शंकराचार्य का कथन 100% सही है – लेकिन राम लला की प्राण प्रतिष्ठा भी गलत नहीं है।

शंकराचार्य का कथन १००% सही है – लेकिन राम लला की प्राण प्रतिष्ठा भी गलत नहीं है

राम मंदिर अयोध्या में शिखर संबंधी विवाद भी बहुत होता रहा और राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा को रोकने के लिये उन तत्वों ने तनिक भी प्रयास में कमी नहीं किया जो लोग सनातन के द्रोही हैं या रंगे सियार हैं। मंदिर में शिखर संबंधी विवाद तो गहराता ही गया और बाद में विलुप्त हो गया जबकि अभी भी देश के लाखों मंदिरों में शिखर नहीं है, लेकिन किसी को कोई चर्चा नहीं करनी है। बिना शिखर के राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की जा सकती है इसके संदर्भ चर्चा पिछले लेख में की गयी लेकिन विस्तारभय के कारण संक्षिप्त चर्चा ही की गई जिसकी विशेष चर्चा इस आलेख में करेंगे।

नोट : इस आलेख की भाषाशैली कुछ कटुतापूर्ण है और किसी भी शंकराचार्य पद के प्रति नहीं है।

शंकराचार्य का कथन 100% सही है – लेकिन राम लला की प्राण प्रतिष्ठा भी गलत नहीं है।

सबसे पहले ये स्पष्ट कर दूँ कि यहां भी शास्त्रसम्मत बात ही की जाती है मंदिर निर्माण करने वाली ट्रस्ट या मोदी के अनुकूल नहीं और इसका प्रमाण आपको अन्य लेख पढ़ने से मिल जायेगा।

मुहूर्त संबंधी जो त्रुटि है उसका उसका उल्लेख हमने पूर्व में भी किया पुनः कर दूँ ताकि जिन्होंने नहीं पढ़ा हो उनको ये भ्रम न हो कि अनुचित होने पर हम ट्रस्ट के साथ है : 22 जनवरी 2024, सोमवार को देवादि प्रतिष्ठा अर्थात प्राण प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त तो है किन्तु उसके लिये त्रयोदशी तिथि विहित है, द्वादशी दग्धतिथि है।

  • त्रयोदशी तिथि का आरंभ संध्या 7:51 (pm) बजे होगा।
  • त्रयोदशी आरम्भ होने से पूर्व द्वादशी तिथि है जो दग्ध तिथि है।
  • परिहार हेतु अभिजिन्मुहूर्त कहा जा सकता है किन्तु यदि शुभमुहूर्त अनुपलब्ध हो या व्यतीत हो गया हो तो अभिजिन्मुहूर्त ग्राह्य है। दग्धतिथि अग्राह्य है।
  • शुभमुहूर्त का तिरष्कार करके अभिजिन्मुहूर्त ग्राह्य नहीं हो सकता।
  • यदि मात्र अभिजिन्मुहूर्त का ही महत्व है तो अन्य किसी दिन कर लेना चाहिए था, फिर देवादि प्रतिष्ठा के दिन का निर्धारण क्यों किया गया?
  • अभिजिन्मुहूर्त का ऐसा आडम्बर किया जा रहा है जैसे वर्षों बाद मिल रहा है। प्रतिदिन अभिजिन्मुहूर्त होता है, तो प्रतिदिन प्रत्येक कार्य अभिजिन्मुहूर्त में कर लेना चाहिये, बाकि अन्य मुहूर्त साधन अनौचित्य है। फिर आपने माह, तिथि, नक्षत्र, वार, योग, करण क्यों देखा ? आपको तो ये कहना चाहिये कि जिस दिन मन करे अभिजिन्मुहूर्त में किया जा सकता है और कुछ विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
  • सर्वार्थ सिद्ध योग कहा जा रहा है तो क्या सर्वार्थसिद्ध योग होने पर अन्य विचार की आवश्यकता नहीं होती। फिर तो किसी भी दिन सर्वार्थसिद्ध योग में कर लेना चाहिये। फिर ये क्यों कह रहे हैं की शुभ मुहूर्त है केवल ये कहिये कि सर्वार्थसिद्ध योग है।
राम मंदिर

