माघ मास में क्या करें – नियम और विधि-विधान | Magh maas ke niyam

माघ मास में क्या करें - नियम और विधि-विधान | magh maas ke niyam

माघ मास का भी विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है एवं कार्तिक माहात्म्य में भी माघ मास के महत्व का वर्णन मिलता है। मास विधान में स्नानादि हेतु सौरक्रम का विशेष महत्व होता है। सौर क्रम से मकर में जब सूर्य हो तो वही माघ मास होता है। माघ मास में भी प्रातः स्नान-पूजन आदि करना चाहिये इसके साथ और भी कुछ विशेष नियम व महत्व हैं जो इस आलेख में बताया गया है।

माघ मास में क्या करें – नियम और विधि-विधान | Magh maas ke niyam

पद्मपुराण – स्वर्गलोके चिरं वासो येषां मनसि वर्तते । यत्र कापि जले तैस्तु स्नातव्यं मृगभास्करे ॥

मास का नाम पूर्णिमा में पड़ने वाले नक्षत्र के आधार पर निर्धारित किया जाता है अर्थात जिस मास की पूर्णिमा को मघा नक्षत्र में चंद्रमा हो उस माह का नाम माघ होता है। माघ में शिशिर ऋतु होता है। इस मास में सर्वाधिक शीत होती है ऐसे में बहुत लोग माघमास करने में भी डरते हैं। किन्तु जिन्हें घर में भी शीत के कारण भय होता है वो प्रयाग में जाकर देखा करें वहां कल्पवास लगा करता है और अनेकों श्रद्धालु पूरे महीने व्रत के नियमों का पालन करते हुये कल्पवास करते हैं।

तुलामकरमेषेषुप्रातःस्नायीसदाभवेत् ॥ यह विष्णु वचन है जिसमें कहा गया है तुला, मकर और मेष के सूर्य में प्रातःस्नायी हो जाये । तुला-कार्तिक, मकर-माघ और मेष-वैशाख तीन मासों में प्रातः स्नायी होना चाहिये किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं कि अन्य मासों में प्रातः स्नान न करे, अपितु यह है कि इन तीनों मासों में विशेष विधियों को भी ग्रहण करे ।

माघ मास हेतु सौर की व्यवस्था तो मुख्य है ही किन्तु चान्द्र व सावन मास का भी विधान है। चान्द्र मास में भी तीन प्रकार बताया गया है।

सावन मास हेतु ब्रह्मपुराण का वचन है –  एकादश्यांशुक्लपक्षे पौषमासेसमारभेत् । द्वादश्यांपौर्णमास्यांवाशु क्लपक्षेसमापम् ॥ पोष शुक्ल एकादशी को आरम्भ करे और माघ शुक्ल एकादशी अथवा द्वादशी को समापन करे । एकादशी अथवा द्वादशी को समापन करने का तात्पर्य सावन मास हेतु ही है, इनमें से जो भी तीसवां दिन हो उस दिन समापन करे ।

पुनः सावन मास का विधान पद्मपुराण में भी कहा गया है : पुष्यस्यैकादशीं शुक्लामारभ्यस्थंडिलेशयः । मासमात्रं निराहारस्त्रिकालं स्नानमाचरेत् । त्रिकालमर्चयेद्विष्णुं त्यक्तभोगो जितेंद्रियः । माघस्यैकादशीं शुक्लां यावद्विद्याधरोत्तम ॥

चान्द्र मास के दो प्रकार

चान्द्र मास दो प्रकार के होते हैं पूर्णिमांत व अमावास्यांत । अब चान्द्र मास वाले विधान जो दो पक्ष बताये गये हैं उसे भी समझते हैं :

दर्शंवापौर्णमासींवा प्रारभ्यस्नानमाचरेत् । पुण्यान्यहानित्रिंशच्च मकरेस्थदिवाकर ॥ यह भी विष्णु का ही वचन है कि दर्श अर्थात् अमावास्यांत अथवा पौर्णमासी अर्थात् पूर्णिमांत मास के तीस दिनों जब सूर्य मकरस्थ हों प्रारम्भ करते हुये स्नानादि करे । इस वचन से अन्य अर्थ भी प्रकट होता है। दर्शंवापौर्णमासींवा इसका तात्पर्य अमावास्या अथवा पूर्णिमा लिया जाता है एवं आगे का प्रारभ्य तो स्पष्ट करता ही है कि प्रारम्भ करे।

