महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि – Mahalaxmi Vrat Puja

महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि – Mahalaxmi Vrat Puja

महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिये महालक्ष्मी व्रत का विधान है। महालक्ष्मी व्रत भाद्र शुक्ल अष्टमी से प्रारंभ होकर आश्विन कृष्ण अष्टमी तक 16 दिनों का होता है। महालक्ष्मी व्रत में 16 संख्या का विशेष महत्व होता है एवं व्रत भी 16 वर्षों तक करने का विधान बताया गया है। यहां महालक्ष्मी व्रत की पूजा विधि और मंत्र दी गयी है जो महालक्ष्मी व्रत करने वालों को पूजा में लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि – Mahalaxmi Vrat Puja

पूजा विधि और मंत्र देने के बाद भी यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि श्रद्धालु भक्तों को उन लोगों के भ्रमजाल में नहीं फंसना चाहिये जो सभी कर्मकांड स्वयं करने की विधि सिखाते रहते हैं। कर्मकांड में सदा ब्राह्मण की आवश्यकता होती ही है, यदि सम्पूर्ण कर्मकांड स्वयं संपन्न कर भी लें तो भी दान-दक्षिणा-भोजन आदि के लिये ब्राह्मण अनिवार्य ही रहते हैं।

ब्राह्मण से रहित कर्मकांड (विशेष पूजा, अनुष्ठान, व्रत, यज्ञ, जप, हवन आदि) पूर्ण हो ही नहीं सकता। भगवान को भोजन कराने का दो प्रकार है : हवन और ब्राह्मण भोजन। श्रीमद्भागवत महापुराण में स्वयं भगवान की उक्ति है कि वो दो मुखों से भोजन ग्रहण करते हैं और दोनों में से अधिक तृप्तिकारक ब्राह्मण मुख द्वारा ग्रहण किया गये उत्तम भोजन से होता है। किसी भी कर्म की सम्पूर्णता ब्राह्मण के वचन से ही होती है।

महालक्ष्मी व्रत कब है 2024

2024 में महालक्ष्मी व्रत 11 सितम्बर बुधवार से आरंभ होकर 24 सितम्बर मंगलवार तक है एवं पारण 25 अगस्त 2024 बुधवार को। व्रत निर्णय संबंधी चर्चा महालक्ष्मी व्रत कथा वाले आलेख में की जायेगी।

पूजा विधि

  • महालक्ष्मी व्रत में गजवाहना लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
  • प्रथम दिन के पूजा में ही सोलह तंतुओं वाले एक धागे में सोलह गांठ देकर पूजा के बाद धारण किया जाता है।
  • प्रतिदिन पूजा के बाद कथा भी श्रवण करे।
  • सोलहवें दिन पारण किया जाता है।
  • सोलहवें वर्ष उद्यापन किया जाता है।
  • यदि आजीवन (सक्षम रहने तक) करने की इच्छा हो तो 16 वर्ष से अधिक भी किया जा सकता है।

महालक्ष्मी पूजा के लिये सायाह्न का निर्देश प्राप्त होता है। प्रदोष का तात्पर्य सूर्यास्त के बाद का प्रहर होता है किन्तु सायाह्न का तात्पर्य दिन का पांच भाग करके अंतिम भाग (सूर्यास्त पर्यन्त) होता है। अतः नित्यकर्म करके सायाह्न में पूजा करे। पूजा की सभी सामग्रियां व्यवस्थित करके धूप-दीप जला ले। पवित्रीकरणादि करके संकल्प करे। संकल्प में भी दो प्रकार हो जाता है एक प्रथमवर्ष का संकल्प और दूसरा द्वितीयादि वर्ष का संकल्प। प्रथम वर्ष के संकल्प में षोडशवर्ष यावत् का उल्लेख किया जाता है द्वितीयादि वर्षों में नहीं किया जाता है।

