16 संस्कार क्या है ? सनातन धर्म के 16 संस्कार

16 संस्कार क्या है ? सनातन धर्म के 16 संस्कार

सनातन में संस्कार का बहुत ही महत्व है। जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य के संस्कार होते रहते हैं। सनातन में मनुष्य जीवन की प्राप्ति सौभाग्य की बात बताई गयी है और इसका उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति है। मनुष्य जन्म लेने के उपरांत और उन्नति करने के लिये संस्कारों की आवश्यकता होती है। संस्कार का तात्पर्य होता है परिष्कार करके और दिव्यता की प्राप्ति कराना। इस आलेख में संस्कारों की विस्तृत चर्चा की गयी है।

मनुष्य शरीर प्राप्त अत्यंत दुर्लभ होता है। 84 लाख योनियों में भ्रमण करते हुए पुण्योदय होने पर मनुष्य शरीर की प्राप्ति होती है और यह उस जीव का परम सौभाग्य होता है।

  • बड़े भाग मानुष तन पावा – श्री रामचरितमानस, गोस्वामी तुलसीदास ‌।
  • दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार, तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार॥ – कबीर ।
  • दुर्लभं मानुषं जन्म तदप्यध्रुवमार्थदम् ॥ – श्रीमद्भागवत महापुराण।
  • दुर्लभं मानुषं जन्म प्रार्थयते त्रिदशैरपि ॥ – नारदपुराण
  • अत्र जन्म सहस्राणां सहस्रैरपि कोटिभिः। कदाचिल्लभते जन्तुर्मानुष्यं पुण्यसञ्चयात् ॥ – गरुडपुराण।

अब इस विषय में अधिक विस्तार न करके मानव शरीर प्राप्ति के उद्देश्य को संक्षेप में समझना आवश्यक है। गोस्वामी तुलसीदास ने बहुत सरलता से बताया है – साधन धाम मोक्ष कर द्वारा। अर्थात मनुष्य शरीर उस साधन को करने के लिये प्राप्त होता है जिससे मोक्ष की प्राप्ति की जा सके और इसलिये मोक्ष का द्वार है, साधनधाम है।

  • दुर्लभ मानव शरीर संयोग से ही प्राप्त होता है और मानव तन प्राप्त करने का उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना ही है अन्य कुछ नहीं।
  • मोक्षप्राप्ति की दिशा में प्रगति के लिये पूर्वसंग्रहित कुसंस्कारों का मार्जन करके सद्गुणों का स्थापन, पूर्वार्जित गुणों का संवर्द्धन करते हुये योग्य होना आवश्यक होता है।
  • अयोग्यों को सामान्य वस्तुयें भी प्राप्त होना मुश्किल होता है मोक्ष तो परमलक्ष्य है।
  • संस्कार वास्तव में पूर्व संचित दुर्गुणों का मार्जन करते हुये नये गुणों-विचारों का स्थापन करने की क्रिया है।

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