इसमें दो विकल्प का तात्पर्य आगे की पंक्ति से स्पष्ट होता है जिसमें मकरस्थ दिवाकर कहा गया है। यहां मकरस्थ दिवाकर कथन का तात्पर्य सौर मास से भिन्न है किन्तु दोनों में से किसे ग्रहण करे उसका निर्धारक है।

मकरस्थ दिवाकर का 30 दिन अत्यंत पुण्यप्रद है अतः अमावास्या अथवा पूर्णिमा से जब मकरस्थ दिवाकर रहे तभी माघस्नान करे। चांद्रमास और सौर मास में यह अंतर आता रहता है तो उसमें सौर मास के योग का भी निर्देश दिया गया है कि यदि अमावास्या से प्रारम्भ होने वाले माघ में मकर का सूर्य हो तो उससे आरम्भ करे अथवा यदि पूर्णिमा से आरंभ होने वाले चांद्र मास में ही मकर का सूर्य उपलब्ध हो तो उसी से करे। इसी का विस्तार आगे यह भी हो सकता है कि जिस विधि से अधिकतम मकर का सूर्य प्राप्त हो उसे ग्रहण करे।

माघ मास करने के अधिकारी

यह सिद्धांत है कि किसी भी कर्म में प्रवृत्त होने हेतु उसका अधिकार आवश्यक होता है। जिसे कर्म (कर्तव्य) का अधिकार प्राप्त हो वही अधिकारी होता है। कर्मकांड में भी प्रवृत्त होने हेतु उसके अधिकार का ज्ञान होना चाहिये, यदि अधिकार प्राप्त न हो तो वह कर्म करना पुण्यप्रद नहीं दोषप्रद ही होता है क्योंकि शस्त्रोलन्घन रूपी दोष प्रकट हो जाता है।

अर्थात कर्म में अधिकार की सिद्धि शास्त्रों से होती है। शिक्षक को पढ़ाने का अधिकार होता है न कि सड़क पर वाहन जाँच करने का अधिकार, न्यायाधीश को न्याय करने का अधिकार होता है न कि कानून बनाने का अधिकार, पुलिस को शांति-व्यवस्था बनाने से सम्बंधित अधिकार होते हैं, बैंक अधिकार को बैंकिंग कार्य संबंधी अधिकार होता है।

उसी प्रकार शास्त्रों धार्मिक कृत्यों के लिये अधिकार संबंधी विधान प्राप्त होता है जो अनिवार्य रूप से पालन करना चाहिये। जैसे प्रधानमंत्री, लोकसभाध्यक्ष, राज्यसभाध्यक्ष, मुख्यन्यायाधीश, मुख्यचुनाव आयुक्त सबके अधिकार भिन्न-भिन्न हैं और उसके अनुसार ही कार्य कर सकते हैं। प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है किन्तु लोकसभा की अध्यक्षता वह नहीं कर सकता, लोकसभाध्यक्ष सरकार की अध्यक्षता नहीं कर सकते, मुख्यन्यायाधीश मुख्य चुनाव आयुक्त भी अपने-अपने कर्तव्यों का भी पालन कर सकते हैं एक-दूसरे के अधिकारों का प्रयोग नहीं कर सकते।

इस प्रकार से वर्ण, आश्रम, लिंग, अवस्था आदि के आधार पर शास्त्रों द्वारा धार्मिक कृत्यों में अधिकार-अनधिकार प्रदान किया गया है, जिसे जो अधिकार प्रदान नहीं किया गया है वह भी अनधिकार ही होता है। इसे एक उदाहरण द्वारा सरलता से समझा जा सकता है :

अधिकार का उदाहरण

करक चतुर्थी (करवा चौथ) में पति की लम्बी आयु कामना से पत्नी को अधिकार प्राप्त है, इससे कन्या और विधवा का अनधिकार भी सिद्ध होता है। किन्तु विधर्मी/नास्तिकों का षड्यंत्र तो देखिये कुतर्क करके जैसे पति की लम्बी आयु के लिये पत्नी करवा चौठ करती है उसी प्रकार पत्नी की लम्बी आयु के लिये पति को भी करना चाहिये ऐसा सिद्ध कर रहे हैं और शहरों में देखा भी जाने लगा है। विभिन्न फिल्मों, धारावाहिकों के माध्यम से भी जनमानस को भी भ्रमित किया जा रहा है।

