राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) एक हिंदू राष्ट्रवादी स्वयंसेवक संगठन है। इसकी स्थापना 1925 में केशव बलिराम हेडगेवार जी ने की थी। आरएसएस भारत का सबसे बड़ा स्वयंसेवक संगठन है, जिसके अनुमानित 50-60 लाख सदस्य हैं। संगठन का मुख्यालय नागपुर में है। और जब राजनीतिक रूप से नागपुर बोला जाता है तो उसका भाव भी RSS ही होता है। इसी प्रकार से यद्यपि संघ का अर्थ RSS नहीं होता है किन्तु वर्तमान भारत में जब संघ बोला जाता है तो उसका भाव भी RSS ही होता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) राजनीतिक संगठन है या धार्मिक
इस आलेख में हम पहले RSS के वास्तविक स्वरूप को समझेंगे कि यह राजनीतिक संगठन है या सामाजिक संगठन या धार्मिक संगठन या सांस्कृतिक ? अगली कड़ी में हम ये समझने का प्रयास करेंगे कि RSS का धार्मिक अधिकार क्या है ? फिर धार्मिक कर्तव्य का अतिक्रमण कैसे करती है यह भी समझेंगे और साथ ही इस पर आगे यह भी विचार करेंगे कि क्या इसे धार्मिक निर्णय करने का अधिकार है ?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या है
संघ के द्वारा स्वयं को एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन होने का दावा किया जाता है, लेकिन इसे व्यापक रूप से हिंदू राष्ट्रवादी राजनीतिक संगठन के रूप में देखा जाता है। संगठन का एक हिंदू राष्ट्र बनाने का लक्ष्य है, जो एक ऐसा देश है जहां हिंदू संस्कृति और मूल्यों का प्रभुत्व हो। संघ मुस्लिम तुष्टीकरण और भारत के विभाजन का विरोधी है और अखंड भारत चाहता है। RSS सनातन शब्द का प्रयोग कम और हिन्दू का प्रयोग अधिक करता है।
संघ की शाखाएँ पूरे देश में हैं और विदेशों में भी प्रसार होने लगा है। संघ सामाजिक सेवा कार्य, जैसे आपदा राहत और शिक्षा प्रदान करता है। RSS हिंदू युवाओं को शारीरिक और सांस्कृतिक प्रशिक्षण भी प्रदान करता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिज्ञा
“सर्वशक्तिमान श्री परमेश्वर…तथा अपने पूर्वजों का स्मरण कर…मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि अपने पवित्र हिंदू धर्म… हिंदू संस्कृति… तथा हिंदू समाज का संरक्षण कर… हिंदू राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करने के लिए… मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का घटक बना हूं… संघ का कार्य… मैं प्रमाणिकता से… निस्वार्थ बुद्धि से… तथा तन मन धन पूर्वक करूंगा… और इस व्रत का मैं… आजन्म पालन करूंगा… भारत माता की जय”
संघ की प्रतिज्ञा से जो कर्तव्य स्पष्ट होते हैं वो इस प्रकार हैं :
- हिन्दू धर्म का संरक्षण करना ।
- हिन्दू संस्कृति का संरक्षण करना ।
- हिन्दू समाज का संरक्षण करना ।
- हिन्दू राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति के लिये प्रयास करना ।
संघ इसे भले ही राजनीतिक न मानता हो किन्तु ये सभी राजनीतिक कर्म ही हैं। और यदि राजनीति न करे तो इन प्रतिज्ञाओं को पूर्ण नहीं किया जा सकता। संघ की प्रतिज्ञा से यही सिद्ध होता है कि संघ वास्तव में एक राजनीतिक संगठन है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे, त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे, पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥१॥
