क्या है मुंडन संस्कार ? विधि और मंत्र – चूडाकरण – mundan

क्या है मुंडन संस्कार ? विधि और मंत्र – चूडाकरण – mundan क्या है मुंडन संस्कार ? विधि और मंत्र – चूडाकरण – mundan

मध्य (पश्चिम) जूटिका छेदन :

पूर्व रात्र में 3 भाग में बांधे गये शिखा में से मध्य (पश्चिम) वाले का बंधन खोल दे ।

  1. ॐ सवित्रा प्रसूता दैव्या आप उन्दतु ते तनूं दीर्घायुत्वाय वर्चसे ॥ इस मंत्र को पढकर खोले गये शिखा तृतीयांश को मिश्रितोदक से धोये । तत्पश्चात तीन जगह से श्वेत शाही का कांटा लेकर उससे दूसरे मध्य जूटिका को पुनः तीन भागों में विभाजित करे।
  2. ॐ ओषधे त्रायस्व स्वधिते मैन हि सीः ॥ दाहिने हाथ से लौहक्षुर (अस्तूरा) ग्रहण करे और अगला मंत्र पढ़े :
  3. ॐ शिवो नामासि स्वधितिस्ते पिता नमस्ते अस्तु मा मा हि सीःफिर अगले मंत्र को पढ़ते हुये कुश सहित जूटिका में लौहक्षुर को संलग्न करे (स्पर्श करे) :
  4. ॐ निवर्तयाम्यायुषेऽन्नाद्याय प्रजननाय रायस्पोषाय सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय ॥ फिर अगले मंत्र को पढ़ते हुये कुश सहित जूटिका का छेदन करे :
  5. ॐ त्र्यायुषं जम्मदग्नेः कश्यपश्य त्र्यायुषं । यद्देवेषु त्र्यायुषं तन्नोऽअस्तु त्र्यायुषं ॥ फिर कुश और केश को पहले से रखे हुये अणियां बड़द के गोबर पर उत्तर भाग में रखे दे। (अथ पश्चात्त्र्यायुषमिति)

द्वितीय तृतीयांश छेदन : पुनः 3 कुश पत्र लेकर द्वितीय भाग को मूल में कुश का अग्र भाग लगाते हुये कुश सहित जूटिका के मध्य भाग को बांये हाथ से पकड़े और अगला मंत्र पढ़े :

  1. ॐ ओषधे त्रायस्व स्वधिते मैन हि सीः ॥ दाहिने हाथ से लौहक्षुर (अस्तूरा) ग्रहण करे और अगला मंत्र पढ़े :
  2. ॐ शिवो नामासि स्वधितिस्ते पिता नमस्ते अस्तु मा मा हि सीःफिर अगले मंत्र को पढ़ते हुये कुश सहित जूटिका में लौहक्षुर को संलग्न करे (स्पर्श करे) :
  3. ॐ निवर्तयाम्यायुषेऽन्नाद्याय प्रजननाय रायस्पोषाय सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय ॥
  4. एवं द्विरपरं तूष्णीम् – फिर चुपचाप कुश सहित जूटिका का छेदन करे । पूर्ववत कुश और केश को पहले से रखे हुये अणियां बड़द के गोबर पर उत्तर भाग में रखे दे।

उत्तर जूटिका छेदन :

पूर्व रात्र में 3 भाग में बांधे गये शिखा में से तृतीय (उत्तर) वाले का बंधन खोल दे ।

  1. ॐ सवित्रा प्रसूता दैव्या आप उन्दतु ते तनूं दीर्घायुत्वाय वर्चसे ॥ इस मंत्र को पढकर खोले गये शिखा को मिश्रितोदक से धोये । तत्पश्चात तीन जगह से श्वेत शाही का कांटा लेकर उससे दूसरे मध्य जूटिका को पुनः तीन भागों में विभाजित करे।
  2. ॐ ओषधे त्रायस्व स्वधिते मैन हि सीः ॥ दाहिने हाथ से लौहक्षुर (अस्तूरा) ग्रहण करे और अगला मंत्र पढ़े :
  3. ॐ शिवो नामासि स्वधितिस्ते पिता नमस्ते अस्तु मा मा हि सीःफिर अगले मंत्र को पढ़ते हुये कुश सहित जूटिका में लौहक्षुर को संलग्न करे (स्पर्श करे) :
  4. ॐ निवर्तयाम्यायुषेऽन्नाद्याय प्रजननाय रायस्पोषाय सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय ॥ फिर अगले मंत्र को पढ़ते हुये कुश सहित जूटिका का छेदन करे :
  5. ॐ येन भूरिश्चरा दिवं ज्योक् च पश्चादधि सूर्यम् । तेन ते वपामि ब्रह्मणा जीवातवे जीवनाय सुश्लोक्याय स्वस्तये॥ फिर कुश और केश को पहले से रखे हुये अणियां बड़द के गोबर पर उत्तर भाग में रखे दे।