यदि इसी कुतर्क को जितिया पर भी लगायें तो क्या होगा ? पुत्रों के लम्बी आयु हेतु माता जितिया करती है, क्या दुधमुहें पुत्रों को भी माता की लम्बी आयु के लिये जितिया करनी चाहिये ? फिल्म-सीरियल आदि इन विधर्मियों/नास्तिकों के लिये सनातन पर प्रहार करने का एक मंच बन गया है। धर्म का तात्पर्य ही है शास्त्रवचनों में विश्वास रखते हुये विहित कर्मों (जिसमें अधिकार हो) को करना और निषिद्ध कर्मों को नहीं करना। जिसे शास्त्रों का वचन पालन ही नहीं करना हो, शास्त्रों में विश्वास ही नहीं हो, कुतर्कों का प्रपंच करता हो वह तो पाखंडी है, नास्तिक है, अधर्मी है। वह विभिन्न मंचों पर आकर धर्म का ज्ञान बांटता रहता है।

अस्तु माघमास में अधिकारी का वर्णन भविष्यपुराण में इस प्रकार बताया गया है : ब्रह्मचारी गृहस्थो वा वानप्रस्थोथभिक्षुकः। बालवृद्धयुवानश्च नरनारीनपुंसकाः । स्नात्वामाघे शुभेतीर्थे प्रावप्नुंतीप्सितंफलम् ॥ अर्थात ब्रह्मचारी हो अथवा गृहस्थ हो, वानप्रस्थी हो अथवा भिक्षुक हो, बाल हो अथवा वृद्ध हो, नर हो अथवा नारी हो शुभ तीर्थ में माघमास का स्नान करने से मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। इस प्रकार माघ में किसी को भी वर्णाश्रम, लिंग, अवस्था आदि भेद से अनधिकारी नहीं बताया गया है अर्थात सबको अधिकार है।

पुनः पद्मपुराण में भी इसी प्रकार का वचन प्राप्त होता है “सर्वेधिकारिणोह्यत्र विष्णुभक्तौ यथानृप ॥” इसमें (माघमास में) सभी का अधिकार होता है जैसे विष्णु की भक्ति में सबका अधिकार है।

अशक्तों (असमर्थों) के लिये विकल्प

जब अशक्त/असमर्थ बोला जाता है तो दो प्रकार की अशक्ता/असमर्थता का बोध होता है प्रथम तो शारीरिक असमर्थता यथा रोगी होना, बाल्यावस्था, वृद्धावस्था आदि और द्वितीय अन्य कर्मों में प्रवृत्ति से यथा जो प्रेतकर्म में लगा हुआ हो अथवा अस्वस्थता अधिक हो, राजाज्ञा संबंधी बाधा हो, गुरु सेवा, मातृ-पितृसेवा, मांगलिक उत्सवादि आदि-इत्यादि; वह माघमास करने में असमर्थ हो जाता है। इन दोनों स्थिति में दो भिन्न-भिन्न विकल्पों की आवश्यकता होती है जो शास्त्रों में वर्णित है।

शारीरिक असमर्थता में विकल्प

ब्रह्मपुराण में कहा गया है “उष्णोदकेन वा स्नानमशक्येसतिकुर्वते । दृढेषु सर्वगात्रेषु उष्णोदं न विशिष्यते ॥” अर्थात जो शीतल जल से स्नान करने में अशक्त/असमर्थ (शारीरिक) हो वह उष्णोदक (गर्म जल) से स्नान करे किन्तु जिसे शारीरिक असमर्थता न हो वह उष्णोदक से स्नान न करे अर्थात शीतल जल से ही करे।

बाधा का विकल्प

बाधा का तात्पर्य है कि प्रथम दिन आरम्भ न कर पाये हों, अन्य कर्मों में लगे हों और जिस कारण माघमास आरम्भ न कर पाये हों। बाधा आने पर शास्त्रों में तीन दिन करने का विकल्प बताया गया है :

