कर्मकांड में क्या क्या आता है ?

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जन्म से लेकर अन्त्यकर्म पर्यन्त; जगने से सोने तक का प्रत्येक कर्म कर्मकांड के ही अंतर्गत आता है। कर्मकांड ही जीवन/अध्यात्म का वह भाग है जिसमें सभी कर्मों की विधियां, विहित, निषिद्ध इत्यादि पूर्वनिर्धारित अथवा संकलित हैं जो कि श्रुति-सूत्र-स्मृति-ब्राह्मण-पुराणादि ग्रंथों में मिलते हैं।

कर्मकाण्ड है क्या पहले इसे समझना होगा :

यथा उठने के बाद करदर्शन, पृथ्वी पर चरण रखने से पूर्व पृथ्वी से क्षमायाचना इत्यादि नित्य कर्म, गर्भधान से लेकर अन्त्यकर्म तक सभी संस्कार, गृह निर्माण और वास करना, व्यापारादि आजीविका से सम्बंधित विषय, कामनाओं की पूर्ति हेतु किये जाने वाले व्रत-अनुष्ठान-यज्ञ आदि, वर्ष भर के पर्व-त्यौहार आदि सभी कर्म।

सामान्य रूप से कर्मकांड का संबंध कर्म और उसके संपादन/आचरण से है। सकाम कर्म के साथ ही निष्काम कर्म भी कर्मकांड के अंतर्गत ही आता है।

कर्मकांड क्या है
कर्मकांड क्या है

कर्मकांड क्या है ?

यदि संक्षेप में कहा जाय तो : “कर्ममार्ग का विधान कर्मकाण्ड है।”

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कर्मकांड की आवश्यकता क्यों है ?

कर्मकाण्ड क्या है ? पूरी जानकारी हिन्दी में ।

जब तक हम किसी की आवश्यकता को नहीं समझ लेते तब तक उसका महत्व नहीं समझ सकते। अतः यदि हमें कर्मकांड का महत्व समझना हो तो उसकी आवश्यकता के बारे में अध्ययन करना चाहिये। कोई भी जीव कर्म किये बिना नहीं रह सकता।

न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्‌ ।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥
श्रीमद्भवद्गीता ॥

हर कोई सुख चाहता है, दुःख कोई नहीं चाहता और यदि चाहता है तो नियम का अपवाद मात्र है। हमें सुख मिलेगा या दुःख ये हमारे कर्म से ही निर्धारित होगा;

  • सुकर्म से सुख प्राप्त होगा।
  • कुकर्म से दुःख प्राप्त होगा।
  • यहाँ पर कर्म का ये तीसरा प्रकार भी पाया जाता है अकर्म जो फल से मुक्त रखते हुये मोक्षदायी होता है और अकर्म का दिव्य ज्ञान श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित है।

हमारी आकांक्षा क्या है सुख (स्वर्ग), दुःख (नरक) या शांति (मोक्ष) इसकी पूर्ति हेतु हमें जो भी कर्म चाहे-अनचाहे करने ही होंगे उसकी विधि शास्त्रों में वर्णित है।

यदि शास्त्रीय विधि से नियमों का पालन करते हुये, निषेध-परित्याग पूर्वक कर्म (सुकर्म) करेंगे तो सुख की प्राप्ति होगी, यदि नियमों का उल्लंघन करते हुये निषिद्ध आचरण या व्यवहार (कुकर्म) करेंगे तो दुःख की प्राप्ति होगी और यदि सुख-दुःख की आकांक्षा से रहित कर्म (शास्त्र विहित कर्तव्यपालन) अकर्म करेंगे तो मोक्षदायक होगा।

सुख या शांति रूपी आकांक्षा पूर्ति हेतु शास्त्राज्ञानुसार कर्म करना आवश्यक होता है और यदि शास्त्राज्ञा ग्रहण न करें अर्थात त्याग करें तो दुःख प्राप्त होगा।

कर्मकांड क्या है - Karmkand kya hai, कर्मकांड में क्या क्या आता है
कर्मकांड में क्या क्या आता है

हमें सुख या शांति की प्राप्ति हो सके इसीलिए कर्मकांड की आवश्यकता है। संक्षेप में बिंदुवार मुख्य बातें :

