महाष्टमी निशापूजा, देवी जागरण – Navratri 8

महाष्टमी पूजा, निशापूजा विधि, देवी जागरण

नवरात्र में निशीथव्यापिनी अष्टमी को महानिशापूजा होती है। इसी को जगरना या देवी जागरण आदि भी कहा जाता है। यह प्रायः उदयव्यापिनी सप्तमी के दिन ही प्राप्त होता है तथापि यह आवश्यक नहीं है। उदयव्यापिनी अष्टमी भी निशीथव्यापिनी हो सकती है। जब उदयव्यापिनी अष्टमी ही निशीथव्यापिनी भी होती है तब अगले दिन निशापूजा किया जाता है। निशापूजा में देवी का स्मरण, कीर्तन, दर्शन, वंदन आदि करके भगवती की पूजा, आवरण पूजा, मातृपूजा, भैरवपूजा, क्षेत्रपाल पूजा, अंगपूजा, पंचवक्त्र पूजा, अस्त्रपूजा, कुमारी पूजा आदि की जाती है। यहां महाष्टमी पूजा सहित महानिशा पूजा के विधि और मंत्र दिये गये हैं।

महाष्टमी पूजा, निशापूजा या महानिशापूजा तीनों और महाष्टमी व्रत तीनों भिन्न हैं और ये आवश्यक नहीं कि तीनों एक ही दिन हो। महाष्टमीपूजा व महाष्टमी व्रत ये दोनों एक दिन ही होते हैं, कभी-कभी तीनों एक दिन भी हो सकते हैं। इस आलेख में सर्वप्रथम महाष्टमी पूजा और निशापूजा के निर्णय का विचार किया गया है। तत्पश्चात महाष्टमी पूजा और तत्पश्चात महानिशा पूजा की विधि दी गयी है। किन्तु पूजा क्रम में ये अनिवार्य नहीं है कि महाष्टमी पूजा के उपरांत ही निशापूजा होगी।

पहली रात को निशापूजा होने के उपरांत अगले दिन प्रातः भी महाष्टमी पूजा हो सकती है यह अष्टमी के आरंभ और समाप्ति काल से ज्ञात किया जाता है।

निर्णय : महाष्टमी पूजा और निशापूजा

निशापूजा से ही अर्थ स्पष्ट हो जाता है रात्रि काल में की जाने वाली पूजा। महाष्टमी पूजा का तात्पर्य उदया अष्टमी के दिन में की जाने वाली पूजा है और निशापूजा का तात्पर्य निशीथ व्यापिनी अष्टमी में की जाने वाली विशेष पूजा-अर्चना।

रात्रिकृत्य रात्रियोग के आधार पर और दिवाकृत्य दिवायोग के आधार पर निर्धारित किये जाते हैं। समयप्रदीप में विचार करने की यही विधि बताई गयी है – रात्रिकृत्येषु सर्वेषु रात्रियोगः प्रशस्यते । दिवाकृत्ये दिवायोगो भास्करोदयसङ्गतः ॥ अर्थात निशापूजा का कर्मकाल रात्रि है तो जो तिथि नक्षत्र आदि प्रशस्त हों वो रात्रि में उपलब्ध होने चाहिये, निशापूजा के लिये अष्टमी तिथि का उल्लेख किया गया है। स्कन्द पुराण में निशापूजा हेतु यह वचन प्राप्त होता है – अष्टमीयुक्त काले तु निशार्धे परमेश्वरीम् । समभ्यर्च्य बलिं दद्यात् सर्वाभीष्टफलाप्तये॥

निशाकाल में अष्टमी हो यह सिद्ध हो जाता है, पुनः उसका और सूक्ष्म विचार किया जाता है कि आद्य-मध्य-अंत मुख्य काल किसे माना जाय ? महानिशा पूजा हेतु निशीथकाल (मध्यरात्रि) को मुख्यकाल बताया गया है एवं तदनुसार ही वचन प्राप्त होते हैं कि निशीथव्यापिनी अष्टमी को निशापूजा करे। सामान्य रूप से अष्टमी और नवमी की युति को प्रशस्त कहा गया है एवं सप्तमी अष्टमी युति को अग्राह्य। निशीथ व्यापिनी का तात्पर्य है कि जिस दिन भी निशीथव्यापिनी हो उसी दिन निशापूजा करे।

