नवरात्र महोत्सव में सप्तमी तिथि को महासप्तमी कहा जाता है एवं महासप्तमी को बिल्वानयन, नवपत्रिका प्रवेश, स्थापन, पूजन आदि करके प्रतिमा के मुख से पट हटाकर नेत्रोन्मीलन किया जाता है। फिर बलि प्रदर्शन पूर्वक मंदिर का पट खोलकर प्राणप्रतिष्ठा और पूजा की जाती है। सप्तमी के दिन किये जाने वाले पूजा को पत्रिका प्रवेश और महासप्तमी पूजा कहा जाता है। यहां बिल्वानयन, पत्रिकाप्रवेश, नवपत्रिका पूजन और महासप्तमी पूजन विधि एवं मंत्र दिये गये हैं। मंदिरों में पूजा हेतु यह बहुत उपयोगी है क्योंकि इसमें विधि संबंधी जानकारी हिन्दी में दी गयी है।
पत्रिकाप्रवेश : नवपत्रिका पूजा, महासप्तमी पूजा – 9 patrika puja
महासप्तमी के दिन नित्यपूजा के अतिरिक्त महापूजा की जाती है। महासप्तमी के दिन किये जाने वाले महापूजा को 6 भागों में समझा जा सकता है। प्रथम बिल्वानयन, द्वितीय नवपत्रिका स्थापन, तृतीय नेत्रोन्मीलन-बलिप्रदर्शन-पटापसारन करके भगवती दुर्गा की प्राणप्रतिष्ठा व पूजा, चतुर्थ नवपत्रिका पूजा, पंचम परिवार देवता पूजा, षष्ठ वाहनादि पूजा।
ये सभी पूजा प्रातः कृत्य ही हैं, प्रायः बहुत स्थानों पर ऐसा देखा जाता है कि बिल्वानयन सायं/रात्रि में किया जाता है और तत्पश्चात सभी पूजा रात में ही की जाती है। इसका एक ही कारण ज्ञात होता है कि प्रायः निशिथकालिक अष्टमी जिसमें निशा पूजन होता है वह महासप्तमी को ही मिलता है और ऐसा होने से रात एक साथ ही सभी पूजा करने का प्रचलन मिलता है।
बिल्वानयन
बिल्वानयन संबंधी प्रमुख तथ्यों को बिन्दुवार इस प्रकार समझा जा सकता है :
- युग्म बिल्व शाखा सहित छेदन करके लाया जाता है। यह विशेष महत्वपूर्ण है कि उस पर स्त्री-पशु आदि की दृष्टि न पड़े, इसलिये वस्त्रावेष्टित ही छेदन किया जाता है और दोली में रखा जाता है।
- शाखा सहित युग्म बिल्व को दोली में नहीं, दोली में स्थित पीठ पर रखे, पीठ की व्यवस्था पूर्व में आते समय ही कर ले।
- युग्मबिल्व को लाकर सीधे मंदिर में प्रवेश न करे अपितु मंदिर द्वार पर रख कर प्रथम गोमय मंडल पर भूतों की पूजा करके माषभक्तबलि अर्पित करके भूतोपसारन करे।
- तत्पश्चात युग्मबिल्व का पुनः पंचोपचार पूजन करके, चालन करे और मंदिर में ले जाकर भगवती के निकट पीठ पर स्थापित करे।
अन्य दिनों की भांति ही नित्यकर्म व कलश पूजन सम्पन्न करके, पूर्व संध्या जिस बिल्व को निमंत्रित किया गया था पूजा सामग्री, सुसज्जित शिविका (पालकी/दोली) आधारपीठ सहित लेकर सभी प्रकार से उत्सव की भांति हर्षोल्लास मनाते हुये उसी बिल्ववृक्ष के निकट जाकर पूर्व की भांति बिल्ववृक्ष की पंचोपचार पूजन करके प्रार्थना करे :
ॐ वनस्पते नमरतुभ्यं वृक्षराज शिवप्रिय । दुर्गासम्प्रीतिकामोऽहं करोम्यर्चां तवाद्य भोः ॥
ॐ बिल्ववृक्ष महाभाग सर्वदा शङ्करप्रिय । गृहीत्वा तव शाखान्तु दुर्गापूजां करोम्यहम् ॥
शाखाच्छेदोद्भवं दुःखं न च कार्यं त्वया प्रभो ॥
इस प्रकार प्रार्थना पूर्वक अनुमति ग्रहण करके फिर अगले दो मंत्रों को पढ़कर युग्मफल सहित बिल्व शाखा का छेदन करे :
- ॐ छिन्धि छिन्धि फट् ह्रीं स्वाहा॥
- ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा॥
तत्पश्चात हाथों में युग्म बिल्वफल लेकर पढे :
ॐ देवैगृहीत्वा शाखा ते पूजिता चेति विश्रुतिः । पुत्रायुर्धनवृद्धद्यर्थं नेष्यामि त्वामुमाप्रियाम् ॥
बिल्वशाखां समाश्रित्य राज्यं देवि प्रयच्छ मे ॥
ॐ आगच्छ चण्डिके देवि सर्वकल्याणहेतवे । कात्यायनि गृहाणार्चां नमस्ते शङ्करप्रिये ॥
प्रणाम करके शिविका (दोली) में स्थापित करके पंचोपचार पूजा करे : ॐ बिल्वशाखायै नमः ॥
भूतोपसारन : तत्पश्चात मंदिर प्रांगण द्वार पर आकर गोबर से मंडल करके अथवा पूर्वकृत मंडल पर भूतों का पूजन करके अपसारन करे : ॐ भूतानि इहागच्छत इह तिष्ठत ॥ फिर पंचोपचार पूजन करे : ॐ भूतेभ्यो नमः ॥
फिर माषभक्त बलि दे :
ॐ भूताः प्रेताः पिशाचाश्च ये सन्त्यत्र भूतले । ते गृह्णन्तु मया दत्तो बलिरेष प्रसाधितः ॥