  • शास्त्राज्ञा ग्रहण करते हुये सुख की आकांक्षा से किये गये कर्म की संज्ञा सुकर्म होगी।
  • सुकर्म से सुख की प्राप्ति होती है।
  • शास्त्राज्ञा ग्रहण करते हुये सुख की आकांक्षा से से रहित किये गये कर्म की संज्ञा अकर्म होगी।
  • अकर्म से शांति (मोक्ष) की प्राप्ति होती है।
  • शास्त्राज्ञा का उल्लंघन करके किया गया कर्म कुकर्म संज्ञक होता है।
  • कुकर्म से दुःख की प्राप्ति होती है।
  • सुख की आकांक्षा रखकर भी यदि कुकर्म करेंगे तो दुःख ही उपलब्धि होगी।

कर्मकांड में क्या क्या आता है ?

  • सुबह जगने से लेकर रात में सोने तक के सभी कर्म कर्मकांड में आते हैं, और ये नित्यकर्म कहे जाते हैं : जैसे शौच, स्नान, संध्या, तर्पण, पूजा, भोजन इत्यादि।
  • किसी विशेष अवसर पर; यथा ग्रहण लगने पर, कुंभ लगने पर, जन्म होने पर, मरण होने पर : जो-जो कर्तव्य होते हैं वह भी कर्मकांड में ही आता है और नैमित्तिक कर्म संज्ञक होता है।
  • किसी कामना जैसे आरोग्य, विवाह, संतान, धनप्राप्ति इत्यादि से जो विशेष पूजा-व्रत-अनुष्ठानादि किये जाते हैं वह भी कर्मकांड में आता है और काम्य कर्म कहलाता है।
  • किसी दोष की शान्ति हेतु, जैसे : गण्डांत शांति, मांगलिक दोष शान्ति, ग्रह शान्ति इत्यादि कर्म शान्तिक संज्ञक होते है और काम्य कर्म के अंतर्गत ही आते हैं।
  • इसी तरह से पौष्टिक कर्म (वृद्धि-समृद्धि हेतु) भी काम्य कर्म के अंतर्गत हैं और कर्मकांड में ही आते हैं।
  • गर्भाधान से अन्त्यकर्म तक षोडश संस्कार कर्मकांड में ही आते हैं।
  • विभिन्न प्रकार की विशेष यात्रायें भी कर्मकांड के अंतर्गत ही आते हैं।

सारांश : नित्यकर्म तो कर्मकांड में सर्वप्रथम आता ही है लेकिन कोई भी धार्मिक कर्म ऐसा नहीं है जो कर्मकांड की परिधि से बाहर हो अर्थात प्रत्येक कर्म कर्मकांड में ही आता है।

चाहे विवाह हो, गर्भाधान हो, बच्चे का जन्म हो, जातकर्मादि संस्कार हों, व्रत हो, घर बनाना हो, घर में निवास करना हो, यात्रा करनी हो, व्यापार का आरंभ करना हो। इसलिये सभी लोगों को कर्मकांड का ज्ञान रखना भी आवश्यक हो जाता है।

यदि आप कर्मकांड सीखना चाहते हैं तो यहां (कर्मकांड सीखें वेबसाइट पर) कर्मकांड सीखने से सम्बंधित जानकारियां प्रकाशित किया जाता है।

पूजा विधि मंत्र सहित - कर्मकांड सीखना

F & Q :

प्रश्न : सुकर्म क्या है ?
उत्तर : शास्त्रानुसार कर्त्तव्य कर्म को करना सुकर्म कहलाता है।

प्रश्न : कुकर्म क्या है ?
उत्तर : शास्त्रानुसार त्याग कर किया गया कर्म कुकर्म कहलाता है।

प्रश्न : अकर्म क्या है ?
उत्तर : शास्त्रानुसार कर्तव्य सुकर्म के फल का त्याग करके किया गया कर्म अकर्म कहलाता है।

प्रश्न : क्या कर्म का त्याग किया जा सकता है ?
उत्तर : नहीं कर्म का त्याग करना संभव नहीं है, कर्म फल का त्याग किया जा सकता है।

प्रश्न : सकाम कर्म क्या है ?
उत्तर : फल की आकांक्षा से किया जाने वाला कर्म सकाम कर्म कहलाता है ।

प्रश्न : निष्काम कर्म क्या है ?
उत्तर : फल की आकांक्षा का त्याग करके किया जाने वाला कर्म निष्काम कर्म कहलाता है ।

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