एक ऐसा समय था जब रात में चौकीदार घूमा करते थे और चोर-उचक्कों से बचाव के लिये जागते रहो चिल्लाया करते थे। अब हम जैसों को भी जागते रहो चिल्लाना पड़ेगा क्योंकि यत्र-तत्र-सर्वत्र उन चोर-उचक्कों ने वेष बदल कर, तिलक लगाकर, मालाओं का बोझ उठाते हुये बाबाओं का रूप धारण कर लिया है और इनसे बचाने वाला कोई नहीं है। जो भी हैं इनका सहयोग ही करते हैं चाहे मीडिया हो या राजनीति, सिस्टम हो या इको सिस्टम ! सबकी मोटी कमाई होती है, किसी को नोट मिलता है तो किसी को वोट। यहां हम सूरज पाल जो स्वयंभू हरिहर था के संदर्भ में सनातन के साथ हो रहे षडयंत्र की चर्चा करेंगे।
जागते रहो : बाबाओं का लगा है मेला, हो रहा है ठेलम-ठेला
सूरज पाल बहुत चर्चा में है और अनुयायियों की भी संख्या बहुत बड़ी है। तब किसी ने कोई प्रश्न नहीं उठाया था जब यह भगवान बना घूमता था क्योंकि किसी को नोट मिलता था और किसी को वोट। सूरज पाल उसी तरह का बाबा था जैसा कुछ फिल्मों में चोर-उचक्के को बाबा बनाया हुआ दिखाया जाता है।
यद्यपि उन फिल्मों का लख्य भी सनातन पर प्रहार करना ही होता है तथापि उन्हीं में से किसी फिल्म को देखकर सूरज पाल जो की कभी सिपाही था और यौन शोषण तक का आरोपी था बाबा बन गया भगवान का अवतार बन गया। जगत का रचयिता बन गया, परमात्मा बन गया। मात्र सनातन का ही परमात्मा नहीं अपितु सभी पंथों का स्वयंभू अवतार बताया जाता रहा है। अनुयायियों की एक बड़ी भीड़ बना लिया।
हो सकता है सूरज पाल पर आप आक्रोशित हों किन्तु ये भी हो सकता है कि आप भी किसी सूरजपाल जैसे ही दिव्यात्माओं के अनुयायी बने हों। ये कोई भी नई बात नहीं है ऐसा प्राचीन काल से ही होता रहा है और इसी कारण आज कई पंथ हैं जिसे भारत में धर्म भी कह दिया जाता है। पहले इस परंपरा को समझाना आवश्यक है।
परंपरा
एक प्राचीन परंपरा है जिसमें कोई विशेष व्यक्ति अपने समाज, क्षेत्र के मूर्ख लोगों को प्रभावित करते हुये अनुयायी बनाकर स्वयंभू अवतार बन गया और नये पंथ का निर्माण कर लिया। इन पंथो के नाम बताना आवश्यक नहीं है किन्तु आज उन पंथों को धर्म भी कहा जाने लगा है। उन पंथों को कोई विद्वान धर्म नहीं बताता राजनीति और मीडिया सबको धर्म बताती है। ये प्राचीन परंपरा रही है।
सौ – दो सौ साल पहले भी ऐसे कई दिव्य प्राणी उत्पन्न हुये थे जिन्होंने अपना-अपना परिवार, आश्रम, समाज आदि बनाया। इनके नामों का उल्लेख करना भी उचित नहीं होगा, बस संकेत कर दिया गया है और संकेत से ही समझना होगा। ये दिव्यात्मा स्वयं को परमात्मा तो नहीं कहते थे किन्तु महात्मा, विद्वान आदि सिद्ध करते हुये मूल सनातन से भिन्न और थोड़ा सा मूल सनातन का भी अंश लेकर एक नया पंथ जैसा ही बनाते रहे हैं।
समस्या बस इतनी रही है पर्व-त्योहारों के माध्यम से किसी न किसी प्रकार इनके अनुयायी आंशिक ही सही मूल सनातन को छोड़ भी नहीं पाया है। और इन दिव्यात्माओं को भी ज्ञात था कि यदि पर्व-त्योहारों (होली, दिवाली, रक्षाबंधन, मकर संक्रांति, नवरात्रा, एकादशी, कुम्भ आदि) से हटाने का प्रयास किया जाय तो वो अनुयायी इनका ही त्याग कर देंगे। इसी कारण से इन दिव्यात्माओं ने स्वयं को भगवान नहीं बताया और मूल सनातन का थोड़ा-थोड़ा अंश ग्रहण किया। जैसे किसी ने गायत्री को लिया, किसी ने 33 कोटि को प्रकार कहकर लिया।
