकार के प्रमाण मिलते हैं किन्तु सबका सार यही है कि सप्तमी संयुक्त त्याज्य है और नवमी सहित ग्राह्य है। पद्मपुराण में कहा गया है : “पञ्चगव्यं यथा शुद्धं न ग्राह्यं मद्यदूषितं। रविविद्धा तथा त्याज्या रोहिण्याऽपि युताऽष्टमी ॥” अर्थात पञ्चगव्य शुद्ध होता है तथापि मद्य से दूषित होने पर ग्राह्य नहीं होता उसी प्रकार रोहिणीयुत होने पर भी यदि सप्तमीविद्धा हो तो जन्माष्टमी त्याज्य ही होता है।

यहां कर्मकाल के आधार पर निर्णय यह सिद्ध करता है कि निशीथ व्यापिनी ग्राह्य होनी चाहिये व औदयिक का तात्पर्य भी चंद्रोदय सिद्ध करते हैं। तथापि औदयिक का सामान्य अर्थ सूर्योदय से ही होता है चंद्रोदय तब सिद्ध होगा जब औदयिक न कह कर चंद्रोदयिक कहा गया हो। किन्तु इसका खंडन पुनः सप्तमीविद्धा के त्याज्य व नवमीयुता के ग्राह्य वाले वचनों से होता है। किन्तु कुछ वचनों में सप्तमीविद्धा को भी ग्राह्य बताया गया है वहां अर्थ नवमीक्षय होने पर ग्रहण किया गया है कि यदि नवमी का क्षय हो तो सप्तमीविद्धा भी ग्राह्य है।

वचन भेद होने पर भी क्षेत्र भेदानुसार भी वचन का ग्रहण किया जाता है और पंचांगनिर्माता अपने क्षेत्र में मान्य वचन के आधार पर व्रतादि का निश्चय करते हैं। मुख्य रूप से जन्माष्टमी के लिये औदयिक व जयंती हेतु रोहिणियुक्त का नियम ग्रहण किया जाता है।

2024 में जन्माष्टमी कब है

समस्या का कारण वचनों में भेद नहीं है, वचनों में भेद होने पर भी मुख्य निष्कर्ष तक पहुंचा जा सकता है किन्तु आगे जो समस्या बताई जा रही है उसका निराकरण अतिदुष्कर प्रतीत होता है।

पंचांगों निर्माण में मुख्य रूप से सारणी प्रयोग ही किया जाता है और दृश्यता का अभाव है यह वो पंचांगकर्ता भी स्वीकार करते हैं। अदृश्य पंचांग और दृश्य पंचांगों में तिथिकाल का अंतर होना विकट समस्या है। अदृश्य पंचांगनिर्माता इस विषय पर एक प्रकार से अड़े हुये हैं कि फल अदृश्य है और अदृश्य फल की सिद्धि अदृश्य पंचांग के आधार पर ही संभव है। तथापि जब ये पूछा जाय कि सर्वाधिक अदृश्य पंचांग किस गणित से ज्ञात होगा क्योंकि फिर सर्वाधिक फल चाहिये और इसके लिये सर्वाधिक अदृश्य गणना से प्राप्त पंचांग की आवश्यकता है तो मौन धारण कर लेंगे।

दृश्य पञ्चाङ्गानुसार 25 अगस्त रविवार को सप्तमी क्षय है व रात्रि 3:39 बजे से अष्टमी प्रारंभ है। 26 अगस्त सोमवार को औदयिक अष्टमी रात्रि 2:19 बजे तक है अर्थात निशीथव्यापिनी भी है। अपराह्न 3:54 बजे से रोहिणी नक्षत्र की भी प्राप्ति हो रही है। कुल मिलाकर कहीं से कोई विवाद नहीं है और 2024 में जयंती व जन्माष्टमी दोनों एक ही दिन 26 अगस्त सोमवार को सिद्ध होता है।

किन्तु अदृश्य पंचांगों में 26 अगस्त को औदयिक सप्तमी 7 – 8 दण्ड मिलता है एवं 27 अगस्त मंगलवार को 2 – 3 दण्ड अष्टमी उपलब्ध है जिस कारण अदृश्य पंचांगों में 27 अगस्त मंगलवार को ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत बताया गया है। जयंती पूर्व दिन अर्थात निशीथ व्यापिनी व रोहिणीयुता को दिया गया है। समस्या यहां पर यह है कि इस विषय में कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है कि व्रतादि हेतु अदृश्य गणना को ही ग्रहण करना चाहिये। ग्रंथों में सर्वत्र वेधसिद्ध (दृश्य) गणना की ही आज्ञा दी गयी है और अंतर होने पर संशोधन का भी।

निष्कर्ष : उपरोक्त सभी तथ्यों का निष्कर्ष यही है कि यद्यपि अदृश्य पंचांगों में तिथि काल भिन्न होने से औदयिक अष्टमी के आधार पर 27 अगस्त 2024 मंगलवार को जन्माष्टमी व्रत बताया गया है। अदृश्य पंचांग से ही व्रत का निर्णय करना चाहिये ऐसा वो पंचांगकार कहते हैं किन्तु सिद्धि नहीं कर पाते। वहीं वेधसिद्ध अर्थात दृश्य पंचांगों द्वारा 26 अगस्त 2024 सोमवार को ही औदयिक व निशीथव्यापिनी दोनों अष्टमी उपलब्ध है, 27 अगस्त को तनिक भी नहीं है इस कारण 26 अगस्त सोमवार को ही जन्माष्टमी व्रत की सिद्धि होती है।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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