सङ्कल्प

प्रथम वर्ष सङ्कल्प : त्रिकुशा-तिल-जलादि संकल्प द्रव्य लेकर संकल्प करे – ॐ ऐहिकलक्ष्म्यासादितवेश्मत्वसकल वाञ्छितार्थलाभ पुत्रपौत्रादिसमृद्धिमत्त्व सकलभोगभुक्ति भूतकालाधिकरणक राज्यभोगप्राप्तिस्वर्गलोकगमनानन्तर विष्णुदैवत नक्षत्रभवनकामनया भाद्रशुक्लाष्टमीमारभ्याश्विन कृष्णाष्टमीपर्यन्तं प्रत्यहं/षोडशवर्ष यावद्यथाविहितकालं श्रीमहालक्ष्मीव्रतमहं करिष्ये ॥ प्रथम वर्ष के संकल्प में भी “प्रत्यहं/षोडशवर्ष यावद्यथाविहितकालं” दो प्रकार का प्रयोग है, यदि प्रतिवर्ष करना हो तो “प्रत्यहं” का उच्चारण करे यदि सोलह वर्ष तक करना हो तो “षोडशवर्ष यावद्यथाविहितकालं” का उच्चारण करे।

द्वितीयादि वर्ष सङ्कल्प : त्रिकुशा-तिल-जलादि संकल्प द्रव्य लेकर संकल्प करे – ॐ पुत्रपौत्रादिसमृद्धि धर्मार्थकाममोक्षप्राप्तिकामः श्रीमहालक्ष्मीव्रतमहं करिष्ये ॥

संकल्प करने के बाद 16 बार जल से हाथ-मुंह और पैर का प्रक्षालन करे (धोये) तत्पश्चात 16 तंतु युक्त सुंदर धागे में 16 गांठ लगाये और चंदन-पुष्पादि से अलंकृत कर दे, सोलह दूर्वा भी पूजा में रखे। तत्पश्चात उन तंतुओं में ही पूजा करे, पूजा में मालती पुष्प का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है, अतः मालती पुष्प (चमेली) को भी संग्रह करने का प्रयास करे। पूजा के लिये हाथी पर बैठी लक्ष्मी की प्रतिमा का भी विधान प्राप्त होता है।

आवाहन : अक्षत-पुष्पादि लेकर महालक्ष्मी का आवाहन करे – ॐ महालक्ष्मि समागच्छ पद्मनाभपदादिह । यथोपचारपूजेयं त्वतर्थं देवि सम्भृता ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः श्री महालक्ष्मि इहागच्छ इह तिष्ठ इह सुप्रतिष्ठिता भव ।

आसन : अक्षत-पुष्पादि लेकर महालक्ष्मी को आसन प्रदान करे – ॐ आलयं ते निगदितं कमलं कमलालये । अमले कमले ह्यस्मिन् स्थितिं मत्कृपया कुरु ॥ इदमासनं श्रीमहालक्ष्म्यै नमः ॥

पाद्य : ॐ गङ्गादिसलिलाधार तीर्थतोयादिपूरितम् । दूरयात्राश्रमहरं पाद्यं मे प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं पाद्यम् श्रीमहालक्ष्म्यै नमः ॥

अर्घ्य : ॐ न मे जन्मनि दौर्भाग्यं न मे जन्मदरिद्रता । महालक्ष्मि नमस्तुभ्यमर्घ्यं मे प्रतिगृह्यताम् ॥ इदमर्घ्यं श्रीमहालक्ष्म्यै नमः ॥

आचमन : ॐ स्नानादिकं विधायापि यतः शुद्धिरवाप्यते । तद्देव्याचमनीयन्ते महालक्ष्मि विधीयताम् ॥ इदमाचमनीयम् श्रीमहालक्ष्म्यै नमः ॥

वस्त्र : ॐ तन्तुसन्तानसन्नद्धम् कलाकोशलकल्पितम् । सर्वाङ्गाभरणं दिव्यं वसनं परिधीयताम् ॥ इदं रक्तवस्त्रं श्रीमहालक्ष्म्यै नमः॥ इदमाचमनीयम् श्रीमहालक्ष्म्यै नमः ॥