अर्थ: हे वत्सल मातृभूमि! मैं तुझे सदैव प्रणाम करता हूँ। हे हिन्दुभूमि! तूने मुझे सुख से बढ़ाया है। हे महामङ्गलमय पुण्यभूमि! तेरे कार्य में मेरी यह काया अर्पण हो। तुझे मैं अनन्त बार प्रणाम करता हूँ।
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बद्धा कटीयम्शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम्सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्णमार्गम्, स्वयं स्वीकृतं नः सुगंकारयेत्॥२॥
अर्थ: हे सर्वशक्तिमान् परमेश्वर! हम हिन्दुराष्ट्र के अङ्गभूत घटक, तुझे आदर पूर्वक प्रणाम करते हैं। तेरे ही कार्य के लिए, हम कटिबद्ध हैं। उसकी पूर्ति के लिए, हमें शुभाशीर्वाद दे। विश्व हो अजेय ऐसी शक्ति, सारा जगत् आदर से विनम्र हो ऐसा विशुद्ध शील, तथा हमारे द्वारा बुद्धि पूर्वक स्वीकृत कण्टकमय मार्ग को सुगम करे, ऐसा ज्ञान भी हमें देवें।
समुत्कर्ष निःश्रेयसस्यैकमुग्रम्परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्राऽनिशम्।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम्समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्॥३॥
अर्थ: अभ्युदय सहित निःश्रेयस की प्राप्ति का वीरव्रत नामक जो एकमेव श्रेष्ठ उग्र साधन है, उसका हम लोगों के अन्तःकरण में स्फुरण हो। हमारे हृदय में अक्षय तथा तीव्र ध्येयनिष्ठा सदैव जाग्रत रहे। तेरे आशीर्वाद से हमारी विजयशालिनी संगठित कार्य शक्ति स्वधर्म का रक्षण कर अपने इस राष्ट्र को परम वैभव की स्थिति पर ले जाने में अतीव समर्थ हो।
संघ अपनी प्रार्थना में दो लक्ष्य स्पष्ट करता है और उसकी पूर्ति करने में सक्षमता का आशीर्वाद मांगता है :
- धर्म संरक्षण और : धर्म संरक्षण करने के लिये धार्मिक गतिविधि की आवश्यकता तो होगी ही लेकिन संरक्षण से यही स्पष्ट होता है कि वो राजनीतिक सामर्थ्य प्राप्त करना जिसके द्वारा संरक्षण कार्य सम्भव हो।
- समर्थ राष्ट्र का निर्माण : समर्थ राष्ट्र का निर्माण या राष्ट्रीय वैभव की प्राप्ति तो राजनीति के बिना संभव ही नहीं है।
अतः संघ की प्रार्थना भी संघ को एक राजनीतिक संगठन ही घोषित करता है।
संघ की विचारधारा
संघ की विचारधारा हिंदुत्व पर आधारित है, जो हिंदू धर्म और संस्कृति की अवधारणा है। RSS का मानना है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और इसे हिंदू मूल्यों और संस्कृति के अनुसार शासित किया जाना चाहिए। संगठन मुस्लिम तुष्टीकरण और धर्मनिरपेक्षता का विरोधी है, जो इसका मानना है कि भारत की हिंदू पहचान को कमजोर करता है।
संघ द्वारा यह दावा किया जाता है कि यह एक राष्ट्रवादी संगठन है जो हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा करने के लिए समर्पित है।
संघ की विचारधारा में हिंदुत्व और हिन्दू संस्कृति का होना यह सिद्ध नहीं करता कि संघ एक धार्मिक संगठन है, लेकिन भारत की राजनीति का स्वरूप निर्धारण करने का प्रयास यह सिद्ध करता है कि संघ राजनीतिक संगठन है।
संघ का भारत की राजनीति में प्रभाव :
