भगवान शिव की पूजा में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है और यहां रुद्राभिषेक में प्रयुक्त विभिन्न विधियों और सामग्रियों का अन्वेषण किया गया है, जिससे आपको इस प्रभावशाली अनुष्ठान की व्यापक समझ प्राप्त होती है। प्रत्येक प्रकार के रुद्राभिषेक का परीक्षण किया गया है, इसके अनूठे लाभों पर प्रकाश डाला गया है और यह भी बताया गया है कि वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए इसे प्रभावी ढंग से कैसे किया जा सकता है।
रुद्राभिषेक के विभिन्न प्रकार – The Different Types of Rudrabhishek
“क्या आपने कभी रुद्राभिषेक करने के विभिन्न तरीकों के बारे में सोचा है? यह आलेख विभिन्न प्रकार के रुद्राभिषेक की पड़ताल करता है, और प्रत्येक के अनूठे लाभों और विधियों को उजागर करता है।”
तव तत्त्वं न जानामि कीदृशोऽसि महेश्वर। यादृशोऽसि महादेव तादृशाय नमो नमः ॥
भगवान शिव के विषय में यह कहा गया है कि “भाविहुं मेट सकहिं त्रिपुरारी” अर्थात भगवान शिव प्रारब्ध को भी बदल सकते हैं। भगवान शिव को और इनके प्रभाव को जानना समझना, वर्णन करना असंभव कार्य है। भगवान शिव की महिमा का वर्णन कर पाना सामान्य लोगों के वश की बात ही नहीं है अनुभव किया जा सकता है। एक ही श्लोक जो महिम्न स्तोत्र का है :
असितगिरिसमं स्यात् कज्जलं सिन्धुपात्रे
सुर-तरुवर-शाखा लेखनी पत्रमुर्वी।
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं।
तदपि तव गुणानामीश पारं न याति ॥
यदि स्वयं माता सरस्वती काले पहाड़ के समान काजल को समुद्र के समान पात्र में रखकर जो समाप्त न हो सके, कल्पवृक्ष की शाखा से लेखनी बनाकर सदा लिखती ही रहें तो भी भगवान शिव के गुणों का, महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता।
परिचय: रुद्राभिषेक एक दिव्य अनुष्ठान
- रुद्राभिषेक का महत्व : धर्माचरण का प्रमाण है शास्त्रों में वर्णन मिलना, न कि हमारी स्वीकृति। कर्मकांड को किसी विज्ञान, संगठन, संस्था की स्वीकृति से प्रमाणित नहीं माना जा सकता और न ही कोई आवश्यकता है। शास्त्रों में रुद्राभिषेक का महत्व वर्णित है और वही स्वीकार्य है। शास्त्रों में कहा गया है कि रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा प्राप्त होती है। यदि भगवान शिव की कृपा प्राप्त हो जाये तो अन्य क्या ऐसा है जो संभव न हो।
- रुद्राभिषेक करने के प्रभावशाली लाभ : रुद्राभिषेक के लिये विभिन्न कामनाओं के अनुसार विभिन्न प्रयोग विधियां प्राप्त होती है और ये बहुत ही प्रभावशाली होते हैं। धर्माचरण के लाभ विज्ञान द्वारा सिद्ध नहीं किये जा सकते यह अनुभव का विषय होता है।
- रुद्राभिषेक के विभिन्न प्रकारों का अवलोकन : रुद्राभिषेक के मुख्यतः चार प्रकार हैं – महाभिषेक, शतरुद्रीय, षडङ्ग या रूपक और रुद्र/नमक चमक/रुद्री/एकादशिनी; आगे हम इन सभी प्रकारों को समझेंगे।
अनुष्ठान सामग्री
- पवित्र जल: अनुष्ठान सामग्रियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक पवित्र जल होता है जिसमें गंगाजल का सर्वोच्च स्थान है। भगवान शिव के विषय में तो जल की अनिवार्यता होती है – “जलधारा शिवप्रियः”
- पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद और शर्करा का मिश्रण, जो पाँच तत्वों का प्रतीक है। रुद्राभिषेक में भी इन द्रव्यों का कामना के अनुसार आवश्यकतानुसार प्रयोग होता है। यदि अन्य द्रव्य से भी अभिषेक करना हो तो भी पूजा में स्नान के निमित्त पंचामृत का विशेष उपयोग होता ही है।