द्वितीय तृतीयांश छेदन : पुनः 3 कुश पत्र लेकर द्वितीय भाग को मूल में कुश का अग्र भाग लगाते हुये कुश सहित जूटिका के मध्य भाग को बांये हाथ से पकड़े और अगला मंत्र पढ़े :

  1. ॐ ओषधे त्रायस्व स्वधिते मैन हि सीः ॥ दाहिने हाथ से लौहक्षुर (अस्तूरा) ग्रहण करे और अगला मंत्र पढ़े :
  2. ॐ शिवो नामासि स्वधितिस्ते पिता नमस्ते अस्तु मा मा हि सीःफिर अगले मंत्र को पढ़ते हुये कुश सहित जूटिका में लौहक्षुर को संलग्न करे (स्पर्श करे) :
  3. ॐ निवर्तयाम्यायुषेऽन्नाद्याय प्रजननाय रायस्पोषाय सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय ॥
  4. फिर चुपचाप कुश सहित जूटिका का छेदन करे । पूर्ववत कुश और केश को पहले से रखे हुये अणियां बड़द के गोबर पर उत्तर भाग में रखे दे।

इस प्रकार शिखाछेदन करने के बाद बरुआ के शिर को जल से धो दे। फिर अलगे मंत्र को पढ़ते हुये शिर के ऊपर प्रदक्षिण क्रम से तीन बार लौहक्षुर (अस्तूरा) घुमाये (त्रिः क्षुरेण शिरः प्रदक्षिणं परिहरति समुखं केशान्ते) : ॐ यत्क्षुरेण मज्जयता सुपेशसा वप्त्वा वा वपति। केशाञ्छिन्धि शिरो माऽस्यायुः प्रमोषीः ॥ पुनः मिश्रितोदक से बरुआ का शिर धो दे।

(ताभिरद्भिः शिरः समुद्य नापिताय क्षुरं प्रयच्छति । अक्षुण्वन्परिवपेति) तत्पश्चात नापित को लौहक्षुर देकर कहे :- ॐ अक्षुण्वन् परिवप ॥

यथामङ्गलं केशशेषकरणम् – फिर यथा कुलाचार शिखा पकड़कर नापित शिर का मुण्डन करे। उन केशों को माता या विधिकरी नये वस्त्र में ग्रहण करती रहे और फिर पूर्व के आसादित पुरनि के पत्ते के गोबर में दही-भात देकर उसी पर उन केशों को रखे। यहां यथाकुलाचार मुंडन का तात्पर्य कुलाचार से जिस पार्श्व में शिखा धारण किया जाता हो वहां शिखा छोड़ते हुये मुंडन करना है। कुलाचार अथवा नापित द्वारा शिखा पकड़ने का तात्पर्य शिखाविहीनता अर्थात शिखा स्थान का मुंडन करना नहीं शिखा छोड़कर मुंडन करना है।

फिर देशाचार पूर्वक बरुआ के शिर पर दही-हरिद्रा आदि का लेप करके स्नान पूर्वक नया वस्त्र धारण कराये (यदि उपनयन के साथ मुंडन किया जा रहा हो तो अंत में नया वस्त्र धारण कराया जाता है) शिर पर नया वस्त्र (तौलिया आदि) देकर शिर को ढंक दे। तिलक आदि करके आचार्य पूर्णाहुति करें –

  • पूर्णाहुति मंत्र : पूर्णाहुति के लिये आचार्य खड़े होकर पूर्णाहुति द्रव्य लें, बटुक अपने दाहिने हाथ से आचार्य के दाहिने हाथ को पकड़े या स्पर्श करे, थोड़ा झुककर अगले मंत्र से आचार्य पूर्णाहुति करें : ॐ मूर्द्धानन्दिवो ऽअरतिम्पृथिव्या वैश्वानरमृत ऽआजातमग्निम् ॥ कवि ᳪ सम्म्राजमतिथिं जनानामासन्ना पात्रञ्जनयन्त देवाः स्वाहा ॥
  • भस्म धारण : स्रुव के पृष्ठभाग में ईशान कोण से भस्म ग्रहण कर पवित्री द्वारा प्रणीतोदक से सिक्त करके क्रमशः ललाट, कण्ठ, दक्षिणबाहु और हृदय पर लगाए – ॐ त्र्यायुषम्जमदग्नेः (ललाट पर) । ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषं (कंठ में) । ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषं (दक्षिण बाहु पर) । ॐ तन्नोऽअस्तु त्र्यायुषं (हृदय में) । पुनः बरुआ को भी भस्म लगाये : ॐ त्र्यायुषम्जमदग्नेः (ललाट पर) । ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषं (कंठ में) । ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषं (दक्षिण बाहु पर) । ॐ तत्तेऽअस्तु त्र्यायुषं (हृदय में) ।