मुहूर्त संबंधी असहमति की पुनरावृत्ति का उद्देश्य ये है कि यदि आपके मन में पूर्वाग्रह या संशय हो कि कर्मकांड विधि अनुचित में भी मंदिर ट्रस्ट का समर्थन करती है तो वो दूर हो जाये। यहां मुहूर्त संबंधी इतने प्रश्न हमने उठा दिये कि मुहूर्त बनाने वाले निरुत्तर हो जायेंगे।

लेकिन यदि कोई ये कहे कि उस दिन प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त नहीं है तो कर्मकांड विधि उसका खंडन करती है। 22 जनवरी 2024, सोमवार, पौष शुक्ल त्रयोदशी में प्राणप्रतिष्ठा का शुभमुहूर्त है।

लेकिन ये भी स्पष्ट कर दूँ कि प्राणप्रतिष्ठा में नियुक्त आचार्य व ब्रह्मा के पास सर्वाधिकार सुरक्षित है। विद्वान आचार्यों के सान्निध्य में, उनकी आज्ञा में मुहूर्त दोष का निवारण सन्निहित होता है। कोई भी मुहूर्त पूर्ण रूप से निर्दोष नहीं होता और सर्वाधिक शुभमुहूर्त विद्वान दैवज्ञ द्वारा सुनिश्चित किये जाने पर शेष दोषों का निवारण हो जाता है । ये विषय केवल समयानुकल प्रसंगवश उठाया गया है। और मुहूर्त संबंधी प्रलाप करने वाले अज्ञानी हैं, भले ही वो ….

रुचं ब्राह्मं जनयन्तो देवा ऽअग्रे तदब्रुवन् । यस्त्वैवं ब्राह्मणो विद्यात्तस्य देवा ऽअसन्वशे ॥ नरायणसूक्त यजुर्वेद। ब्राह्मण की आज्ञा, ब्राह्मण के वचन का महत्व वेदों में वर्णित है। दोषों का निवारण होता है – ब्राह्मण की आज्ञा से।

देवता भी मंत्रज्ञ विद्वान ब्राह्मणों के वशवर्ती होते हैं : दैवाधीनं जगत्सर्वं मन्त्राधीनाश्च देवताः। ते मन्त्रा ब्राह्मणाधीनाः तस्मात् ब्राह्मण देवताः॥ ब्राह्मण भी स्वयं में देवता ही होते हैं और ये बात भगवान राम ने भी कई बार कहा है। लेकिन किसको माना जाय ये प्रश्न हो सकता है तो जिनको आचार्य नियुक्त किया गया है उनकी आज्ञा मान्य है। चारों शंकराचार्य मिलकर एकसाथ भी विरोध में उतर जायें उनका कोई महत्व नहीं है।

यदि शंकराचार्य को ये अहंकार हो कि वो भगवान शङ्कर हैं तो जो ब्रह्मा नियुक्त हुये हैं वो ब्रह्मा से कम नहीं हैं और वही अधिकृत हैं, नियुक्त आचार्य देवगुरु बृहस्पति हैं उनकी आज्ञा ट्रस्ट और यजमान के लिये अकाट्य है। अब शंकराचार्यों के प्रलाप उनको सुनना भी नहीं चाहिये।

राम लला की प्राण प्रतिष्ठा
ब्रह्मा
  • शंकरचार्यों को पहले ही शास्त्रार्थ करके अपनी बात सिद्ध करनी चाहिये थी, क्यों नहीं किये ?
  • शाङ्करत्व के अभिमान में विष्णु स्वरूप ब्राह्मणों को प्रतिदिन अपमानित कर रहे हैं यही आपका शाङ्करत्व है।
  • जो शङ्कर थे उन्होंने शास्त्रार्थ किया था, अपमान नहीं।
  • आप अपमान कर रहे हैं लेकिन शास्त्रार्थ करने में अहङ्कारी बन जाते हैं।
  • पहले ही शास्त्रार्थ करके सभी विषयों का निर्धारण आपने क्यों नहीं कराया ?
  • यदि नहीं कराया तो अब किस बात का प्रलाप।
  • आपके पास शास्त्रोक्त क्या अधिकार है पहले ये बतायें ?
  • आप भक्तों की भावना, आस्था पर प्रहार कर रहे हैं।
  • आप शास्त्रमर्यादा का उल्लंघन कर रहे हैं।
  • आपको अपने पद की गरिमा का विचार न हो न सही आचार्य, ब्रह्मा पद की गरिमा का हनन करने का अधिकार आपको किसने दिया ?
  • आपको तो ये भी नहीं ज्ञात है कि प्राणप्रतिष्ठा संबंधी संपूर्ण उत्तरदायित्व नियुक्त आचार्य में समाहित हो चुकी है। आप ट्रस्ट को पत्र लिख रहे हैं, जिसके पास धन, सामग्री आदि व्यवस्था के अतिरिक्त अन्य कोई अधिकार ही नहीं है।
  • पिछले लेखों में आपके पद की गरिमा को बचाने का प्रयास किया गया था लेकिन आपके वक्तव्यादि तो हास्यास्पद हैं।

