यज्ञ मंडप पूजन विधि

यज्ञ मंडप पूजन विधि

मंडप पूजन मंत्र – स्तम्भ पूजन :

मंडप के स्तम्भों में भी देवताओं का वास बताया गया है और यज्ञ मंडप के स्तम्भ, तोरण, द्वार आदि सभी में देवताओं की पूजा की जाती है, जिसकी विधि आगे दी गयी है :

  • स्तम्भ पूजन विशेष : सभी स्तम्भों में पूजा करने के बाद आलंभन करे (दोनों हाथ से पकड़े या गले मिलने जैसे पकड़े) आलंभन मंत्र : ॐ ऊर्ध्व ऊषुण ऊतये तिष्ठा देवो न सविता । ऊर्ध्वो वाजस्य सनिता यदञ्जिभिर्वाघद्भिर्विह्वयामहे॥
  • तत्पश्चात स्तम्भ के ऊपर नागमाता की पूजा करे : ॐ नागमात्रे नमः ॥
  • फिर शाखा बंधन करे (मौली बांधे) : ॐ आयङ्गौः पृश्निरक्रमीदसदन्मातरं पुरः । पितरं च प्रयत्न्स्वः ॥
  • फिर अनुमंत्रण करे (स्पर्श करके अगला मंत्र पढ़े) : ॐ यतो यत: समीहसे ततो नो अभयं कुरु । शं न: कुरु प्रजाभ्यो भयं न: पशुभ्य: ॥
  • इतनी क्रियायें प्रत्येक स्तम्भ पूजन के बाद करे।
  • इसे (आलंभन अनुमंत्रण) करके संकेत किया गया है।
  • (नोट : केवल प्रथम दिन आवश्यक प्रत्येक दिन नहीं।)
स्तम्भ पूजन
स्तम्भ पूजन

पहले मध्य के चारों स्तम्भों में ईशानकोण से आरम्भ करे

  1. ईशानकोण रक्तवर्ण स्तम्भ ब्रह्मा – ॐ ब्रह्म यज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेनऽआवः। सबुध्न्या उपमाऽअस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसश्च विवः॥ ॐ ब्रह्मणे नमः ॥ ॐ ब्रह्मण इहागच्छ इहतिष्ठ॥ ॐ सावित्री ० ॥ ॐ वास्तुदेवता ० ॥ ॐ ब्राह्मी ० ॥ ॐ गङ्गे ० ॥ एकतंत्र से पञ्चोपचार पूजन कर ले : ॐ मध्येशानस्तम्भावाहित ब्रह्मादि देवताभ्यो नमः॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)
  2. अग्निकोण कृष्णवर्ण स्तम्भ विष्णु : ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदं। समूढ़मस्य पा ᳪ सुरे स्वाहा ॥ ॐ विष्णवे नमः ॥ ॐ विष्णो इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ लक्ष्म्यै ० ॥ ॐ नन्दायै ० ॥ ॐ अदित्यायै ० ॥ ॐ वैष्णव्यै ० ॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)
  3. नैऋत्यकोण श्वेतवर्ण स्तम्भ शङ्कर : ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च॥ ॐ शङ्कराय नमः ॥ ॐ शङ्कर इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ गौर्यै ० ॥ ॐ माहेश्वर्यै ० ॥ ॐ शोभनायै ० ॥ ॐ भद्रायै ० ॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)
  4. वायव्यकोण पीतवर्ण स्तम्भ इन्द्र : ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र ᳪ हवे हवे सुहव ᳪ शूरमिन्द्रम्, ह्वायामि शक्रम्पुरुहूतमिन्द्र ᳪ स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः ॥ ॐ इन्द्राय नमः ॥ ॐ इन्द्र इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ इन्द्राण्यै ० ॥ ॐ आनन्दायै ० ॥ ॐ विभूत्यै ० ॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)

बाहरी १२ स्तम्भों का पूजन पुनः ईशानकोण से आरम्भ करे :