पूजिता गन्धपुष्पाद्यैर्बलिभिस्तपितास्तथा । देशादस्माद् विनिःसृत्य पूजां पश्यन्तु मत्कृताम् ॥
ॐ भूतेभ्यः एष माषभक्तबलिर्नमः ॥
पुष्पजल से बलि उत्सर्ग करके तीन ताल दे; फिर पीली सरसों, पुष्प लेकर सात बार अभिमंत्रित करे : ‘ॐ फट्’ , अभिमंत्रित करके सभी दिशाओं में छिड़ककर भूतों का अपसारन करे।
बिल्वशाखा पूजन : पुनः “ॐ चामुण्डायै नमः” मंत्र से बिल्वशाखा का पंचोपचार पूजन करे। फिर चामुण्डा का ध्यान करते हुये बिल्वशाखाधारपीठ का स्पर्श करके पढ़े :
ॐ श्रीशैलशिखरे जातः श्रीफलः श्रीनिकेतनः । नेतब्योऽसि मया वृक्ष पूज्यो दुर्गास्वरूपतः ॥
फिर ‘ॐ चामुण्डे चल चल’ पढ़कर चालन करे । गीतवाद्य करते हुये पीठ सहित युग्म बिल्व को लेकर मंदिर में प्रवेश करे व प्रतिमा के निकट स्थापित करे :
ॐ आरोपितासि दुर्गे त्वं मृन्मये श्रीफलेऽपि च । स्थिरा नितान्तं भूत्वा मे गृहे त्वं कामदा भव ॥
नवपत्रिका स्थापन-स्नान
नवपत्रिका : केला, अनार, धान, हरिद्रा, मान, कचु, बिल्व, अशोक और जयन्ती।
रम्भाकचुर्हरिद्रा च जयन्ती बिल्व डाडिमौ । अशोको मानकं चैव धान्यादिर्नवपत्रिका ॥
धान्य और हरिद्रा के अतिरिक्त अन्य सभी पत्रिका समूल होने चाहिये। बिल्व, अशोक व दाडिम हेतु समूल का तात्पर्य शाखासहित ही प्रतीत होता है।
नवपत्रिका में जयन्ती भी आती है, अतः जो यववपन किया जाता है उससे उत्पन्न जयन्ती ही थोड़ा ले ले । देवी के दक्षिण भाग में श्वेतापराजितालता से बांध कर नवपत्रिका स्थापित करे। स्थापन का तात्पर्य है आसन देकर रखे, बिना आसन के नहीं। त्रिकुशा-तिल-जल-द्रव्यादि लेकर नवपत्रिका के स्नान का संकल्प करे :
नवपत्रिका स्नान संकल्प : ॐ अद्य …………. गोत्रोऽमुकशर्माहं सप्तजन्मकृतपापक्षयकामो नवपत्रिकारूपां दुर्गा स्नापयिष्ये ॥
इस प्रकार संकल्प करने के उपरांत क्रमशः नवपत्रिका को आगे दिये गये क्रम और मंत्र से शुद्ध जल द्वारा स्नान कराये :
- केला : ॐ कदलीतरुसंस्थासि विष्णोर्वक्षः स्थलाश्रये । स्नापयाम्यद्य पत्रि त्वां नमस्ते चण्डनायिके ॥
- दाडिम (अनार) : ॐ दाडिम्यघविनाशाय क्षुन्नाशाय सदा भुवि । निर्मिता फलकामाय प्रसीद त्वं हरिप्रिये ॥
- धान्य : ॐ लक्ष्मीस्त्वं धान्यरूपासि प्राणिनां प्राणदायिनि । स्थिरात्यन्तं हि नो भूत्वा गृहे मे कामदा भव ॥
- हरिद्रा : ॐ हरिद्रे हररूपासि शङ्करस्य सदाप्रिये । रुद्ररूपेण देवि त्वं सर्वशान्तिं प्रयच्छ मे ॥
- मान : ॐ मानो मान्येषु वृक्षेषु माननीयः सुरासुरैः । स्नापयामि महादेवि मानं देहि नमोऽस्तु ते ॥
- कचु : ॐ कच्चित्त्वं स्थावरस्थासि सदा सिद्धिप्रदायिनि । दुर्गारूपेण सर्वत्र स्नानेन विजयं कुरु ॥
- बिल्व : ॐ श्रीफल श्रीनिकेतोऽसि सदा विजयवर्धनः । देहि मे हितकामाश्च प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
- अशोक : ॐ स्थिरा भव सदा दुर्गे अशोके शोकहारिणि । मया त्वं पूजिता दुर्गे स्थिरा भव हरप्रिये ॥
- जयन्ती : ॐ जयन्ती जयरूपासि जगतां जयकारिणि । स्नापयामीह देहि त्वां जयन्देहि गृहे मम ॥
तत्पश्चात नदियों के जल से अथवा किसी एक नदी के जल से अथवा गंगाजल से स्नान कराये :
ॐ आत्रेयी भारती गङ्गा यमुना च सरस्वती । सरयूर्गण्डकी श्वेता कावेरी कौशिकी तथा ॥
भोगावती च पाताले स्वर्गे मन्दाकिनी तथा । एताः सुमनसो भूत्वा भृङ्गारैः स्नपयन्तु ते ॥
ॐ देवा यक्षास्तथा नागा गन्धर्वाऽप्सरसाङ्गणाः । ऋषयो देवपुत्राश्च भृङ्गारैः स्नपयन्तु ते ॥
दुर्गा चण्डेश्वरी चण्डी वाराही कार्तिकी तथा । नारसिंही तथा काली इन्द्राणी वैष्णवी तथा ॥
एताः सुमनसो भूत्वा भृङ्गारैः स्नपयन्तु ते ॥
उपरोक्त नवपत्रिका स्नान तक का कर्म प्रातः ही करना चाहिये। तत्पश्चात शुभलग्न में घृत द्वारा बिल्वपत्र पर कज्जल निर्मित करे । शुभ लग्न देखकर, प्रतिमा का मुख यदि ढंका हो तो आवरण हटाकर शलाका द्वारा प्रतिमा के तीनों नेत्रों में लगाकर नेत्रोन्मीलन करे । प्रथम दक्षिण नेत्र, तत्पश्चात वामनेत्र और फिर ऊर्ध्वनेत्र । जहां प्रतिमा को चांदी आदि की चक्षु दी जाती है वो भी इसी समय दे :