यदि दोनों दिन निशीथव्यापिनी अष्टमी हो तो अगले दिन को ग्रहण करने की आज्ञा है। कृत्य महार्णव में कहा गया है – पूर्वेद्युरपरेद्युश्चेन्निशीथव्यापिनी तिथिः । परेद्युरेव सा ग्राह्याऽष्टमी न सप्तमीयुता ॥ अष्टमी नवमीयुक्ता नवमी चाष्टमीयुता । अतीव सा प्रशस्ता स्याद् देव्याः पूजनकर्मणि ॥ पुनः इसी प्रकार यदि दोनों में से किसी दिन भी निशीथव्यापिनी अष्टमी प्राप्त न हो तो भी अगले दिन को ही ग्रहण करे क्योंकि प्रथम तो उदयातिथि प्राप्त होगी, द्वितीय प्रशस्त युति होगी। योगिनीतन्त्र में कहा गया है – उभयत्र दिने न स्यान्निशीथव्यापिनी यदा । तथा परैव संग्रह्या रवेरुदयगामिनी ॥

महाष्टमी पूजा प्रातः कालीन (उदय व्यापिनी अष्टमी ग्राह्य)

महाष्टमी पूजा दिवाकृत्य है एवं निशापूजा से पृथक पूजा है। महाष्टमी पूजा उदया अष्टमी को ही कर्तव्य है। प्रतिदिन की भांति कलश व कलशवाहित देवताओं की पूजा करके त्रिकुशा-तिल-जल-द्रव्यादि लेकर महाष्टमी पूजा का संकल्प करे :

संकल्प

ॐ अद्याश्विने मासि शुक्ले पक्षे महाष्टम्यां तिथौ ………. गोत्रस्य श्री ………. शर्मणः एतद्ग्रामवासिनां नानानां गोत्राणां सकलजनानां एतत्पूजोपकारकाणां अन्यद्ग्रामवासिनां चोपस्थितशरीराविरोधेन महाभयाभाव पूर्वक श्रीदुर्गाप्रीतिकामः साङ्गसायुधसवाहनसपरिवार भगवत्याः श्रीदुर्गादेव्याः पूजनमहं करिष्ये ॥

संकल्पोपरांत ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी । दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वधा स्वाहा नमोस्तु ते ॥ आदि मंत्रों द्वारा प्रणाम करे। पुष्पादि ग्रहण कर भगवती का ध्यान करे :

ध्यान

आवाहन

ॐ एहि दुर्गे महाभागे रक्षार्थं मम सर्वदा। आवाहयाम्यहं देवि सर्वकामार्थसिद्धये ॥
अस्यां मूर्ती समागच्छ स्थिति मत्कृपया कुरु । रक्षां कुरु सदा भद्रे विश्वेश्वरि नमोस्तु ते ॥
ॐ भगवतिदुर्गे इहागच्छ इह तिष्ठ इह सन्निषेहि इह स्थिता भव इह सुप्रसन्ना भव ॥

पाद्य : आवाहन करने के उपरांत पुष्पचंदनयुत जल से पाद्य प्रदान करे :

ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी । दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वधा स्वाहा नमोस्तु ते ॥
ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा’ इदं पाद्यम् ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥

अर्घ्य : अर्घ्यपात्र में जल-कुङ्कुम-बिल्वपत्राक्षत-पुष्प-दधि-दूर्वा-कुशाग्रत्रय-तिल-यव आदि लेकर प्रदान करे : ‘ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिण स्वाहा’ एषोऽर्घः ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥

  • आचमन : ‘ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिण स्वाहा’ इदमाचमनीयम् ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥
  • स्नान : ‘ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिण स्वाहा’ इदं स्नानीयम् ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥
  • मधुपर्क : ‘ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिण स्वाहा’ इदं मधुपर्कम् ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥
  • आचमन : इदं पुनराचमनीयम् ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥
  • चन्दन : इदं चन्दनम् ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥
  • सिन्दूर : इदं सिन्दूरम् ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥
  • कुंकुम : इदं कुङ्कुमाद्यनुलेपनम् ॐ साङ्गसायुधसवाहनसपरिवारश्रीदुगदिव्ये नमः ॥
  • पुष्प : इदं पुष्पं ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥

बिल्वपत्र : ॐ अमृतोद्भव श्रीवृक्षं शङ्करस्य सदा प्रियस् । बिल्वपत्रं प्रयच्छामि पवित्रं ते सुरेश्वरि ॥ ‘ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिण स्वाहा’ एतानि बिल्वपत्राणि ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥

