शय्याधिवास – प्राण प्रतिष्ठा विधि

शय्याधिवास – प्राण प्रतिष्ठा विधि शय्याधिवास – प्राण प्रतिष्ठा विधि

प्राण-प्रतिष्ठा प्रकरण में ३ अधिवास प्रमुख है – १. जलाधिवास, २, धान्याधिवास और ३. शय्याधिवास। इस आलेख में शय्याधिवास की पूरी विधि और मंत्र बताई गयी है जो प्राण प्रतिष्ठा में विशेष आवश्यक होती है।

शय्याधिवास

  • धान्याधिवास के उपरांत क्रमशः जो भी अन्य अधिवास करना हो करके स्नपन करे।
  • स्नपन के बाद पुरुष सुक्तादि से स्तुति करे।
  • सजाया हुआ रथ तैयार करे इन मंत्रों से प्रतिमाओं को उठाये :
  • ॐ उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते। त्वयि सुप्ते जगत्सुप्तमुत्थिते चोत्थितं जगत् ॥
  • ॐ उत्तिष्ठब्रह्मणस्पते देवयन्तस्त्वेमहे । उप प्र यन्तु मरुतः सुदानव इन्द्र प्राशूर्भवा सचा ॥
  • ॐ आमूरज प्रत्यावर्त्तयेमाः केतुमद्दुन्दुभिर्वावदीति। समश्वपर्णाश्चरन्तिनो नरोस्माकमिन्द्र रथिनो जयन्तु ॥
  • फिर अगले मंत्र से रथ पर विराजमान करे :
प्राण प्रतिष्ठा विधि
प्राण प्रतिष्ठा विधि

ॐ रथेतिष्ठन्नयति वाजिन: पुरोयत्र यत्रकामयते सुखारथिः । अभिशूनाम्महिमानम्पनायतमनः पञ्चादनुयच्छन्तिरश्मयः ॥

शंख आदि मङ्गल वाद्य बजाते हुये रथ पर सवार करके स्वस्तिवाचन आदि मंगल पाठ करते हुये यज्ञ मंडप में लाये । मंडप प्रदक्षिणा करते हुए पश्चिम द्वार से मंडप प्रवेश करे ।

ॐ आकृष्णेन रजसा वर्त्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यञ्च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥ मंत्र पढते हुये मंडप में प्रवेश करे।

भद्रपीठ पर पूर्वाभिमुख प्रतिमा को रखे एवं स्वयं उत्तराभिमुख होकर मधुपर्क प्रदान करके संकल्प करे :

संकल्प मंत्र : ॐ अद्यादि ……………………… प्रतिष्ठाङ्गगत्वेन अर्चाधिवासनं करिष्ये ॥

प्रधान वेदी व हवन कुंड के मध्य में उत्तम शय्या लगाये स्थानाभाव होने पर जहां संभव हो लगाये। सिर पूर्व अथवा दक्षिण दिशा की ओर लगाये ।

शय्या पर पूर्वाग्र कुशा बिछाकर गद्दा, चादर, तकिया आदि लगाये।

रंगे हुए चावल आदि से अष्टदल बनाकर पुष्पों से सजा दे।

फिर शय्या पर पहले पूर्वादि आठों दिशाओं में अक्षतपुञ्ज पुंगीफल आदि देकर पंचोपचार पूजन करे :-

शय्याधिवास
शय्याधिवास

विष्णु प्रतिष्ठा – पूर्व : ॐ विष्णवे नमः॥ अग्निकोण : ॐ श्रीधराय नमः॥ दक्षिण ‌: ॐ मधुसूदनाय नमः॥ नैर्ऋत्यकोण : ॐ हृषीकेशाय नमः॥ पश्चिम : ॐ त्रिविक्रमाय नमः॥ वायव्यकोण : ॐ पद्मनाभाय नमः॥ उत्तर : ॐ वामनाय नमः ॥ ईशानकोण : ॐ दामोदराय नमः॥

शिव प्रतिष्ठा में : पूर्व : ॐ भवाय नमः॥ अग्निकोण : ॐ रुद्राय नमः॥ दक्षिण ‌: ॐ शर्वाय नमः॥ नैर्ऋत्यकोण : ॐ उग्राय नमः॥ पश्चिम : ॐ ईशानाय नमः॥ वायव्यकोण : ॐ भीमाय नमः॥ उत्तर : ॐ पशुपतये नमः॥ ईशानकोण : ॐ महादेवाय नमः॥

फिर देवता के वैदिक मंत्र/सूक्तों को पढ़ते हुये शय्या पर शयन कराकर तीन वस्त्रों से आच्छादन करे।

निद्रा कलश स्थापन :

