
पंचक शांति पूजन सामग्री
पञ्चक शांति पूजन का तात्पर्य है पञ्चक में हुई मृत्यु दोष के शांति हेतु की जाने वाली पूजा-हवन विधि। यहां दी गयी सामग्री सूचि पञ्चक में हुयी मृत्यु के लिए की जाने वाली शांति विधि के लिये ही है।
श्राद्ध (Shraddh) कर्मकांड का एक महत्वपूर्ण अंग है और कई बार कर्मकांड का तात्पर्य भी श्राद्ध लगाया जाता है। एकादशाह-द्वादशाह में मासिक और सपिण्डी श्राद्ध के अतिरिक्त भी विभिन्न अवसरों पर भिन्न-भिन्न श्राद्ध किये जाते हैं यथा नान्दी श्राद्ध, वार्षिक श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध, तीर्थ श्राद्ध, त्रिपिंडी श्राद्ध, नारायण बलि श्राद्ध इत्यादि। इस श्रेणी में विभिन्न श्राद्धों की विस्तृत जानकारी देते हुये विधि और मंत्र बताये गये हैं।
पञ्चक शांति पूजन का तात्पर्य है पञ्चक में हुई मृत्यु दोष के शांति हेतु की जाने वाली पूजा-हवन विधि। यहां दी गयी सामग्री सूचि पञ्चक में हुयी मृत्यु के लिए की जाने वाली शांति विधि के लिये ही है।
अद्यैतस्य ………. मासे ……… पक्षे ……… तिथौ ……… वासरे ……… गोत्रोत्पन्नः ……… शर्माऽहं/(वर्माऽहं/गुप्तोऽहं) धनिष्ठादिपञ्चकनक्षत्रान्तर्गत ……….. नक्षत्राधिकरणक दुर्मरणजन्य दोष शान्त्यर्थं सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक मम गृहे सर्वेषां बालादीनां दीर्घायुरारोग्यसुख प्राप्त्यर्थं पञ्चकमरणशान्तिमहं करिष्ये॥
जिन घरों में श्राद्ध सही विधि से नहीं किया जाता उनके पितर अतृप्त होकर कुपित हो जाते हैं। किसी भी प्रकार से यदि पितृ दोष ज्ञात हो तो त्रिपिंडी श्राद्ध करना चाहिये। जब प्रेत बाधा हो और किसी प्रकार से शांत न हो रही हो तो उस स्थिति में त्रिपिण्डी श्राद्ध करना चाहिये।
प्रेत बाधा से मुक्ति के उपाय में त्रिपिण्डी श्राद्ध का प्रमुख स्थान आता है। अज्ञात नामगोत्र वाले प्रेत के लिये अज्ञात नामगोत्र से सात्विक, राजसिक और तामसिक प्रेत कहकर बहुवचन में श्राद्ध किया जाता है।
विष्णुतर्पण करने के लिए ताम्बे/मिट्टी के पात्र में जल, दूध, तिल, जौ, तुलसी, सर्वोषधि, चन्दन, फूल, फल रखकर तर्पण जल बना ले। एक अन्य पात्र में शालिग्राम को रखे। सव्य-पूर्वाभिमुख दाहिने हाथ में शंख लेकर उसी जल से शालिग्राम पर जल गिराते हुये विष्णु-तर्पण करे। पहले पुरुषसूक्त की 16 ऋचाओं को पढ़कर प्रत्येक मन्त्र के अन्त में “विष्णुं तर्पयामि” कहकर जल दे ।
सभी प्रकार की प्रेतबाधा या पितृ दोष से मुक्ति होने के लिए त्रिपिण्डीश्राद्ध किया जाता है। सामान्यतः उपलब्ध सभी त्रिपिंडी श्राद्ध वाजसनेयी पद्धति हैं और छन्दोगी विधि अनुपलब्ध है।
ॐ तेजोऽसि शुक्रममृतमायुष्पाऽआयुर्मेपाहि । देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्याम्पूष्णोहस्ताभ्यामाददे ॥१॥ इमामगृभ्णन्रशनामृतस्य पूर्व ऽआयुषिव्विदथेषुकव्या । सा नो ऽअस्मिन्सुत ऽआ बभूवऽऋतस्य सामन्त्सरमारपन्ती ॥२॥
जिन घरों में श्राद्ध सही विधि से नहीं किया जाता उनके पितर अतृप्त होकर कुपित हो जाते हैं। किसी भी प्रकार से यदि पितृ दोष ज्ञात हो तो त्रिपिंडी श्राद्ध करना चाहिये। जब प्रेत बाधा हो और किसी प्रकार से शांत न हो रही हो तो उस स्थिति में त्रिपिण्डी श्राद्ध करना चाहिये।
श्राद्ध के दिन किये जाने वाले कार्यों को तीन भागों में विभाजित करके बताया गया है जिससे समझने में आसान है। साथ ही साथ शास्त्रों के प्रमाण भी दिये गये हैं जिससे विश्वनीयता में भी वृद्धि हो सके।
दान करने की विधि और मंत्र : पूर्वाभिमुख तण्डुल पाकपात्र (चावल सहित) पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छिड़के : ॐ सतण्डुल पैत्तल तण्डुल पाकपात्राय नमः नमः ॥३॥ ब्राह्मण के दाहिने पैर की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