द्रोणपुष्प : ॐ ब्रह्मविष्णुशिवादीनां द्रोणपुष्पं सदाप्रियम् । तत्ते दुर्गे प्रयच्छामि सर्वकामार्थसिद्धये । ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा एतानि द्रोणपुष्पाणि ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥

फिर जाती-चम्पक-पद्म-कुमुद-मल्लिका-करवीर-जपादिकुसुम आदि यथोपलब्ध नाना प्रकार के पुष्प अर्पित करे।

  • धूप : ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा एष धूपः ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥
  • दीप : ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा एष दीपः ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥
  • नैवेद्य : ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा एतानि नानाविघनैवेद्यानि ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥
  • आचमन : इदं पुनराचमनीयम् ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥
  • मुक्तारत्न : ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा एतानि मुक्तारत्नानि ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥
  • छत्र : ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा इदं छत्रं वनस्पतिदैवतम् ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥
  • उपानद् : ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा इमे उपानहावुत्तानाङ्गिरोदैवते ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥
  • वस्त्र : ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा एतानि वासांसि बृहस्पतिदैवतानि ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥

आवरण पूजा – पीठपूजा

पीठ पर अष्टदल निर्माण करके गंधपुष्पाक्षत से क्रमशः पूजा करे :

  • अग्निकोण : ॐ हृदयाय नमः ॥
  • नैऋत्यकोण : ॐ दुर्गे शिरसे स्वाहा॥
  • वायव्य कोण : ॐ दुर्गे शिखायै वषट् ॥
  • ईशानकोण : ॐ रक्षिणि कवचाय हुँ॥
  • मध्य : ॐ स्वाहा नेत्राभ्यां वौषट् ॥
  • सर्वदिक्षु : ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा अस्त्राय फट् ॥

तत्पश्चात देवी की शक्तियों का आवाहन करके नाममंत्रों द्वारा पंचोपचार पूजन करे :

  • ॐ ह्रीं मङ्गले इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ ह्रीं मङ्गलायै नमः ॥
  • ॐ ह्रीं कालि इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ॐ ह्रीं काल्यै नमः ॥
  • ॐ ह्रीं भद्रकालि इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ ह्रीं भद्रकाल्यै नमः ॥
  • ॐ ह्रीं कपालिनि इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ ह्रीं कपालिन्यै नमः ॥
  • ॐ ह्रीं शिवे इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ ह्रीं शिवाये नमः ॥
  • ॐ ह्रीं धात्रे इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ ह्रीं धात्र्यै नमः ॥
  • ॐ ह्रीं स्वधे इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ ह्रीं स्वधायै नमः ॥

तत्पश्चात अंजलिबद्ध होकर भविष्यपुराणोक्त स्तुति करे :

ततो वरप्रार्थनम्

पुष्पाञ्जलित्रय

नीराजन : ॐ कर्पूवर्तिसंयुक्तं वह्निना दीपितञ्च यत्। नीराजनं च देवेशि गृह्यतां जगदम्बिके ॥ इदं नीराजनम् ………॥

पञ्चवर्तिनीराजन : ॐ पञ्चवर्तिसमायुक्तं गोघृतेन च पूरितम् । नीराजनं जगद्वन्द्ये गृहाणाऽम्ब नमोस्तु ते ॥ इदं पञ्चवर्तिनीराजनम् ………॥

अच्छिद्रावधारण : ॐ दुर्गे देवि महामाये यादृक्पूजा मया कृता । अच्छिद्रास्तु शिवे साङ्गा तव देवि प्रसादतः ॥

साष्टाङ्ग प्रणाम करे : ॐ प्रार्थयामि महामाये यत्किञ्चित् स्खलितं मम । क्षम्यतां तज्जगन्मातः दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥

दत्त्वा महासप्तम्युक्तप्रकारेण बलिदानं कुमारीपूजनं च कुर्यात् । यथाशक्ति सुवासिनीः ब्राह्मणांश्चाभोजयेत् ।

तत्पश्चात बलिदान, कुमारीपूजन करके यथासंभव सुवासिनी-ब्राह्मण भोजन आदि कराये।

उपरोक्त महाष्टमी पूजा दिवाकृत्य है, न कि निशापूजा। यह महाष्टमी पूजा उदयव्यापिनी अष्टमी के दिन करे।