शंकराचार्य का कथन १००% सही है

इस विषय में भी कर्मकांड विधि शंकराचार्य या उन सभी प्रश्नकर्ताओं का समर्थन करती है जिन्होंने शिखर संबंधी या अपूर्ण मंदिर का प्रश्न उठाया। ये प्रश्न शत-प्रतिशत सही है और इसका वास्तविक उत्तर अभी तक किसी ने दिया भी नहीं।

कोई सोमनाथ तो कोई रामेश्वरं, कुछ भी अनाप-शनाप करके शंकराचार्य का अपमान कर रहा है। इसमें भाजपा के प्रवक्ता भी शामिल हैं, भले ही शंकराचार्य का अपमान न कर रहे हैं किन्तु आपको अधिकार ही नहीं है उन्हें गलत सिद्ध करने का। कर्मकांड जिसका विषय नहीं है वो चुप ही रहे ऐसा कर्मकांड विधि ने पिछले लेख में भी व्यक्त किया था।

राम लला की प्राण प्रतिष्ठा

सोमनाथ, रामेश्वरं आदि उदाहरण शंकराचार्य द्वारा उठाये गये प्रश्न का सम्यक उत्तर नहीं है, गाल बजाना है जो नेताओं और राजनीतिक प्रवक्ताओं का निंदित लक्षण है।

शंकराचार्य का कथन १००% सही है, अकाट्य है कि अपूर्ण मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जा सकती।

लेकिन इसका उत्तर भी दिया गया था संभवतः कर्मकांड विधि का लेख उन तक पहुँच रहा है अतः अन्य विषय का प्रश्न उन्होंने नहीं उठाया लेकिन अपूर्ण मंदिर का प्रश्न पुनः उठाया। पता नहीं वीडियो आज का ही है या पिछले दिनों का, या हो सकता है की पिछले लेख में जो उत्तर दिया गया उसमें कुछ कमी रह गयी इसलिये इस विषय को विस्तारभय का त्याग करके गंभीरता से समझेंगे।

शिखरहीन या अपूर्ण मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा भी गलत नहीं है :

शिखरहीन या अपूर्ण मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा भी गलत नहीं है, भले ही इस विषय में शंकराचार्य भी सही थे, अब गलत हैं।

संभवतः पिछले आलेख की भाषाशैली में आप उत्तर समझ नहीं पाये, इसलिये इस आलेख में समझ आ जाये वो भाषाशैली ग्रहण करने का प्रयास किया गया है। बिना शिखर के गर्भगृह में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा पूर्णतः प्रामाणिक है, संशय रहित है यही समझने-समझाने का विषय है और जिन श्रद्धालुओं को तनिक भी संशय होगा उनका संशय निवारण शत-प्रतिशत हो जायेगा, लेकिन जो आसुरी छाया के अधीनस्थ हैं वो समझकर भी नासमझ ही बने रहेंगे।

राम लला की प्राण प्रतिष्ठा
राम लला की प्राण प्रतिष्ठा
  • विधि विधान से हो रहा है या नहीं, ये निर्धारित करने का अधिकार आपको किस शास्त्र से प्राप्त हुआ है ?
  • संकल्पित यज्ञ को रोकने का अधिकार आपको किस शास्त्र से मिला है, पहले ये सिद्ध करें।
  • प्रतिमा आसुरी होगी या उनके भीतर आसुरी तत्व है अब ये विचार करने की आवश्यकता है।
  • यज्ञ में विघ्न डालने की कुचेष्टा वही करता है जो आसुरी तत्व के अधीन हो।

पिछले आलेख में इस प्रश्न का उत्तर ये बताया गया था कि भगवान राम और कृष्ण के लाखों मंदिर देश में हैं जिनको ठाकुरवाड़ी कहा जाता है, और ९०% से अधिक शिखरहीन ही हैं और आपात्काल में शास्त्रोचित ही हैं किसी प्रकार का दोष नहीं है। लेकिन ये बात जिसे समझ होगी वही समझ पायेगा न !

