महाष्टमी पूजा, निशापूजा विधि, देवी जागरण

महाष्टमी निशापूजा, देवी जागरण – Navratri 8

नवरात्र में निशीथव्यापिनी अष्टमी को महानिशापूजा होती है। इसी को जगरना या देवी जागरण आदि भी कहा जाता है। यह प्रायः उदयव्यापिनी सप्तमी के दिन ही प्राप्त होता है तथापि यह आवश्यक नहीं है। उदयव्यापिनी अष्टमी भी निशीथव्यापिनी हो सकती है। जब उदयव्यापिनी अष्टमी ही निशीथव्यापिनी भी होती है तब अगले दिन निशापूजा किया जाता है।

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दुर्गा पूजा : पत्रिकाप्रवेश विधि, महासप्तमी पूजा, नवपत्रिका पूजा

पत्रिकाप्रवेश : नवपत्रिका पूजा, महासप्तमी पूजा – 9 patrika puja

सप्तमी के दिन किये जाने वाले पूजा को पत्रिकाप्रवेश : नवपत्रिका पूजा, महासप्तमी पूजा – पत्रिका प्रवेश और महासप्तमी पूजा कहा जाता है। यहां बिल्वानयन, पत्रिकाप्रवेश, नवपत्रिका पूजन और महासप्तमी पूजन विधि एवं मंत्र दिये गये हैं।

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दुर्गा पूजा : बिल्वाभिमन्त्रण विधि

दुर्गा पूजा : बिल्वाभिमन्त्रण विधि

दुर्गा पूजा : बिल्वाभिमन्त्रण विधि – नवरात्र की पिछली तीनों तिथियां विशेष हैं – महासप्तमी, महाष्टमी और महानवमी । इन तीनों दिनों विशेष पूजा की जाती और उसका प्रारंभ षष्ठी को सायंकाल से ही हो जाता है। षष्ठी को सायंकाल में बिल्वाभिमंत्रण किया जाता है जिसे अगली प्रातः में भगवती का आवाहन-पूजन करने हेतु शिविका में स्थापित करके लाया जाता है।

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कलश स्थापन पूजन विधि

नवरात्रि पूजन विधि : संकल्प, स्वस्तिवाचन, कलशस्थापन, दुर्गा पूजा, अंग पूजा – Puja No. 1

नवरात्रि पूजन विधि : संकल्प, स्वस्तिवाचन, कलशस्थापन, दुर्गा पूजा, अंग पूजा – नवरात्र में दुर्गा पूजा करने की भिन्न विधि होती है और उसमें भी दो विधि हो जाती है एक मंदिरों में पूजा की विधि और दूसरी घर में पूजा करने की विधि।

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ऋषि पंचमी व्रत पूजा विधि और कथा

भाद्र शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी कहा जाता है। इस दिन व्रत पूर्वक अरुंधतिसहित सप्तर्षियों का पूजन करना चाहिये। पूजा करने के उपरांत कथा श्रवण करे और फिर विसर्जन दक्षिणा करे। इस व्रत का माहात्म्य चकित करने वाला है क्योंकि यह व्रत प्रायश्चित्तात्मक है। स्त्रियां जो रजस्वला संबंधी स्पर्शास्पर्श नियमादि का उल्लंघन करती हैं चाहे ज्ञात रूप से हो अथवा अज्ञात रूप से ऋषि पंचमी के प्रभाव से उस दोष का शमन हो जाता है।

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पूजा क्रमावली

कर्मकांड की क्रमावली अर्थात पूजन क्रम, वेदी पूजन क्रम 1.2.3.

पूजा-अनुष्ठान-यज्ञादि संबंधी कर्म में अनेकानेक कर्म होते हैं और उनकी विशेष क्रियाविधि ही नहीं है, विशेष क्रम भी है और क्रम पूर्वक ही करना चाहिये। विस्तृत पूजा-अनुष्ठान-यज्ञ से लेकर सामान्य पूजा संबंधी, वेदी पूजन, क्रमों का इस आलेख में व्यापक वर्णन किया गया है जो कर्मकांड सीखने वालों के लिये बहुत ही उपयोगी है।

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क्षेत्रपाल मंडल पूजा

क्षेत्रपाल मंडल पूजा – क्षेत्रपाल स्तुति मंत्र

क्षेत्रपाल मंडल वायव्यकोण में स्थापित किया जाता है जिसमें अजर आदि 49 देवताओं की पूजा की जाती है। क्षेत्रपाल मंडल दिये गये चित्रानुसार बनाकर नीचे दिये गये मंत्रों से सबका पृथक-पृथक आवाहन करते पूजन करे।

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चतुःषष्टी योगिनी पूजा विधि

६४ योगिनी पूजा विधि – 64 Yogini

योगिनी पूजा विधि : योगिनी मंडल में आवाहन पूजन वामावर्त्त अर्थात अप्रदक्षिण/अपसव्य क्रम से किया जाता है। चतुःषष्टि योगिनी मंडल में आठ पंक्तियां होती है अतः आठ आवरणों में मंडल पूजा की जाती है। इस आलेख में योगिनी मंडल का आवाहन मंत्र और पूजा विधि दी गयी है।

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नवग्रह मंडल पूजा विधि

नवग्रह मंडल पूजा

सभी प्रकार के पूजा-हवनों में नवग्रह मंडल पूजा विशेष रूप से की जाती है। जब सामान्य पूजा कर रहे होते हैं अर्थात वेदियां नहीं बनाते हैं तब भी नाममंत्र से ही सही नवग्रह और दश दिक्पाल की पूजा करते ही हैं। लेकिन जब नवग्रह मंडल बनाकर पूजा की जाती है तो नवग्रह मंडल पर अधिदेवता-प्रत्यधिदेवता-पंचलोकपालादि का भी आवाहन-पूजन किया जाता है।

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चतुर्लिंगतो भद्र मंडल पूजा विधि

चतुर्लिंगतो भद्र पूजन : प्रधान वेदी 2

चतुर्लिंगतो भद्र पूजन : भगवान शिव की पूजा लिंग में की जाती है इसी प्रकार जब भगवान शिव की पूजा हेतु वेदी निर्माण का प्रसंग आता है तो उसमें भी लिंगतोभद्र बनाने का विधान है। अन्य सभी वेदियां एक से दो प्रकार की ही होती है, जिनमें से एक प्रकार ही प्रचलन में होता है। किन्तु बात जब लिंगतोभद्र की आती है तो इसके अनेक प्रकार होते हैं : एक लिंगतोभद्र, चतुर्लिंगतो भद्र, अष्टर्लिंगतो भद्र, द्वादशर्लिंगतो भद्र।

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