अथ महाष्टम्यां निशापूजा

नीचे महानिशापूजा की विधि बताई गयी है, निशा पूजा निशीथव्यापिनी अष्टमी में करे। पूजा की सभी सामग्री व्यवस्थित करके पवित्रीकरण आदि कर ले। फिर त्रिकुशा-तिल-जल-द्रव्यादि लेकर संकल्प करे :

महानिशापूजा संकल्प

तत्पश्चात पुनः त्रिकुशा-तिल-जल-द्रव्यादि लेकर महाष्टमी में स्मरणादि का संकल्प करे : ॐ अस्यां महाष्टम्यां रात्रौ सर्वविधमहाभयाभावकामः श्रीदुर्गादेव्याः स्मरणं, दुर्गालोकमहतत्वकामो श्रीदुर्गानामकीर्तनं, श्रीदुर्गाभिवन्दनजन्य पुण्याधिकपुण्यलाभकामः श्रीदुर्गायाः स्पर्शनं, परमपदप्राप्तिकामः श्रीदुर्गायाः दर्शनमहं करिष्ये ॥

तत्पश्चात पुष्प-फल-द्रव्यादि लेकर क्रमशः स्मरण, कीर्तन, दर्शन, वंदन, पूजन आदि करे :

ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी । दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वधा स्वाहा नमोस्तु ते ॥ आदि मंत्रों द्वारा प्रणाम करे। तत्पश्चात महाष्टमी पूजा की विधि (ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिण स्वाहा’ एषोऽर्घः ॐ साङ्ग सायुधसवाहनसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥) से पुनः देवी का पूजन करे।

अथावरणपूजा

आवरण पूजा में सभी देवताओं का आवाहन करे और गंध-पुष्पादि से पंचोपचार पूजन करे। पंचोपचार पूजन का तात्पर्य होता है गंध-पुष्प-धूप-दीप और नैवेद्य। यहां सबका आवाहन मंत्र और पंचोपचार पूजन हेतु नाममंत्र दिया गया है, सर्वप्रथम देवी के दक्षिण भाग में आवाहन पूजन करे :

  1. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं जयन्ति इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं जयन्त्यै नमः ॥
  2. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं मङ्गले इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं मङ्गलायै नमः ॥
  3. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं कालि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं काल्यै नमः ॥
  4. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं भद्रकालि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं भद्रकाल्यै नमः ॥
  5. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं कपालिनि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं कपालिन्यै नमः ॥
  6. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं दुर्गे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं दुर्गायै नमः ॥
  7. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं क्षमे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं क्षमायै नमः ॥
  8. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं शिवे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं शिवायै नमः ॥
  9. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं धात्रि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं धात्र्यै नमः ॥
  10. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं स्वधे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं स्वधायै नमः ॥
  11. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं स्वाहे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं स्वाहायै नमः ॥

पुनः इसी प्रकार से देवी के पृष्ठ (पीछे) पार्श्व में पूजन करे :

  1. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं उग्रचण्डे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं उग्रचण्डायै नमः ॥
  2. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं प्रचण्डे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं प्रचण्डायै नमः ॥
  3. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं चण्डोग्रे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं चण्डोग्रायै नमः ॥
  4. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं चण्डनायिके इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं चण्डनायिकायै नमः ॥
  5. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं चण्डे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं चण्डायै नमः ॥
  6. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं चण्डवति इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं चण्डवत्यै नमः ॥
  7. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं रुद्रचण्डे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं रुद्रचण्डायै नमः ॥
  8. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं चण्डरूपे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं चण्डरूपायै नमः ॥
  9. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं चण्डिके इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं चण्डिकायै नमः ॥

पुनः इसी प्रकार से देवी के वाम पार्श्व में पूजन करे :

  1. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं उग्रदंष्ट्रे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं उग्रदंष्ट्रायै नमः ॥
  2. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं महादंष्ट्रे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं महादंष्ट्रायै नमः ॥
  3. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं शुभ्रदंष्ट्रे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं शुभ्रदंष्ट्रायै नमः ॥
  4. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं कालिनि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं कालिन्यै नमः ॥
  5. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं भीमनेत्रे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं भीमनेत्रायै नमः ॥
  6. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं विशालाक्षि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं विशालाक्ष्यै नमः ॥
  7. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं मंगले इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं मङ्गलायै नमः ॥
  8. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं विजये इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं विजयायै नमः ॥
  9. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं जये इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं जयायै नमः ॥