ये परंपरा कुछ दशक पहले भी चल रही थी और 2000 के बाद भी चल रही है। कुल मिलाकर सूरज पाल स्वयंभू भगवान बनते हुये एक नया पंथ बना रहा था और उसी श्रेणी में आता है। सूरज पाल इकलौता नहीं है, ऐसे लाखों हैं जो अपने साथ एक बड़ी भीड़ जूटा लेते हैं, सूरज पाल से दो और नाम आप सभी को याद आता होगा आशाराम और राम-रहीम। इसलिये यदि ये भ्रम हो कि सूरज पाल इकलौता है तो और नहीं तो इस भ्रम को मस्तिष्क से निकालना होगा।
मीडिया का सच
मीडिया के इतने काले कारनामे हैं कि मीडिया कुछ भी कहे अपना दिमाग लगाना होगा। मीडिया की बातों को कभी भी सच नहीं माना जा सकता है। आज सूरज पाल को ऐसा अपराधी बनाकर प्रस्तुत कर रही है जैसे उसने अपनी दुकान पर ताला लटकाने के लिये जान-बूझकर 121 लोगों की हत्या करा दिया। यही मीडिया लोगों के शयनकक्ष में भी पहुंच जाती और यही मीडिया कह रही है कि सूरजपाल हमें कवर करने नहीं देता था। मीडिया को कुछ दिया जाता था क्या जिसके कारण मीडिया के पास कुछ नहीं है।
दूसरी बात यह भी है चलो सच मान लिया, ऐसा यह अकेला नहीं है ऐसे ढेरों हैं क्या किसी के बारे में मीडिया बता रही है। मैं बताता हूँ मीडिया आपको क्या बता रही है। ऐसे ही बाबाओं को या चिरकुट बाबाओं को जिसकी तुलना सूरजपाल से नहीं की जा सकती मीडिया अपने स्टूडियो में बैठाकर हर दिन आपको दिखाती है। राशिफल और पञ्चाङ्ग बताते हुये इसी मीडिया में बाबा प्रपोजल का मुहूर्त भी बताते मिलते हैं।
यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि सनातन में विवाह करने का प्रस्ताव तो दिया जा सकता है किन्तु प्रेम करने का प्रस्ताव देने का कोई नियम नहीं है और जो ज्योतिषी टीवी में बैठकर प्रपोजल का शुभ मुहूर्त बता रहे होते हैं वो भी चिरकुट ही होते हैं। सनातन में I Love You जैसा शब्द बोलने के लिये है ही नहीं, व्यवहार से प्रकट करने की परंपरा है। जो लोग व्यवहार से प्रकट नहीं कर सकते उन लोगों ने शब्दों का सहारा लिया है।
सनातन में इस प्रकार के प्रकटीकरण हेतु सीधा नियम विवाह प्रस्ताव देने का है न कि प्रेम प्रस्ताव देने का। इसीलिये विवाह मुहूर्त, हस्तग्रहण, वरवरण, कन्यावरण आदि का मुहूर्त होता है। प्रेम करता हूँ, प्रेम करो ऐसा कोई प्रस्ताव देने का विधान नहीं है। जब विधान ही नहीं है तो मुहूर्त कहां से आ जायेगा। प्रपोजल का कोई मुहूर्त नहीं होता है लेकिन हर दिन मीडिया स्टूडियो में किसी चिरकुट को बैठकर आपको प्रपोजल मुहूर्त तक बताती रहती है।
- धीरेन्द्र शास्त्री जो स्वयं की नहीं भगवान की पूजा करने के लिये कहते थे उनके ऊपर मीडिया कैसे टूट पड़ी थी ये सभी जानते हैं।
- फिर इस ढोंगी सूरज पाल ने ऐसी कौन सी गोली दे रखी थी कि मीडिया आंख मूंदे सो रही थी ?
