पुनः ब्रह्मा से अन्वारब्ध करके हुतशेष प्रक्षेप करते हुये हवन करे :
महाव्याहृति होम : १. ॐ भूः स्वाहा, इदं भूः॥ २. ॐ भुवः स्वाहा, इदं भुवः॥ ३. ॐ स्वः स्वहा, इदं स्वः ॥
फिर प्रायश्चित्तसंज्ञक ये पञ्चमहावारुणी होम करे :
- ॐ त्वन्नोऽअग्ने वरुणस्य विद्वान् देवस्य हेडो अवयासि सीष्ठाः। यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विश्वा द्वेषाᳪसि प्रमुमुग्ध्यस्मत् स्वाहा, इदमग्मीवरुणाभ्याम् ॥
- ॐ स त्वन्नो अग्नेऽवमो भवोती नेदिष्ठो अस्या उषसो व्युष्टौ। अवयक्ष्व नो वरुणᳪरराणो वीहि मृडीकᳪसुहवो न एधि स्वाहा, इदमग्नीवरुणाभ्याम् ॥
- ॐ अयाश्चाग्नेऽस्य नभिशस्तिपाश्च सत्यमित्त्वमया असि । अया नो यज्ञ ᳪ वहास्ययानो धेहि भेषज ᳪ स्वाहा, इदमग्नये॥
- ॐ ये ते शतँवरुण ये सहस्रं यज्ञियाः पाशा वितता महान्तः। तेभिर्न्नो अद्य सवितोत विष्णुर्विश्वे मुञ्चन्तु मरुतः स्वर्काः स्वाहा, इदं वरुणाय सवित्रे विष्णवे विश्वेभ्यो देवेभ्यो मरुद्भ्यः स्वर्केभ्यः॥
- ॐ उदुत्तमँव्वरुण पाशमस्मदवाधमं विमध्यमᳪश्रथाय । अथा व्वयमादित्य व्रते तवानागसो अदितये स्याम स्वाहा, इदं वरुणाय ॥
- ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये। (मानसिक मात्र)
- स्विष्टकृद्धोम : ब्रह्मणान्वारब्ध पूर्वक स्रुवा में आज्य लेकर स्विष्टकृद्धोम करे : ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदं अग्नयेस्विष्टकृते ॥
- संसव प्राशन : प्रोक्षणी में प्रक्षिप्त आहुति अवशेष आज्याहुति का अनामिका और अंगुष्ठ से प्राशन करे ।
- आचमन : फिर २ आचमन करे ।
- ब्रह्म दक्षिणा (पूर्णपात्र) : ॐ अद्य कृतैतत् उपनयन होमकर्मणि कृताकृतावेक्षणरूप ब्रह्मकर्मप्रतिष्ठार्थमिदं पूर्णपात्रं प्रजापति दैवतम् …..गोत्राय ……शर्मणे ब्राह्मणाय ब्रह्मणे दक्षिणां तुभ्यमहं सम्प्रददे । ब्रह्मा को पूर्णपात्र प्रदान करे, ब्रह्मा ॐ स्वस्ति कहकर ग्रहण करे । फिर दाहिना हाथ पकरकर ब्रह्मा को प्रदक्षिणक्रम से उठाए । यदि कुशात्मक ब्रह्मा हों तो यह मंत्र पढे – ॐ अद्य कृतैतत् वेदारम्भ होमकर्मणि कृताऽकृताऽवेक्षणरूप ब्रह्मकर्मप्रतिष्ठार्थमिदं पूर्णपात्रं प्रजापतिदैवतं ब्रह्मणे दक्षिणा नमः ॥ पूर्णपात्र दक्षिणा देकर कुशात्मक ब्रह्मा की ग्रंथि खोल दे ।
- प्रणीताविमोक : प्रणीता को अपने आगे अग्नि के पश्चिमभाग में रखकर पवित्री-उपयमन कुशादि धारणपूर्वक इस मंत्र द्वारा सिर को सिक्त करे – ॐ सुमित्रिया न आप ओषधयः सन्तु ॐ आपः शिवाः शिवतमा: शान्ताः शान्ततमास्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम् ॥ फिर इस मंत्र से प्रणीता को ईशानकोण में न्युब्ज कर केवल जल गिराए, प्रणीता को पृथ्वी पर उल्टा न रखे केवल जल गिराकर सीधा ही रखे ।
- बर्हिहोम : परिस्तरण वाले कुशाओं को उठाकर मोड़ते हुए छोटा गट्ठर (पुल्ली) बनाकर घृताक्त करके इस मंत्र से अग्नि में त्याग करे – ॐ देवा गातु विदो गातु वित्वा गातुमित मनसस्पत इमं देव यज्ञ स्वाहा वातेधाः स्वाहा ॥
