यहाँ सनातन धर्म और इस्लाम पंथ के दो ऐसे ऐतिहासिक उदाहरण को प्रस्तुत किया गया है जिसके द्वारा बिना कुछ कहे भी सनातन धर्म और इस्लाम पंथ का अंतर भलीभांति समझा जा सकता है।
सनातन धर्म और इस्लाम में सबसे बड़ा अंतर क्या है ?
यहां शब्दों और वाक्यों द्वारा अंतर की चर्चा न करके ऐतिहासिक उदाहरण से अंतर की प्रस्तुति की जा रही है, जिसे पढ़ने के बाद आसानी से अंतर समझ में आ जाता है :
सनातन धर्म और इस्लाम में अंतर का उदहारण
- इस उदाहरण में हम दोनों पक्ष से २ – २ व्यक्तियों पर चर्चा करेंगे जो कि काल्पनिक नहीं, ऐतिहासिक है ।
- सनातन धर्म से जिन दो महापुरषों का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है उनके नाम हैं :- कुमारिल भट्ट और मण्डन मिश्र।
- इस्लाम के जिस दो फकीर का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है उसका नाम है :- ख्वाजा कजल अब्बास मूसा आशिकान और जलाल शाह।
सनातन धर्म को समझने का उदाहरण
650 ईस्वी के लगभग एक बड़े विद्वान हुये थे कुमारिल भट्ट। उस समय बौद्ध नास्तिकता का प्रचार-प्रसार कर रहा था और सनातन में ….. -…. -से-जुदा जैसी मान्यता न होकर शास्त्रार्थ की परंपरा रही है जिसका वर्त्तमान में 4-4 शंकराचार्य होने पर भी अभाव हो गया है।
- कुमारिल भट्ट वैदिक संस्कृति के पोषक थे और बौद्ध के नास्तिकता प्रसार को रोकने के लिये शास्त्रार्थ हेतु बौद्ध धर्म का ज्ञान भी अपेक्षित था अतः तक्षशिला जाकर 5 वर्षों तक बौद्ध धर्म का ज्ञान प्राप्त किये।
- संयोगवश एक दिन बौद्ध गुरु वेद और वैदिक धर्म की घोर निंदा कर रहे थे तो कुमारिल भट्ट की आँखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। बौद्ध तो समझ गये कि यह वैदिक धर्म का ही अनुयायी है।
- लेकिन बाहर करने से पहले इनसे भी वो प्रतिज्ञा कराई गई जो बाकि करते थे – “मैं आजीवन बौद्धधर्म का प्रचार-प्रसार करूंगा व धर्म में आस्था रखूँगा।”
- कुमारिल भट्ट ने आपद्धर्म का पालन करते हुये प्रतिज्ञा किया था लेकिन अपने पूर्व संकल्पित लक्ष्य को ही स्मरण रखा। वापस लौटकर उन्होंने वैदिक धर्म का बहुत संरक्षण किया और बौद्धों को अवरोधित किया। उनके बहुत सारे शिष्य/अनुयायी भी हुये जिनमें से एक मण्डन मिश्र भी थे।
- जब कुमारिल भट्ट को लगा कि अब बौद्धमत को परास्त करने वाले ढेरों विद्वान हो गये तब उन्होंने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय किया।
- प्रायश्चित्त अग्निप्रवेश था। प्रायश्चित्त का एक नियम यह भी है कि गुप-चुप तरीके से नहीं किया जाना चाहिये, अपने पाप की सार्वजनिक उद्घोषणा करके प्रायश्चित्त करना चाहिये।
- उनके ऐसे घोर प्रायश्चित्त कि जानकारी होने पर रोकने हेतु बहुत सारे विद्वान आये।
- दक्षिण के विद्वान शंकराचार्य भी उनके समकालीन ही थे वो भी रोकने के लिये आये। सबने बहुत रोका शंकराचार्य ने तो शास्त्रार्थ तक कि चुनौति दिया लेकिन कुमारिल भट्ट नहीं माने।
- उन्होंने शंकराचार्य को शिष्य मण्डन मिश्र से शास्त्रार्थ करने के लिये कहकर अपना प्रायश्चित्त किया।
पुनः मिथिला के ही एक और विद्वान उदयनाचार्य का नाम आता है। इन्होंने भी बौद्धमत को परास्त किया था।
