महानवमी त्रिशूलिनी पूजा – Puja No. 9

महानवमी त्रिशूलिनी पूजा

महानवमी के दिन सामान्य पूजा के अतिरिक्त तीन कर्म पाये जाते हैं : प्रथम त्रिशूलिनी पूजा, द्वितीय हवन, तृतीय सायंकृत्य। इसके साथ ही एक और मुख्यकर्म बलिदान भी पाया जाता है। महासप्तमी और महाष्टमी के दिन सामान्य बलि विधान कृताकृत है किन्तु महानवमी के दिन कृत्य है। महानवमी के दिन ब्राह्मण वर्ण के अतिरिक्त अन्य वर्णों के लिये बलिकर्म कृत्य कर्म है कृताकृत सिद्ध नहीं होता है। अनेकों स्थान पर महानवमी के दिन महिषबलि भी प्रदान किया जाता है। इस आलेख में महानवमी के दिन किये जाने वाले विधि और मंत्रों की जानकारी दी गयी है।

महानवमी को प्रातः काल नित्यकर्म व अन्य पूजन करके त्रिशूलिनी पूजा करे । त्रिशूलिनी पूजा के लिये काष्ठादि का त्रिशूल पूर्व ही बनवा लेना चाहिये। त्रिशूलिनी पूजा हेतु एक वेदी बनाकर गोबर से लीप ले । फिर वेदी पर चंदनादि से अष्टदल निर्माण कर ले। पद्धति के अनुसार त्रिशूलिनी पूजा मंदिर से अन्यत्र करके तत्पश्चात रथ/पालकी आदि में स्थापित करके उत्सवपूर्वक मंदिर में लाकर देवी के निकट स्थापित करना सिद्ध होता है। किन्तु व्यवहारतः यह मंदिर के गर्भगृह में करने का ही प्रचलन देखा जाता ही।पवित्रिकरणादि करके सर्वप्रथम संकल्प करे, संकल्प करने के लिये त्रिकुशा-तिल-जल-द्रव्यादि लेकर अगला मंत्र पढे :

फिर वेदी पर चण्डिकात्मक त्रिशूल रखकर सर्वप्रथम तीर्थोदकों से स्नान कराये तत्पश्चात दुग्ध, दधि, घृत, मधु, शर्करा आदि से स्नान कराकर शुद्धोदक से स्नान कराये । तत्पश्चात मनोजूतिर्जुषता मंत्र से प्राण प्रतिष्ठा करे :

त्रिशूलिनी पूजा

महानवमी त्रिशूलिनी पूजा
महानवमी त्रिशूलिनी पूजा

तत्पश्चात पूर्ववत कलशादि पूजन, स्थापित देवता, नवपत्रिका आदि का महाष्टमी पूजा की तरह ही पूजन करे।

मातृचक्र पूजन

तत्पश्चात किसी पात्र में गंध-कुंकुमादि से अष्टदल निर्माण कर मातृचक्र पूजन करे; मध्य में चण्डिका, पूर्व में ब्रह्माणि, अग्निकोण में माहेश्वरी, दक्षिण में कौमारी, नैऋत्य में वैष्णवी, पश्चिम में वाराही, वायव्य में नारसिंही, उत्तर में इन्द्राणि और ईशान में शिवदूती की पूजा करे :

तत्पश्चात कुमारी पूजन करे, वस्त्र-दक्षिणा आदि से कुमारी को संतुष्ट करे। कुमारी पूजन में अधिकाधिक संख्या की अपेक्षा संतुष्ट करने में सक्षमता का विशेष ध्यान रखे। यदि 9 कन्या को ही वस्त्र-दक्षिणा आदि से संतुष्ट करने में सक्षम हो तो 9 ही करे, यदि 1 ही को संतुष्ट कर सके तो 1 ही करे।

तत्पश्चात हवन करे, हवन के वर्त्तमान व्यवहार से ही यह सिद्ध होता है कि भले ही कितना भी धन व्यय क्यों न किया जाय, लाखों के पंडाल, लाखों के वाद्ययंत्रादि व्यवस्था करने के उपरांत भी मुख्य कार्य जो होता है पूजा-हवन-दान-दक्षिणा उसमें कोई अपेक्षित व्यय नहीं कर पाता, जो कर पाते हैं वो विरले हैं और भगवती के कृपापात्र हैं।

हवन में 10,000 व्यय करने से भी लगभग सभी समितियां पीछे हट जाती है अथवा नहीं कर पाती है, घरों में करने वालों की तो चर्चा ही नहीं की जा सकती।

नवरात्र हवन विधि

सविधि हवन हेतु सर्वप्रथम सुयोग्य कर्मकांडी ब्राह्मण की आवश्यकता होती है जिसे हवन विधि का उचित ज्ञान हो। विधिवत हवन करने का ज्ञान कठिनता से 5%-10% कर्मकांडियों को ही होता है, जिनकी उपस्थिति सहज नहीं होती। हवन विधि से सम्बंधित विस्तृत जानकारी के लिये यहां क्लिक करें।

तत्पश्चात छागबलि, महिषबलि आदि प्रदान करे।

सायंकाल में पंचोपचार पूजन करके पुष्पांजलि, आरती, साष्टांग प्रणाम करके प्रार्थना करे :

जल लेकर अगले मंत्रों को पढ़े और देवी को अर्पित करे :

॥ इति महानवमीकृत्यम् ॥

छागबलि, कूष्माण्ड बलि, कुमारी कन्या पूजन विधि आदि अन्य आलेख में प्रस्तुत किया गया है।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


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