पुनः इसी प्रकार से देवी के पुरोभाग (सामने) में पूजन करे :

  1. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं नन्दिनि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं नन्दिन्यै नमः ॥
  2. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं भद्रे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं भद्रायै नमः ॥
  3. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं लक्ष्मि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं लक्ष्म्यै नमः ॥
  4. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं कीर्त्ते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं कीर्त्यै नमः ॥
  5. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं यशस्विनि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं यशस्विन्यै नमः ॥
  6. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं कोटियोगिनि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं कोटियोगिन्यै नमः ॥
  7. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं पुष्टे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं पुष्ट्यै नमः ॥
  8. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं मेधे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं मेधायै नमः ॥
  9. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं शिवे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं शिवायै नमः ॥
  10. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं साध्वि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं साध्व्यै नमः ॥
  11. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं यशे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं यशायै नमः ॥
  12. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं शोभने इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं शोभनायै नमः ॥
  13. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं जये इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं जयायै नमः ॥
  14. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं धृते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं धृत्यै नमः ॥
  15. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं आनन्दे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं आनन्दायै नमः ॥
  16. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं सुनन्दे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं सुनन्दायै नमः ॥

तत्पश्चात देवी के समीप “ह्रीं” बीज से रहित मंत्रों द्वारा अग्रांकित देवियों का आवाहन-पूजन करे :

