विवाह पद्धति | विवाह विधि और मंत्र | जयमाला विधि सहित – वाजसनेयी – vivah vidhi

विवाह पद्धति | विवाह विधि और मंत्र | जयमाला विधि सहित – वाजसनेयी – vivah vidhi

घटीयंत्र स्थापन

प्राचीन काल में शुभमुहूर्त ज्ञान हेतु विशेष विधि से घटीयंत्र स्थापित किये जाते थे। वर्तमान में प्रचलित प्रकार की दीवारघड़ी स्थापित करना चाहिये। विवाह दिन सूर्योदय काल में अच्छे आसन पर घटी स्थापन करे । कन्यादान का जो शुभलग्न हो, दैवज्ञ से लग्नोदय काल पूछकर तदनुसार घटी में अलार्म सेट कर ले और निर्धारित आसन पर इस मंत्र से स्थापित करे : मुख्यं त्वमसियंत्राणां ब्रह्मणा निर्मितंपुरा । भवभावाय दम्पत्योः कालसाधन कारणं ॥

मण्डप के चारों कोण में चार कलश व मध्य में एक कलश स्थापन-पूजन कर ले। एक अघोर (गौरीहर कलश) कलश भी स्थापित करे। अखंड दीप हेतु भी एक कलश रखे।

कन्या की माता अथवा अन्य विधिकरनी दीवार (कोहवर) को दूध से लीप कुंकुम-चंदन-पिष्ट (पिठार) आदि से आम का वृक्ष बनाये यथासंभव अन्य पुष्पादि भी बना दे। उसके आगे भूमि पर रंगोली बना दे। मण्डप भूमि में भी रंगोली बना दे। गौरीहर (अघोर) कलश पर गौरीहर, कात्यायनी, महालक्ष्मी और शची की पूजा करे। फिर कन्यादेह प्रमाण का सत्ताईस सूत्र लेकर उसकी बत्ती बनाये, उसे दीप में देकर तेल भर दे और प्रज्वलित करके सुरक्षा हेतु एक अन्य कलश में ही रख दे।

सीमान्त पूजा :

सर्वप्रथम तो जब यह सूचना प्राप्त हो कि वर मार्ग में है तो कन्यापिता कुलदेवता पूजन, मातृका पूजन आदि कर ले। यहाँ मातृका पूजन का आशय यह है कि वृद्धि श्राद्ध काल में आवाहित मातृका का विसर्जन चतुर्थी को होता है अतः पूर्व आवाहित मातृका का पूजन करे। यदि विवाह दिन ही वृद्धिश्राद्ध करना हो तो प्रातःकाल ही करे। यहां सीमान्त पूजा की संक्षिप्त विधि दी गयी है :

ग्राम/नगर सीमा (वर्तमान में टोला/मुहल्ला/वार्ड भी माना जा सकता है) पर स्वागत हेतु माला-अक्षत-चन्दन (हरिद्रामिश्रित दधि) आदि लेकर एक कलश में जल और पल्लव सहित किसी व्यक्ति को साथ में रखकर घर से बाहर निर्धारित स्वागत स्थल पर प्रतीक्षा करे। उपस्थित होने पर वर को सर्वप्रथम पल्ल्व द्वारा कलशजल से सिक्त कर दे, भगवान विष्णु का भाव करते हुये माला पहना दे, फिर वर में तिलक लगाये, अक्षतारोपण करे :

  • तिलक करे : ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्॥
  • अक्षत लगा दे : ॐ अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत। अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती योजान्विन्द्र ते हरी॥

नमोस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे।
सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहस्रकोटि युगधारिणे नमः ॥

अगुआई करते हुये द्वार तक लाये। फिर द्वारपूजन (दुअरलग्गी) हेतु सुवासिनी-सुसज्जित स्त्रियां पूर्व से द्वार पर उपस्थित रहें। यदि वाग्दान, हस्तग्रहण (सगुन-तिलक) न किया गया हो तो प्रथम कर लें तत्पश्चात द्वारपूजा (दुअरलग्गी) करें।

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