  1. ईशानकोण रक्तवर्ण स्तम्भ सूर्य : ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न मृतं मर्त्यं च । हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भूवनानि पश्यन् ॥ ॐ सूर्याय नमः ॥ ॐ सूर्य इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ सूर्यै ० ॥ ॐ सावित्र्यै ० ॥ ॐ मंगलायै ० ॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)
  2. ईशानकोण व पूर्व के मध्य श्वेतवर्ण स्तम्भ गणेश : ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न मृतं मर्त्यं च । हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भूवनानि पश्यन् ॥ ॐ गणपतये नमः ॥ ॐ गणपते इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ विघ्नहारिण्यै ०॥ ॐ जयायै ०॥ ॐ नागमात्रे ० ॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)
  3. पूर्व-अग्निकोण के मध्य कृष्णवर्ण स्तम्भ यम : ॐ यमाय त्वा मखाय त्वा सूर्यस्य त्वा तपसे। देवस्त्वा सविता मध्वानक्तु पृथिव्याः स स्पृशस्पाहि ॥ ॐ यमाय नमः ॥ ॐ यम इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ अंजन्यै ०॥ ॐ क्रूरायै ०॥ ॐ नियन्त्र्यै ० ॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)
  4. अग्निकोण कृष्णवर्ण स्तम्भ नागराज : ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु येऽअन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ॥ ॐ नागराजाय नमः ॥ ॐ नागराज इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ धरायै ०॥ ॐ पद्मायै ०॥ ॐ महापद्मायै ० ॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)
  5. अग्निकोण-दक्षिण के मध्य श्वेतवर्ण स्तम्भ स्कन्द : ॐ यदक्रन्दः प्रथमं जायमानः उद्यन्त्समुद्रादुत वा पुरीषात्। श्येनस्य पक्षा हरिणस्य बाहूऽउपस्तुत्यं महिजातन्ते अर्वन् ॥ ॐ स्कन्दाय नमः ॥ ॐ स्कन्द इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ जयायै ०॥ ॐ शक्तये ०॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)
  6. दक्षिण-नैऋत्यकोण के मध्य धूम्रवर्ण स्तम्भ वायु : ॐ तव वायवृतस्पते त्वष्टुर्जामातरद्भुत । अवा ᳪ स्या वृणीमहे ॥ ॐ वायवे नमः ॥ ॐ वायो इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ वायव्यै ०॥ ॐ गायत्र्यै ०॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)
  7. नैऋत्यकोण पीतवर्ण स्तम्भ सोम : ॐ आप्यायस्व समेतु ते विश्वतः सोमवृष्ण्यम् । भवा वाजस्य सङ्गथे॥ ॐ सोमाय नमः ॥ ॐ सोम इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ सावित्र्यै ०॥ ॐ अमृतकलायै ०॥ ॐ विजयायै ०॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)
  8. नैऋत्यकोण-पश्चिम के मध्य श्वेतवर्ण स्तम्भ वरुण : ॐ आप्यायस्व समेतु ते विश्वतः सोमवृष्ण्यम् । भवा वाजस्य सङ्गथे॥ ॐ वरुणाय नमः ॥ ॐ वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ वारुण्यै ०॥ ॐ पाशधारिण्यै ०॥ ॐ बृहत्यै ०॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)
  9. पश्चिम-वायव्यकोण के मध्य श्वेतवर्ण स्तम्भ अष्टवसु : ॐ वसुभ्यस्त्वा रुद्रेभ्यस्त्वा ऽऽदित्येभ्यस्त्वा सञ्जानाथां द्यावापृथिवी मित्रावरुणौ त्वा वृष्ट्यावताम्। व्यन्तु व्योक्त ᳪ रिहाणा मरुतां पृषतीर्गच्छ व्वशा प्रिश्न्निर्ब्भूत्वा दिव ᳪ गच्छ ततो नो वृष्टिमावह। चक्षुष्पा ऽअग्नेऽसि चक्षुर्मे पाहि ॥ ॐ अष्टवसुभ्यो नमः ॥ ॐ अष्टवसवः इहागच्छत इह तिष्ठत ॥ ॐ अणिमायै ०॥ ॐ भूत्यै ०॥ ॐ गरिमायै ० ॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)
  10. वायव्यकोण पीतवर्ण स्तम्भ धनद : ॐ सोमो धेनु ᳪ सोमो ऽअर्वन्तमाशु ᳪ सोमो वीरङ्कर्मण्यन्ददाति। सादन्यं विदथ्य ᳪ सभेयंपितृश्रवणं योददाशदस्मै ॥ ॐ धनदाय नमः ॥ ॐ धनद इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ अदित्यायै ०॥ ॐ लघिमायै ०॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)
  11. वायव्यकोण-उत्तर के मध्य पीतवर्ण स्तम्भ गुरु : ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अहार्द द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु । यदीदयच्छवसऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् ॥ ॐ बृहस्पतये नमः ॥ ॐ बृहस्पते इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ पौर्णमास्यै ०॥ ॐ सावित्र्यै ०॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)
  12. उत्तर-ईशानकोण के मध्य रक्तवर्ण स्तम्भ विश्वकर्मा : ॐ विश्वकर्मन्हविषा वर्धनेन त्रातारमिन्द्रमकृणोरवध्यम्। तस्मै विशः समनमन्त पूर्वीरयमुग्रो विहव्यो यथासत् ॥ ॐ विश्वकर्मणे नमः ॥ ॐ विश्वकर्मन् इहागच्छ इहतिष्ठ ॥ ॐ सिनीवाल्यै ०॥ ॐ सावित्र्यै ०॥ ॐ वास्तुदेवतायै ०॥ (आलंभन – अनुमंत्रण)

मण्डप प्रार्थना : ॐ शेषादिनागराजानः समस्ता मम मण्डपे । पूजाङ्गृह्णन्तु सततं प्रसीदन्तु ममोपरि ॥

पुष्पाञ्जलि दे : ॐ नमस्ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन । नमस्तेऽस्तु हृषोकेश महापुरुषपूर्वज ॥ ॐ नृसिंह उग्ररूप उवल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल स्वाहा । ॐ नमः शिवाय ॥

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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