ये तो हम जानते हैं कि स्तोत्रों में अष्टक स्तोत्र का विशेष महत्व होता है। दिशाओं की संख्या ८ है, प्रणाम में ८ अंगों द्वारा प्रणाम करने पर साष्टांग प्रणाम होता है, माला में भी ८ मनके अधिक होते हैं। अष्टक में ८ स्तुति श्लोक होने से वह स्वतः विशेष महत्वपूर्ण हो जाता है। भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिये भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण किया था और उनकी प्रसन्नता के लिये अष्टक स्तोत्रों का पाठ करना विशेष लाभकारी हो सकता है। यहां 4 नरसिंह अष्टक (narsingh ashtakam) स्तोत्र दिये गये हैं।
नरसिंह अष्टक – narsingh ashtakam
सुन्दरजामातृमुनेः प्रपद्ये चरणाम्बुजम् ।
संसारार्णवसंमग्नजन्तुसंतारपोतकम् ॥
श्रीमदकलङ्क परिपूर्ण शशिकोटि-
श्रीधर! मनोहर सटापटल कान्त! ।
पालय कृपालय भवाम्बुधि-निमग्नं
दैत्यवरकाल नरसिंह नरसिंह ॥१॥
पादकमलावनत पातकि-जनानां
पातकदवानल पतत्रिवर-केतो ।
भावन परायण भवार्तिहरया मां
पाहि कृपयैव नरसिंह नरसिंह ॥२॥
तुङ्गनख-पङ्क्ति-दलितासुर-वरासृक्
पङ्क-नवकुङ्कुम-विपङ्किल-महोरः ।
पण्डितनिधान-कमलालय नमस्ते
पङ्कजनिषण्ण नरसिंह नरसिंह ॥३॥
मौलेषु विभूषणमिवामर वराणां
योगिहृदयेषु च शिरस्सु निगमानाम् ।
राजदरविन्द-रुचिरं पदयुगं ते
देहि मम मूर्ध्नि नरसिंह नरसिंह ॥४॥
वारिजविलोचन! मदन्तिम-दशायां
क्लेश-विवशीकृत-समस्त-करणायाम् ।
एहि रमया सह शरण्य विहगानां
नाथमधिरुह्य नरसिंह नरसिंह ॥५॥
हाटक-किरीट-वरहार-वनमाला
धाररशना-मकरकुण्डल-मणीन्द्रैः ।
भूषितमशेष-निलयं तव वपुर्मे
चेतसि चकास्तु नरसिंह नरसिंह ॥६॥
इन्दु रवि पावक विलोचन! रमायाः
मन्दिर महाभुज-लसद्वर-रथाङ्ग ।
सुन्दर चिराय रमतां त्वयि मनो मे
नन्दित सुरेश नरसिंह नरसिंह ॥७॥
माधव मुकुन्द मधुसूदन मुरारे!
वामन नृसिंह शरणं भव नतानाम् ।
कामद घृणिन् निखिलकारण नयेयं
कालममरेश नरसिंह नरसिंह ॥८॥
अष्टकमिदं सकल-पातक-भयघ्नं
कामदं अशेष-दुरितामय-रिपुघ्नम् ।
यः पठति सन्ततमशेष-निलयं ते
गच्छति पदं स नरसिंह नरसिंह ॥९॥
॥ इति श्रीनृसिंहाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
नृसिंहाष्टकम् – 2
ध्यायामि नारसिंहाख्यं ब्रह्मवेदान्तगोचरम् ।
भवाब्धितरणोपायं शङ्खचक्रधरं पदम् ॥
नीलां रमां च परिभूय कृपारसेन
स्तम्भं स्वशक्तिमनघां विनिधाय देवीम् ।
प्रह्लादरक्षणविधायवती कृपा ते
श्रीनारसिंह परिपालय मां च भक्तम् ॥१॥
इन्द्रादिदेवनिकरस्य किरीटकोटि
प्रत्युप्तरत्नप्रतिबिम्बितपादपद्म ।
कल्पान्तकालघनगर्जनतुल्यनाद
श्रीनारसिंह परिपालय मां च भक्तम् ॥२॥
प्रह्लाद ईड्य प्रलयार्कसमानवक्त्र
हुङ्कारनिर्जितनिशाचरवृन्दनाथ ।
श्रीनारदादिमुनिसङ्घसुगीयमान
श्रीनारसिंह परिपालय मां च भक्तम् ॥३॥
रात्रिञ्चराद्रिजठरात्परिस्रंस्यमानं
रक्तं निपीय परिकल्पितसान्त्रमाल ।
विद्राविताखिलासुरोग्रनृसिंहरूप
श्रीनारसिंह परिपालय मां च भक्तम् ॥४॥
योगीन्द्र योगपरीरक्षक देवदेव
दीनार्तिहरि विभवागमगीयमान ।
मां वीक्ष्य दीनमशरण्यमगण्यशील
श्रीनारसिंह परिपालय मां च भक्तम् ॥५॥
प्रह्लादशोकविनिवारण भद्रसिंह
नक्तञ्चरेन्द्र मदखण्डन वीरसिंह ।
इन्द्रादिदेवजनसन्नुतपादपद्म
श्रीनारसिंह परिपालय मां च भक्तम् ॥६॥
तापत्रयाब्धिपरिशोषणबाडवाग्ने
ताराधिपप्रतिनिभानन दानवारे ।
श्रीराजराजवरदाखिललोकनाथ
श्रीनारसिंह परिपालय मां च भक्तम् ॥७॥
ज्ञानेन केचिदवलम्ब्य पदांबुजं ते
केचित्सुकर्मनिकरेण परे च भक्त्या ।
मुक्तिं गताः खलु जना कृपया मुरारे
श्रीनारसिंह परिपालय मां च भक्तम् ॥८॥
नमस्ते नारसिंहाय नमस्ते मधुवैरिणे ।
नमस्ते पद्मनेत्राय नमस्ते दुःखहारिणे ॥
॥ इति श्रीनृसिंहाष्टकं सम्पूर्णम् ॥