  1. आवाहन मंत्र : ॐ विजये इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ विजयायै नमः ॥
  2. आवाहन मंत्र : ॐ मङ्गले इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ मङ्गलायै नमः ॥
  3. आवाहन मंत्र : ॐ भद्रे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ भद्रायै नमः ॥
  4. आवाहन मंत्र : ॐ धृते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ धृत्यै नमः ॥
  5. आवाहन मंत्र : ॐ शान्ते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ शान्त्यै नमः ॥
  6. आवाहन मंत्र : ॐ ऋद्धे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ऋद्ध्यै नमः ॥
  7. आवाहन मंत्र : ॐ क्षमे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ क्षमायै नमः ॥
  8. आवाहन मंत्र : ॐ शिवे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ शिवायै नमः ॥
  9. आवाहन मंत्र : ॐ सिद्धे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ सिद्ध्यै नमः ॥
  10. आवाहन मंत्र : ॐ तुष्टे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ तुष्ट्यै नमः ॥
  11. आवाहन मंत्र : ॐ पुष्टे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ पुष्ट्यै नमः ॥
  1. आवाहन मंत्र : ॐ उमे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ उमायै नमः ॥
  2. आवाहन मंत्र : ॐ रते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ रत्यै नमः ॥
  3. आवाहन मंत्र : ॐ दीप्ते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ दीप्तायै नमः ॥
  4. आवाहन मंत्र : ॐ कान्ते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ कान्त्यै नमः ॥
  5. आवाहन मंत्र : ॐ यशे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ यशायै नमः ॥
  6. आवाहन मंत्र : ॐ लक्ष्मि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ लक्ष्म्यै नमः ॥
  7. आवाहन मंत्र : ॐ त्रिपुरे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ त्रिपुरायै नमः ॥
  8. आवाहन मंत्र : ॐ ऋद्धे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ऋद्ध्यै नमः ॥
  9. आवाहन मंत्र : ॐ शक्ते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ शक्त्यै नमः ॥
  10. आवाहन मंत्र : ॐ जयावति इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ जयावत्यै नमः ॥
  1. आवाहन मंत्र : ॐ ब्राह्मि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ब्राह्म्यै नमः ॥
  2. आवाहन मंत्र : ॐ जयन्ति इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ जयन्त्यै नमः ॥
  3. आवाहन मंत्र : ॐ अपराजिते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ अपराजितायै नमः ॥
  4. आवाहन मंत्र : ॐ अजिते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ अजितायै नमः ॥
  5. आवाहन मंत्र : ॐ मानसि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ मानस्यै नमः ॥
  6. आवाहन मंत्र : ॐ श्वेते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ श्वेतायै नमः ॥
  7. आवाहन मंत्र : ॐ दिते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ दित्यै नमः ॥
  8. आवाहन मंत्र : ॐ माये इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ मायायै नमः ॥
  9. आवाहन मंत्र : ॐ महामाये इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ महामायायै नमः ॥
  10. आवाहन मंत्र : ॐ मोहिनि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ मोहिन्यै नमः ॥
  1. आवाहन मंत्र : ॐ रतिलालसे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ रतिलालसायै नमः ॥
  2. आवाहन मंत्र : ॐ तारे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ तारायै नमः ॥
  3. आवाहन मंत्र : ॐ विमने इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ विमनायै नमः ॥
  4. आवाहन मंत्र : ॐ गौरि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ गौर्यै नमः ॥
  5. आवाहन मंत्र : ॐ कौशिकि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ कौशिक्यै नमः ॥
  6. आवाहन मंत्र : ॐ मते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ मत्यै नमः ॥
  7. आवाहन मंत्र : ॐ दुर्गे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ दुर्गायै नमः ॥
  8. आवाहन मंत्र : ॐ क्रिये इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ क्रियायै नमः ॥
  9. आवाहन मंत्र : ॐ अरुन्धति इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ अरुन्धत्यै नमः ॥
  10. आवाहन मंत्र : ॐ घण्टे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ घण्टायै नमः ॥
  1. आवाहन मंत्र : ॐ कर्णे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ कर्णायै नमः ॥
  2. आवाहन मंत्र : ॐ कपालिनि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ कपालिन्यै नमः ॥
  3. आवाहन मंत्र : ॐ रौद्रि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ रौद्रयै नमः ॥
  4. आवाहन मंत्र : ॐ कालि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ काल्यै नमः ॥
  5. आवाहन मंत्र : ॐ मयूरि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ मयूर्यै नमः ॥
  6. आवाहन मंत्र : ॐ त्रिनेत्रे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ त्रिनेत्रायै नमः ॥
  7. आवाहन मंत्र : ॐ स्वरूपे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ स्वरूपायै नमः ॥
  8. आवाहन मंत्र : ॐ बहुरूपे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ बहुरूपायै नमः ॥
  9. आवाहन मंत्र : ॐ रिपुहे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ रिपुहायै नमः ॥
  10. आवाहन मंत्र : ॐ चर्चिके इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ चर्चिकायै नमः ॥
  1. आवाहन मंत्र : ॐ अम्बिके इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ अम्बिकायै नमः ॥
  2. आवाहन मंत्र : ॐ सुरपूजिते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ सुरपूजितायै नमः ॥
  3. आवाहन मंत्र : ॐ वैवस्वते इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ वैवस्वतायै नमः ॥
  4. आवाहन मंत्र : ॐ कौमारि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ कौमार्यै नमः ॥
  5. आवाहन मंत्र : ॐ माहेश्वरि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ माहेश्वर्यै नमः ॥
  6. आवाहन मंत्र : ॐ वैष्णवि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ वैष्णव्यै नमः ॥
  7. आवाहन मंत्र : ॐ महालक्ष्मि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ महालक्ष्म्यै नमः ॥
  8. आवाहन मंत्र : ॐ कार्तिकि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ कार्तिक्यै नमः ॥
  9. आवाहन मंत्र : ॐ शिवदूति इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ शिवदूत्यै नमः ॥
  10. आवाहन मंत्र : ॐ वाराहि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ वाराह्यै नमः ॥
  11. आवाहन मंत्र : ॐ चामुण्डे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ चामुण्डायै नमः ॥

तत्पश्चात देवी चारों ओर प्रदक्षिणक्रम से मातृकाओं का पूजन करे :

  1. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं ब्रह्माणि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं ब्रह्माण्यै नमः ॥
  2. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं माहेश्वरि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं माहेश्वर्यै नमः ॥
  3. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं कौमारि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं कौमार्यै नमः ॥
  4. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं वैष्णवि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं वैष्णव्यै नमः ॥
  5. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं वाराहि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं वाराह्यै नमः ॥
  6. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं इन्द्राणि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं इन्द्राण्यै नमः ॥
  7. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं चामुण्डे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं चामुण्डायै नमः ॥
  8. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं महालक्ष्मि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं महालक्ष्म्यै नमः ॥
  9. आवाहन मंत्र : ॐ ह्रीं चण्डिके इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ ह्रीं चण्डिकायै नमः ॥