दूर्वाक्षत

दूर्वाक्षत मंत्र : ॐ आब्रह्मन ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यौऽतिव्याधि महारथो जायताम दोघ्री धेनुर्वोढा नड्वानाशुः सप्ति पुरन्ध्रिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवाऽस्य यजमानस्य वीरोजायाताम। निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न औषधयः पच्यन्ताम योगक्षेमोनः कल्पताम् ॥ मंत्रार्था: सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रुणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव ॥

फिर दूर्वाक्षत आदि देकर, केश सहित गोबर को गोशाला (बथान) में भूमि के अंदर निक्षेप करे या तालाब, नदी आदि पवित्र जल में प्रवाहित करे। ब्राह्मण भोजन कराये।

“संवत्सरं ब्रह्मचर्यमवपनं च केशान्ते द्वादशरात्रं षड्रात्रं त्रिरात्रमन्ततः”

॥ इति पं० दिगम्बर झा सुसम्पादितं “करुणामयीटीकाऽलंकृतं” वाजसनेयिनां चूडाकरणविधिः ॥

इस चूडाकरण विधि में विधि और मंत्रों को स्पष्ट करते हुये शुद्ध रखने का प्रयास किया गया है। तथापि त्रुटि सदा संभावित रहती है; यदि किसी प्रकार की कोई त्रुटि मिले ये सुझाव देना चाहें तो व्हाटसप पर सन्देश भेजें : 7992328206

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F & Q :

प्रश्न : बच्चों का मुंडन संस्कार कब करना चाहिए?
उत्तर : बच्चों का मुंडन संस्कार उत्तरायण में पञ्चाङ्ग के अनुसार शुभ मुहूर्त बनवाकर विधि पूर्वक चूडाकरण निमित्त हवन करके शिखास्थापन के उपरांत करना चाहिये।

प्रश्न : मुंडन की सही उम्र क्या है?
उत्तर : मुंडन के लिये शास्त्रोक्त उचित आयु 1 और 3 वर्ष है जिसे उत्तम कहा गया है। 5 और 7 वर्ष में करे तो मध्यम और 9 वर्ष में न करे एवं 11 वर्ष को अधम कहा गया है।

प्रश्न : मुंडन के बाद बालों का क्या करते हैं?
उत्तर : मुंडन के बाद बालों को जो अणियां बड़द का गोबर रखा हुआ होता है उस पर रखा जाता है। फिर गोबर सहित गोष्ठ (गोशाला, बथान) की भूमि में गड्ढा करके निक्षेप कर दिया जाता है अथवा निकटतम पवित्र जलाशय में प्रवाहित कर दिया जाता है।

प्रश्न : मुंडन संस्कार कब नहीं करना चाहिए?
उत्तर : मुंडन संस्कार सम वर्षों में और 9 वें वर्ष में नहीं करना चाहिये। तथापि द्वितीय वर्ष में करने का जिसका कुलाचार हो उसे निषिद्ध नहीं किया गया है। बच्चे की माता गर्भवती हो तो भी नहीं किया जाता है अथवा यदि माता रजस्वला हो जाये तो भी नहीं करना चाहिये।

प्रश्न : क्या हम रविवार को मुंडन कर सकते हैं?
उत्तर : नहीं; रविवार, मंगलवाल और शनिवार को मुंडन करने का निषेध किया गया है इसलिये रविवार को मुंडन नहीं करना चाहिये। सामान्य रूप से रविवार को मुंडन नहीं करना चाहिये।

प्रश्न : क्या गुरुवार को मुंडन किया जा सकता है?
उत्तर : हां; गुरुवार को मुंडन किया जा सकता है। सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार मुंडन के लिये शुभ होता है।

प्रश्न : क्या गुरुवार को बाल काटना बुरा है?
उत्तर : नहीं; गुरुवार को बाल कटाना बुरा अर्थात अशुभ नहीं है। मात्र विद्यार्थी के लिये गुरुवार को बाल कटाने के निषेध किया गया है।

प्रश्न : मुंडन संस्कार में क्या गिफ्ट देना चाहिए?
उत्तर : मुंडन संस्कार में सोने के लॉकेट, कपड़े (काला रंग छोड़कर) आदि गिफ्ट दिया जाता है।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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