- ये ढोंगी इकलौता नहीं है ऐसे अनेकों पाखंडी हैं जिसमें से कई को तो मीडिया परोसती भी है।
- ये ढोंगी कहीं से सनातन के लिये काम नहीं कर रहा था किन्तु मीडिया सीधे-सीधे सनातन पर प्रहार कर रही है।
मीडिया जो दिन से रात तक बाबा-बाबा चिल्ला रही है तो किसी आस्था कमजोर हो रही है ? उनकी आस्था कमजोर हो रही है जो ऐसे किसी ढोंगी के अनुयायी नहीं है किन्तु मूल सनातन से जुड़े हैं, घर पर मांगने के लिये जो बाबा आते हैं उनके प्रति श्रद्धा रखते हैं, जो पास में रहने वाले ब्राह्मणों पर विश्वास करते हैं। सूरज पाल जैसा ढोंगी भी यही करता है और भेद खुलने के बाद मीडिया भी आग में घी डालती है।
राजनीति
कई ढोंगी बाबाओं का जन्म ही राजनीति से होता है अर्थात राजनीति करने वाले बाबा बना देते हैं, कई ढोंगी बाबा के साथ वाली भीड़ को देखकर राजनीति उनके चरणों से लिपट जाती है। मतलब ढोंगी बाबाओं और राजनीति में बड़ा घनिष्ठ संबंध होता है। लोकतंत्र है न और लोकतंत्र को प्रभावित करने के लिये कुछ लोग स्वयं ही ढोंगी बाबा बनकर बड़ी भीड़ जमा कर लेते हैं तो कभी राजनीति ही बड़ी भीड़ को जमा करके वोट में बदलने के लिये किसी ढोंगी को बाबा बना देती है।
हम उस विषय की तो यहां चर्चा ही नहीं करेंगे कि कैसे देवता भी बना दिये जाते हैं कई उदहारण हैं जिसमें फिल्म, सिस्टम, राजनीति, मीडिया सबने मिलकर किसी म्लेच्छ को भी देवता बना दिया और मूर्तियां बिक रही है। हिन्दू घरों में मूर्ति बिठाकर पूजा करने लगे हैं और कई मंदिर बना दिया गया है जहां कमाई की जाती है।
राजनेताओं के धर्म के बारे में यदि चर्चा करें तो एक शब्द में ही कहा जा सकता है कि राजनेताओं का धर्म से कोई लेना-देना नहीं होता, जो कुछ भी दिखाया जाता है वह प्रदर्शन मात्र होता है पूजा-पाठ नहीं, धर्म नहीं। योगी जैसे कुछ को छोड़कर, लेकिन यहां हो सकता है आप चौंक गये होंगे कि मोदी का नाम क्यों नहीं लिया गया ? हो सकता है आप मोदीभक्त हों इसलिये आपको मोदी धर्म का अवतार लगते हों, किन्तु यदि मोदी और धर्म का संबंध समझना हो तो इस आलेख को पढ़ें।
वामपंथी और इकोसिस्टम
वामपंथ की जैसे ही चर्चा की जाय तो उसके साथ इकोसिस्टम की चर्चा भी अपेक्षित हो जाती है। आज पूरी दुनियां में जिसे इकोसिस्टम कहा जाता है वह वामपंथ का ही इको सिस्टम है। वामपंथियों ने हिन्दुओं को छलने और ठगने का नया तरीका भी अपना लिया है। जो डिगने वाले होते हैं उसे छल-बल से सीधे खींच लेते हैं और जो नहीं डिगने वाले होते हैं उनको दिव्यात्मा बाबा देकर ठगते हैं, लूटते हैं।
ये प्रसिद्ध बाबाओं काथवक्ताओं का जो मेला लगा हुआ है जिसमें ठेलम-ठेला (प्रतियोगिता) मची हुई है ये कोई न तो बाबा है न कथावाचक (कुछ अपवादों को छोड़कर), ये सबके सब ठग हैं। वामपंथियों के साथ जो इकोसिस्टम है वह जिसे चाहे एक दिन में बहुत बड़ा युट्यूबर बना सकता है, नेता (चुनाव में भले हार जाये) बना सकता है, बाबा बना सकता है, सामाजिक कार्यकर्त्ता बना सकता है इत्यादि-इत्यादि। फिल्मों में जो दिखाया जाता है कि खटाखट बाबा बना दिया वो झूठा नहीं दिखाया जाता वो सच ही होता है।
