कुमारी कन्या पूजन विधि – Kumari kanya pujan vidhi

कुमारी कन्या का पूजन

जब कभी भी भगवती की उपासना की जाती है तो उसमें कुमारी कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। वर्ष में चार नवरात्रायें होती है जिसमें विशेष रूप से कुमारी कन्या की पूजा की जाती है। उसमें भी शारदीय नवरात्रि जो कि आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से दशमी पर्यन्त होती है कुमारी कन्या का पूजन विशेष रूप से किया जाता है। इसके अतिरिक्त शतचंडी आदि यज्ञों में भी कुमारी कन्या को भगवती का ही स्वरूप मानकर पूजा की जाती है। यहां कुमारी कन्या पूजन विधि और मंत्र दिये गये हैं।

कुमारी कन्या पूजन विधि – Kumari kanya pujan vidhi

जब शारदीय नवरात्रि की बात की जाती है तो उसमें प्रतिदिन कुमारी कन्या का भी विधान बताया गया है। यदि प्रतिदिन न कर सके तो तीन दिनों महासप्तमी, महाष्टमी और महानवमी को करे और यदि तीन दिन भी न कर सके तो महानवमी तिथि को ही हवन के पश्चात् करे। आगे हम कुमारी कन्या पूजा की विधि और मंत्रों को भी देखेंगे किन्तु उससे पूर्व कुमारी कन्या पूजन के बारे में जानेंगे और कुमारी कन्या पूजन का महत्व भी समझेंगे।

कन्या पूजन का महत्व

धर्मशास्त्रों में कुमारी कन्या पूजन का अत्यधिक महत्व बताया गया है। कुमारी को देवी का ही रूप बताते हुये कहा गया है कि कुमारी की पूजा से बढ़कर (अधिक फल वाला), विशेष रूप से नवरात्र में और कुछ भी नहीं है। कुमारी पूजन करने से कर्म अंग सहित सिद्ध होता है और यदि कुमारी पूजन न किया जाय तो अंगहीन होता है। शिवा अर्थात भगवती अन्य किसी भी प्रकार से उतनी तुष्ट नहीं हो पाती जितना कुमारी कन्या पूजन से। महाथर्वणसंहिता में भगवती की पूजा में कुमारी पूजा को अनिवार्य बताया गया है और विशेष रूप से शारदीय नवरात्रि में।

यामल में कुमारी पूजा का महत्व इस प्रकार बताया गया है :

कुमारी पूजा करने से पूर्व संचित पापों का नाश होता है। कुमारी कन्या साक्षात् प्रकृति का स्वरूप होती है। कुमारी के देह में योगिनीगण निवास करती हैं। कुमारी पूजा करने से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है। विशेषकर शारदीय नवरात्र में जो बलि-होम आदि कृत्य हैं वो सभी कुमारी कन्या पूजन का षोडश कला भी नहीं होती।

देवीपुराण – पितरोवसवोरुद्रा आदित्यागणलोकपाः। सर्वेतेपूजितास्तेन कुमार्योयेनपूजिताः ॥

निषेध

कुमारी पूजन में निषेध का ज्ञान होना भी अत्यावश्यक है। प्रायः लोगों को किसी भी विचार किये बिना सभी प्रकार की कन्याओं को समान बोलते हुये पूजने की चर्चा करते हुये सुना जाता है, इसका मूल कारण कुतर्क करके शास्त्रोक्त विधान का उल्लंघन करने की प्रवृत्ति है। कलयुग का प्रभाव कहें या आसुरी प्रभाव इस स्तर तक है कि करने बैठते हैं धर्म और धर्म करते हुये शास्त्रवचनों का उल्लंघन करते हुये अधर्म कर लेते हैं।

कुमारी कन्या पूजन

प्रश्न : कुमारी कन्या का पूजन क्यों करना चाहिये ?
उत्तर : क्योंकि शास्त्रों में विधान किया गया है।

प्रश्न : फिर शास्त्रों में जो विहित और जो निषिद्ध बताया गया है उसका पालन क्यों नहीं ?
उत्तर : कोई उत्तर नहीं।

एक वर्ष तक और दश वर्ष से अधिक की कुमारी कन्या का पूजन निषिद्ध बताया गया है। इसका तात्पर्य है कि यदि पालन नहीं करते हैं तो शास्त्राज्ञा का उल्लंघन करते हैं। इसी प्रकार हीनांगी, रोगिणी आदि की पूजा का भी निषेध प्राप्त होता है।

॥ अथ कुमारीपूजाविधिः ॥

देवीपुराण में वर्णित कुमारी पूजन की विधि के अनुसार प्रथम कुमारी का पादप्रक्षालन करके सुलिप्त भूतल पर सुंदर आसन देकर बिठाये। तत्पश्चात गंध-पुष्पादि से अर्चन करे , फिर भोजन प्रदान करे।

प्रायः ऐसा देखा जाता है कि कुमारी कन्या पूजन हेतु संकल्प मंत्र आदि किये बिना ही पूजा की जाती है। तथापि यदि संकल्पपूर्वक समंत्र पूजा करे तो अत्युत्तम होगा। पूजा सामग्रियों व भोजन आदि की व्यवस्था करके कुमारी कन्या जब उपस्थित हो जायें तो सर्वप्रथम कुमारी कन्या पूजन हेतु त्रिकुशा-तिल-जल-द्रव्यादि लेकर संकल्प करे :

