क्या आप उपनयन संस्कार के इन महत्वपूर्ण तथ्यों को जानते हैं – upnayan sanskar

क्या आप उपनयन संस्कार के इन महत्वपूर्ण तथ्यों को जानते हैं – upnayan sanskar

उपनयन का काल

अब हमें यह समझना आवश्यक है कि उपनयन कब करे ?

पुनः विष्णु धर्मसूत्र – षष्ठे तु धनकामस्य विद्या कामस्य सप्तमे। अष्टमे सर्व कामस्य नवमेकान्तिमिच्छतः॥ – कामना के अनुसार इस प्रकार वर्ष निर्धारण करे : धन कामना हो तो षष्ठ वर्ष में, विद्या कामना हो तो सप्तम वर्ष में, सर्वकामना सिद्धि हेतु अष्टम वर्ष में और कान्ति कामना हो तो एकादश वर्ष में करे।

अधिकतम कब तक कर ले इसके सम्बन्ध में भी मनुस्मृति का प्रमाण है – आषोडषाद् द्वाविंशाच्चतुर्विंशाच्च वत्सरात् । ब्रह्म क्षत्र विशां काल औपनायनिकः परः॥ तस्य व्रतस्याऽयंकालः स्याद् द्विगुणाधिकः। वेदव्रतच्युतो व्रात्यः स व्रात्यस्तोममर्हति ॥

प्रथम जो वर्ष प्रमाण कहे गये हैं अर्थात ब्राह्मणों के षष्ठ, क्षत्रियों के एकादश और वैश्यों के द्वादश उसका द्विगुणित काल अधिकतम निर्धारित किया गया है अर्थात ब्राह्मणबालक का उपनयन अधिकतम षोडश वर्ष में अवश्य करणीय, इसी प्रकार क्षत्रिय के लिये बाइस वर्ष और वैश्य के लिये चौबीस वर्ष होता है। यदि उपरोक्त वर्ष तक उपनयन न किया जाय तो वह व्रात्य हो जाता है।

upnayan sanskar
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  1. इस प्रकार ब्राह्मण को अधिकतम 16 वर्ष के भीतर ही उपनयन करना चाहिये।
  2. क्षत्रिय को अधिकतम 22 वर के भीतर उपनयन करना चाहिये।
  3. वैश्य को अधिकतम 24 वर्ष के भीतर उपनयन कर लेना चाहिये।

आचार्य किसे बनाये

वृद्ध गर्ग का वचन इस प्रकार है – पिता पितामहो भ्राता ज्ञातयो गोत्रजाऽग्रजाः । उपनयेऽधिकारी स्यात् पूर्वाऽभावे परः परः ॥ पिता, पितामह, भ्राता (ज्येष्ठ), अपनी जाती और गोत्र के अग्रज। ये सभी उपनयन संस्कार करने के उत्तरोत्तर अधिकारी होते हैं। पुनः : पितैवोपनयेत् पुत्रं तदभावे पितुः पिता। तदभावे पितुर्भ्राता तदभावे तु सोदरः ॥ इसमें विशेष रूप से स्पष्ट किया गया है प्रथम अधिकार पिता, द्वितीय पितामह, तृतीय पितृव्य (चाचा) और चतुर्थ सोदर (ज्येष्ठ भ्राता)। अर्थात –

  1. यदि पिता जीवित हो तो पिता ही उपनयन करे।
  2. यदि पिता जीवित न हो तो पितामह करे।
  3. यदि पितामह भी न हो तो पितृव्य (चाचा) करे।
  4. यदि पितृव्य भी न हो तो सोदर (ज्येष्ठ भ्राता) करे।

आचार्य सम्बन्धी उपरोक्त विचार ब्राह्मणों के लिये करना चाहिये। क्षत्रिय व वैश्य के लिये नहीं। क्षत्रिय और वैश्य के आचार्य कुलपुरोहित होते हैं।

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