चन्दन : ॐ मलयाचलसंभूतं नानापन्नगरक्षितम् । शीतलं बहुलामोदं चन्दनं विन्द्यतामिदम् ॥ इदं श्रीखण्डचन्दनम् श्रीमहालक्ष्म्यै नमः ॥

सिन्दूर : ॐ सिन्दूरं सर्वसाध्वीनां भूषणाय विनिर्मितम् । गृहाण वरदे देवि भूषणानि प्रयच्छ मे ॥ इदं सिन्दूरं श्रीमहालक्ष्म्यै नमः॥

अक्षत : ॐ अक्षतं धान्यजं देवि ब्रह्मणा निर्मितं पुरा । प्राणदं सर्वभूतानां गृहाण वरदे शुभे ॥ इदं अक्षतं श्रीमहालक्ष्म्यै नमः॥

पुष्प : ॐ चञ्चत्परिमलामोदं मत्तालिकुलसंकुलम् । आनन्दिनन्दनोद्यानं प‌द्मायै कुसुमन्नमः ॥ एतानि पुष्पाणि श्रीमहालक्ष्म्यै नमः॥

बिल्वपत्र : ॐ अमृतोद्भवं श्रीवृक्षं शङ्करस्य सदा प्रियम् । पवित्रं ते प्रयच्छामि सर्वकामार्थसिद्धये ॥ इदं बिल्वपत्रम् श्रीमहालक्ष्म्यै नमः॥

माला : ॐ नानापुष्पविचित्राढ्यां पुष्पमालां सुशोभनाम् । प्रयच्छामि सदा भद्रे गृहाण परमेश्वरि ॥ इदं पुष्पमाल्यम् श्रीमहालक्ष्म्यै नमः॥

धूप : ॐ गन्धसम्भारसन्नद्धम् पृथुवस्तुसमुद्भवम् । सुरासुरनरानन्दं धूपं देवि गृहाण तम् ॥ एष धूपः श्रीमहालक्ष्म्यै नमः॥

दीप : ॐ मार्तण्डमण्डलाखण्ड चन्द्रबिम्बाग्नितेजसाम् । निधानं देवि दीपोऽयं निर्मितस्तव भक्तितः ॥ एष दीपः श्रीमहालक्ष्म्यै नमः॥

षोडशप्रकार नैवेद्य : ॐ देवतालयपाताल भूतलाधारधान्यजम् । षोडशाकारसम्भारं नैवेद्यं तत्प्रगृह्यताम् ॥ एतानि षोडशप्रकारक नैवेद्यानि श्रीमहालक्ष्म्यै नमः॥ सोलह प्रकार के नैवेद्य में सोलह अलग-अलग वस्तुओं का भोग बनावे, और सबका आकार भी भिन्न-भिन्न रहे।

आचमन : ॐ स्नानादिकं विधायापि यतः शुद्धिरवाप्यते । तद्देव्याचमनीयन्ते महालक्ष्मि विधीयताम् ॥ इदमाचमनीयम् श्रीमहालक्ष्म्यै नमः ॥

ताम्बूल : ॐ पातालतलसम्भूतं वदनाम्भोजभूषणम् । नानागुण समाकीर्णं ताम्बूलं देवि ते नमः ॥ इदं ताम्बलम् श्रीमहालक्ष्म्यै नमः॥ इदमाचमनीयम् श्रीमहालक्ष्म्यै नमः॥

कर्पूरदीप : ॐ त्वं चन्द्रसूर्यज्योतींषि विद्युदग्न्योस्तथैव च । त्वमेव जगतां ज्योतिः दीपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥ एष कर्पूरदीपः श्रीमहालक्ष्म्यै नमः॥

प्रार्थना : ॐ विष्णोर्वक्षसि पद्मे च शंखे चक्रे तथाम्बरे। लक्ष्मि नित्यं यथाऽसि त्वं मम नित्या तथा भव ॥ ॐ नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये । या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा में भूयात् त्वदर्चनात् ॥