- संघ भारत का सबसे बड़ा स्वयंसेवक संगठन है। इसका एक विशाल और अनुशासित कार्यकर्ता वर्ग है, जो भाजपा और अन्य हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों के लिए चुनाव प्रचार और अन्य राजनीतिक गतिविधियों में मदद करता है।
- संघ की विचारधारा भाजपा की नीतियों को प्रभावित करती है। भाजपा सरकार ने कई ऐसी नीतियां लागू की हैं जो आरएसएस की विचारधारा के अनुरूप हैं, जैसे कि समान नागरिक संहिता और राम मंदिर का निर्माण।
- संघ का भाजपा के साथ घनिष्ठ संबंध है। भाजपा के कई नेता RSS के सदस्य रहे हैं, और पार्टी की विचारधारा काफी हद तक RSS की विचारधारा से मिलती-जुलती है। भाजपा को अक्सर RSS की राजनीतिक शाखा के रूप में देखा जाता है।
RSS के समर्थक कहते हैं कि यह एक देशभक्त संगठन है जो हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा करने के लिए काम कर रहा है। वे यह भी दावा करते हैं कि संगठन गैर-राजनीतिक है और किसी भी प्रकार की हिंसा या उग्रवाद का समर्थन नहीं करता है। गैर-राजनीतिक कहने का तात्पर्य यह है कि राजनीतिक संगठन नहीं है, लेकिन उद्देश्य का क्या करेंगे ? उद्देश्य तो राजनीतिक है और उद्देश्य ही संघ को राजनीतिक संगठन सिद्ध करता है।
RSS राजनीतिक संगठन है किन्तु कुछ सामाजिक कार्य भी करता है लेकिन सामाजिक संगठन नहीं है :
- संघ सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों पर भी सक्रिय है। यह गौ हत्या, धर्मांतरण, और लव जिहाद जैसे मुद्दों पर मुखर रहा है।
- संघ शिक्षा के क्षेत्र में भी सक्रिय है। संगठन ने कई स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की है जो हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़ावा देते हैं।
- संघ के लाखों स्वयंसेवक हैं जो पूरे भारत में फैले हुए हैं। ये स्वयंसेवक सामाजिक कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और चुनावों के दौरान भाजपा के लिए प्रचार करते हैं।
- आपदाओं के समय संघ के स्वयंसेवक बचाव कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इस प्रकार संघ के सामाजिक कार्यों को देखते हुये इसे सामाजिक संगठन भी माना जा सकता है लेकिन यह आंशिक सत्य ही है क्योंकि संघ का उद्देश्य राजनीतिक है, राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिये संघ सामाजिक कार्यों में भी भाग लेता है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सामाजिक या धार्मिक संगठन क्यों नहीं है ?
सामाजिक और धार्मिक कार्यों में तो बैंक, रेलवे, कंपनियां आदि भी भाग लेती है या करती है लेकिन क्या किसी को सामाजिक या धार्मिक संगठन कहा जा सकता है। जिस तरह से बैंक, रेलवे, कंपनियां सामाजिक और धार्मिक कार्यों में भाग लेने के बाद ही सामाजिक या धार्मिक संगठन नहीं होता है उसी तरह से संघ भी सामाजिक और धार्मिक गतिविधियां करता तो है लेकिन यह न तो सामाजिक संगठन है न ही धार्मिक संगठन।
संघ एक धार्मिक संगठन नहीं है लेकिन वर्त्तमान में धर्म पर नियंत्रण करना चाहता है