वेद और सरस्वती पूजन (शिष्टाचार)
तत्पश्चात कल्पित वेद (प्रथमतया प्रत्यक्ष वेदपाठ में बटुक अक्षम होता है); लकड़ी का प्रतीकात्मक वेद बनाकर दिया जाता है; अतः उसी वेद के प्रतीक में सरस्वती पूजन करे :
- ॐ वेद नारायणाय नमः ॥
- ॐ भगवत्यै महासरस्वत्यै नमः ॥
तत्पश्चात शुक्लां ब्रह्म आदि मंत्रों से प्रार्थना पूर्वक पुष्पांजलि प्रदान करे।
फिर वेदारम्भ करायें : “ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि।धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ” इस प्रकार सव्याहृति, प्रणवान्त गायत्री पढ़ाकर, फिर आचार्य स्वयं को बरुआ से दोनों हाथों द्वारा स्पर्श कराते हुये प्रणाम करायें।
पुनः पदच्छेद करते हुये अगला मंत्र पढ़वायें : ॐ समिधाऽग्निन्दुवस्यत घृतैर्बोधयताऽथिम्। आऽस्मिन हव्या जुहोतन॥ (सुसमिद्धाय शोचिषे)
फिर आचार्य ब्रह्मचारी (बरुआ) से “ॐ स्वस्ति” कहे। फिर खड़ा होकर झुकते हुये ब्रह्मचारी से हाथ का स्पर्श कराते हुये पूर्णाहुति करें :
- पूर्णाहुति मंत्र : ॐ मूर्द्धानन्दिवो ऽअरतिम्पृथिव्या वैश्वानरमृत ऽआजातमग्निम् ॥ कवि ᳪ सम्म्राजमतिथिं जनानामासन्ना पात्रञ्जनयन्त देवाः स्वाहा ॥
- भस्म धारण : स्रुव के पृष्ठभाग में ईशान कोण से भस्म ग्रहण कर जल से सिक्त करके क्रमशः ललाट, कण्ठ, दक्षिणबाहु और हृदय पर लगाए – ॐ त्र्यायुषम्जमदग्नेः (ललाट पर) । ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषं (कंठ में) । ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषं (दक्षिण बाहु पर) । ॐ तन्नोऽअस्तु त्र्यायुषं (हृदय में) । पुनः ब्रह्मचारी को भी भस्म लगाये : ॐ त्र्यायुषम्जमदग्नेः (ललाट पर) । ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषं (कंठ में) । ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषं (दक्षिण बाहु पर) । ॐ तत्तेऽअस्तु त्र्यायुषं (हृदय में) ।
॥ इति पं० दिगम्बर झा सुसम्पादितं “करुणामयीटीकाऽलंकृतं” वेदारम्भविधिः ॥
ब्रह्मचारी के लिये परस्कारसूत्र में जो नियम कहे गए हैं वो इस प्रकार हैं :
- अधः शाय्यक्षारालवणाशी स्यात्
- दण्डधारणमग्निपरिचरणं गुरुशुश्रूषा भिक्षाचर्या
- मधुमांसमज्जनोपर्यासनस्त्रीगमनानृतादत्तादानानि वर्जयेत्
- अष्टाचत्वारिंशद्वर्षाणि वेदब्रह्मचर्यं चरेत्
- द्वादश द्वादश वा प्रतिवेदम्
- यावद्ग्रहणं वा
- आचार्येणाहूत उत्थाय प्रतिशृणुयात्
- शयानं चेदासीन आसीनं चेत्तिष्ठंस्तिष्ठन्तं चेदभिक्रामन्नभिक्रामन्तं चेदभिधावन्
- स एवं वर्तमनोऽमुत्राद्य वसत्यमुत्राद्य वसतीति तस्य स्नातकस्य कीर्तिर्भवति
उपरोक्त वेदारम्भ विधि में यदि कोई त्रुटि प्राप्त हो अथवा किसी प्रकार का सुझाव देना चाहें तो नीचे टिप्पणी करके अवश्य अनुगृहीत करें।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।