इस आलेख में हम चर्चा करेंगे की सनातन धर्म और इस्लाम में मुख्य अंतर क्या है। दोनों के बीच बहुत सारे बाह्य अंतर भी हैं लेकिन मुख्य अंतर जो कि आंतरिक है, विचार या सोच का है हम उसे ऐतिहासिक उदहारण से समझने का प्रयास करेंगे।
धर्म
धर्म क्या है अर्थात धर्म की परिभाषा के लिये शास्त्रों में बहुत सारे वर्णन मिलते हैं। लेकिन चर्चा धर्म शब्द पर चर्चा करें तो यह संस्कृत का शब्द है जो केवल सनातन के साथ ही लगाया जा सकता है। अन्य भाषाओं में इसका पर्यायवाची शब्द ही नहीं है।
यदि इस्लाम मजहब कहेंगे हो उसका तात्पर्य इस्लाम धर्म नहीं होगा। यदि क्रिश्चियन रिलीजन शब्द बोलेंगे तो उसका तात्पर्य भी क्रिस्चियन धर्म नहीं हो सकता। क्योंकि मजहब या रिलीजन धर्म का भाषांतर में पर्यायवाची शब्द है ही नहीं एवं उनमें धर्म के जो लक्षण होने चाहिये उन लक्षणों का भी अभाव है।
जो किसी मनुष्य (उनके अनुसार ईश्वर का दूत) द्वारा आरम्भ किया गया हो वो पंथ ही हो सकता है। धर्म तो उसे कहते हैं जिसे सृष्टि करने वाले भगवान ने आरम्भ में ही स्थापित कर दिया हो। जिसके बारे में पता नहीं लगाया जा सके कि उसका आरम्भ कब से हुआ है वह सनातन धर्म है।
पंथ
संस्कृत में एक शब्द पंथ भी है जो किसी व्यक्ति विशेष से प्रभावित अनुयायियों के समुदाय का बोध कराता है एवं मजहब या रिलीजन पंथ के ही पर्यायवाची हैं इस प्रकार जब हम इस्लाम मजहब कहते हैं तो उसका तात्पर्य इस्लाम पंथ होता है और क्रिश्चियन रिलीजन कहते हैं तो उसका तात्पर्य क्रिश्चियन पंथ होता है।
बौद्ध भी पंथ है; धर्म नहीं, जैन भी पंथ है; धर्म नहीं।
धर्म के 10 लक्षण
शास्त्रों में धर्म के 10 लक्षण बताये गये हैं, मनुस्मृति का वचन है :
धॄति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥
धैर्य, क्षमा , संयम , अस्तेय ( चोरी न करना ), पवित्रता , इंद्रियों पर नियंत्रण , बुद्धि , ज्ञान, सत्य , क्रोध न करना।
- यदि हम देखें तो उन पंथों में ये लक्षण नहीं मिलते –
- जैसे पवित्रता का पूर्ण अभाव होता है ।
- सत्य का भी महत्व कमतर होता है समय के अनुसार जब सत्य से लाभ मिले तो सत्य और जब असत्य से लाभ मिले तो असत्य का सहारा लिया जा सकता है।
- संयम, अस्तेय, क्षमा, इन्द्रियों पर नियंत्रण, अक्रोध आदि का भी सर्वथा अभाव पाया जाता है।
मजहब-रिलीजन आदि में यदि ये लक्षण हैं ही नहीं तो उसे धर्म कैसे माना जा सकता है। लेकिन किसी व्यक्ति विशेष (जिसे ईश्वर का प्रतिनिधि कहते हैं) के अनुयायी हैं एवं अलग पूजा-पद्धति का अनुपालन करते हैं इसलिये पंथ माने जा सकते हैं।
मनुस्मृति में जो धर्म के 10 लक्षण बताये गये हैं, चूँकि उन लक्षणों के आधार पर ये पंथ जो कि धर्म सत्ता प्राप्ति चाहते हैं नहीं कर सकते इसलिये सबने सनातन के शास्त्रों का नाश करने के लिये अथक प्रयास किये थे और आये दिन करते भी रहते हैं।
दुनिया का सबसे पुराना धर्म कौन सा है
यह प्रश्न बहुत बार उठाया जाता है कि दुनिया का सबसे पुराना धर्म कौन सा है ? बड़ा सामान्य उत्तर है यदि धर्म ही मात्र १ है सत्य सनातन धर्म तो सबसे पुराना धर्म दूसरा कैसे हो सकता है ये तो तब समझा जायेगा जब दूसरा कोई धर्म हो। ऊपर हम समझ चुके हैं कि जो स्वयं को धर्म घोषित करते हैं वो धर्म नहीं पंथ संज्ञक हैं।
सनातन धर्म और इस्लाम में क्या अंतर है ?
सनातन धर्म और इस्लाम के बीच जो मुख्य अंतर है उसे हम समझ चुके हैं। कुछ बाह्य अंतर जो कि व्यवहार में देखे जाते हैं वो भी महत्वपूर्ण हैं :