चक्षुमंत्र : ॐ इदं नेत्रत्रयं दिव्यं चन्द्रसूर्यानलप्रभम् । ताराकारमयं देवि पश्य त्वं भुवनत्रयम् ॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॥ इदं चक्षुः ॐ भगवत्यै श्री दुर्गादेव्यै नमः ॥
पट खोलना : इस प्रकार चक्षुमंत्र से ही ज्ञात होता है कि “पश्य त्वं भुवनत्रयम्” की सिद्धि तो तभी होगी जब पट को खोला जायेगा। अतः चक्षु देने के उपरांत पट खोले। पट खोलते समय एक विशेष बात यह है कि भगवती की प्रथम दृष्टि कूष्माण्ड बलि पर पड़े । इसके लिये कोई पुरुष रक्तवस्त्रावेष्टित कूष्माण्ड लेकर प्रदर्शित करे, फिर पट खोले।
महासप्तमी पूजा
पूजा सामग्री व्यवस्थित कर ले। । त्रिकुश-तिल-जलादि लेकर महासप्तमी पूजा का संकल्प करे :
ॐ अद्य आश्विने मासि शुक्ले पक्षे महासप्तम्यां तिथौ ………… गोत्रस्य मम श्री ………. शर्मणः एतद्ग्रामवासिनां नानानां गोत्राणां सकलजनानां एतत्पूजोपकारकाणां अन्यद्ग्रामवासिनां च सपरिवारस्योपस्थित शरीराविरोधेन महाभयाभावपूर्वक विपुलधनधान्यसुतान्विताऽतुलविभूति चतुर्वर्ग फलप्राप्तिपूर्वक श्रीदुर्गा प्रीतिकामः साङ्गसायुधसवाहनसपरिवारायाः भगवत्याः श्रीदुर्गादेव्याः वार्षिकशरत्कालीन पूजनमहं करिष्ये ॥
प्राण-प्रतिष्ठा
अनामिका-अंगुष्ठ से कुशपुष्पाक्षत लेकर देवी के हृदय का स्पर्श करके अगला मंत्र पढे :
ॐ मनो जूतिर्ज्जुषतामाज्ज्यस्य बृहस्पतिर्य्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञ ᳪ समिमं दधातु। विश्वे देवासऽइह मादयन्तामों ३ प्रतिष्ठ ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः साङ्गसायुधसवाहनसपरिवारभगवति दुर्गे देवि इह सुप्रतिष्ठिता भव ॥
आवाहन
ॐ आवाहयाम्यहं देवीं मृन्मये श्रीफलेऽपि च । आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोऽस्तु ते ॥
ॐ कैलासशिखराद् देवि विंध्याद्रेः हिमपर्वतात् । आगत्य बिल्वशाखायां मृन्मये कुरु सन्निधिम् ॥
ॐ दुर्गे देवि इहागच्छ सान्निध्यमिह कल्पय । यज्ञभागं गृहाणेमं योगिनीकोटिभिः सह ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे दक्षयज्ञविनाशिनि साङ्गसायुधसवाहनसपरिवार श्रीदुर्गे देवि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
कृताञ्जलि होकर प्रार्थना करे :
ॐ एह्यहि भगवत्यम्बे शत्रुक्षय जयप्रदे। भक्तितः पूजयामि त्वां दुर्गे देवि सुरार्चिते ॥
पल्लवैश्च फलोपेतैः पुष्पैश्च सुमनोहरैः । पल्लवे संस्थिते देवि पूजये त्वां प्रसीद मे ॥
ॐ दुर्गे देवि समागच्छ सान्निध्यमिह कल्पय । यज्ञभागं गृहाणेममष्टाभिः शक्तिभिः सह ॥
ॐ आयाहि वरदे देवि लोकानुग्रहकारिणि । यज्ञभागं गृहाणेमं यन्मया परिकल्पितम् ॥
ॐ दुर्गे देवि जगन्मातः सृष्टिसंहारकारिणि । पत्रिकासु समस्तासु सान्निध्यमिह कल्पय ॥
शारदीयामिमां पूजां करोमि कमलेक्षणे । आज्ञापय महादेवि दैत्यदर्पविनाशिनि ॥
चण्डि त्वं चण्डरूपासि सुरतेजो महाबले । प्रविश्य तिष्ठ यज्ञेऽस्मिन् यावत् पूजां करोम्यहम् ॥
ध्यान
ॐ जटाजूटसमायुक्तामर्धेन्दुकृतशेखराम् । लोचनत्रयसंयुक्तां पूर्णेन्दुसदृशाननाम् ॥
अतसीपुष्पवर्णाभां सुप्रतिष्ठां सुलोचनाम्। नवयौवनसम्पन्नां सर्वाभरणभूषिताम् ॥
सुचारुदशनां तद्वत् पीनोन्नतपयोधराम् । त्रिभंगस्थानसंस्थानां महिषासुरमर्दिनीम् ॥
कपालं खेटकं घण्टां दर्पणं तर्जनीं धनुः । ध्वजं डमरुकं पाशं वामहस्तेषु बिभ्रतीम् ॥
शक्तिं च मुङ्गरं शूलं खड़ङ्गं वज्रांकुशं तथा । शङ्खं चक्रं शरञ्चैव दक्षिणेषु च विभ्रतीम् ॥
अधस्तान्महिषं तद्वद् विशिरस्कं प्रदर्शयेत् । शिरश्छेदोद्भवं दानवं खड्गपाणिनम् ॥
हृदि शूलेन निर्भिन्नं निर्गतं तु विभूषितम् । रक्तं रक्तीकृताङ्गञ्च रक्तविस्फारितेक्षणम् ॥
वेष्टितं नागपाशेन भ्रुकुटीकुटिलाननम् । सपाशवामहस्तेन धृतकेशञ्च दुर्गया ॥
वमद्रुधिरवक्त्रं च देव्याः सिहं प्रदर्शयेत् ॥ देव्यास्तु दक्षिणं पादं समं सिहोपरिस्थितम् ॥
किञ्चिदूर्ध्वं तथा वाममंगुष्ठं महिषोपरि। स्तूयमानं स तद्रूपममरैः सन्निवेशयेत् ॥