प्रार्थना करके पूजा किये हुये धागे (ग्रंथि युक्त तंतु) को हाथ में धारण करे, तंतु के साथ 16 दूर्वा भी रखे।। पुरुष दायीं बांह में और स्त्री बांयी बांह में बांधे :

ॐ धनं धान्यं धरां धर्मं कीर्तिमायुर्यशः श्रियम् । तुरङ्गान् दन्तिनः पुत्रान् महालक्ष्मि प्रयच्छ मे ॥

इसी प्रकार सोलह दिनों तक पूजा करे। पूजा करने के बाद कथा श्रवण करे।

सोलहवें दिन पूजा-कथा के बाद विशेषार्घ्य प्रदान करे, दोनों हाथों में विशेषार्घ्य लेकर जानू के बल बैठे (घुटने टेककर) बैठे।

विशेषार्घ्य मंत्र : ॐ न मे जन्मनि दौर्भाग्यं न मे जन्मदरिद्रता । महालक्ष्मि नमस्तुभ्यमर्घ्यं मे प्रतिगृह्यताम् ॥ इस मन्त्र से तीन बार या सोलह बार विशेषार्घ्य प्रदान करे। विशेषार्घ्य देने के बाद प्रणाम करे।

प्रणाम : ॐ इन्दिरा प्रतिगृह्णाति इंदिरा वै ददाति च । इन्दिरा तारकोभाभ्यामिन्दिरायै नमो नमः ॥

क्षमापन : ॐ अबुद्धमतिरिक्तं वा न्यूनं वा यन्मयार्चितम् । तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ॥

डोरकोत्तारण : ॐ लक्ष्मि देवि गृहाण त्वं डोरकं यन्मया धृतं । व्रतं सम्पूर्णतां यातं कृपा कार्या मयि त्वयि ॥ इस मंत्र को पढ़कर जो सोलह ग्रंथि वाला धागा धारण किया गया था उसे उतारे।

दक्षिणा : त्रिकुशा, तिल, जल, दक्षिणाद्रव्यादि लेकर दक्षिणा करे – ॐ अद्य कृतैतत् षोडशदिनपर्यन्त श्रीमहालक्ष्मीपूजन तत्कथाश्रवणकर्म प्रतिष्ठार्थमेतावद्रव्यमूल्यक हिरण्यमग्निदैवतं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे ॥ पढ़कर ब्राह्मण को दक्षिणा प्रदान करे।

फिर सोलह दीप जलाये, गेहूं के आटे का सोलह लड्डू बनाकर और भात बनाकर सोलह अलग-अलग पात्रों में रखे व अलग-अलग सोलह ब्राह्मणों को प्रदान करे। फिर महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिये 16 ब्राह्मणों को भोजन आदि कराये।

F & Q :

प्रश्न : महालक्ष्मी व्रत का शुभ मुहूर्त कब है?
उत्तर : 2024 में महालक्ष्मी व्रत 11 सितम्बर बुधवार से आरंभ होकर 24 सितम्बर मंगलवार तक है एवं पारण 25 अगस्त 2024 बुधवार को। व्रत निर्णय संबंधी चर्चा महालक्ष्मी व्रत कथा वाले आलेख में की जायेगी।

प्रश्न : महालक्ष्मी व्रत कैसे शुरू करें?
उत्तर : महालक्ष्मी व्रत सोलह दिनों तक किया जाता है जो भाद्रशुक्ल अष्टमी को प्रारम्भ होता है। भाद्रशुक्ल अष्टमी को सायाह्न काल में संकल्प करके सोलह बार हाथ-मुंह और पैर धोये। फिर सोलह तंतु वाले डोर में सोलह गांठ लगाकर मालती पुष्प, सोलह दूर्वा आदि चढ़ाकर धारण करे, हाथी पर बैठी महालक्ष्मी की प्रतिमा की पूजा करके व्रत आरंभ करे।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


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