इस लेख में यही बात विस्तार से समझायी जा रही है और ये प्रयास किया जा रहा है कि अल्पज्ञ भी समझ जाये।

प्रश्न : आपात्काल का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर : आपत्काल का तात्पर्य है प्राकृतिक, राजनैतिक, सामाजिक, व्यावहारिक आदि प्रतिकूलता की उपस्थिति।

प्रश्न : आपात्काल कब आरंभ हुआ था ?
उत्तर : आपत्काल का आरंभ आक्रांताओं के कालखंड में हुआ था जब देश के मंदिरों का विध्वंस किया जा रहा था। सत्ता पर आक्रांताओं ने अधिकार कर लिया था।

प्रश्न : आपद्धर्म क्या होता है ?
उत्तर : विपरीत परिस्थियों (आपत्काल) में भी धर्मपालन संबधी नियमों में आवश्यक संशोधन करके धर्म को बचाये रखना आपद्धर्म होता है।

प्रश्न : मंदिर के शिखर का आपद्धर्म से क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर : जब आक्रांताओं का अत्याचार हो रहा था, मदिरों का विध्वंस किया जा रहा था तो आपद्धर्म का आश्रय ग्रहण करते हुये धर्मावलम्बियों ने निर्णय लिया की शिखरहीन मंदिर बनायेंगे ताकि आक्रांताओं को ज्ञात न हो। घर में भी शिखरहीन मंदिर बना लेंगे। मंदिर के शिखर का आपत्काल और आपद्धर्म से स्पष्ट संबंध है और इसी कारण देश के ९०% से अधिक राम और कृष्ण मंदिर जिसे ठाकुरवाड़ी कहा जाता है शिखरविहीन हैं।

प्रश्न : वर्त्तमान में तो आपत्काल नहीं है ?
उत्तर : वर्त्तमान में भी आपत्काल है। यदि नहीं होता तो आज भी मंदिर निर्माण और प्राणप्रतिष्ठा में इतने विघ्न करने का प्रयास नहीं होता। काशी – मथुरा में भी मूल मंदिर बन चुका होता और ठाकुरवारियों में भी शिखर निर्माण आरम्भ हो जाता। जब काशी-मथुरा आदि मंदिर बन जाये, ठाकुरवारियों में शिखर बनाये जाने लगे तब समझना की राजनैतिक आपत्काल समाप्त हो गया।

कर्मकांड विधि का इस आलेख में मात्र इतना उद्देश्य है कि देशभर के श्रद्धालु रामभक्तों के मन में जो संशय उत्पन्न करने का प्रयास किया जा रहा है उसका निस्तारण हो सके। प्रलाप करने वालों के लिये समय नष्ट करना भी अनावश्यक है। प्रलाप करने वालों के लिये गोस्वामी तुलसीदास की सर्वोत्तम चौपाई जो उन्हें सचेत करती है वह है : संकर सहस विष्णु अज तोहिं । सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥

निष्कर्ष : आशा है इस आलेख से अल्पज्ञों को भी शिखर संबंधी ज्ञान प्राप्त हो जायेगा और बिना शिखर के भी राम लला की प्राण प्रतिष्ठा पूर्णतः सही है ये भी समझ आ जायेगा। साथ ही मुहूर्त आदि संबधी ज्ञान भी प्राप्त हो जायेगा।

इस विषय पर प्रत्येक आलेख के बाद मैं यही सोचता हूँ कि अब आगे इस संबंध में चर्चा नहीं करनी चाहिये। किन्तु प्रतिदिन ऐसे नये-नये वीडियो आते हैं कि पुनः इसी संबंध में चर्चा अपेक्षित हो जाती है। श्रद्धालु भक्तों के आस्था-भक्ति का संरक्षण करना ही मुख्य उद्देश्य होता है, क्योंकि वास्तविक प्रहार न तो राम मंदिर और न ही प्राण प्रतिष्ठा पर होती है वास्तविक प्रहार सनातनियों की भावना, भक्ति, आस्था, श्रद्धा पर किया जा रहा है।

॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः सुशांतिर्भवतु सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


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