16 संस्कार क्या है ? सनातन धर्म के 16 संस्कार

16 संस्कार क्या है ? सनातन धर्म के 16 संस्कार

संस्कार का तात्पर्य

‘संस्‍कार’ शब्‍द का बहुत व्‍यापक अर्थ होता है। संस्कार का अर्थ संस्करण, परिष्करण, विमलीकरण अथवा विशुद्धिकरण से लिया जाता है। संस्कार का शाब्दिक अर्थ शुद्धिकरण भी लिया जा सकता है। ‘संस्‍कार’ शब्‍द की परिभाषा –

  1. ‘संस्‍कारोहि गुणान्‍तराधानमुच्यते’ – महर्षि चरक। –(मनुष्‍य के) दुर्गुणों (दोषों) को निकालकर उसमें सद्गुण आरोपित करने की प्रक्रिया का नाम संस्‍कार है।
  2. “संस्‍कारो नाम स भवति यस्मिञ्जाते पदार्थो भवति योग्‍य: कस्‍यचिदर्थस्‍य।” – मीमांसादर्शन ३।१।३। जिसके कारण पदार्थ या व्‍यक्ति किसी कार्य के योग्‍य हो जाता है, उसी को संस्कार कहते हैं।
  3. “योग्‍यतां चादधाना: क्रिया: संस्‍कारा इत्‍युच्‍यन्‍ते।” -तन्त्रवार्तिके। संस्‍कार वो क्रियाएँ हैं, जो योग्‍यता प्रदान करती हैं।
16 संस्कार क्या है

योग्‍यता हेतु दो आवश्यकतायें स्पष्ट होती है

  • पूर्वार्जित दोषों/पापों/कुसंस्कारों का मार्जन और
  • नये गुणों का आधान

संस्कार की परिभाषा

अब हम संस्कार को इस प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं – “परम लक्ष्य मोक्ष की सिद्धि हेतु दुर्लभ मनुष्य शरीर में पूर्वसंचित दोषों का सम्मार्जन करके नये सद्गुणों को स्थापित करते हुये मोक्षप्राप्ति संबंधी सुकर्मों के लिये योग्य बनाने की क्रिया संस्कार कहलाती है। ”

यहां यह भी स्पष्ट होता है कि संस्कार से मोक्ष प्राप्ति नहीं होती अपितु मोक्षप्राप्ति के लिये जो भी कर्त्तव्य है उन कर्मों को करने की योग्यता मिलती है। बहुतायत में यही देखा जाता है कि लोग पूजा-पाठ-हवन आदि तो बहुत करते हैं लेकिन योग्यता का ही अभाव होता है, विधि का भी ज्ञान नहीं होता और मनमाने तरीके से कुछ भी करते रहते हैं जो लाभकारी कम और हानिकर अधिक हो जाता है।

इस प्रकार संस्कार का अर्थ किसी कार्य के लिये वस्तु-व्यक्ति को योग्य बनाना है। मुख्य भाव मनुष्य को मोक्षप्राप्ति के कर्मयोग्य बनाना है।

संस्कार का महत्व

उदाहरण : स्वतः उगने वाले वृक्ष, लता, घास-फूंस और प्रयास पूर्वक लगाये गये वृक्ष-फसलों (संस्कारित) में पर्याप्त अंतर होता है। तत्पश्चात उपयोग के लिये भी संस्कार की आवश्यकता होती है। यदि भोजन करना है तो भोजन बनने से पूर्व अन्न/सब्जी/फल कई संस्कारों द्वारा संमार्जित किया जाता है।

  • क्या बिना धोये कच्चा गेहूं/धान/सब्जी खाया जाता है ?
  • क्या सूखा आटा फाँका जा सकता है ?
  • क्या गीला आटा बिना रोटी बनाये खाने योग्य होता है ?
  • गेंहू से रोटी तक बनने की प्रक्रिया संस्कार है।
  • धान से भात/खीर/चूड़ा/मुरही/भुजा आदि बनने की प्रक्रिया संस्कार है।
  • गन्ने से चीनी/शक्कर आदि बनने की प्रक्रिया संस्कार है।

अर्थात संस्कार के द्वारा किसी वस्तु-व्यक्ति को उपयोग के योग्य बनाया जाता है, यदि संस्कार न किये जायें तो उपयोग के योग्य नहीं होता और यही संस्कार का महत्व है। गर्भाधान से लेकर अंत्येष्टि कर्म तक सोलह संस्कार होते हैं।

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