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) एक धार्मिक संगठन नहीं है। यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन भी नहीं है लेकिन हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़ावा देता है। आरएसएस का मुख्य उद्देश्य हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा करना और भारत को एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र बनाना है जिससे यह राजनीतिक संगठन सिद्ध होता है किन्तु वर्तमान में संघ धार्मिक प्रभुत्व प्राप्त करना चाहता है, जैसे कि : धर्म को नियंत्रित करना, धर्म एवं धर्म के अंगों को परिभाषित करना, धर्म शास्त्रों की व्याख्या करना, धर्मशास्त्रों में परिवर्तन करना आदि।
संघ चाहता है कि धर्म का शास्त्रों में जो स्वरूप बताया गया है उसे परिवर्तित किया जाय और इसके लिये धर्म शास्त्रों में परिवर्तन करना होगा और इस दिशा में गतिमान भी है।
- संघ यह अस्वीकार करता है कि धर्म के स्वरूप, नियम आदि धर्मशास्त्रों में वर्णित है वह सही है।
- संघ का मानना है कि धर्म की रक्षा के लिये धर्म के स्वरूप और नियमों में परिवर्तन की आवश्यकता है, जिसके लिये धर्म शास्त्रों में परिवर्तन करना होगा।
- संभवतः संघ का यह मानना है कि धर्म शास्त्रों में वर्ण, कर्मकाण्ड के नियम आदि जो वर्णन मिलता है वह गलत है या उसके रहते धर्म की रक्षा नहीं की जा सकती और इसी कारण बहुत सारे श्लोकों को प्रक्षिप्त घोषित करते हुये उसको हटाने का पक्षधर है।
- संघ आपद्धर्म को नहीं मानता क्योंकि यदि आपद्धर्म को मानता तो धर्म रक्षा के लिये वर्त्तमान में आपद्धर्म का आश्रय लेता न कि धर्मशास्त्रों को गलत सिद्ध करता।
- संघ को संभवतः ये भ्रम या अहंकार हो गया है कि धर्म का रक्षक संघ ही है; ईश्वर नहीं है, भले ही प्रार्थना में ईश्वर से ही धर्म संरक्षण के लिये शक्ति क्यों न मांगता हो।
- संभव है ये संघ की सोच न हो मात्र संघ प्रमुख मोहन भागवत की ही सोच मात्र हो, लेकिन संघ का इस दिशा में गतिमान होना इस संभावना को असिद्ध करता है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत के कुछ वक्तव्य :
RSS भारत की राजनीति में एक शक्तिशाली संगठन है जो मुख्य रूप से राजनीति को प्रभावित करता है लेकिन धार्मिक गतिविधियां भी करता है जिसका उदाहरण है राम मंदिर। लेकिन धार्मिक गतिविधियों से अब दूर भी होना चाहता है और इसका प्रमाण संघ प्रमुख के कुछ विशेष वक्तव्य हैं, संघ प्रमुख का वक्तव्य होने का अर्थ है कि संघ की सोच है। संघ प्रमुख ने राम संघ का राममंदिर आंदोलन से जुड़ना एक भूल भी बताया है अर्थात संघ धार्मिक या राजनीतिक संगठन नहीं है यही सिद्ध करना चाहते हैं।
- “संघ ने राम मंदिर आंदोलन में जरूर हिस्सा लिया था और कोई इस बात को नहीं नकार रहा है। लेकिन तब संघ ने अपनी मूल प्रवृति के विरोध जाकर उस आंदोलन में हिस्सा था, अब भविष्य में संघ किसी मंदिर आंदोलन में नहीं शामिल होने वाला है।”
- “हमारी समाज के प्रति भी ज़िम्मेदारी है। जब हर काम समाज के लिए है तो कोई ऊंचा, कोई नीचा या कोई अलग कैसे हो गया? भगवान ने हमेशा बोला है कि मेरे लिए सभी एक है। उनमें कोई जाति, वर्ण नहीं है, लेकिन पंडितों ने श्रेणी बनाई, वो गलत था।”
- “हर मस्जिद में शिवलिंग तलाशने की जरूरत नहीं है।”
संघ प्रमख मोहन भागवत के ये कुछ विशेष वक्तव्य हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि जिस प्रकार बौद्ध, जैन, सिख या आर्यसमाज, गायत्री परिवार आदि बने धर्म के स्वरूप में आमूल-चूल परिवर्तन करके इनसे बड़े आकार में संघ का विकास हो जिसमें सनातन का छोटा भाग न हो संपूर्ण सनातन ही हो।