उग्रचण्डा प्रचण्डा च चण्डोग्रा चण्डनायिका । चण्डा चण्डवती चैव चण्डरूपातिचण्डिका ॥
आभिः शक्तिभिरष्टाभिः सततं परिवेष्टिताम् । चिन्तयेत् सततं दुर्गां धर्मकामार्थमोक्षदाम् ॥
इदं ध्यानपुष्पं साङ्ग सायुधसपरिवारायै श्रीदुर्गादेव्यै नमः ॥
स्वागत
ॐ स्वागतं ते महामाये चण्डिके सर्वमङ्गले । पूजां गृहाण विविधां सर्वकल्याणकारिणि ॥
स्वागत के पश्चात् दोनों हाथों से स्पर्श करके स्थिरीकरण करे :
ॐ देवेशि भक्तिसुलभे परिवारसमन्विते । यावत्त्वां पूजयिष्यामि तावत्त्वं सुस्थिरा भव ॥
आसन : ॐ आसनं भास्वरं तुङ्गं मांगल्यं सर्वमङ्गले। भजस्व जगतां मातः प्रसीद जगदीश्वरि ॥ इदमासनं साङ्गसायुधसवाहनसपरिवारायै भगवत्यै श्रीदुर्गादेव्यै नमः॥
पाद्य : ॐ गङ्गादिसलिलाधारं तीर्थं मन्त्राभिमन्त्रितम् । दूरयात्राश्रमहरं पाद्यं तत्प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं पाद्यं साङ्गसायुधसवाहनसपरिवारायै भगवत्यै श्रीदुर्गादेव्यै नमः॥
उद्वर्तन : ॐ तिलतैलसमायुक्तं सुगन्धिद्रव्यनिर्मितम् । उद्वर्तनमिदं देवि गृहाण त्वं प्रसीद मे ॥ इदमुद्वर्तनं ………॥
अर्घ्य : ॐ तिलतण्डुल संयुक्तं कुशपुष्पसन्वितम् । सुगन्धं फलसंयुक्तमर्घ्यं देवि गृहाण मे ॥ एषोऽर्घ्यः ………॥
आचमन : ॐ स्नानादिकं विधायापि यतः शुद्धिरवाप्यते । इदमाचमनीयं हि दुर्गे देवि प्रगृह्यताम् ॥ इदमाचमनीयं ………॥
स्नान : ॐ खमापः पृथिवी चैव ज्योतिषं वायुरेव च । लोकसंस्मृतिमात्रेण वारिणा स्नापयाम्यहम् ॥ इदं स्नानीयम् ………॥
अष्टगार्घ्य : ॐ जगत्पूज्ये त्रिलोकेशि सर्वदानवभञ्जिनि । अष्टगार्घ्यं गृहाण त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि ॥ एष अष्टगार्घ्यः ………॥
मधुपर्क : ॐ मधुपर्कं महादेवि ब्रह्माद्यैः कल्पितं तव । मया निवेदितं भक्त्या गृहाण गिरिपुत्रिके ॥ एष मधुपर्कः ………॥
जल : ॐ स्नानादिकं पुरः कृत्वा पुनः शुद्धिरवाप्यते । पुनराचमनीयं ते दुर्गे देवि प्रगृह्यताम् ॥ इदं पुनराचमनीयं ……॥
चंदन : ॐ मलयाचलसम्भूतं नानागन्धसमन्वितम् । शीतलं बहुलामोदं चन्दनं गृह्यतामिदम् ॥ इदं श्रीखण्डचन्दनं ………॥
रक्तचन्दन : ॐ रक्तानुलेपनं देवि स्वयं देव्या प्रकाशितम् । तद् गृहाण महाभागे शुभं देहि नमोस्तु ते ॥ इदं रक्तचन्दनं ………॥
सिन्दूर : ॐ सिन्दूरं सर्वसाध्वीनां भूषणाय विनिर्मितम् । गृहाण वरदे देवि भूषणानि प्रयच्छ मे ॥ इदं सिन्दूराभरणं ………॥
कुंकुम : ॐ जपापुष्पप्रभं रम्यं नारीभालविभूषणम् । भास्वरं कुङ्कुमं रक्तं देवि दत्तं प्रगृह्य मे ॥ इदं कुङ्कुमाभरणम् ………॥
अक्षत : ॐ अक्षतं धान्यजं देवि ब्रह्मणा निर्मितं पुरा । प्राणदं सर्वभूतानां गृहाण वरदे शुभे । इदमक्षतम् ………॥
पुष्प : ॐ चलत् परिमलामोदमत्तालिगणसङ्कुलम् । आनन्दनन्दनोद्भुतं दुर्गायै कुसुमं नमः ॥ एतानि पुष्पाणि ………॥
बिल्वपत्र : ॐ अमृतोद्भवं श्रीवृक्षं शङ्करस्य सदा प्रियम् । पवित्रं ते प्रयच्छामि सर्वकार्यार्थसिद्धये ॥ इदं बिल्वपत्रम् ………॥
माला : ॐ नानापुष्पविचित्राढ्यां पुष्पमालां सुशोभनाम् । प्रयच्छामि सदा भद्रे गृहाण परमेश्वरि ॥ इदं माल्यम् ………॥
वस्त्र : ॐ तन्तुसन्तानसंयुक्तं कलाकौशलकल्पितम् । सर्वाङ्गाभरणश्रेष्ठं वसनं परिधीयताम् ॥ इदं पीतवस्त्रं बृहस्पतिदैवतं ………॥
द्वितीयवस्त्र : ॐ यामाश्रित्य महादेवो जगत्संहारकः सदा । तस्यै ते परमेशान्यै कल्पयाम्युत्तरीयकम् ॥ इदं द्वितीयवस्त्रम् ………॥
अलङ्करण : ॐ सौवर्णाद्यलङ्कारं कङ्कणादिविभूषितम् । हारकेयूरयुक्तानि नूपुराणि गृहाण मे ॥ इदमलङ्करणम् ………॥
धूप : ॐ गुग्गुलं घृतसंयुक्तं नानाभक्ष्यैश्च संयुतम् । दशाङ्गं गृह्यतां धूपं दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥ एष धूपः ………॥
दीप : ॐ मार्तण्डमण्डलान्तस्थ चन्द्रबिम्बाग्नितेजसाम् । निधानं देवि दीपोऽयं निर्मितस्तव भक्तितः ॥ एष दीपः ………॥
सुगन्धितद्रव्य : ॐ परमानन्दसौरभ्यं परिपूर्णदिगम्बरम् । गृहाण सौरभं दिव्यं कृपया जगदम्बिके ॥ इदं सुगन्धितद्रव्यम् ………॥