- बिल्व पत्र: शिव के प्रिय अर्पण का प्रतीक, जो अपनी शुभता के लिए जाने जाते हैं। बिल्वपत्र का शिवपूजा में विशेष उपयोग होता है और बिल्वपत्र के बिना शिवपूजा सोचना भी नहीं चाहिये। बिल्वपत्र के अभाव में उसका विकल्प भी होता है और विकल्प के अनुसार अंततः चढ़ाया गया बिल्वपत्र भी धोकर पुनः चढ़ाया जा सकता है अथवा सूखे बेलपत्र के चूर्ण भी अर्पित किये जा सकते हैं।
- फूल और माला: सुगंधित और जीवंत अर्पण, जो भक्ति और सौंदर्य का प्रतीक हैं। पूजा में फूल और माला का भी प्रयोग आवश्यक होता है और देवताओं के अनुसार कुछ विशेष पुष्प भी होते हैं। भगवान शिव की पूजा में अकान, धतूर के पुष्पों का विशेष महत्व कहा गया है।
- भस्म: भगवान शिव की पूजा में भस्म भी एक आवश्यक सामग्री होती है। भगवान शिव को तो अर्पित किया ही जाता है साथ ही अर्चक के लिये भी भस्म धारण अनिवार्य होता है।
- अन्य सामग्री: पूजा में चंदन, वस्त्र, यज्ञोपवीत, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल इत्यादि अन्य सामग्रियों का भी प्रयोग होता है।
- अभिषेक द्रव्य: कामना के अनुसार अभिषेक द्रव्य का निश्चय करके उसकी पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है। कोई विशेष द्रव्य न हो तो जल से ही अभिषेक किया जा सकता है।
अनुष्ठान प्रक्रिया
- मार्गदर्शन प्राप्त करना: रुद्राभिषेक सुनिश्चित करने में एक विद्वान ब्राह्मण (कर्मकांडी) की विशेष आवश्यकता होती है। सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मण से ही रुद्राभिषेक की जानकारी प्राप्त करनी चाहिये यथा; कामना के अनुसार द्रव्यादि का निर्धारण, अभिषेक स्थल मंदिर अथवा गृह का निर्धारण, शिववास आदि विचार करके तिथि का निर्धारण, आवश्यक सामग्रियों की जानकारी, पवित्रता संबंधी व अन्य जानकारी।
- रुद्राभिषेक की प्रक्रिया: अनुष्ठान को सही ढंग से करने के लिए शास्त्रों में विधान मिलता है और तदनुसार नित्यकर्म संपन्न करके, स्वस्तिवाचनादि पूर्वक संकल्प, वरण, पूजन आदि संपन्न करके न्यास, ध्यान, अभिषेक, पुनः न्यास, उत्तर पूजन किया जाता है।
- आवश्यक मंत्र और जाप: पूजा-अभिषेक के साथ ही पंचाक्षर मन्त्र का जप भी आवश्यक होता है।
रुद्राभिषेक के विभिन्न प्रकार – Different Types of Rudrabhishek
रुद्राभिषेक कितने प्रकार के होते हैं (rudrabhishek kitne prakar ke hote hai) – रुद्राभिषेक के मुख्य रूप से चार प्रकार हैं जिन्हें इस प्रकार समझा जा सकता है :
- महाभिषेक : रुद्रसूक्त के 16 मंत्रों द्वारा अभिषेक करना महाभिषेक कहलाता है।
- शतरुद्रीय : 66 मंत्रों वाले सम्पूर्ण रुद्रसूक्त को शतरुद्रीय नाम से भी जाना जाता है और इसके द्वारा अभिषेक किया जाता है, अनेकों स्थानों पर शतरुद्रीय से अभिषेक करने का विधान मिलता है।
- षडङ्ग या रूपक : रुद्राष्टाध्यायी का आद्योपरांत एक आवृत्ति पाठ करना रूपक पाठ या षडंग पाठ भी कहलाता है। सर्वाधिक रुद्राभिषेक इसी विधि से किया जाता है।
- रुद्र/नमक चमक/रुद्री/एकादशिनी : रुद्राष्टाध्यायी का एक विशेष प्रयोग है रुद्र/नमक चमक/रुद्री/एकादशिनी जिसमें पंचम अध्याय की एकादश आवृत्ति की जाती है और यह आवृत्ति अष्टम अध्याय का पाठ करते हुये विशेष क्रम से की जाती है। रुद्राभिषेक की यह एक विशेष और मूल विधि है जिसकी आवृत्ति बढ़ाने से और भी प्रकार होते हैं।
रुद्र/नमक चमक/रुद्री/एकादशिनी की आवृति के आधार पर पुनः तीन विशेष प्रकार होते हैं जिसका पाठ, अभिषेक, हवन में प्रयोग किया जाता है :
