
दुर्गा सप्तशती पाठ अध्याय 7
ॐ ध्यायेयं रत्नपीठे शुककलपठितं शृण्वतीं श्यामलाङ्गीं
न्यस्तैकाङ्घ्रिं सरोजे शशिशकलधरां वल्लकीं वादयन्तीम्।
कह्लाराबद्धमालां नियमितविलसच्चोलिकां रक्तवस्त्रां
मातङ्गीं शङ्खपात्रां मधुरमधुमदां चित्रकोद्भासिभालाम्॥
ॐ ध्यायेयं रत्नपीठे शुककलपठितं शृण्वतीं श्यामलाङ्गीं
न्यस्तैकाङ्घ्रिं सरोजे शशिशकलधरां वल्लकीं वादयन्तीम्।
कह्लाराबद्धमालां नियमितविलसच्चोलिकां रक्तवस्त्रां
मातङ्गीं शङ्खपात्रां मधुरमधुमदां चित्रकोद्भासिभालाम्॥
वास्तविक सृजन रात्रि की अधिष्ठात्री देवी भुवनेश्वरी के ही हाथों में होता है और जब प्रलय के बाद भगवान भी सो जाते हैं तब भी रात्रि की अधिष्ठात्री देवी जाग्रत रहती है और सृजन कार्य को सम्पादित करती रहती है। ये सृजन सामान्य जीवों में स्पष्टतः दृष्टिगत होता है और विज्ञानसिद्ध भी होता है। कोई भी जीव जब सो रहा होता है तब यही अधिष्ठात्री देवी उसके शरीर का निर्माण (विकास, क्षतिपूर्ति आदि) करती हैं।
जैसे कोई भी फाइल लॉक है तो उसे पढ़ने के लिये अनलॉक करने की आवश्यकता होती और अनलॉक करने के लिये पासवर्ड की आवश्यकता होती है। यदि पासवर्ड (उत्कीलन विधा) नहीं पता हो तो उस फाइल को खोला नहीं जा सकता।
कीलक स्तोत्र का महत्व समझाने के लिये ये वैकल्पिक उदहारण है जो पूर्ण सटीक कदापि नहीं हो सकता किन्तु समझने में सहयोग अवश्य कर सकता।