कर्पूरदीप : ॐ त्वं चन्द्रसूर्यज्योतींषि विद्युदग्न्योस्तथैव च । त्वमेव जगतां ज्योतिर्दीपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥ एष कर्पूरदीपः ………॥
नानाविधनैवेद्य : ॐ दिव्यान्नरससंयुक्तं नानाभक्ष्यैस्तु संयुतम् । चोष्यपेयसमायुक्तमन्नं देवि गृहाण मे ॥ एतानि नानाविधनैवेद्यानि ………॥
पायस : ॐ गव्यसर्पिः पयोयुक्तं नानामधुरमिश्रितम् । निवेदितं मया भक्त्या परमान्नं प्रगृह्यताम् ॥ इदं पायसम् ………॥
मोदक (लड्डू) : ॐ मोदकं स्वादु रुचिरं कर्पूरादिभिरन्वितम् । मिश्रं नानाविधैर्द्रव्यैः प्रतिगृह्याशु भुज्यताम् ॥ इदं मोदकम् ………॥
अपूपादि : ॐ अपूपानि च पक्कानि मण्डका वटकानि च । पायसापूपमन्नं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदमपूपादिनैवेद्यानि ………॥
फल : ॐ फलमूलानि सर्वाणि ग्राम्याऽरण्यानि यानि च । नानाविधसुगन्धीनि गृहाण देवि यथासुखम् ॥ एतानि नानाविधानि फलानि ………॥
पानीय जल : ॐ पानीयं शीतलं स्वच्छं कर्पूरादिसुवासितम् । भोजने तृप्तिकृद्यस्मात् कृपया परिगृह्यताम् ॥ इदं पानीयम् ………॥
करोद्वर्तनजल : ॐ कर्पूरादीनि द्रव्याणि सुगन्धीनि महेश्वरि । गृहाण जगतां नाथे करोद्वर्तनहेतवे ॥ इदं करोद्वर्तनजलम् ………॥
आचमनीय : ॐ आमोदवस्तु सुरभीकृतमेतदनुत्तमम् । गृहाणाचमनीयं त्वं मया भक्त्या निवेदितम् ॥ इदमाचनीयम् ………॥
ताम्बूल : ॐ तमालदलकर्पूरनागवल्लीसमन्वितम् । संशोधितं सुगन्धं च ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं ताम्बूलम् ………॥
कज्जल : ॐ स्निग्धमुष्णं हृद्यतमं दृशां शोभाकरं तव । गृहीत्वा कज्जलं सद्यो नेत्राण्यञ्जय पार्वति ॥ इदं कज्जलम् ………॥
सौवीराञ्जन : ॐ नेत्रत्रयं महामाये भूषयामल कज्जलैः । सौवीरकाञ्जनैर्दिव्यैर्जगदम्ब नमोस्तु ते ॥ इदं सौवीराञ्जनम् ………॥
आलक्तक : ॐ त्वत्पादाम्भोजनखरद्युतिकारिमनोहरम् । आलक्तकमिदं देवि मया दत्तं प्रगृह्यताम् ॥ इदमालक्तकम् ………॥
चामर : ॐ चामरं चमरीपुच्छं हेमदण्डसमन्वितम् । मयार्पितं राजचिह्नं चामरं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं चामरम् ………॥
व्यजन : ॐ बर्हिबर्हकृताकारं मध्यदण्डसमन्वितम् । गृह्यतां व्यजनं दुर्गे देहस्वेदापनुत्तये ॥ इदं व्यजनम् ………॥
घण्टावाद्य : ॐ यया भीषयसे दैत्यान् यया पूरयसेऽसुरम् । तां घण्टां सम्प्रयच्छामि महिषघ्नि प्रसीद मे ॥ इदं घण्टावाद्यम् ………॥
दक्षिणा : ॐ काञ्चनं रजतोपेतं नानारत्नसमन्वितम् । दक्षिणार्थं च देवेशि गृहाण त्वं नमोस्तु ते ॥ इदं दक्षिणाद्रव्यम् ………॥
पुष्पाञ्जलि
ॐ दुर्गे दुर्गे महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि । त्वं काली कमला ब्राह्मी त्वं जया विजया शिवा ॥
त्वं लक्ष्मीर्विष्णुलोकेषु कैलाशो पार्वती तथा । सरस्वती ब्रह्मलोके चेन्द्राणी शक्रपूजिता ॥
वाराही नारसिंही च कौमारी वैष्णवी तथा । त्वमापः सर्वलोकेषु ज्योतिर्ज्योतिःस्वरूपिणी ॥
योगमाया त्वमेवाऽसि वायुरूपा नभःस्थिता । सर्वगन्धवहा पृथ्वी नानारूपा सनातनी ॥
विश्वरूपे च विश्वेशे विश्वशक्तिसमन्विते । प्रसीद परमानन्दे दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥
नानापुष्पसमाकीर्णं नानासौरभसंयुतम् । पुष्पाञ्जलिञ्च विश्वेसि गृहाण भक्तवत्सले ॥
एष पुष्पाञ्जलिः साङ्गसायुधसवाहनसपरिवारायै भगवत्यै श्रीदुर्गादेव्यै नमः॥
नीराजन : ॐ कर्पूवर्तिसंयुक्तं वह्निना दीपितञ्च यत्। नीराजनं च देवेशि गृह्यतां जगदम्बिके ॥ इदं नीराजनम् ………॥
पञ्चवर्तिनीराजन : ॐ पञ्चवर्तिसमायुक्तं गोघृतेन च पूरितम् । नीराजनं जगद्वन्द्ये गृहाणाऽम्ब नमोस्तु ते ॥ इदं पञ्चवर्तिनीराजनम् ………॥
अच्छिद्रावधारण : ॐ दुर्गे देवि महामाये यादृक्पूजा मया कृता । अच्छिद्रास्तु शिवे साङ्गा तव देवि प्रसादतः ॥
साष्टाङ्ग प्रणाम करे : ॐ प्रार्थयामि महामाये यत्किञ्चित् स्खलितं मम । क्षम्यतां तज्जगन्मातः दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥
नवपत्रिका – नवदुर्गा पूजा विधि