  • लिङ्गपुराण – महामाघीं पुरस्कृत्यसस्नौ तत्रदिनत्रयम् ॥
  • पद्मपुराण – अस्मिन्योगेत्वशक्तोपि स्नायादपिदिनत्रयम् । प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नातस्य यत्फलम् । नाश्वमेधसहस्रेण तत्फलं लभतेभुवि ॥

तीन दिन संबंधी विकल्प में कब करे यह सुनिश्चित नहीं हो पाता है, जैसे नवरात्रा में तीन दिन का जो विकल्प है वह महासप्तमी, महाष्टमी और महानवमी का है। यहां तीन दिन के विकल्प में अनेकानेक पक्ष हैं जैसे माघ शुक्ल दशमी, एकादशी, द्वादशी को करे अथवा मकर संक्रांति से तीन दिन, अथवा माघ (चांद्र मास) के प्रथम तीन दिन अथवा अंतिम तीन दिन। इस प्रकार कोई भी पक्ष सुनिश्चित नहीं है अतः जैसी बाधा हो उसी के अनुसार तीन दिन मात्र का विकल्प ग्रहण करे।

माघस्नान की नित्यता/अनिवार्यता

माघस्नान की नित्यता/अनिवार्यता का तात्पर्य है कि यह आवश्यक रूप से कर्तव्य है, बाधा होने पर विकल्प का ग्रहण किया जा सकता है। नित्य का तात्पर्य होता है अनिवार्यतः कर्तव्य है, शीतभय आदि से इसका त्याग नहीं करना चाहिये। ध्यातव्य तो यह है कि सर्वाधिक शीत माघमास में ही पड़ती है और उस मास में स्नान को अनिवार्य किया जा रहा है। जो माघमास में भी स्नान करे उसे अन्य मासों में तो कोई समस्या ही नहीं हो सकती।

बहुत लोग अनेकानेक विषयों में पूछ देते हैं शास्त्र में लिखा हुआ है क्या ? कहां लिखा हुआ है ? कुतर्की/नास्तिक/अधर्मियों की तो चर्चा ही क्या करें। उनके लिये शास्त्रोक्त प्रमाण अनिवार्य होता है और इसी कारण यह नियम भी है कि शास्त्रोक्त चर्चा करते समय प्रमाण का उल्लेख भी अनिवार्यतः करे। अस्तु नित्यता सिद्धि हेतु शास्त्रोक्त प्रमाण भी आगे दिये जा रहे हैं :

नित्यता के पद्मपुराणोक्त प्रमाण

आयुरारोग्यसम्पत्तौ रूपे सुभगतागुणे । तेषां मनोरथास्तैस्तु न त्याज्यं माघमज्जनम् ॥
दारिद्रयपापदौर्भाग्य पङ्कप्रक्षालनाय वै । माघस्नानान्न चान्योऽस्ति उपायो नरसत्तम ॥

आयु, आरोग्य, संपत्ति, रूप-सौंदर्य, सौभाग्य, गुण आदि के साथ-साथ यदि अन्य कोई भी मनोरथ हो तो माघस्नान का कदापि त्याग न करे, अर्थात माघस्नान का त्याग करने से इन सबकी हानि होती है। दारिद्र्य, पाप, दुर्भाग्यादि पंको के प्रक्षालन हेतु माघस्नान ही उपाय है अन्य उपाय नहीं है। और प्रमाण :

मकरस्थे रवौ यो हि न स्नात्यनुदिते रवौ । कथं पापैः प्रमुच्येत कथं स त्रिदिवं व्रजेत् ॥
उपपातकसंज्ञानि पातकानि महान्त्यपि । भस्मीभवन्ति सर्वाणि माघस्नानेन सुव्रत ॥
वेपन्ते सर्वपापानि माघमासे समागमे । नाशकालोऽयमस्माकं यदि स्नास्यति मानवः ॥
पावका इव दीप्यन्ते माघस्नानेन मानवाः । विमुक्ताः सर्वपापेभ्यो मेघेभ्य इव चन्द्रमाः ॥
आर्द्रशुष्कं लघुस्थूलं वाङ्मनः कर्मभिः कृतम् । माघस्नानं दहेत् पापं पावकः समिधो यथा ॥
प्रामादिकं च यत्पापं ज्ञानाज्ञानकृतं च यत् । स्नानमात्रेण तत्सर्वं नश्यते तूलराशिवत् ॥