- शास्त्रार्थ से आगे बढ़ते हुये बौद्धों ने शालिग्राम भगवान को जल में परिवर्तित कर दिया तो उदयनाचार्य ने जल को पुनः शालिग्राम भगवान में परिवर्तित कर दिया फिर भी विजयी कोई नहीं हुआ।
- तब शर्त रखी गयी तार के वृक्ष से कूदने की बौद्ध ने पहले उदयनाचार्य को ही कूदने के लिये कहा।
- उदयनाचार्य तार पर चढ़ गये और ऐसा कहकर कूद गये : “मैं इस कूद रहा हूँ और यदि भगवान हैं तो मुझे कुछ नहीं होगा।” कूदने के बाद एक उंगली टेढ़ी हो गई तो बौद्ध अपनी जीत घोषित करने लगे।
- इस पर उदयनाचार्य ने कहा अभी आपकी जीत नहीं हुई है, मेरी एक त्रुटि के कारण मेरी उंगली टेढ़ी हो गई कि मैंने यदि कहा। मैं फिर से कूदूंगा :
- “भगवान हैं और मुझे कुछ नहीं होगा” ऐसा कहकर दुबारा कूदे तो टेढ़ी उंगली फिर से सीधी हो गई। अब बौद्धों की बारी आयी और कूदकर उनके प्राण-पखेरू उड़ गये।
- विजय तो हो गयी लेकिन इन्होंने बौद्धों की मृत्यु के लिये स्वयं को भी दोषी माना। प्रायश्चित करने के लिये तीर्थाटन करने लगे और जब श्रीजगन्नाथ पुरी गए तो वहां मंदिर का द्वार बंद कर दिया गया था, तब इन्होंने जो जगन्नाथ जी से कहा वो नेत्रों में जल भर देते हैं :
- ऐश्वर्यमद मत्तोऽसि मामवज्ञाय वर्तसे। उपस्थितेषु बौद्धेषु मदधीना तव स्थिति:॥
- अर्थात : ऐश्वर्य के मद में मत्त आप मेरी अवज्ञा कर रहे हैं, किन्तु (निरीश्वरवादी) बौद्धों के उपस्थित होने पर आपकी स्थिति मेरे अधीन है। तुरंत भगवान जगन्नाथ के द्वार खुल गये।
दोनों उदाहरण का निष्कर्ष : दोनों में से किसी ने अपने धर्म का प्रसार करने के लिये कोई अपराध नहीं किया। बौद्ध नास्तिकता का प्रसार कर रहे थे जिसे रोका।
- कुमारिल भट्ट को ने इसलिये प्रायश्चित्त किया कि छल से बौद्ध दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया और बौद्ध गुरु से की गयी प्रतिज्ञा को नहीं निभाया।
- उदयनाचार्य ने इसलिये स्वयं को दोषी माना कि इनसे शास्त्रार्थ के प्रसंग में ही बौद्धों की मृत्यु हुयी थी और इन्होंने भी प्रायश्चित्त किया।
इस्लाम को समझने का उदाहरण
- अयोध्या मंदिर विध्वंस होने से पहले तक वहां की पुजारी थे महात्मा श्यामनन्द।
- इनकी सिद्धियां दूर-दूर तक फैली हुयी थी, राज सम्मान भी था।
- एक समय इनसे दो फकीरों ने ज्ञान लिया जिसका नाम था – ख्वाजा कजल अब्बास मूसा आशिकान और जलाल शाह।
- जिसने ज्ञान और सिद्धियां पाने के बाद बाबर (मीर बांकी) की सेना द्वारा उन चारों की हत्या करावा दी, राम मंदिर का विध्वंस करा दिया। पावन अयोध्या पुरी को कब्रिस्तान बना दिया।
इसके संबंध में पूर्व भी एक आलेख प्रकाशित की जा चुकी है।
सनातन के भी दो विद्वानों का ऐतिहासिक उदहारण दिया गया जिन्होंने विस्तारवादी को रोकने और धर्म रक्षा करने के लिये हुये अनायास अपराध के लिये भी प्रायश्चित्त किया। उदयनाचार्य ने भी न तो हत्या किया था न कराया था फिर भी बौद्धों की मृत्यु का स्वयं को दोषी मानकर प्रायश्चित्त किया।
वहीं दूसरी और दोनों फकीरों ने जिहाद के लिये पहले महात्मा श्यामनन्द को गुरु बनाकर सीखा फिर हत्या और विध्वंस कराया।
आशा है इन दोनों ऐतिहासिक उदाहरणों से सनातन धर्म का सन्देश क्या है, इस्लाम मजहब का सन्देश क्या है और दोनों सबसे बड़ा अंतर क्या है आप लोग समझ चुके होंगे।