ततो नवपत्रिकासु कदल्यां – ब्रह्माणीम् । दाडिमे – रक्तदन्तिकाम् । धान्ये – लक्ष्मीम् । हरिद्रायां – दुर्गाम् । मानके – चामुण्डाम् । कचुपत्रे – कालिकाम् । बिल्वपत्रे – शिवाम् । अशोके – शोकरहिताम् । जयन्त्यां – कार्तिकीम्, आवाह्य पूजयेत् ।
केला में ब्रह्माणि, अनार में रक्तदन्तिका, धान में लक्ष्मी, हरिद्रा में दुर्गा, मान में चामुण्डा, कचु में कालिका, बेल में शिवा, अशोक में शोकरहिता, जयंती में कार्तिकी का नाममंत्रों से आवाहन करके पंचोपचार पूजन करें, फिर दिये मंत्र से पुष्पांजलि प्रदान करे :
- ब्रह्माणि (केला) : ॐ ह्रीं ब्रह्माणि इहागच्छ, इह तिष्ठ ॥
- पूजा का नाममंत्र : ॐ ह्रीं ब्रह्माण्यै नमः ॥
- पुष्पाञ्जलि : ॐ ब्रहाणि त्वं समागच्छ सान्निध्यमिह कल्पय । रम्भास्वरूपे मे नित्यं शान्ति कुरु नमोऽतु ते ॥
- रक्तदन्तिका (दाडिम) : ॐ ह्रीं रक्तदन्तिके इहागच्छ इहतिष्ठ ॥
- पूजा का नाममंत्र : ॐ ह्रीं रक्तदन्तिकायै नमः ॥
- पुष्पाञ्जलि : ॐ दाडिमि त्वं पुरा युद्धे रक्तबीजस्य संक्षये । उमाकार्यं कृतं यस्मात्तस्मान्मे वरदाभवे ॥
- लक्ष्मी (धान) : ॐ ह्रीं लक्ष्मि इहागच्छ इहतिष्ठ ॥
- पूजा का नाममंत्र : ॐ ह्रीं धान्याधिष्ठात्र्यै लक्ष्म्यै नमः ॥
- पुष्पाञ्जलि : ॐ जगतः प्राणरक्षार्थ ब्रह्मणा निर्मितं पुरा । उमाप्रीतिकरं धान्यं तस्मात्त्वं रक्ष मां सदा ॥
- दुर्गा (हरिद्रा) : ॐ ह्रीं दुर्गे इहागच्छ इहतिष्ठ ॥
- पूजा का नाममंत्र : ॐ ह्रीं हरिद्राधिष्ठात्र्यै दुर्गायै नमः ॥
- पुष्पाञ्जलि : ॐ हरिद्रे वरदे देवि उमारूपासि सुव्रते । मम विघ्नविनाशाय पूजां गृह्ण प्रसीद मे ॥
- चामुण्डा (मान) : ॐ ह्रीं चामुण्डे इहागच्छ इहतिष्ठ ॥
- पूजा का नाममंत्र : ॐ ह्रीं मानाधिष्ठात्र्यै चामुण्डायै नमः ॥
- पुष्पाञ्जलि : ॐ यस्य पत्रे वसेद् देवी मानवृक्षः शचीप्रियः । मम विघ्नविनाशाय पूजां गृह्ण यथासुखम् ॥
- काली (कचु) : ॐ ह्रीं कालि इहागच्छ इहतिष्ठ ॥
- पूजा का नाममंत्र : ॐ ह्रीं कचुपत्रिकाधिष्ठात्र्यै काल्यै नमः ॥
- पुष्पाञ्जलि : ॐ महिषासुरयुद्धे त्वं कचुभूतासि सुव्रते । मम चानुग्रहार्थाय आगतासि हरप्रिये ॥
- शिवा (बिल्व) : ॐ ह्रीं शिवे इहागच्छ इहतिष्ठ ॥
- पूजा का नाममंत्र : ॐ ह्रीं बिल्वाधिष्ठात्र्यै शिवायै नमः ॥
- पुष्पाञ्जलि : ॐ महादेवप्रियकरो वासुदेवप्रियः सदा । उमाप्रीतिकरो वृक्षो बिल्ववृक्ष नमोऽस्तु ते ॥
- शोकरहिता (अशोक) : ॐ ह्रीं शोकरहिते इहागच्छ इहतिष्ठ ॥
- पूजा का नाममंत्र : ॐ ह्रीं अशोकाधिष्ठात्र्यै शोकरहितायै नमः ॥
- पुष्पाञ्जलि : ॐ शिवप्रीतिकरो देवो ह्यशोकः शोकनाशनः । उमाप्रीतिकरो यस्मादशोकं मां सदा कुरु ॥
- कार्तिकी (जयन्ती) : ॐ ह्रीं कार्तिके इहागच्छ इहतिष्ठ ॥
- पूजा का नाममंत्र : ॐ ह्रीं जयन्त्यधिष्ठात्र्यै कार्तिक्यै नमः ॥
- पुष्पाञ्जलि : ॐ निशुम्भशुम्भमथने सेन्द्रैर्देवगणैः सह । जयन्ति पूजितासि त्वमस्माकं वरदा भव ॥
ततोऽञ्जलि बद्ध्वा पुष्पाञ्जलि दद्यात्
ॐ पत्रिके नवदुर्गे त्वं महादेवमनोरमे । पूजां समस्तां संगृह्य रक्षां कुरु महेश्वरि ॥
स्थापितासि महादेवि पत्रिकासु सुरेश्वरि । आयुरारोग्यविजयं देहि देवि नमोऽस्तु ते ॥
दुर्गा परिवार पूजा विधि
देवी के दक्षिण में लक्ष्मी की पूजा करे। सर्वप्रथम पुष्प लेकर ध्यान करे :
ॐ तप्तकाञ्चनसंकाशा द्विभुजा लोललोचनाम् । कटाक्षविशिखोद्दीप्तामञ्जनाञ्चितलोचनाम् ॥
शुक्लाम्बरपरीधानां सिन्दूरतिलकोज्ज्वलाम् । शुक्लपद्मासनगतां ध्यायेन्नारायणप्रियाम् ॥
- प्राण प्रतिष्ठा : ॐ मनोजूति ……….. प्रतिष्ठ ॥ ॐ ह्रीं क्लीं भूर्भुवः स्वर्लक्ष्मि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- तत्पश्चात पाद्यादि उपचारों से पूजन करे : ॐ ह्रीं क्लीं भूर्भुवः स्वर्लक्ष्म्यै नमः ॥
- पुष्पांजलि : ॐ विश्वरूपस्य भार्यासि पद्म पद्मालये शुभे । सर्वतः पाहि मां देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥
पुष्प लेकर देवी के वाम भाग में सरस्वती ध्यान करे :
ॐ शंखकुन्देन्दु संकाशां द्विभुजां पद्मलोचनाम् ।
