प्राण प्रतिष्ठा में देव प्रतिमा को स्नान कराने की विशेष विधि है। पूर्व के दो लेखों में भी इसकी विशेष जानकारी दी गई है। प्रथम लेख में स्नपन मंडप में वेदी निर्माण, कलश स्थापन क्रम, द्रव्य निक्षेप की जानकारी दी गई है और द्वितीय लेख में दक्षिण वेदी स्नपन की विधि और मंत्र बताई गई है।
स्नपन विधि का ये तृतीय लेख है, इसमें नेत्रोन्मीलन और मध्य वेदी स्नपन की विधि और मंत्र बताई गई है।
मध्य वेदी स्नपन से पूर्व नेत्रोन्मीलन किया जाता है एवं स्नपन विधि और मंत्र दक्षिण वेदी स्नपनवत ही है।
मध्यवेदी स्नपन विधि
- आचार्य मध्य वेदी पर भद्रपीठ स्थापित करे : ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा ᳪ सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः ॥
- आचार्य मध्यवेदी पर प्रागाग्र कुशा आस्तरण करे : ॐ स्तीर्णं बर्हि: सुष्टरीमा जुषाणोरुपृथु प्रथमानं पृथिव्याम् । दवेर्भिर्युक्तमदिति: सजोषा:स्योनं कृण्वाना सुविते दधातु ॥
- फिर प्रणव से प्रतिमा को कुशा बिछाये हुये भद्रपीठ पर स्थापित करे।
फिर नेत्रोन्मीलन करे :
नेत्रोन्मीलन के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य
- नेत्रोन्मीलन का तात्पर्य बंद आंखों को खोलना।
- बाजार से खरीदकर लायी हुई प्रतिमा का नेत्र पहले से ही खुला होता है।
- और इसी कारण खरीदी हुई प्रतिमा का प्रतीकात्मक नेत्रोन्मीलन किया जाता है।
- उसी प्रकार शिवलिङ्ग में भी कल्पनापूर्वक ही नेत्रोन्मीलन किया जाता है।
- किन्तु वास्तविक नेत्रोन्मीलन तभी संभव होता है जब शिल्पी को बुलाकर प्रतिमा निर्माण कराया जाय और प्राण प्रतिष्ठा तक शिल्पी भी उपस्थित रहे।
- नेत्रोन्मीलन विधि में पहले मंत्रो द्वारा बंद नेत्रों को स्वर्ण शलाका से घृतमिश्रित मधु से खोलने की प्रक्रिया (चिह्नांकित) करके और बिम्ब बनाकर किया जाता है।
- पुनः शिल्पी प्रतिमा का नेत्र खोलता है। इसी को नेत्रोन्मीलन कहते हैं।
नेत्रोन्मीलन विधि :
- प्रतिमा में नेत्रादि स्थान निर्धारित होते हैं, अपितु वर्तमान में पूर्व ही नेत्र रचना हो जाती है।
- यदि शिवलिंग हो तो पहले कुंकुमाक्त सूत्र से लिङ्ग को वेष्टित करे।
- लिङ्ग के मध्यभाग में मुख की कल्पना करके तदनुसार ऊपर भाग में नेत्रों की भी कल्पना करे।
- सुवर्णपात्र में मधु एवं घृत मिश्रित कर ले।
- इस अर्द्धमंत्र से सुवर्णशलाका द्वारा घृतमिश्रितमधु से नेत्रोन्मीलन (पहले दाहिना फिर बायां) करें : ॐ चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्ने: ॥
- फिर इस मंत्र से उपर एवं नीचे के पलकों की कल्पना सुवर्ण शलाका से करें : ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न मृतं मर्त्यं च । हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भूवनानि पश्यन् ॥
- इसी प्रकार नेत्र मध्य में कनिनिका कल्पित करें ।
- नेत्रोन्मीलन के समय प्रतिमा की दृष्टि में सुवर्ण-पायस, भक्ष्य-भोज्य आदि रखें, देवी प्रतिमा में बलि/कूष्माण्ड आदर्शानुसार रखे।
- नेत्रोन्मीलन के समय प्रतिमा की दृष्टि में कोई न रहे, शीशा आदि तोड़ने की परम्परा भी अनुचित है।
- यदि प्रतिमा के नेत्र खुले न हों अर्थात शिल्पी को बुलाकर बनाई गयी प्रतिमा हो तो शिल्पी नेत्र को खोले।
- आचार्य प्रतिमा को मधु घृत लगायें : ॐ इमम्मे वरुणश्रुधी हवमद्या च मृडय। त्वामवस्युराचके॥
फिर दक्षिणवेदी स्नपन मंत्रों (११) से ही मध्य वेदी के ११ कलशों से भी प्रतिमा को स्नान कराये :
- ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् । अपाᳪ रेताᳪ सि जिन्वति ॥ – मृत्तिका (प्रथम कलश)
- ॐ यज्ञा यज्ञा वो अग्नये गिरा गिरा च दक्षसे । प्र प्र वयममृतं जातवेदसम्प्रियम्मित्रन्न श ᳪ सिषम् ॥ – कषायोदक (द्वितीय कलश)
- ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं …..… ॥ – गोमूत्र (तृतीय कलश)
- ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ – गोमय (चतुर्थ कलश)
- ॐ मानस्तोके तनयेमानऽआयुषिमानो गोषुमानोऽअश्वेषुरीरिष: । मानो विरान्रुद्रभामिनो वधीर्हष्मन्तः सदमित्वा हवामहे ॥ – भस्मोदक (पञ्चम कलश)
- ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं ……. ॥ – गंधोदक (षष्ठ कलश)
- ॐनमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शङ्कराय च मयस्क्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ॥ – प्रथम कलश
- ॐ ह ᳪ सः शुचिषद्वसुरन्तरिक्षसद्धोता वेदिषदतिथिर्दुरोणसत् । नृषद्वरसदृतसद्व्योमसदब्जा गोजाऽऋतजाऽअद्रिजा ऽऋतम्बृहत् ॥ – द्वितीय कलश
- ॐ या ते रुद्द्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी । तयानस्तन्न्वाशन्तमया गिरिशन्ताभिचाकशीहि ॥ – तृतीय कलश
- ॐ विष्णोरराटमसि विष्णोः श्नप्त्रेस्त्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोर्ध्र्रुवोसि वैष्णवमसि विष्णवे त्वा ॥ – चतुर्थ कलश
- ॐ ब्रह्म यज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेनऽआवः। सबुध्न्या उपमाऽअस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसश्च विवः ॥ – पंचम कलश
देवता पूजा : ॐ शतंबो ऽअम्बधामनि सहस्रमुतवारुहः। अधाशत क्रतवो यूयम्मिम्मे ऽअगदङ्कृत ॥ – दूर्वाक्षतपुष्पादि से देवता की पूजा करे।
वस्त्राच्छादन : ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्मवरूथमासदत्स्वः। वासोऽग्ने विश्वरूप ᳪ संव्ययस्व विभावसो ॥ – महीन वस्त्र से आच्छादित करे।
यदि शिल्पी द्वारा नेत्रोन्मीलन किया गया हो तो सुवर्ण शलाकादि शिल्पी को प्रदान करे। यदि प्रतीकात्मक नेत्रोन्मीलन किया गया हो तो आचार्य को प्रदान करे। गोदान अथवा निष्क्रियद्रव्य भी आचार्य को दे।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।