तत्पश्चात देवी पुरोभाग में नौ भैरवों का पूजन करे :

आवाहन : ॐ भूर्भुवः स्वर्भगवन् भैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥

भैरवं परमं देवं सर्वकामप्रसाधकम् । पूजयाम्यग्रतो देव्याः सर्वाभीष्टफलप्रदम् ॥ पुष्पांजलि दे। तत्पश्चात ॐ भैरवाय नमः मंत्र से पंचोपचार पूजन करे।

  1. असिताङ्गभैरव : ॐ असिताङ्गभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ असिताङ्गभैरवाय नमः ॥
  2. कालभैरव : ॐ कालभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ कालभैरवाय नमः ॥
  3. क्रोधभैरव : ॐ क्रोधभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ क्रोधभैरवाय नमः ॥
  4. उन्मत्तभैरव : ॐ उन्मत्तभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ उन्मत्तभैरवाय नमः ॥
  5. कपालिभैरव : ॐ कपालिभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ कपालिभैरवाय नमः ॥
  6. भीषणभैरव : ॐ भीषणभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ भीषणभैरवाय नमः ॥
  7. संहारभैरव : ॐ संहारभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ संहारभैरवाय नमः ॥
  8. बटुकभैरव : ॐ बटुकभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ बटुकभैरवाय नमः ॥

पुष्पाञ्जलि : ॐ भैरवं परमं देवं शत्रुक्षयकरं विभुम् । प्रणमामि सदोपास्यै वीरभावसमाश्रितम् ॥

तत्पश्चात द्वादश क्षेत्रपाल यक्षों का पूजन करे :

  1. यक्षराज : ॐ यक्षराज इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ यक्षराजाय नमः ॥
  2. केतुकक्षेत्रपाल : ॐ हूँ क्षौं केतुकक्षेत्रपाल इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ हूँ क्षौं केतुकक्षेत्रपालाय महाविभीषणाय स्वाहा नमः ॥
  3. बलिभद्र : ॐ बलिभद्र इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ बलिभद्राय नमः ॥
  4. चित्रमुण्ड : ॐ चित्रमुण्ड इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ चित्रमुण्डाय नमः ॥
  5. सेन्द्रयक्ष : ॐ सेन्द्रयक्ष इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ सेन्द्रयक्षाय नमः ॥
  6. जम्भ : ॐ जम्भ इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ जम्भाय नमः ॥
  7. वेताल : ॐ वेताल इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ वेतालाय नमः ॥
  8. भीषणक्षेत्रपाल : ॐ भीषणक्षेत्रपाल इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ भीषणक्षेत्रपालाय नमः ॥
  9. एकपादयक्ष : ॐ एकपादयक्ष इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ एकपादयक्षाय नमः ॥
  10. अग्निजिह्वक्षेत्रपाल : ॐ अग्निजिह्वक्षेत्रपाल इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ अग्निजिह्वक्षेत्रपालाय नमः ॥
  11. कालक्षेत्रपाल : ॐ कालक्षेत्रपाल इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ कालक्षेत्रपालाय नमः ॥
  12. जङ्गयक्ष : ॐ जङ्गयक्ष इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ पंचोपचार पूजन मंत्र : ॐ जङ्गयक्षाय नमः ॥

अङ्गपूजा

आगे दिये गये मंत्रों से देवी के अंगों की पूजा करे :

ॐ कालि कालि हृदय इहागच्छ इह तिष्ठ ॥

  • ॐ कालि कालि हृदयाय नमः॥
  • ॐ कालि कालि वज्रिणि शिरसे नमः ॥
  • ॐ कालि कालि वज्ज्रश्वरि शिखायै नमः॥
  • ॐ कालि कालि वज्रेश्वरि कवचाय नमः ॥
  • ॐ कालि कालि लोहदंष्ट्रायै स्वाहा नेत्रत्रयाय नमः ॥
  • ॐ कालि कालि लौहदण्डायै अस्त्राय नमः ॥