इतनी गहन व्याख्या करने के बाद भी मैं कुछ नहीं हूँ किन्तु यदि वामपंथियों के अनुकूल व्याख्या आरंभ कर दूँ तो रातों-रात हमें भी अंतरराष्ट्रीय बाबा बना देंगे। ये आलेख 2 – 4 सौ लोगों तक ही जा सकती है किन्तु यदि यही आलेख वामपंथियों की विचारधारा को पुष्ट करने वाली होती तो 10 – 20 लाख लोगों तक पहुंचना कोई बड़ी बात नहीं होती, क्योंकि यही इको सिस्टम है। ऐसा ही षड्यंत्र स्वतंत्र भारत में रचा जा रहा है।
सूरजपाल की वास्तविकता
निष्कर्ष : सूरज पाल का वामपंथ से कैसा संबंध था, ढोंगी बाबा बनने के बाद वामपंथियों से संपर्क हुआ या वामपंथियों ने ही बाबा बना दिया ये तो जांच के बाद ज्ञात हो पायेगा। लेकिन सूरजपाल सनातन के लिये काम नहीं करता था, सनातन के साथ षड्यंत्र कर रहा था। भगवान को मानता नहीं था किन्तु स्वयं को ही भगवान कहता था। सूरजपाल का राजनीतिक प्रभाव क्या था इसको बस इतने से समझा जा सकता है कि कोई छोटे-मोटे वास्तविक बाबा होते तो जेल के अंदर होते। इसका राजनीतिक प्रभाव ऐसा है कि FIR में नाम तक नहीं आया।
जागते रहो : बाबाओं का लगा है मेला, हो रहा है ठेलम-ठेला, भाग – 2
जागते रहो का यह भाग 1 है, शीघ्र ही भाग 2 लेकर आयेंगे। तब तक जबकि आप जान गये हैं कठिनता से कुछ लोगों तक ही ये सच्चाई पहुंच पायेगी क्योंकि इकोसिस्टम के विरुद्ध है, ऐसी स्थिति में यदि आप सच्चाई समझ गये हैं, सहमत हैं तो लाखों लोगों को सच्चाई से अवगत कराना आपका भी दायित्व होता है, इसके लिये आप विविन्न माध्यमों से लोगों के साथ साझा कर सकते हैं। नीचे भाग 2 के कुछ अंश दिये जा रहे हैं :
“जैसे ही कोई बाबा “मानव धर्म – मानव धर्म “करे समझ जाओ वह ढोंगी है पाखंडी है। सनातन में सम्पूर्ण प्रकृति के प्रति दायित्व बताया गया है मानव मात्र के प्रति नहीं। मानव धर्म सनातन का मात्र एक छोटा सा अंश है, जो मानव धर्म मात्र चिल्लाते हैं वो सनातन से अनभिज्ञ होते हैं सनातन के द्रोही ही होते हैं।”
“यदि धर्म के बारे में जानना-समझना है तो गांवों में जाकर समझो-सीखो, टीवी पर नट बनकर गाने-बजाने वालों से नहीं”
ये टीवी पर दिखने वाले कभी आपको सच नहीं बताते हैं, बोल ही नहीं सकते क्योंकि सच बोलेंगे तो इको सिस्टम निगल जायेगा इस भय से भयभीत रहते हैं, धीरेन्द्र शास्त्री एक ही है अनेकों नहीं। लेकिन धीरेन्द्र शास्त्री को भी बोलने में सोचना पड़ता है कि कोई ऐसी बात न निकल जाये कि लेकर डूब जाये। जो धीरेन्द्र शास्त्री मीडिया से लड़े और जीते वो धीरेन्द्र शास्त्री भी आपको धर्म की सच्ची बातें खुले मंच से नहीं बता सकते औरों की तो बात ही क्या करें।
सूरज पाल से साकार हरि कहां-कहां जुड़ी कड़ी
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