कटाक्षविशिखोद्दीप्तां दिव्यास्बरपरिच्छदाम् ॥
दिव्याभरणवेशाढ्यां वाग्रूपां परमां भजे ॥
- प्राण प्रतिष्ठा : ॐ मनोजूति ……….. प्रतिष्ठ ॥ ॐ ह्रीं भूर्भुवः स्वर्महासरस्वति इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- तत्पश्चात पाद्यादि उपचारों से पूजन करे : ॐ ह्रीं भूर्भुवः स्वर्महासरस्वत्यै नमः ॥
- पुष्पांजलि : ॐ भद्रकाल्यै नमो नित्यं सरस्वत्यै नमो नमः । वेदवेदान्तवेदाङ्गविद्यास्थानेभ्य एव च ॥
तत्पश्चात पुष्प-दूर्वा लेकर लक्ष्मी के दक्षिण भाग में गणपति का ध्यान करे :
ॐ लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं त्रिलोचनम् । सर्वदेवमयं देवं पार्वतीनन्दनं भजे ॥
- प्राण प्रतिष्ठा : ॐ मनोजूति ……….. प्रतिष्ठ ॥ ॐ ह्रीं भूर्भुवः स्वर्गगणेश इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- तत्पश्चात पाद्यादि उपचारों से पूजन करे : ॐ ह्रीं गं गणेशाय नमः ॥
- पुष्पांजलि : ॐ एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम् । विघ्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणयाम्यहम् ॥
तत्पश्चात सरस्वती के वाम भाग में कार्तिकेय का ध्यान करे :
ॐ कार्तिकेयं महाभागं मयूरोपरि संस्थितम् ।
तप्तकाञ्चनवर्णाभं शक्तिहस्तं वरप्रदम् ।
दिवसं शत्रुहन्तारं नानालङ्कारभूषितम् ॥
- प्राण प्रतिष्ठा : ॐ मनोजूति ……….. प्रतिष्ठ ॥ ॐ ह्रीं गुहाय कार्तिकेयाय सेनान्यै स्वाहा, ॐ भूर्भुवः स्वः साङ्गसायुधसवाहनश्रीकातिकेय इहागच्छ इहतिष्ठ॥
- तत्पश्चात पाद्यादि उपचारों से पूजन करे : ॐ ह्रीं गुहाय कार्तिकेयाय सेनान्यै स्वाहा ॐ साङ्गसायुधसवाहनश्रीकार्तिकेयाय नमः ॥
- पुष्पांजलि : ॐ कार्तिकेय महाभाग गौरीहृदयनन्दन । कुमार रक्ष मां नित्यं दैत्यार्दन नमोस्तु ते ॥
तत्पश्चात कार्तिकेय के वाम भाग में जया का ध्यान करे :
ॐ तप्तकाञ्चनसंकाशां द्विभुजां लोललोचनाम् ।
कटाक्षविशिखोपेतां दिव्याम्बरपरिच्छदाम् ॥
दिव्याभरणसंयुक्तां ध्यायेत् सिद्धिप्रदायिनीम् ॥
- प्राण प्रतिष्ठा : ॐ मनोजूति ……….. प्रतिष्ठ ॥ ॐ ह्रीं ह्रीं जये इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- ॐ ह्रीं ह्रीं जयायै नमः ॥ इस मंत्र से पूजा करके पुष्पांजलि दे ।
तत्पश्चात गणेश के दक्षिण भाग में विजया का ध्यान करे :
ॐ दलिताञ्जनसंकाशां द्विभुजां खञ्जनेक्षणाम् । कटाक्षविशिखोद्दीप्तां कज्जलाञ्चितलोचनाम् ॥
दिव्याम्बरपरीधानां नानारत्नविभूषिताम् । घ्यायेत्तां विजयां नित्यां सर्वसिद्धिप्रदायिनीम् ॥
- प्राण प्रतिष्ठा : ॐ मनोजूति ……….. प्रतिष्ठ ॥ ॐ ऐं ह्रीं विजये इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- ॐ ऐं ह्रीं विजयायै नमः ॥ इस मंत्र से पूजा करके पुष्पांजलि दे।
वाहनादि पूजा विधि
सिंहपूजा : पुष्प लेकर देवी के वाहन सिंह का ध्यान करे :
ॐ तीक्ष्णदंष्ट्रः करालास्यः सटाशोभितकन्धरः । चतुरंघ्रिर्वज्रनखो महासिंहः प्रकीर्तितः ॥
- प्राण प्रतिष्ठा : ॐ मनोजूति ……….. प्रतिष्ठ ॥ ॐ ह्रां ह्री वज्रनखदंष्ट्रायुध महासिंहासन इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- ॐ वज्रनखाय दंष्ट्रायुधाय महासिंहासनाय नमः ॥ इस मंत्र से पंचोपचार पूजन करके पुष्पांजलि अर्पित करे :
ॐ नमस्ते सर्वतोभद्र शिवो भव महीपते । त्रैलोक्यस्य तु सर्वस्य सिंहासन नमोऽस्तु ते ॥
ॐ आसनं चासि दुर्गाया नानालङ्कारभूषितम् । मेरुसिंहप्रतीकाश सिंहासन नमोस्तु ते ॥
महिषासुर पूजा : पुष्प लेकर ध्यान करे :
ॐ महिषस्त्वं महावीर शिवरूप सदाशिव । अतस्त्वां पूजयिष्यामि क्षमस्व महिषासुर ॥
- प्राण प्रतिष्ठा : ॐ मनोजूति ……….. प्रतिष्ठ ॥ ॐ ह्रीं ह्रीं हूँ महिषासुर इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- ॐ महिषासुराय नमः ॥ इस मंत्र से पंचोपचार पूजन करके पुष्पांजलि अर्पित करे :
ॐ महिषस्त्वं महावीर इन्द्रादिदेवमर्दक । देव्यस्त्रताडितो भूत्वा गतः स्वर्गं नमोऽस्तु ते ॥