॥ अथ देव्याः पञ्चवक्त्रपूजनम् ॥

  • शिर : ॐ ईशानाय नमः ॥
  • मुख : ॐ कालि कालि तत्पुरुषाय नमः ॥
  • हृदय : वज्रेश्वरि अघोराय नमः ॥
  • अधोभाग : ॐ लोहदंष्ट्राये वामदेवाय नमः ॥
  • सर्वाङ्ग : ॐ स्वाहा सद्योजाताय नमः॥

॥ अथ देव्याः अस्त्रपूजा ॥

ॐ कपालाय नमः ॥ ॐ खेटकाय नमः॥ ॐ घण्टायै नमः॥ ॐ दर्पणाय नमः ॥ ॐ तर्जन्यै नमः॥ ॐ धनुषे नमः ॥ ॐ ध्वजाय नमः ॥ ॐ डमरुकाय नमः ॥ ॐ पाशाय नमः ॥ ॐ दक्षिणहस्ताय नमः ॥ ॐ शक्तये नमः ॥ ॐ मुद्गराय नमः ॥ ॐ शूलाय नमः ॥ ॐ खड्गाय नमः ॥ ॐ वज्राय नमः ॥ ॐ अङ्कुशाय नमः ॥ ॐ शंखाय नमः ॥ ॐ चक्राय नमः ॥ ॐ शराय नमः ॥ ॐ सर्वेभ्यो देव्यस्त्रेभ्यो नमः ॥

तत्पश्चात प्रार्थना करे :

ॐ यानि यानीह मुख्यानि प्रसिद्धान्यायुधानि च । क्षयकारीणि शत्रूणां विख्यातानि जगत्त्रये ॥
सर्वास्तान् पूजयाम्यद्य महाष्टम्यां विशेषतः । सर्वे रक्षन्तु मां नित्यं सर्वसिद्धिं ददत्वपि ॥
ॐ देव्याः किरीटाद्यलङ्कारेभ्यो नमः ॥

  • सिंह पूजन : ॐ वज्रनखदंष्ट्रायुधाय महासिहासनाय हुं फट् स्वाहा, सिंहासनाय नमः ॥
  • महिष पूजा : ॐ महिषस्त्वं महावीर शिवरूप सदाशिव । अतस्त्वां पूजयिष्यामि क्षमस्व महिषासुर ॥

तत्पश्चात किसी पात्र में चंदन-कुंकुमादि से अष्टदल निर्माण कर पूर्वादि दलों में रुद्रचण्डा, प्रचण्डा, चण्डोग्रा, चण्डनायिका की और मध्य में उग्रचण्डा की पूजा करे : ॐ रुद्रचण्डायै नमः ॥ ॐ प्रचण्डायै नमः ॥ ॐ चण्डोग्रायै नमः ॥ ॐ चण्डनायिकायै नमः ॥ ॐ उग्रचण्डायै नमः ॥

तत्पश्चात छागबलि प्रदान करे जहां छागबलि न दी जाती हो वहां कूष्मांडबली दे। फिर नैऋत्य भाग में त्रिकोणात्मक मंडल करके वहां पर अनेकानेक प्रकार के पक्वान्न, पायस, माषभक्त आदि को एकत्र करके भूतबलि दे : ॐ अस्यां महाष्टम्यां रात्रौ लोकपालादि नवग्रह नक्षत्राऽसुरगण गन्धर्व यक्ष राक्षस विद्याधर पन्नग गजेन्द्र पशु भूत पिशाच क्रव्याद मनुष्यगण योगिनीगण डाकिनीगणाः इमं नाना द्रव्यबलिं गृह्णन्तु स्वाहा॥ इस प्रकार प्रचुर भूतबलि का उत्सर्ग करे।

कृतांजलि प्रार्थना करे : ॐ शिवाः कङ्कालवेतालाः पूतनाजम्बुकादयः । ते सर्वे तृप्तिमायान्तु बलिदानेन तोषिताः ॥

तत्पश्चात देवी की प्रार्थना-स्तुति आदि करके आरती, पुष्पांजलि, प्रदक्षिणा आदि करे। कुमारी पूजन, सम्भव हो तो सुवासिनी स्त्री और ब्राह्मणों को भोजन कराये। नृत्य-गीतवाद्य आदि सहित उत्सव मनाते हुये रात्रि व्यतीत करे।

छागबलि, कूष्माण्ड बलि, कुमारी कन्या पूजन विधि आदि अन्य आलेख में प्रस्तुत किया गया है।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


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