- लघुरुद्र : रुद्र/रुद्री के एकादश (११) प्रयोग को लघुरुद्र कहा जाता है। यह दो प्रकार से संभव है ११ बार अभिषेक अथवा एक बार ही अभिषेक में ११ ब्राह्मणों द्वारा पाठ।
- महारुद्र : रुद्र/रुद्री के एक सौ इक्कीस (१२१) प्रयोग अर्थात लघुरुद्र की एकादश आवृत्ति को महारुद्र कहते हैं। यह तीन प्रकार से संभव है १२१ बार अभिषेक (१२१ दिनों में) अथवा ११ दिनों तक लघुरुद्र (११ ब्राह्मणों द्वारा पाठ) करके अथवा एक ही दिन में १२१ ब्राह्मणों द्वारा पाठ कराते हुये एक ही दिन में।
- अतिरुद्र : रुद्र/रुद्री के एक सौ इक्कीस (१३३१) प्रयोग अर्थात लघुरुद्र की १२१ आवृत्ति अथवा महारुद्र की एकादश आवृत्ति को अतिरुद्र कहते हैं। १३३१ दिनों का प्रयोग कलयुग में संभव नहीं अस्तु महारुद्र की ११ आवृत्ति अर्थात ११ दिनों में १२१ ब्राह्मणों द्वारा। एक दिन में भी १३३१ ब्राह्मणों द्वारा यह प्रयोग हो सकता है किन्तु व्यावहारिक रूप से संभव नहीं।
सकाम और निष्काम आधार से भी सभी कर्मों के भेद होते हैं और उसी प्रकार रुद्राभिषेक के भी सकाम रुद्राभिषेक और निष्काम रुद्राभिषेक दो भेद कहे जा सकते हैं।
यदि इक्कीसवीं सदी, आधुनिकता, विकास आदि की बात करें तो अनेकानेक स्तोत्र का पाठ करते हुये जलाभिषेक करते देखने को मिलता है, कोई महिम्न स्तोत्र से करता है तो कोई शिव तांडव स्तोत्र से। यदि प्रमाण मांगा जाय तो दांत निपोरेंगे, किन्तु स्वेच्छाचार से जो मन हो करते हैं और आधुनिकता, इक्कीसवीं सदी आदि चिल्लाने लगते हैं। लोगों को इसे भी एक प्रकार समझने का भ्रम न हो इसलिये इसकी चर्चा भी आवश्यक प्रतीत हुयी।
आवश्यकताओं और उद्देश्यों के अनुसार रुद्राभिषेक द्रव्य
कामनाओं के अनुसार विभिन्न द्रव्यों का प्रयोग करते हुये भी रुद्राभिषेक का विधान है यथा जल, दुग्ध, दधि, घृत, तैल, फलों के रस इत्यादि से। किन्तु कामनाओं के आधार पर द्रव्य भेद से किये जाने वाले रुद्राभिषेक को रुद्राभिषेक का प्रकार नहीं समझना चाहिये।
रुद्राभिषेक के लाभ और परिणाम: मनोवांछित फल प्राप्ति
- पापनाश और पुण्यप्राप्ति : जब हम रुद्राभिषेक करते हैं तो मुख्य रूप से दो लाभ होते हैं, हमारे जन्मार्जित पापों का शमन होता है जिससे नकारात्मक ऊर्जाओं का शमन भी होता है, नकारात्मक सोच का भी शमन होता है एवं पुण्य की प्राप्ति होती है, आध्यात्मिक शुद्धि होती है, सकारात्मक सोच की वृद्धि होती है।
- कृपा प्राप्ति: यह पूर्व में ही स्पष्ट किया जा चुका है कि रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं, किन्तु उसमें शर्त है मनसा, वाचा और कर्मणा पवित्र भाव रखते हुये अराधना करें। भगवान की प्रसन्नता का तात्पर्य यह होता है कि भक्त उनके कृपा को प्राप्त करता है।
- मनोकामना पूर्ति: यद्यपि सकाम पूजन मोक्ष का बाधक होता है तथापि सामान्य जन सकाम पूजन ही करते हैं। सामान्य जीवन व्यतीत करने वाला निष्काम हो जाये यह कठिन है। सकाम पूजन का तात्पर्य है मनोकामना रखकर पूजा करना और रुद्राभिषेक में भी कामना के अनुसार विभिन्न द्रव्यों का प्रयोग किया जाता है जिससे मनोकामना की पूर्ति होती है।
निष्कर्षतः इतना ही कहा जा सकता है कि भगवान शिव की महिमा, रुद्राभिषेक की महिमा, विधि आदि का वर्णन कर पाना संभव ही नहीं है, तथापि शास्त्रों में वर्णित तथ्यों के आधार पर संक्षेपतः रुद्राभिषेक के कुछ तथ्यों को यहां स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।