संकल्प : ॐ अद्येत्यादि (महासप्तम्यां, महाष्टम्यां, महानवम्यां वा तिथौ) देवीप्रसाद विविध मनोभीष्टकामावाप्ति राज्यकरण तदुत्तर देवीलोकगमनकामः एताः (संख्या) कुमारीरहं पूजयिष्ये ॥

ध्यान

संकल्पोपरांत कुमारी कन्या का चरण धोकर गोबर से लिपि हुई भूमि पर सुंदर आसन लगाकर बिठाये। तत्पश्चात “ॐ ह्रीं कुमारीभ्यो नमः” मंत्र से कुमारी कन्या को पाद्य, गंध, वस्त्र, माला, खोंईछा आदि अर्पित करे। यदि एक कन्या की पूजा करें तो “ॐ ह्रीं कुमार्यै नमः” मंत्र से करें।

तत्पश्चात भोजन परोसे : ॐ इदं नानाविधान्नभोजनीयं तुभ्यमहं निवेदयामि ॥

भोजनोपरांत पान खिलाये, हाथों में क्षमध्वं कहकर अक्षत दे। कुमारी कन्या अक्षत व्रती के सिर पर छिड़कें। तत्पश्चात कुमारी का ध्यान करे :

तत्पश्चात दक्षिणा-उपहार आदि प्रदान कर विदा करे।

कुमारी कन्या के वर्ष का निर्णय

उत्तमा सा परिज्ञेया सप्ताष्टनवहायना । मध्यमा पञ्चवर्षी च षडब्दा दशहायना ॥
एकद्वित्रिचतुर्वर्षी रुद्राब्दाख्या वरा स्मृता ॥ – वाडवानल

देवी भागवत में कन्या वर्ष का विचार करते हुये इस प्रकार बताया गया है : एक वर्षीय कन्या का पूजन न करे, जो एक वर्ष से ऊपर की कन्या हो उसी बालिका का गंधादि से पूजन करे। द्विवर्षीया का नाम कुमारी, त्रिवर्षीया का नाम त्रिमूर्ति, चतुर्वर्षीया कन्या का नाम कल्याणी, पञ्चवर्षीया कन्या का नाम रोहिणी, षड्वर्षीया कुमारी का नाम कालिका, सप्तवर्षीया कन्या का नाम चण्डिका, अष्टवर्षीया कन्या का नाम शांभवी, नववर्षीया कन्या का नाम दुर्गा और दशवर्षीया कन्या का नाम सुभद्रा होता है। दश वर्ष से अधिक की कन्या सभी कार्यों में अविहित है अतः दश वर्ष से अधिक आयु वाली कन्या का पूजन न करे।

तदनुसार सभी कुमारी कन्याओं के वर्ष के अनुसार नाम और ध्यान मंत्र इस प्रकार हैं :

  1. कुमारि : जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्व शक्तिस्वरूपिणि । पूजांगृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तुते ॥
  2. त्रिमूर्ति : त्रिपुरांत्रिगुणाधारां त्रिवर्ग ज्ञानरूपिणीम् । त्रैलोक्यवन्दितां देवीं त्रिमूर्ति पूजयाम्यहम् ॥
  3. कल्याणि : कालात्मिकां कलातीताम् कारुण्यहृदयां शिवाम । कल्याणजननींनित्यां कल्याणीं पूजयाम्यहम्॥
  4. रोहिणी : अणिमादिगुणाधारा मकाराद्यक्षरात्मिकाम् । अनन्त शक्तिकांलक्ष्मीं रोहिणीं पूजयाम्यहम् ॥
  5. कालिका : कामचारींशुभांकान्तां कालचक्रस्वरूपिणीम् । कामदां करुणोदारां कालींसम्पूजयाम्यहम् ॥
  6. चण्डिका : चण्डवीरां चण्डमायां चण्डमुण्डप्रभञ्जनीम् । पूजयामि सदाभक्त्या चण्डिकां चण्डविक्रमाम् ॥
  7. शांभवी : सदानन्दकरींशान्तां सर्वदेवनमस्कृनाम् । सर्वभूतात्मिकां लक्ष्मीं शांभवीं पूजयाम्यहम ॥
  8. दुर्गा : दुर्गमेदुस्तरेकार्ये भवदुःखविनाशिनीम् । पूजयामिसदाभक्त्या दुर्गादुर्गार्तना- शिनीम् ॥
  9. सुभद्रा : सुन्दरीस्थर्णभां देवींसुखसौभाग्यदायिनीम् । सुभद्रजननींदेवीं सुभद्रांपूजयाम्यहम् ॥

भोजिता चेत् कुमारी स्याद् भोजितम् भुवनत्रयम् । नवरात्रे समायाते नवम्यन्तं निशातधीः ॥
नानोपहारैरभ्यर्च्य कुमारीं वृद्धिपूर्वकम् । वृद्धिक्रमेण प्रजयेद्वांछितां सिद्धिमाप्नुयात् ॥
कुमारीं न स्पृशेत् भक्त्या भावयुक्तेन चेतसा । अन्यथा मृत्युमाप्नोति नो चेद् देवीं पराङ्‌मुखी ॥

छागबलि, कूष्माण्ड बलि आदि अन्य आलेख में प्रस्तुत किया गया है।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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