त्रिकाल स्नान

माघ में प्रातः स्नान ही नहीं त्रिकाल स्नान और त्रिकाल पूजन भी कहा गया है, माघ मास में स्थण्डिलशायी रहे, निराहार का तात्पर्य हविष्य, फलाहार, आदि का ग्रहण करना है, क्योंकि अन्यत्र मूलक का निषेध भी प्राप्त होता है। भोग का त्याग करके, जितेन्द्रिय होकर त्रिकाल स्नान, त्रिकाल विष्णु पूजन करे।

पद्मपुराण में कहा गया है : पुष्यस्यैकादशीं शुक्लामारभ्यस्थंडिलेशयः । मासमात्रं निराहारस्त्रिकालं स्नानमाचरेत् । त्रिकालमर्चयेद्विष्णुं त्यक्तभोगो जितेंद्रियः । माघस्यैकादशीं शुक्लां यावद्विद्याधरोत्तम ॥

माघ मास में कर्तव्य अर्थात माघ मास विधि

स्नान में काल का विशेष ध्यान रखना चाहिये, तारा उदित रहते उत्तम, तारालुप्त होने पर मध्यम और सूर्योदय होने पर हीन कहा गया है – उत्तमं तु सनक्षत्रं मध्यमं लुप्ततारकम् । सवितर्युदिते भूप ततो हीनंप्रकीर्तितं ॥

स्नान के मंत्रादि का विषय आता है तो दो प्रकार ज्ञात होता है प्रथम तो सामान्य नदी/जलाशय आदि में और द्वितीय प्रयागादि तीर्थों में गंगास्नान। दोनों के संकल्प मंत्र व स्नान मंत्र भिन्न हैं तो नीचे दिये गये हैं। इसके साथ ही एक अन्य विषय भी है कि प्रथम दिन का संकल्प और अन्यदिनों का संकल्प आगे वो भी पृथक-पृथक दिया गया है :

गंगास्नान मंत्र

पद्मपुराण – दिने दिने सहस्रन्तु सुवर्णानां विशांपते । तेन दत्तं हि गङ्गायां यो माघे स्नाति माधव ॥

  1. प्रथम दिन का संकल्प : ओं अद्य …….……… (नाम-गोत्रादि पर्यन्त) प्रतिदिन सहस्र सुवर्ण दान जन्य फलसम फल प्राप्ति कामोऽद्यारभ्य मकरस्थरविं यावत्प्रत्यहं गङ्गास्नानमहं करिष्ये ॥
  2. प्रतिदिन का संकल्प : ओं अद्य ………..….. (नाम-गोत्रादि पर्यन्त) प्रतिदिन सहस्र सुवर्ण दान जन्य फल सम फल प्राप्ति कामो मकरस्थेरवौ गङ्गायां प्रातःस्नानमहं करिष्ये ॥

संकल्प करके तत्पश्चात अगले मंत्रों को पढ़कर गंगा स्नान करे :

ओं माघमासमिमं पुण्यं स्नाम्यहं देव माधव । तीर्थस्याऽस्य जले नित्यं प्रसीद भगवन् हरे ॥
दुःखदारिद्रयनाशाय श्रीविष्णोस्तोषणाय च । प्रातःस्नानं करोम्यद्य माघे पापप्रणाशनम् ॥
मकरस्थे रवौ माघे गोन्दिाच्युत माधव । स्नानेनाऽनेन मे देव यथोक्तफलदो भव ॥
दिवाकर जगन्नाथ प्रभाकर नमोऽस्तु ते । परिपूर्णं कुरुष्वेदं माघस्नानं महाव्रतम् ॥

गंगा से भिन्न नदी/जलाशयादि में स्नान करने का मंत्र

  1. प्रथम दिन का संकल्प : ओं अद्य …….……… (नाम-गोत्रादि पर्यन्त) पद्मपुराणोक्त माघस्नानजन्यफल समफल प्राप्तिकामोऽद्यारभ्य मकस्थरविं यावत् प्रत्यहं प्रातः स्नानमहं करिष्ये ॥
  2. प्रतिदिन का संकल्प : ओं अद्य ………..….. (नाम-गोत्रादि पर्यन्त) पद्मपुराणोक्त माघस्नानजन्यफल समफल प्राप्तिकामो मकरस्थे रवौ प्रातः स्नानमहं करिष्ये ॥