फिर शिर भाग की ओर भूमि पर अष्टदल आदि बनाकर सुवर्णयुक्त निद्रा कलश स्थापन करे। मंत्र : ॐ अपो देवी रूपसृज मधुमतीरयक्ष्माय प्रजाभ्यः। तासामास्थानादुज्जिहतामोषधयः सुपिप्पलाः॥

  • फिर देवप्रतिमा को मधु और घी से मालिश करे : ॐ आप्यायस्व समेतु ते विश्वतः सोम वृष्ण्यं। भवा वाजस्य सङ्गथे
  • फिर खली (सरसों) मिश्रित तेल से मालिश करे : ॐ या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी । तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि ॥
  • फिर पञ्चोपचार पूजन करे।
शय्याधिवास
शय्याधिवास
  • फिर श्वेत वस्त्र अथवा धागा अर्पित करे या (अथवा रक्षासूत्र) हाथ में बांधे : ॐ बृहस्पते परि दीया रथेन रक्षोहामित्राँ अपबाधमानः । प्रभञ्जन्त्सेनाः प्रमृणो युधा जयन्नस्माकमेध्यविता रथानाम् ॥
  • फिर रंग-बिरंगे नाना प्रकार के कपड़े, चादर आदि अर्पित करे।
  • फिर अगले मंत्र से क्रमशः चरण, नाभि, वक्षस्थल (हृदय) और सिर का स्पर्श करे : ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतो बाहुरुत विश्वतस्पात्‌। सं बाहुभ्यां धमति संपतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन्देव एकः॥
  • फिर अगले मंत्र से देवता के दाहिने भाग में छत्र (छाता)अर्पित करे : ॐ बृहस्पते परि दीया रथेन रक्षोहामित्राँ अपबाधमानः । प्रभञ्जन्त्सेनाः प्रमृणो युधा जयन्नस्माकमेध्यविता रथानाम् ॥
  • फिर अगले मंत्र से देवता के वाम भाग में व्यजन, चमर अर्पित करे : ॐ वातो वा मनो वा गन्धर्वाः सप्तवि ᳪ शतिः। ते ऽअग्रेश्वमयुञ्जँस्ते ऽअस्मिञ्जवमादधुः॥
  • फिर अगले मंत्र से देवता के चरण भाग में नीचे भूमि पर अर्पित करे : ॐ त्रीणि पदा वि चक्रमे विष्णुर्गोपा अदाभ्यः। अतो धर्माणि धारयन्॥
  • फिर अगले मंत्र से देवता के दोनों ओर शांतिकलश रखे : ॐ आजिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दवः पुनरुर्जा निवर्तस्व सा नः। सहस्रन्धुक्ष्वोरुधारा पयस्वतीः पुनर्माविशताद्रयिः ॥
  • फिर पुरोभाग में (देवता के समक्ष) भोजनादि पात्र, आसन, दर्पण, घंटा, भक्ष्य-भोज्यान्न, दूध, दही, घी, मधु आदि, वस्त्र, आभूषण, ताम्बूल एवं अन्य गृहोचित उपयोगी वस्तुयें अर्पित करे : ॐ अभित्वा शूर नो नुमो दुग्धा इव धेनवः । ईशानमस्य जगतः स्वर्दृशमीशानमिन्द्रतस्थुषः॥ एक सुंदर प्रज्वलित दीप भी स्थापित करे।
  • फिर भस्म, कुश/दूर्वा और तिल से चारों ओर घेरा बना दे। घेरा का आरम्भ ईशानकोण से करे और समापन भी ईशानकोण में ही करे। तीनों पंक्तियां पृथक रखे।
  • फिर बलि का संकल्प करे, मंडप के बाहर दशदिक्पाल कलशों के पाश तत्त्तत्मंत्रों से दधिमाषादि की बलि दे। सभी मंत्रों के अंत में पढ़े – ॐ भूतेभ्यो बलिरयमुपतिष्ठतु। बलि प्रदान करके आचमन कर ले।

फिर आचार्य कुंड में देवता संबंधी मंत्र से १००८/१०८/२८/०८ आहुति प्रदान करे : विष्णु के लिये मंत्र – ॐ पराय विष्णवात्मने स्वाहा। शिव के लिये मंत्र – ॐ पराय शिवात्मने स्वाहा। इसी तरह जिस देवता की स्थापना हो उसके लिये होम करे।

फिर न्यासादि करके निद्रा का आवाहन करे।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

0 thoughts on “शय्याधिवास – प्राण प्रतिष्ठा विधि

  1. Aap ne ang nyas aur prat
    ishtha ke mantron ka koi bhi jikar nahin kiya

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