तत्पश्चात मूषिक, मयूरादि का आवाहन पूजन करके देवी के आगे नवभैरवों की पूजा करे । सर्वप्रथम पुष्प लेकर ध्यान करे :
नवभैरव पूजा
ध्यान
ॐ भैरवं परमं देवं सर्वकामप्रसाधकम् । पूजयाम्यग्रतो देव्याः सर्वाभीष्टफलप्रदम् ॥
ॐ भीषणास्यं त्रिनयनमर्धचन्द्र विभूषितम् । स्फटिकाभं कङ्कणादि भूषाशतसमावृतम् ॥
अष्टवर्षवयस्कं च कुण्डलोल्लसितं भजे । धारयन्तं दण्डशूले भैरव्यादिसमायुतम् ॥
असिताङ्गभैरव
- आवाहन मंत्र : ॐ ऐं ह्री अँ असिताङ्गभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पूजन मंत्र : ॐ ऐं ह्री अँ असिताङ्गभैरवाय नमः ॥ इस मंत्र से पूजा करके पुष्पांजलि दे।
रुरुदभैरव
- आवाहन मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं इँ रुरुदभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पूजन मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं इँ रुरुदभैरवाय नमः ॥ इस मंत्र से पूजा करके पुष्पांजलि दे।
चण्डभैरव
- आवाहन मंत्र : ॐ ऐं ह्री उँ चण्डभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पूजन मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं उँ चण्डभैरवाय नमः ॥ इस मंत्र से पूजा करके पुष्पांजलि दे।
क्रोधभैरव
- आवाहन मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं ऋँ क्रोधभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पूजन मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं ऋँ क्रोधभैरवाय नमः ॥ इस मंत्र से पूजा करके पुष्पांजलि दे।
उन्मत्तभैरव
- आवाहन मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं लृँ उन्मत्तभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पूजन मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं लृँ उन्मत्तभैरवाय नमः ॥ इस मंत्र से पूजा करके पुष्पांजलि दे।
भयङ्करभैरव
- आवाहन मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं ऐं भयङ्करभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पूजन मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं ऐं भयङ्करभैरवाय नमः ॥ इस मंत्र से पूजा करके पुष्पांजलि दे।
भीषणभैरव
- आवाहन मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं ऊँ भीषणभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पूजन मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं ऊँ भीषणभैरवाय नमः ॥ इस मंत्र से पूजा करके पुष्पांजलि दे।
संहारभैरव
- आवाहन मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं अँ संहारभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पूजन मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं अँ संहारभैरवाय नमः ॥ इस मंत्र से पूजा करके पुष्पांजलि दे।
कपालिभैरव
- आवाहन मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं कँ कपालिभैरव इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पूजन मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं कँ कपालिभैरवाय नमः ॥ इस मंत्र से पूजा करके पुष्पांजलि दे।
तत्पश्चात कलश में आवाहित देवताओं की पंचोपचार पूजा करके प्रार्थना करे :
ॐ महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनि । द्रव्यमारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोऽस्तु ते ॥
कुङ्कमेन सदालब्धे चन्दनेन विलेपिते । बिल्वपत्रकृपापाणे दुर्गेऽहं शरणं गतः ॥
तत्पश्चात स्तोत्रादि पाठ, बलिदान, कुमारी पूजन, आरती आदि करके नृत्यगीतादी करते हुये उत्सव मनाये ।
सायं काल में सूर्यार्घ्य देकर, आवाहित देवताओं (दशदिक्पाल-नवग्रह आदि) की पंचोपचार पूजा करे। स्तोत्रादि पाठ करके पुष्पांजलि अर्पित करे। आरती करे, प्रार्थना, प्रदक्षिणा, साष्टांग प्रणाम आदि करे ।
छागबलि, कूष्माण्ड बलि, कुमारी कन्या पूजन विधि आदि अन्य आलेख में प्रस्तुत किया गया है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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