यहां संघ बड़ी-बड़ी भूल कर रहा है
- सनातन का संरक्षण सदा ईश्वर करते हैं और जब क्षरण अत्यधिक हो जाता है तो स्थापना के लिये अवतार भी लेते हैं। संघ इस सत्य को स्वीकार नहीं करता है संघ स्वंय को ही धर्म का संरक्षक और संस्थापक बनाना चाहता है, अर्थात बढे हुए प्रभाव के कारण भ्रम या अहंकार के अधीन होकर ईश्वर की सत्ता को अस्वीकार करता है या ईश्वर में अविश्वास प्रकट करता है।
- धर्मशास्त्रों में प्रक्षिप्त श्लोक हैं अर्थात धर्मशास्त्र गलत हैं यह मानता है।
- जाति-वर्ण आदि को समाप्त करना चाहता है या नये स्वरूप में स्थापित करना चाहता है, जिसका तात्पर्य यह है कि धर्मशास्त्रों या धर्म के स्वरूप में परिवर्तन नहीं धर्म को ही नष्ट करना चाहता है।
- भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में वर्णशंकर और उसके दोषों का जो वर्णन किया है उसे गलत मानता है, वर्ण शङ्करता को बढ़ावा देना चाहता है।
- गाय का बच्चा बच्चा होगा और भैंस का बच्चा भैंस ही होगा इसे सही नहीं मानता। संघ को लगता है कि सभी के बच्चे समान होते हैं लेकिन जिसको जो व्यवहार, लक्षण, गुण, स्वभाव, कार्य ग्रहण करना हो कर सकता है और उसे वही मानना चाहिये : जैसे गाय का बच्चा भी शेर की तरह दहाड़ सकता है, शिकार कर सकता है, मांसाहारी बन सकता है, जंगल जा सकता है और जंगल में मृगराज बन सकता है। शेर का बच्चा भी जन्म से शेर नहीं होता वह चाहे तो गांव-घरों में आकर गाय बन सकता है।
यक्षप्रश्न : यदि संघ को भगवान पर विश्वास नहीं है, यदि धर्म पर विश्वास नहीं है, यदि धर्म-शास्त्रों पर विश्वास नहीं है तो प्रतिज्ञा और प्रार्थना में किस धर्म संरक्षण का वर्णन है, संघ किस धर्म का संरक्षण करेगी ?
जाति-वर्ण ईश्वर रचित नहीं है संघ का यह विचार और राम मंदिर आंदोलन में भाग लेना दोनों विरोधाभासी है। और इस कारण संघ से कुछ प्रश्न बनते हैं :
- यदि जाति और वर्ण-व्यवस्था वेदों-पुराणों में वर्णित है तो अशास्त्रीय कैसे है ?
- चलो मान लिया अशास्त्रीय है तो धर्म स्थापना करने के लिये जब भगवान राम और कृष्ण आदि अवतार हुये तो उन्होंने इस अशास्त्रीय, अमानवीय व्यवस्था का अंत क्यों नहीं किया, अपितु उन्होंने इस व्यवस्था का संरक्षण क्यों किया ?
- भगवान राम ने वशिष्ठ को ही गुरु क्यों बनाया ?
- भगवान राम ने ब्राह्मणों को ही हमेशा दान क्यों दिया ?
- निषाद, रजक आदि जाति व्यवस्था रामायण काल में थी, यदि गलत है तो उन्हें समाप्त करना चाहिये था न, यदि भगवान ने बार-बार अवतार लेने के बाद भी जाति-वर्ण व्यवस्था को समाप्त नहीं किया तो क्या भगवान ने भी गलत किया है ?
जिस प्रकार से विभिन्न अवसरों पर RSS प्रमुख द्वारा उपरोक्त वक्तव्य सार्वजनिक रूप से दिये गये क्या इन प्रश्नों के भी उत्तर दिये जायेंगे ताकि और प्रश्न भी किये जा सकें ? जब नये धर्म-शास्त्रों का निर्माण करना चाहते हैं या धर्म-शास्त्रों में परिवर्तन करना चाहते हैं तो जनता को जो-जो शंकायें हों उन शंकाओं का निवारण भी तो करना होगा।
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