संकल्प करके तत्पश्चात अगले मंत्रों को पढ़कर स्नान करे :

ओं दुःखदारिद्रयनाशाय श्रीविष्णोस्तोषणाय च । प्रातःस्नानं करोम्यद्य माघे पापप्रणाशनम् ॥
ओं मकरस्थे रवौ माघेगोविंदाच्युतमाधव । स्नानेनाऽनेन मे देव यथोक्तफलल्दो भव ॥

मंत्रोचारण करने के उपरांत मौन धारण करके स्नान करे। स्नान करने के उपरांत सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान करे।

सूर्यार्घ्य मंत्र : ओं सवित्रे प्रसवित्रे च परंधाम जलेमम। त्वत्तेजसा परिभ्रष्टं पापं यातु सहस्रधा॥

इस प्रकार स्नान के उपरांत विष्णु पूजन, हवन आदि प्रतिदिन करे। ब्रह्मचर्य धारण करे, भूमि पर शयन करे। षटप्रकार से तिल का प्रयोग करे। नित्य तेल, आंवला, कम्बल, वस्त्रादि का दान करे। दान प्रकरण में दो विषय आता है ब्राह्मणों को समंत्र दान देना और दरिद्रों में वितरण करना और दान का अर्थ आधुनिक नास्तिक सदैव दरिद्रों में वितरण ही बताते हैं जो कि पृथक कर्म है। ब्राह्मणों को (अटूट) भोजन कराये, आग तपाये, दानादि से संतुष्ट करे आदि में तात्पर्य ब्राह्मण ही होते हैं।

वर्तमान में तो दरिद्रों में वितरण करते समय विशेष सावधान रहना चाहिये। यह ध्यान रखना अनिवार्य है कि आप जिसे दे रहे हैं वह अधर्मी तो नहीं है, नास्तिक तो नहीं है। प्रायः देखा जा रहा है कि कहीं भोजन वितरण किया जा रहा है और “जय श्रीराम” बोलने को कहा जाता है तो विवाद होता है। धर्म हेतु धर्मात्मा को ही कुछ भी देना चाहिये उन अधर्मियों से तो वार्तालाप का भी शास्त्रों में निषेध है, भोजनादि देकर पालना तो बहुत बड़ी बात है। इसलिये यह अत्यावश्यक है कि आप जिसे देते हैं उसके बारे में जानकारी भी रखें कि वह धर्मात्मा है अथवा नास्तिक/अधर्मी है।

जब तक आश्वस्त न हो जायें जिसे दे रहा हूँ वह धर्मात्मा ही है तब तक न दें। आश्वस्त होने का एक मात्र यह प्रकार नहीं है कि “जय श्रीराम” बोलने के लिये कहा जाय भूख से व्याकुल होने पर यह तो कर भी सकता है, अन्य उपाय करके भी आश्वस्त होने के पश्चात् ही धर्म के उद्देश्य से किसी को कुछ प्रदान करें। उद्देश्य यदि धार्मिक न हो तो भिन्न विषय होता है।

सारांश : माघ मास का बड़ा ही महत्व है और विशेष नियमों के साथ इसका पालन किया जाता है। जब सूर्य मकर में होता है, तब माघ मास आरंभ होता है। माघ मास में स्नान करना आवश्यक है, विशेषरूप से प्रातः काल। माघ मास की शीत के कारण लोग स्नान को लेकर चिंतित रहते हैं, लेकिन प्रयाग में सहस्रों श्रद्धालु इसे श्रद्धा से मनाते हैं। माघ मास में वर्णाश्रम, लिंग, अवस्था आदि का कोई भेद किये बिना सबका अधिकार बताया गया है अर्थात पुरुष, महिलाएं, बच्चे और बड़े सभी स्नान कर सकते हैं। जो शारीरिक रूप से असमर्थ हैं, वे गर्म पानी से स्नान कर सकते हैं।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

Leave a Reply